Saturday, December 22, 2012

रामानुजन को भारत में सहायता

इस चिट्ठी में, रामानुजन को भारत में दी गयी, सहायता की चर्चा है।
रामानुजन और हार्डी के जीवन से प्रेरित नाटक 'अ डिस्एपीयरिंग नम्बर' - चित्र विकिपीडिया से
रामास्वामी अय्यर ने इंडियन मैथमेटिकल  सोसायटी बनायी थी। उसने रामानुजन की सहायता की और उनके बहुत सारे  पेपर इंडिया मैथमेटिकल सोसायटी के जनरल में छापे। उन्होंने रामानुजन की मुलाकात, नेलौर के जिला कलेक्टर आर रमाचन्द्र राव से भी करवायी।

श्री राव, इंडियन मैथ मैटिकल सोसायटी के सेक्रेटरी थे और उन्होंने रामानुजन को वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी और उन्होंने रामानुजन को प्रोत्साहित किया कि मद्रास जाकर विश्वविद्यालय में कार्य करें। वहां पर उन्हें अपने स्तर के लोगों से गणित के बारे बात करने का मौका मिलेगा।

रामानुजन को पहले मद्रास के एकाउंटेंट जनरल के आफिस में २०/- रूपये महीने पर नौकरी मिल गयी लेकिन यह कुछ हफ्ते के लिए ही थी। उसके बाद उसे मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में ३०/- रूपये महीने पर नौकरी मिल गयी।

रामचन्द्र राव ने पोर्ट ट्रस्ट के अधिकारियों को पहले ही बता दिया था कि रामानुजन किस तरह के व्यक्ति थे। इसलिए उन्हें कोई काम नहीं दिया गया बल्कि उसे अपनी गणित करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया।

एक बार मद्रास में  गिलबर्ट वाकर, डायरेक्टर जनरल ऑब्ज़र्वेटरीस्,
(Director General of Observatories), आये थे। गिलबर्ट केम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय से पढ़े हुए गणितज्ञ थे तथा वे वहां के सीनियर रैंगलेर (senior wrangler) थे। केम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय में सीनियर रैंगलेर उस विद्यार्थी को कहा जाता है जो वहां गणित की परीक्षा में सबसे अच्छे नम्बर से पास होता है। मैं इसके बारे में कभी अलग से चर्चा करूंगा।

पोर्ट ट्रस्ट के चेयरमैन ने रामानुजन का काम वाकर साहब को दिखाया। उसके बाद वाकर साहब ने संस्तुति किया कि,

'The University would be justified in enabling S. Ramanujan  for a few years at least, to spend the whole of his time to mathematics, without any anxiety as to his livelihood. '
विश्वविद्यालय के लिये यह न्यायोचित होगा किरामानुजन को कुछ साल  पूरा समय गणित में, बिना अपने जीवन व्यापन की चिन्ता करे, कार्य करने के लिये सक्षम करे।
लेकिन रामानुजन को विश्वविद्यालय में शोध करने के लिए छात्रवृत्ति देना  मुश्किल था। रामानुजन के पास स्नाकत्तोर तो क्या स्नातक की भी डिग्री नहीं थी। न्यायमूर्ति पी .आर. सुन्दरम् अय्यर, मद्रास हाई कोर्ट के जज  तथा मद्रास विश्वविद्यालय सिंडीकेट के सदस्य भी थे जब इस बारे में सिंडिकेट में बहस हुई तब उन्होंने कहा
'मद्रास विश्वविद्यायल अधिनियम की प्रस्तावना में लिखा गया है कि विश्विद्यालय को शोध कार्य के लिये बनाया गया है। गणितज्ञों के द्वारा रामानुजन को दी गयी सन्तुति से पता चलता है कि उसके पास शोध करने की क्षमता है। इसलिये उसे छात्रवृत्ति दी जाय'
न्यायमूर्ति की बहस के बाद, रामानुजन को ७५/-रूपया महीने छात्रवृत्ति दी गयी। इसी बीच रामानुजन ने इंगलैंड के गणितज्ञों को पत्र लिखना शुरु कर दिया था। अगली बार उनके द्वारा लिखे गये कुछ पत्र और उस पर जवाबों की चर्चा होगी।


अनन्त का ज्ञानी - श्रीनिवास रामानुजन 
  भूमिका।। क्या शून्य को शून्य से भाग देने पर एक मिलेगा।। मैं तुम्हारे पुत्र के माध्यम से बोलूंगी।। गणित छोड़ कर सब विषयों में फेल हो गये।। रामानुजन को भारत में सहायता।।


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hindi (devnagri) kee is chitthi mein, ganitagya Srinivasa Ramanujan ko bharat mein mili sahayta ke baare mein charchaa hai. ise aap kisee aur bhasha mein anuvaad kar sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

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सांकेतिक शब्द  
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6 comments:

  1. हर ज्ञान प्रेमी रामानुजम के व्यक्तित्व से अभिभूत है -यह प्रसंग अच्छा लगा !

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  2. डिग्रियों से अधिक प्रतिभा की पहचान।

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  3. गिरिराज जी, धन्यवाद। मैंने भूल सुधार ली।

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  4. nice to know that some help was provided to Ramanujam. Waiting for next post.

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  5. रामानुजम जी के जीवन के इस पहलू से हम अनिभज्ञ थे.

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  6. रामानुजनम एक महान व्यक्तित्व थे । वो एक प्रेरणा थे कि अपनी मजिंल को कैसे पाया जाय ।

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