यूरोप में साइकिल चलाने का काफी चलन है। इसके दो बड़े कारण हैं। यह चालक के स्वास्थ और पर्यावरण दोनों के लिये फायदेमन्द है। बर्लिन में, मुझे बहुत सारे बच्चे साइकिल पर स्कूल जाते, और महिलायें एवं पुरुष ऑफिस जाते दिखे। वियाना में भी लोग साइकिलों पर घूमते नजर आये। शायद यही कारण हो कि इन दोनों जगह प्रदूषण बहुत कम था। इन दोनो जगह बहुत कम मोटर साइकिलें दिखीं। बहुत से लोग छोटी कार चलाते दिखे। लगता है कि यहां छोटी कारें काफी लोकप्रिय हैं।
यूरोप में किराये में साईकिल भी बहुत आसानी से मिल जाती है और इसे जगह जगह पर किराये पर लिया जा सकता है। यह किराये में ली जाने वाली कार जैसा है और स्वचलित हैं। लेकिन अब नयी तकनीक से युक्त होने के कारण खोयी जाने वाली साइकलों का आसानी से पता लगाया जा सकेगा। अमेरिका में भी इस तरह का चलन शुरू हो रहा है।
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यह चित्र न्यू यॉर्क टाइमस् के उसी लेख से
कुछ दिन पहले न्यूयार्क टाइम्स के एक लेख में भी लिखा था कि अमेरिका के कई शहरों में साइकिलों ट्रैक बन रहे हैं और वे साइकिल चलाने पर जोर दे रहें हैं। अपने देश में कुछ उल्टा हो रहा है। हम सस्ती एक लाख रुपये की कार बनाने के बारे में सोच रहे हैं ताकि सबको कार मिल सके पर न तो सार्वजनिक यात्रा करने के संसाधनों को मजबूत कर रहे हैं, न ही पैदल अथवा साईकल चलाने पर जोर दे रहे हैं। कुछ दिन पहले इसी बात को लेकर एक विदेशी का लेख हिन्दुस्तान टाइम्स में निकला था। यदि सारे हिन्दुस्तानियों के पास कार हो जायें यानि की एक अरब कारें- क्या हाल होगा। हर जगह ट्रैफिक जाम - शायद कुछ इस तरह का।बर्लिन-वियाना यात्रा
जर्मन भाषा।। ऑस्ट्रियन एयरलाइन।। बीएसएनएल अन्तरराष्ट्रीय सेवा - मुश्कलें।। बर्लिन में भाषा की मुश्किल।। ऑफिस, स्कूल साइकिल पर – स्वास्थ भी बढ़िया, पर्यावरण भी ठीक।।सांकेतिक शब्द
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गांव को टटोलना हो तो पैदल और शहर को टटोलना हो तो साइकल उपयुक्त है। भारत की सड़कें और ट्रेफिक का व्यवहार जरूर पैदल और साइकल सवार के लिये उपयुक्त नहीं है। यहां वाहन तो "किलर्स ऑन द प्रॉउल" जैसे लगते हैं।
ReplyDeleteरोचक और दमदार बात ,धन्यवाद उन्मुक्त जी !
ReplyDeleteबहुत ही सही बात कही आपने उन्मुक्तजी.
ReplyDeleteमैं सहमत हूँ आपसे.
देर-सबेर हमे भी यही रास्ता अख्तियार करना होगा.
बहुत अच्छा लेख.इस बात को यदि हम भारत में भी अपना लें तो लाभ होगा.सेहत,बचत और पर्यावरण को.पर यहाँ तो स्कूली बच्चे भी अब साइकिल से स्कूल जाना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ मानते हैं
ReplyDeleteहमारे विकास के माने अलग है. साइकल चलाना गरीबी की निशानी है न की जागरूकता की. जब कभी साइकल पर निकलता हूँ, पीठ पीछे कहते है की पेट्रोल के पैसे बचाता है, कँजूस. :(
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख। संजय जी बात सही है, हमारे विकास मे माने अलग है। लेकिन साइकिलों के भी वापस आयेंगे, जब अमेरिकी साइकिल चलायेंगे तो हमारे यहां भी लोग साइकिल चलाने को कंजूसी नहीं मानेंगे।
ReplyDeleteअमेरिका में वैकल्पिक उर्जा के साधन की तलाश जारी है, आज ही नया प्रस्ताव पास हुआ है, जिसमें कारों को ३५ MPG (मील प्रति गैलन (लगभग १५ किमी प्रति लीटर) इंधन क्षमता सन २०२० प्राप्त करनी अनिवार्य होगी।