Thursday, November 24, 2022

हिन्दी बनाम अंग्रेजी

इस चिट्ठी में, जयन्त विष्णु नार्लीकर के हिन्दी एवं मातृ भाषा के बारे में विचारों की चर्चा है। 

इस विषय को, फिल्म 'हिन्दी मीडियम', बेहतरीन तरीके से उठाती है। नीचे इस फिल्म का टेलर है

चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकर

मेरे पिता हिन्दी प्रेमी थे। वे इतना पैसा कमाते थे कि वे हमें हिन्दुस्तान में किसी भी विद्यालय में पढ़ने भेज सकते थे पर उन्होंने हमे कस्बे में ही एक हिन्दी मीडियम स्कूल में भेजा। हमारे घर में, अंग्रेजी में बात करना मना था।  

मैं भी हिन्दी प्रेमी हूं। इसकी चर्चा मैंने अपनी मां को याद करते समय यहां की है। मेरी पहली चिट्ठी भी इसी विषय पर थी। मुझे हिन्दी फिल्मों  के अभिनेताओं तथा गायकों का अंग्रेज़ी भाषा में बोलना कभी समझ में नहीं आया।

कुछ समय पहले, जब मेरे सहायक ने अपने बच्चों को (जिनकी फीस में देता हूं) स्कूल में दाखिला लेने की बात की  तब मैंने उसे हिन्दी मीडियम में डलवाया।  

लेकिन अपनी कॉलोनी और बगल के पार्क में घूमते हए बच्चों और उनकी मांओं को अंग्रेजी में बात करते सुन कर दुख होता है। वे भटक गये हैं।  वे नहीं समझ पाते की वे न केवल अपने बच्चों का पर अपनी सभ्यता का  कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। इन सब की चर्चा, मैंने यहां की है। 

जयन्त विष्णु नार्लीकर भी कुछ इसी तरह के विचार रखते हैं जो उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा है। वे लिखते हैं कि,

'आजकल हमारे शहरों के मध्यम वर्ग पर अंग्रजी माध्य़म की पाठशालाओं ने जादू कर दिया है। अंग्रेजी के कारण भविष्य में कैरियर में अधिक अच्छे अवसर मिलते है बोलचाल 'पॉलिश्ड' हो जाती है इत्यादि कारण देकर अभिभावक  अंग्रेजी माध्यम की शालाओं का समर्थन करते हैं मुझे ये बातें उचित नही लगतीं। हिन्दी वातावरण में पलने-बढने के कारण मुझे और अनन्त को हिन्दी, अपनी मातृभाषा ही प्रिय लगती थी। मातृभाषा में शिक्षा लेना अधिक सुलभ होता है क्योंकि विचार करने और विचार रखने की वह भाषा अपनी होती है। मैंने अंग्रजी भाषा दूसरी भाषा के रूप में तीसरी से मैट्रिक तक सीखी । तब तक अंग्रेजी बोलने में न सही लेकिन समझने लायक परिपक्वता मुझमें आ गई थी। इसीलिए इंटरमीडिएट क्ळासेज से (आज के जूनियर कालिज) अंग्रजी माध्यम शुरू हो जाने पर भी मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी नही हुई। न हिन्दी माध्यम में शिक्षा लेने के काारण मेरे कैरियर में कोई रुकावट हुई।  ...
लोगों में एक ऐसी गलत धारणा बन गई है कि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा लिए बिना बच्चों को अच्छी नौकरी, काम धंधा नही मिलता। लेकिन वास्तव में विषय को ठीक से समझने के लिए उसे मातृभाषा में ही पढना चाहिए ऐसा मेरा कहना है। अनेक विशेषज्ञों ने भी यही मत व्यक्त किया है । मराठी माध्यम के विध्यालय में अंग्रेजी को दूसरी भाषा रखना चाहिए, क्योंकि वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी एक 'सेकेंड लैंंग्वेज' के रूप में काम आती है। मेरी शिक्षा बनारस में हिन्दी माध्यम से हुई। हिन्दी मेरे लिए अपनी मातृभाषा जैसी ही थी औेर अंग्रजी का अध्ययन तीसरी कक्षा कर बाद शुरू हुआ। दसवीं तक हिन्दी माध्यम पढा़ई होने पर भी मुझे कभी ऐसा नही लगा कि मैं किसी से कम हूँ।'

