इस चिट्ठी में स्कॉट की आखिरी यात्रा (Scott's-last-Expedition) नामक पुस्तक की समीक्षा है। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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पिछली शताब्दी के शुरू में (१९१०-१३) दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की होड़ लगी थी। इस होड़ में अन्वेषक, कैप्टेन रार्बट फाल्कन स्कॉट (Captain Robert Falcon Scott) भी शामिल थे। स्कॉट, ने अंटार्कटिक की यात्रा लंदन से १ जून १९११ को टेरा नोवा (Terra Nova) नामक पानी के जहाज से शुरू की। वे इस यात्रा के दौरान अपनी डायरी लिखते रहे। Scott's last Expedition, इसी डायरी से, उनकी यात्रा की कहानी है।
टेरा नोवा
इस डायरी से कई बार, अलग-अलग लोगों ने संपादित कर प्रकाशित किया गया है। मैंने जिस पुस्तक को पढ़ा है उसे फ्रैंक देबेनहाम (Professor Frank Debenham) ने संपादित किया है।
रॉबर्ट फाल्कन स्कॉट
रोएल्ड एमंस्डसेन (Roald Amundsen) नॉरवे के अन्वेषक थे।
रोएल्ड एमंस्डसेन
रोएल्ड भी उसी समय एंटार्कटिक जा रहे थे। स्कॉट को यह मालुम था वह अक्सर कहते थे कि,
'मुझे इसकी चिन्ता नहीं कि दक्षिणी ध्रुव पर कौन पहले पहुंचता है क्योंकि मेरा काम विज्ञान अनुसंधान को आगे बढ़ाना है।'स्कॉट का कथन सच नहीं था। सबको मालुम था कि जो दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा उसका नाम इतिहास में अमर हो जायेगा। स्कॉट इस बात से प्रभावित थे पर चिन्ता नहीं करते थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वे ही पहले पहुंचेगे।
अपनी जन्मदिन की दावत पर स्कॉट ने लिखा,
'6 June ... my birthday, a fact I might easily have forgotten, but my kind people did not... we sat down to a sumptuous spread with our sledge banners hung about us ... everyone was very festive amiably appreciative.'मेरा जन्मदिन, ... जिसे मैं भूल गया पर मेरे साथी नहीं ... हम लोगों ने स्लेज़ और बैनरों के बीच बढ़िया भोजन किया ... सारा महौल खुशी का था।६ जून १९१९ को स्कॉट के जन्म दिन पर दावत
स्कॉट १७ जनवरी १९१२ को दक्षिणी ध्रुव पहुंचे। वहां पर नॉरवे का झंडा फहरा रहा था। एमंस्डसेन, उनसे १ महीने पहले ही, वहां पहुंच गये थे।
दक्षिणी ध्रुव तो बेकार जगह है। हमने बिना मतलब ही इतनी मेहनत की।
दक्षिण ध्रुव पर पहुंच कर स्कॉट ने अपनी डायरी में लिखा,
'Great God! This is awful place and terrible enough for us to have laboured to it without reward of priority.'लौटते समय सात लोगों की मृत्यु हो गयी। स्कॉट और उनके चार साथियों की लाशें टेन्ट में मिली थी। दो अन्य साथी ओटस् (L.E.G. Oates) और एडगर इवेंस (Edgar Evans) भी रास्ते में मर गये पर उनकी लाशें नहीं मिली।
हे भगवान! यह तो बेकार जगह है। हमने बेकार ही इतनी मेहनत की और पहले भी नहीं पहुंचे।
ओटस् ने कहा, 'मैं बाहर जा रहा हूं; बाहर कुछ समय तक रहूंगा।' वह लौट कर वापस नहीं आये। वे अपनी मृत्यु वरण करने ही बाहर चलेगये थे।
इसका सबसे प्रसिद्घ उद्घरण है कैप्टेन ओटस् के द्वारा कहा गया यह जुमला,
'I'm just going outside; I may be away for some time.'ओटस् वापस लौटकर नहीं आये। वे बाहर अपनी मृत्यु वरण करने चले गये थे।
मैं बाहर जा रहा हूं; मैं बाहर कुछ समय तक रहूंगा
स्कॉट के पहले न पहुंचने के कई कारण रहे। स्कॉट अपने साथ कुत्ते ले गये थे पर सामान ढ़ोने के लिये उन्होंने मोटर स्लेज़ (Motor sledge) और टट्टू (pony) का प्रयोग किया। टट्टू साईबेरिया के थे पर वह दक्षिणी ध्रुव की ठंडक को नहीं झेल पाये। स्लेज में बहुत जल्दी खराबी आ जाती थी और उनको बनाना मुश्किल पड़ा।
एमंस्डसेन अपने साथ कुत्ते (Greenland dogs) ले गये थे जिसके द्वारा उन्हें सहूलियत रही।
यह स्कॉट के द्वारा लिये गये रास्ते का नक्शा है। स्कॉट और उसके साथियों का शव Tent ONE TON DEPOT के दक्षिण में मिला।
स्कॉट पहले दक्षिणी ध्रुव नहीं पहुंच पाये फिर भी उनका नाम अमर हो गया। इसका श्रेय उनकी डायरियों को जाता है जिसमें उन्होंने इस यात्रा, इसकी कठिनाइयों, अपने तथा साथियों के जीवन के अन्तिम क्षणों को लिखा है। यह सब इस पुस्तक में जीवन्त हो उठा है। उनकी डायरी में आखिरी बार, उन्होंने २९ मार्च १९११ को लिखा इसकी आखिरी पंक्तियां हैं,
'we shall stick it out to the end, of course, and the end cannot be far.
