इस चिट्ठी में रीजेंट हीरे की चर्चा है।
यह चित्र पेरिस के लूवर संग्रहालय के इस पेज से लिया गया है। |
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रीजेंट हीरा, १६९८ में, परिताला (Paritala) गोलकुण्डा की कोल्लूर खदान( -Kollur Mine) में एक हिन्दुस्तानी को मिला था। लेकिन इसे एक अंग्रेज ने छीन लिया और व्यापारी को बेच दिया।
१७०१ ईसवी में, मद्रास के गवर्नर थॉमस पिट्ट ने इसे खरीद लिया। इसलिए इसे पिट्ट डायमंड भी कहा जाता है।
पिट्ट ने, इसे फ्रांसीसी राज घराने में बेच दिया। यह हीरा बहुत समय तक नेपोलियन की तलवार को सुशोभित करता रहा। इस समय यह हीरा, फ्रांसीसी राज्य के रत्नों में से एक है और पेरिस के लूवर संग्रहालय में रखा हुआ है।
यह हीरा सफेद-हल्के नीले रंग का है। यह, बिना छंटायी करे, ४१० कैरेट (८२ ग्राम) का था पर कटने का बाद, १४०.६४ कैरट (२.८ ग्राम) का हो गया है।
गोलककोण्डा किला और विश्वप्रसिद्ध हीरे
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सांकेतिक शब्द
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हीरा है सदा के लिए...आकर्षक..
ReplyDeleteकितना सुंदर हीरा है..अंग्रेजों के लिए तो भिखारी थे हमलोग..और भिखारी हीरे नही रखते, तो उन्होंने छीन लिया. सोने की चिड़िया के सारे पंख नोंच डाले..अब तो ये वापस भी नहीं आ सकता.
ReplyDeleteवाह क्या हीरा है!
ReplyDeleteचोरों ने चोरी की, बिना मोल दिये..
ReplyDeleteरीजेंट हीरे की यात्रा कथा !
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