वे आगे लिखते हैं,

'प्रायमरी से सेकेंडरी में प्रवेश करने के बाद कुछ सहकारियों ने पिताजी को सलाह दी कि वे मुझे किसी विख्यात अंग्रजी माध्यम के विध्यालय में डालें और आवश्यकता पङे तो बनारस से बाहर भी भेजें। मेरे एक सहपाठी ने मसूरी के बोर्डिग स्कूल में प्रवेश लिया था, तो कुछ मित्र बनारस में ही दूसरे बड़े विध्यालय में प्रवेश लेने वाले थे जहां अंग्रेजी माध्यम था। ऐसे विध्यालय की तुलना में मेरा विद्यालय एकदम साधारण और हिन्दी माध्यम का था। पर सब कुछ जानते हुए भी पिताजी ने मुझे मसूरी-देहरादून के किसी नामी विध्यालय में नही भेजा, वर्तमान विध्यालय में ही भेजने का निर्णय लिया। उनका कहना था कि एक तो मेरा विध्यालय शैक्षिक अधिवास में था और शिक्षा कर क्षेत्र में सक्रिय मध्यम वर्ग का वह प्रतीक था। जहां उच्च स्तर (पैसा या अधिकारशाही के मानक के अनुसार) के समाज के बच्चे आते हैं, ऐसे बड़े विध्यालय में डाल कर मेरे जीवन मूल्य बदलने का उनका विचार नहीं था। मैं जिस वातावरण में जन्मा  और बढ रहा था उसी में मेरी शिक्षा जारी रखने का उन्होने निर्णय लिया। ...

विध्यालय से कॉलेज जाने पर एक बड़ा फर्क माध्यम का हुआ। विध्यालय में दस वर्ष मैं हिन्दी माध्यम से पढा था और अब अंग्रजी माध्यम में सब पढना पड़ता था। वैसे दूसरी भाषा के रूप में मैंने अंग्रजी विषय तीसरी कक्षा से पढा था, अनेक विख्यात अंग्रजी उपन्यास भी पढे थे, इसलिए लिखने-पढने में अंग्रजी विशेष कठिन नही लगी। लेकिन सुनने-बोलने की आदत होने में कुछ महीने लगे। मेरे  अपने अनुभवी और अन्य उदाहरणों को दे लगता है कि कम से कम प्राथमिक विध्यालय में तो शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए। क्योंकि गणित और विज्ञान जैसे विषय जिन्हे समझना आवश्यक होता है वे मातृभाषा में ही अच्छी तरह समझ में आते हैं। अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा में ये विषय सीखने से विद्यार्थियों का अधिक समय अंग्रेजी का अनुवाद करने में जाता और विषय समझने को दोयम स्थान दिया जाता है। अंग्रेजी को दूसरी भाषा के रूप में ४-५ वर्ष सिखाया जाए तो आगे चलकर अंग्रेजी माध्यम कठिन नही लगता। काॅलेज में गणित और विज्ञान अंग्रेजी में सिखाए जाने योग्य है, क्योंकि विश्व भाषा में इन विषयों का साहित्य विध्यार्थियों कों सुलभता से उपलब्ध होता है।'

नार्लीकर न केवल मातृ भाषा में पढ़ने-पढ़ाने पर विश्वास रखते हैं पर उन्होंने अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम के विध्यालयों में नहीं पढ़ाया। वे लिखते हैं

'कुलाबा और फोर्ट विभाग में एक से बढकर एक अंग्रेजी विध्यालय होने पर भी हमें कभी उनका आकर्षण नही लगा। ऐसे अनेक तारांकित विध्यालयों में मेरे TIFR के मित्रों ने, अपने बच्चों का दाखिला करवाया। उन्ही में से एक विध्यालय में, TIFR की बस द्वारा ये बच्चे जाते थे, क्यों तब विध्यालय की अपनी बस नहीं थी। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को अपनी आलीशान मोटर गाड़ियों से लाते, ले जाते थे। फिर ऐसे बच्चों में अपने आप अहंभाव पनपता था। जो बच्चे इस्पोर्टेड कार से अते वो अम्बैसेडर, फिएट जैसी देसी गाङियों से आने वाले बच्चों को तुच्छता से देखा करते थे। ऐसे ही एक महंगे विध्यालय में TIFR के एक वैज्ञानिक से उसके बच्चे के प्रवेश के समय मुख्याध्यापक ने पूछा, “TIFR में मिलने वाले वेतन से क्या आप इस विध्यालय का खर्च उठा सकेंगे? फिर से एक बार विचार कर लीजिए, यह विध्यालय आपको पुसाएगा या नही इस बारे में मुझे सन्देह है।"'

लेकिन  क्या हम समझेंगे।

 About this post in Hindi-Roman and English

Hindi (Devnagree) kee is chitthi mein, Jayant Vishnu Narlikar ke hindi aur matra basha ke vicharon  kee charchaa hai.
This post in Hindi is about views of Jayant Vishnu Narlikar about Hindi and mother tongue.

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1 comment:

  1. Anonymous1:19 pm

    मैं भी हिंदी संस्कृत प्रेमी और टॉपर

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