Wednesday, March 22, 2006

तीन दिन: भगवान के घर में - तीसरा दिन

वायनाड जिले के दक्षिण-पुर्व हिस्से में पहाड़ी है, देखने में यह एक लेटी हुई महिला लगती है: बायीं तरफ उसके पैर हैं तथा दायीं तरफ सिर| हिन्दू पुणान के अनुसार भगवान राम ने ताड़का का वध किया था और यह ताड़का ही है जो गिरी पड़ी है| मुझे तो वह कोई दानवी नहीं लगी, दृश्य इतना सुन्दर है कि मुझे वह एक लेटी हुई सुन्दरी लगी| इसी सुन्दरी के वक्ष-स्थल के नीचे है एडक्कल गुफायें, जहां हमें तीसरे दिन सुबह जाना था|

एडक्कल गुफायें
एडक्कल मलयालम का शब्द है जिसका मतलब होता है चट्टान – चट्टानों के बीच में| यह दो गुफायें हैं जो कि ऊपर की तरफ से एक चट्टान से बन्द है| यह कोई तीस हज्जार साल पहिले भूकम्प के कारण बनी बतायी जाती हैं| कुछ दूर आप जीप से जा सकते हैं, फिर कुछ ऊपर सीड़ियों से, तब टिकट घर जहां से टिकट लीजये, फिर पत्थर तथा लोहे की सीड़ियां, तब गुफायें| पहली गुफा की दीवालों पर कुछ नही है पर दूसरी बहुत कुछ खुदा है| कुछ तस्वीरें हैं जिनकी अपनी कथा है; कुछ पुरानी द्राविदियन भाषा में लिखा है, 'यहां वह शूरवीर आया था जिसने हज़ार शेर मारे हैं'

यह गुफायें करीब १२०० मीटर की ऊचांई पर हैं| पहाड़ी की चोटी इन गुफाओं से भी ३०० मीटर ऊपर है| यदि आप पहाड़ी की चोटी पर चढना चाहते हैं तो गुफाओं से उपर चढना पड़ेगा; कुछ दूर रस्सी के सहारे, कुछ दूर पहाड़ी पर| यह जोश का काम है| कुछ लड़के केरल के पौलीटेक्नीक से आये थे वे चढ रहे थे मुझे भी जोश आ गया, मैं भी चढने लगा| लड़को ने अभी जीवन के एक चौथाई बसन्त देखे थे और मैं जीवन के दो-तिहाई से ज्यादा बसन्त देख चुका हूं २०० मीटर चढने के बाद मुझे लगा शायद ऊपर तक चढ तो जाऊंगा पर नीचे न उतर पाउगां और कहीं एकदम ऊपर न चला जाऊं| कुछ लड़के मुझसे नीचे से ही वापस चले गये, कुछ मुझसे ऊपर तक भी गये, दो ने कहा कि वे चोटी तक गये थे मैनें उनसे कहा कि मुझे ऊपर से ली गयी फोटो भेजना; अभी तक नहीं आयी हैं आयेगीं तो आपको भी दिखाउंगा| नीचे गुफा पर कुछ लड़कियां पहाड़ी की चोटी पर चढने को आतुर दिखा पड़ी| मैने उन लड़कियों के जोश की सरहना की और उनको एक ईनाम देने की बात भी कही, यदी वे पहाड़ी की चोटी पर चढ पायीं| अभी तक किसी ने इनाम क्लेम नही किया है, कोई करेगा तो आपको भी बताउगां|

हेरिटेज़ म्यूज़ियम
एडक्कल गुफायें से हम लोग हेरिटेज़ म्यूजियम आये| वहां के मैनेजर ने बतया कि यह ज़िले स्तर का म्यूज़ियम है तथा अपनी तरह का हिन्दुस्तान में पहला| इस म्यूज़ियम में वायनाड ज़िले पायी जाने वाली मूर्तियां तथा ट्राइबल लोगों का समान है| यहां से लेटी हुई सुन्दरी एकदम साफ दिखायी पड़ती है| यदी यहां पर एक दूरबीन होती तो एडक्कल गुफायें को अच्छी तरह से देखा जा सकता था शायद आप कभी भविष्य में जायें तो वहां आपको एक दूरबीन मिले|

