विकासवाद पढ़ाने के लिये बीसवीं शताब्दी में जीव विज्ञान के अध्यापक स्कोपस् पर मुकदमा चला। इस चिट्ठी में इसी की चर्चा है।
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डार्विन के विकासवाद का सिद्धांत, मज़हबों में प्राणी उत्पत्ति के खिलाफ था पर इसका विरोध ईसाई देशों में, खासकर अमेरिका में सबसे अधिक हुआ। यह अभी तक चल रहा है। वहां के अधिकतर राज्यों में, डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को स्कूल में पढ़ाने के लिए वर्जित कर दिया गया था।
१९२५ में, अमेरिका के टेनेसी राज्य ने, लगभग सर्वसम्मति से (७५ के विरूद्ध ५ वोटों से) कानून पास किया कि स्कूलों में डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत नहीं पढ़ाया जायेगा। डेटन (Dayton), टेनेसी राज्य का शहर है। यहां के लोगों ने सोचा कि उनके शहर को शोहरत दिलवाने का यह बहुत अच्छा मौका है। क्यों न यहीं पर इस कानून को चुनौती दी जाए।
जॉन टी. स्कोपस्, स्कूल में, जीव विज्ञान के अध्यापक थे। वे सरकारी स्कूल की नवीं कक्षा के विद्यार्थियों को डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत पढ़ाने के लिए तैयार हो गये। डार्विन के विकास वाद के सिद्धांत को पढ़ाने के लिए स्कोपस् के विरूद्व बीसवीं शताब्दी में दाण्डिक मुकदमा चला। यह दुनिया के चर्चित मुकदमों में से एक है। इसे मन्की ट्रायल (Monkey trial) भी कहा जाता है।
जॉन टी. स्कोपस् का चित्र विकिपीडिया से
विलियम हेनिंगस ब्रायन (Williams Hennenigs Bryan) डेमोक्रेटिक पार्टी से तीन बार अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए नामित हो चुके थे। वे बाईबिल पर विश्वास करते थे। उन्हें अभियोजन पक्ष की ओर से वकील नामित किया गया। उस समय क्लेरेंस डेरो (Clarence Darrow), अमेरिका के प्रसिद्घ वकीलों में से थे। वे नि:शुल्क बचाव पक्ष की तरफ से पैरवी करने आये।
ब्रायन ने बहस शुरू करते समय कहा,
'The trial uncovers an attack on religion. If evolution wins, Christianity goes.'डैरो ने उत्तर दिया,
यह परीक्षण मज़हब पर हमला है। यदि विकासवाद जीतता है तो इसाइयत बाहर हो जायेगी।'
'Scopes is not on trial, civilisation is on trial.'
यह मुकदमा स्कोपस् पर नहीं, लेकिन सभ्यता पर चल रहा है।
लोगों की सोच के मुताबिक, यह चर्चित मुकदमा बन गया। अमेरिका और इंगलैंड से प्रेस संवाददाता डेटन पहुँचकर प्रतिदिन इस मुकदमे के बारे में प्रेस विज्ञप्ति देने लग गये। यह मुकदमा अखबारों में छा गया।
प्रतिदिन इसे इतने लोग देखने आते थे जिससे लगा कि शायद कोर्ट की पहली मंज़िल का फर्श टूट जाये; भीड़ के कारण गर्मी और उमस भी बढ़ गयी। अन्त में मुकदमे की सुनवायी, न्यायालय के लॉन में स्थांतरित की गयी। जज़, जूरी, और वकीलों के लिये उठा हुआ प्लैटफॉर्म बनाया गया। उस पर उनके बैठने के लिये जगह थी। उसके नीचे अखबार, टेलीग्राफ और रेडिओ के लोगों के बैठने की जगह थी। प्रतिदिन लगभग पांच हज़ार लोग उसे देखने और सुनने आते थे। इस तरह के नज़ारे के साथ, मंकी ट्रायल, जो कि न्यूयॉर्क टाइम के अनुसार इतिहास के सबसे प्रसिद्ध परीक्षण मुकदमा था, सुना गया।
यह पहला मुकदमा था जिसमे कि अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने स्वयं अपने आपको गवाह के रूप में पेश किया। उसने यह गवाही दी कि बाइबिल में प्राणियों की उत्पत्ति की कथा सही है पर डैरो की प्रतिपृच्छा (cross examination) में उसकी सारी गवाही बेकार साबित हो गयी। लेकिन, अगले ही दिन , न्यायालय ने ब्रायन की सारी गवाही रिकार्ड पर लेने से, यह कहते हुऐ कर मना कर दिया,
'यह सवाल प्रासंगिक नहीं है कि,डार्विन का सिद्वान्त सही है अथवा नहीं। न्यायालय के अनुसार उनका केवल यह देखना है कि,क्या स्कोपस ने डार्विन का सिद्वान्त पढ़ाया अथवा नहीं।'
न्यायालय के लॉन में मुकदमा। चित्र में डैरो दाहिने तरफ खड़े और बायीं तरफ बैठे ब्रायन से क्रॉस इक्ज़ामिनेशन करते हुऐ।
यह चित्र स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूशन आर्काइव् के इस पेज से लिया गया है। वहां पर इस मुकदमें से सम्बन्धित कुछ और दुर्लभ चित्र हैं जिन्हें साइंस सर्विस के मैनेजिंग एडिटर वॉटसन डेवीस ने खींचा है।
