इस चिट्ठी में, बर्लिन दीवाल और उसके टूटने की चर्चा है।
बर्लिन दीवाल पार करते समय, ९० लोग मार दिये गये थे। पूर्वी बर्लिन के गार्ड की गोली से मरा एक यूवक
बर्लिन दीवार १९६१ में बनी थी और १९९० में, तोड़ दी गयी है। इस समय, दिखाने के लिये कि यह कैसी थी, कुछ जगह उसी तरह से है। बर्लिन दीवार, जहां पर हटा दी गयी है, वहां दो ईंटो की लाइन बिछी है जिससे पता चलाता है कि यहां पर बर्लिन दीवार थी। जगह-जगह उसमें लोहे की प्लेट जड़ी है। जिस पर नम्बर लिखें हैं। शायद किसी निश्चित जगह से उसकी दूरी बताते हैं।
बर्लिन दीवाल इसलिये बनायी गयी थी ताकि लोग पूर्वी जर्मनी से, पश्चिमी जर्मनी की तरफ न जा सके। बस में चल रही कमेंटरी से पता चला कि इसके बनने के बावजूद भी लगभग ५००० लोग भागने में सफल हो गये पर ९० लोग मार दिये गये थे। जिसमें ६० गोलियों के शिकार हुए।
हमारी बस वहां से भी गुजरी, जहां पर बर्लिन दीवाल का कुछ भाग अब भी है। वहां से गुजरते समय, मुझे १९६० के दशक में पढ़ा उपन्यास - The Spy Who Came In From Cold - की याद आयी। उसी समय इस पर बनी फिल्म भी देखी थी। इस उपन्यास को John le Carre ने लिखा है। यह उस समय बर्लिन में चल रहे शीत युद्ध पर आधारित एक डबल एजेंट की कहानी है जिसमें बर्लिन दीवाल की अहम भूमिका है। इसमें कोई शक नहीं कि यह, शीत युद्ध से जुड़ा, सबसे बेहतरीन जासूसी रोमांचकारी उपन्यास है।
जब जर्मनी के दोनों भाग जुड़ रहे थे तब बहुत से लोग कहते थे क्योंकि कि पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चिमी जर्मनी के कारण अमीर हो जायेंगे। इस बारे में पूछने पर वहां लोगों ने बताया कि ऎसा नहीं हुआ। पूर्वी जर्मनी अब भी गरीब है। वहां रोजगार के साधन नहीं हैं। वहां अधिकतर शहरों में जनसंख्या कम होती जा रही है। युवक युवतियां वहां से निकल कर पश्चिमी जर्मनी आ रहे हैं और पूर्वी जर्मनी के शहर केवल वृद्घ लोगों के शहर होते जा रहे हैं।
कई लोगों से, डरते डरते, मैंने कुछ सवाल द्वितीय विश्वयुद्घ के बारे में किये। उनका कहना था कि हांलाकि नयी पीढ़ी यह नहीं समझ पाती है कि जिसे देश में इतने विचारक, इतने दार्शनिक हुए हैं उन्होंने ऎसा काम कैसे कर दिया पर नई पीढ़ी यह भी सोचती है कि यह काम पुरानी पीढ़ी ने किया है जिसके लिये वे उत्तरदायी नहीं हैं।
बर्लिन दीवाल का टूटना, पूर्वी-पश्चिमी जर्मनी का आपस में विलय, होना यह एक भावनात्मक बात थी। मुझे जर्मन लोगों ने बाताया कि उन्हें इसकी प्रसन्नता है कि वे फिर से जुड़ गये हैं।
हमारे भी - दो टुकड़े हुए हिन्दुस्तान और पाकिस्तान। बाद में पाकिस्तान के भी दो। यानि कि हम दो से तीन हो गये हैं। हम में एक खून है, एक सभ्यता है - क्या कभी हम तीन मिल कर एक हो सकेगें।
बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।। बर्लिन में भाषा की मुश्किल।। ऑफिस, स्कूल साइकिल पर – स्वास्थ भी बढ़िया, पर्यावरण भी ठीक।। बर्लिन दीवार का टूटना और दिलों का मिलना।।
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यह पोस्ट मेरी बर्लिन यात्रा का संस्मरण है और बर्लिन दीवाल के बारे में है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें। yah post berlin yatraa ka sansmranna hai aur berlin deevaal ke baare men hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen. This post is part my travel to Berlin and is about Berlin wall. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script. |
बर्लिन की दीवार टूटना एक भौतिक घटना रही होगी। पर मेरे लिये तो वह प्रोफाउण्ड इण्टेलेक्चुअल महत्व रखती है। एक रेशनल सा लगने वाला छद्म सिद्धांत अर्थहीन हो गया।
ReplyDeleteकाश आपकी मनोकामना पूरी हो जाय और भौगोलिक दीवारें जमीन्दोंज हो जायं ,पर क्या विकृत राजनीति और धर्म के ठेकेथार ऐसा होने देंगें ?
ReplyDeleteभारत पाक क्या, सारी दुनिया एक होगी. भूमण्डलीकरण इसे सम्भव करेगा, शायद अगली शताब्दी तक. देखने के लिए हम न रहेंगे.
ReplyDeleteएक होने का विचार तो अच्छा है पर क्या ऐसा मुमकिन है?
ReplyDeleteबहुत रोमांचक लगा होगा जर्मनी में द्वितीय विश्व युद्ध के अवशेषों को देखते हुए और हवाओं में अतीत को महसूते हुए गुज़रना ।
ReplyDeleteदिलचस्प !
kya koi bhi site se wallpaper copy kar ke ush site ka naam ush wallpaper se mita ke wo wallpaper apne site ya blog mein daal leya to wo chore ka hua? ishke leeye fine bhi lagta hai? batayen jarur kyoun ki maine apna blog bhi wallpaper ke leeye he banaya hai
ReplyDeleteहाँ बर्लिन के दीवार गिराने का दृश्य मैंने टीवी पर देखा था, बहुत रोमांचक और इमोशनल पल था | आपके जैसी सोच मेरी भी है लेकिन मुझे नही लगता की ये सम्भव हो पायेगा |
ReplyDeleteकुन्नू जी यदि वह वॉलपेपर पर दूसरे का कॉपीराइट है तो यह गलत है।
ReplyDeleteमै संजय बैगाणी जी से सहमत हूँ. उनकी टिप्पणी आशा की किरण बन कर चमक रही है. हम न सही हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए विश्व के एक हो जाए तो भी आनन्द की बात है.
ReplyDeleteआपकी सोच बहुत ही सुन्दर है। हकीकत में भले ही ऐसा न हो पाए, पर सोचा तो जा ही सकता है। मैं आपकी इस सोच को सलाम करता हूं।
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