जगंल - कुलार्च रेजं
हम लोग शाम को जगंल वायनाड वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी की कुलार्च रेजं से गये| इसके बद जगंल के अन्दर- अन्दर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान गये जहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय है| यहां पर जानवर पानी पीने आते हैं| हम लोगों ने यहां पर हाथियों तथा जगंली सुअरों के झुन्डों को देखा|

रात हो चली थी हम लोग वापस चल दिये| रास्ते में एक गार्ड पोस्ट पर एक शोधकर्ता से मुलाकात हई, वह टाईगरों की सख्यां के बारे में शोध कर रहे थे| उन्होने बताया कि टाईगरों की सख्यां के बारे में बताना कठिन कार्य है पर तीन तरीकों से अलग अलग जगंलो में टाईगरों की सख्यां के सापेक्षिक घन्तव के बारे में शोध किया जा सकता है|
  1. रोज़ जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के पजों के निशान देखे जाते हैं|
  2. रोज़ जगंल के अलग-अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी चल कर टाईगरों के मल के सैम्पल को लेकर उसकी डी. एन. ए. (DNA) टेस्टिन्ग की जाती है पर अभी यह तक्नीक अपने देश में बहुत विकसित नही है|
  3. जगंल के अलग अलग हिस्से पर एक निश्चित दूरी पर दो तरफ कैमरे लगायें जाते हैं तथा जब कोई जानवर इनके बीच आता है तो उसकी दोनो तरफ से फोटो ले ली जती है| हर टाईगर की धारियां अलग-अलग होती हैं इससे टाईगरों की पहचान की जा सकती है| यह कैमरे केवल रात मे ही चलते क्योंकि टाईगर रात मे निकलता है| वह इसी प्रकार से शोध कर रहा था|

शोधकर्ता के अनुसार बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में टाईगरों की सख्यां सबसे ज्यादा है तथा लगभग १४ टाईगर प्रति १०० वर्ग किलोमीतर है| मैं बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी में टाईगरों की सख्यां सबसे ज्यादा समझ्ता था उसके मुताबिक यह केवल ११ टाईगर प्रति १०० स्कवैर किलोमीतर है| मैने उससे यह कहा कि यदी ऐसा है तो लोगों को क्यों बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी में हमेशा टाईगर दिख जाता है पर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में नही| उसका जवाब मजेदार था| उसके मुताबिक बान्धवगड़ वाईल्ड लाईफ सैक्चुंरी एक टूरिस्ट स्पौट के रूप में विकसित हो चुका है और वहां के टाईगरों को जीप का डर समाप्त हो चुका है इसलिये वह सामने आ जाते हैं पर बन्दीपुर राष्ट्रीय वन उद्यान में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है| हम लोग वापस चल दिये क्योंकि अगले दिन सुबह हमें वापस घर के लिये प्रस्थान करना था|

हम लोग वायनाड मे दो दिन थे| यह कम थे वहां कुछ झरने, द्वीप्समूह, तथा डैम है जो कि समय की कमी रहते हम लोग नही देख पाये| हमारी केरल की यत्रा सुखद थी पर एक बात में कहना चाहूगां, मैने कई जगह छोटे तथा बड़े धार्मिक स्थल बने या बनते देखे, शायद जरूरत से ज्यादा| स्कूल, अस्पताल, कारखाने एक तरह के भाव मन में लाते हैं तथा धार्मिक स्थल कुछ अलग तरह के भाव मन में लाते हैं| कहीं यह किसी तनाव, या अशान्ति का सूचक तो नहीं| यदी ऊपर कोई है तो वह चाहे ख़ुदा हो, या ईश्वर हो, या भगवान हो| वह न ही वह अपने वतन, देश, घर को, पर हमारे देश भारतवर्ष तथा इस विश्व को रहने लायक बना कर रखे - ऐसी कामना, ऐसी इच्छा, ऐसा विश्वास लिये हम घर वापस लौटे|

तीन दिन: पहला/ दूसरा/ तीसरा


1 comment:

  1. उन्मुक्त, यात्रा विवरण तो बहुत अच्छा है पर अगर साथ में तस्वीरें भी होतीं तो और भी अच्छा हो जाता.
    सुनील

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