It seems a pity, but I do not think I can write any more.
...
For God sake look after my people'
हम लोग अन्त तक प्रयत्नशील रहेंगे, हांलाकि अन्त दूर नहीं है। मै नहीं समझता कि मैं कुछ और लिख सकता हूं।
...
भगवान के लिये, मेरे लोगों का ख्याल रखना।
अन्त दूर नहीं है। मैं कुछ और नहीं लिख सकता हूं। मेरे लोगों का ख्याल रखना।
उनकी डायरी में, इसके बाद उसमें कुछ लोगों का पत्र और सार्वजनिक सूचना है। स्कॉट की डायरी उसके अदम्य साहस, और रोमांच की, दास्तान है। इन डायरियों ने ही उसे अमर कर दिया।इस पर एक फिल्म १९४८ में Scott of the Antarctic नाम से बनी है।
स्कॉट की डायरियां अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं, पर संपादित की गयी पुस्तक को पढ़ने का मजा और रोमांच कुछ और ही है।
इस अभियान से जुड़े कुछ चित्र आप यहां देख सकते हैं।
सैर सपाटा - विश्वसनीयता, उत्सुकता, और रोमांच
भूमिका।। विज्ञान कहानियों के जनक जुले वर्न।। अस्सी दिन में दुनिया की सैर।। पंकज मिश्रा।। बटर चिकन इन लुधियाना।। कॉन-टिकी अभियान के नायक - थूर हायरडॉह्ल।। कॉन-टिकी अभियान।। फैंटास्टिक वॉयेज: अद्भुत यात्रा।। स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी से- मार्टिन गार्डनर
- On Balance
- एक अनमोल तोहफ़ा
- मास्टर और मास्टरनियों को मेरा सलाम
- व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी
- Love means not ever having to say you're sorry
- You’re Too Kind – A Brief History of Flattery
- यहां सेक्स पर बात करना वर्जित है
- Everything you desire – Five Point Someone
- अस्सी दिन में दुनिया की सैर
- आंकड़े गलत बताते हैं
- क्या मदर टेरेसा अच्छी अभिनेत्री थीं
- बटर चिकन इन लुधियाना
- बचपन की प्रिय पुस्तकें
- कॉन-टिकी
- क्या आप के पास सोचने नहीं है
- डबल हेलिक्स – जनन उत्पत्ति निर्देश रहस्य का पर्दाफाश
- फैंटास्टिक वॉयेज: अद्भुत यात्रा
- स्कॉट की आखिरी यात्रा - उसी की डायरी से
सांकेतित शब्द
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पुस्तक और फिल्म के कवर के चित्र को छोड़ कर, सारे चित्र ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित हैं।
यह पोस्ट 'स्कॉट लास्ट एक्सपडीशन' नामक पुस्तक की समीक्षा है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें। yah post 'scott's last expedition' naamak pustak kee smeekshaa hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen. This post is review of the book 'Scott's Last expedition'. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script. |
स्कॉट के बारे में बरसों बाद पढ़ कर अच्छा लगा। आप को इस के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteपहले जैसे विवरणों की ही भाति यह भी रोचक और ज्ञान वर्धक ,आप का हिन्दी अनुवाद शानदार है उन्मुक्त जी ,....मतलब कि इतने अधिक अंगरेजी उद्धरणों की सचमुच कोई आवश्यकता नही थी -वे वर्णन की प्रमाणिकता पर मुहर तो लगाते हैं पर साथ ही पढ़ने के तारतम्य को बाधित करतें हैं -और फिर जब आपकी इतनी अच्छी प्रस्तुति है ही अंगरेजी उद्धरणों पर अनावश्यक निर्भरता क्यों?
ReplyDelete** स्कॉट की डायरियां अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं, पर संपादित की गयी पुस्तक को पढ़ने का मजा और रोमांच कुछ और ही है।**
ReplyDeleteअन्तर्जाल पर बहुत सारी जगह बहुत सारा कुछ उपलब्ध है, लेकिन उस सबसे आसान और मजेदार है उस सामग्री के सत्व को छोटे रूप मे आपके ब्लॉग पर पढ लेना! :) धन्यवाद.