यह बात तो स्वीकृत थी कि स्कोपस् ने डार्विन के विकासवाद के सिद्वान्त को पढ़ाया था। न्यायालय की इस आज्ञा के कारण स्कोपस् को तो सजा होनी थी। उसे सजा में, सौ डालर का दण्ड दे दिया गया। यह दण्ड जूरी ने न तय कर जज ने किया।
स्कोपस् ने, टेनेसी सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवायी पांच न्यायधीशों ने की। फैसला आने में साल भर लगा तब तक एक न्यायाधीश की मृत्यु हो गयी। सबने सर्वसम्मति से यह फैसला इसलिये उलट दिया कि दण्ड जूरी को तय करना चाहिये था न कि जज को। आश्चर्य इस बात का है कि केवल एक न्यायाधीश ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक है। दो अन्य न्यायाधीशों ने कानून को वैध माना। चौथे न्यायाधीश ने कानून को तो वैध माना पर कहा कि यह न यह विकासवाद के सिद्धांत को पढ़ाने से मना करता है और न ही स्कोपस् पर लागू होता है। स्कोपस् पर यह मुकदमा फिर से चलना चाहिए था पर न्यायाधीशों ने इसे फिर से चलाने पर मनाही कर दी। यही कारण था कि यह मुकदमा अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में नहीं गया।
इस मुकदमे में जुड़े कुछ लोगों के बारे में भी कुछ बातें बताना उचित होगा।
- परीक्षण न्यायलय के सजा करने के एक दिन बाद, ब्रायन की मृत्यु हो गयी। लोगों का कहना था कि डैरो के प्रतिपृच्छा के कारण वह टूट गया था।
- अमेरिका में निचले अदालतों का चयन, चुनाव से होता है। निचली अदालत के जज ने अगली फिर जज बनने के लिये चुनाव में खड़े होना चाहा तो इस चुनाव के लिये उसका नाम भी प्रस्तावित न हो पाया।
- स्कूल का सुप्रीटेंडेन्ट, जिसने स्कोपस् पर मुकदमा चलवाया था, जब फिर से चुनाव लड़ने के लिये खड़ा हुआ तो उसने अपने चिन्ह पर लिखवाया, 'स्कोपस् पर मुकदमा चलवाने वाला' उसका नाम भी पद के लिये प्रस्तावित नहीं हो पाया।
- डैरो अमेरिका के प्रसिद्ध वकीलों में से था। लेकिन इस मुकदमे ने उसे सबसे प्रसिद्ध वकील बना दिया।
इस श्रंखला की अगली कड़ी में, हम बात करेंगे उस मुकदमें की जिसने अमेरिकी न्यायालय के इस शर्म को दूर किया यानि कि, जिसमें विकासवाद के सिद्वान्त को स्कूल में न पढ़ाये जाने वाले कानून को अवैध घोषित कर दिया गया।
डैरो का जीवन शिक्षा-प्रद है, प्रेणना देना वाला है। मैंने उनकी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ माइ लाइफ (The Story of My Life) और इर्विंग स्टोन (Irving Stone) की क्लेरेंस डैरो फॉर डिफेंस (Clarence Darrow For Defense) पढ़ी है। मुझे क्लेरेंस डैरो फॉर डिफेंस बहुत अच्छी लगी।
'क्लेरेंस डैरो फॉर डिफेंस' पुस्तक पढ़ने योग्य है। बहुत से लोग वकीलों के बारे में अच्छी राय नहीं रखते। यह पुस्तक उन्हें इस बारे में फिर से सोचने पर मज़बूर करेगी। शायद इससे आप अन्दाजा लगा सकें कि समाज में वकील का कितना अधिक योगदान है।
डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
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बहुत अच्छी पोस्ट -जानकारी और संप्रेषण दोनों लिहाज से ! शुक्रिया !
ReplyDeleteThe Story of My Life और Clarence Darrow For Defense के बारे में कुछ और विस्तार से होता तो और अच्छा लगता। इस आलेख के लिए आभार।
ReplyDeleteनहीं पता था कि डार्विन के सिद्धांत पर इतना बवाल हुआ था....
ReplyDeleteकॉलेज में मेरे एक शिक्षक ने बताया था कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमारा अवतारवाद ही हमारा विकासवाद है। फिर उन्होंने इस बात की व्याख्या करते हुए हिन्दू धर्म के अवतारवाद और डार्विन के विकासवाद की समानता समझायी थी। शिक्षक का व्याख्यान सुनने के बाद छात्रों में हिन्दू धर्म की वैज्ञानिकता के प्रति कोई संशय नहीं रह गया था।
ReplyDeleteGambheer vivechan.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
अशोक पांडे सही हैं -नेहरू जी ने भी यही बात डिस्कवरी आफ इंडिया में लिखी है -भारत में अवतारवाद के कारण डार्विन के विकासवाद को लेकर कोई बावेला नहीं मचा था !
ReplyDeleteमंकी ट्रायल के बारे मे पहली बार पढा..बडी रोचक जानकारी रही..धन्यवाद
ReplyDeleteइस रोचक और तथ्यपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद.
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