Sunday, April 12, 2009

शुक्रिया ... एक शर्मीली शख़्सियत का

मैंने अपनी पिछली चिट्ठी 'भगवान की दुनिया - तभी दिखायी देगी जब खिड़की साफ हो' पर भेड़ाघाट-धुआंधार का सुन्दर चित्र लगाया था। वह मेरे द्वारा नहीं खींचा गया था । उसे मैंने कहीं से चुराया था। मेरा वायदा था कि मैं उसके बारे में, अगली चिट्ठी में लिखूंगा - यह चिट्ठी उसी चोरी के बारे में है।

'लेकिन उन्मुक्त जी, आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र ...?'
हां, हां उसी चित्र के बारे में बता रहा हूं। इतने उतावले क्यों हो रहे हैं।

मैंने भेड़ाघाट-धुंआंधार का चित्र नितिन जी के चिट्ठे 'पहला पन्ना' से लिया था। इस चिट्ठे पर कुछ बेहतरीन चित्र हैं। इस चिट्ठी में सारे चित्र उसी चिट्ठे से ही लिये गये हैं।


बसन्त ऋतु में पेड़ों की सुन्दरता

मैं जब पहली बार उनके चिट्ठे पर पहुंचा तो मुझे लगा कि वे किसी व्यावसायिक छविकार से कम नहीं हैं। मैं नहीं जानता वे क्या करते हैं पर शायद कंप्यूटर इंजीनियर हैं। यह मैं उनके अपने बारे में लिखे परिचय के आधार पर कह रहा हूं। वे लिखते हैं कि वे तकनीक से जुड़े हैं और उनका व्यवसाय - माथा पच्ची है। वे, अपने बारे में लिखते हैं
'अमेरिका के एक गाँव में एक भारतीय...'
अरे, इतना छोटा परिचय जो अपने बारे में कुछ न बताये। क्या आपको नहीं लगता कि वे बेहद शर्मीले हैं? मुझे तो वे शर्मीले व्यक्तित्व के लगते हैं।

मेरी उनसे मित्रता उनकी उनकी एक चिट्ठी पर टिप्पणी करने के बाद शुरू हुई। यह आज भी बरकरार है। इसके लिये मैं अपने को खुशकिस्मत और भाग्यशाली मानता हूं। वे मेरी चिट्ठियों पर अक्सर टिप्पणियां करते हैं हांलाकि मैं उनके चिट्ठे पर टिप्पणी करने से चूक जाता हूं। गलत बात है न। लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का बड़प्पन दिखाता है कि वे दूसरे के चिट्ठे पर टिप्पणियां अपने चिट्ठे पर टिप्पणियां पाने के लिये नहीं करते। यह, टिप्पणियों के विश्लेषण में लिखी गयी, बहुत सी चिट्ठियों को नकारता है।


लगभग तीन साल पहले, उन्होंने मुझे एक पहेली भेजी जिसमें में ४=५ सिद्ध किया गया था। मैंने जब उनके पास पहेली का हल भेजा तब उन्होंने मुझे इस पर कुछ लिखने का आग्रह किया। मैंने इस पेहली को 'चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…' नामक चिट्ठी में लिखा। मैंने इसका हल नहीं लिखा क्योंकि इसका हल कुछ चिट्ठाकार बन्धुवों ने उसी चिट्ठी पर टिप्पणियों द्वारा दे दिया था।

मैंने उक्त पहेली की व्याख्या अलग तरीके से 'आईने, आईने, यह तो बता - दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन' नामक चिट्ठी में लिखी। शायद वह नहीं सोचते थे कि इस पहेली की इस तरह से भी व्याख्या की जा सकती है।

'एक अनमोल तोहफ़ा' चिट्ठी में, सवालों के जवाब देने के लिये, उन्हें भी नामित किया गया था। सवालों का जवाब उन्होंने
अपनी चिट्ठी 'खेल खेल में' लिखा है। सवाल, 'क्या हिन्दी चिट्ठेकारी ने आपके व्यक्तिव में कुछ परिवर्तन या निखार किया?' का वे जवाब देते हुऐ लिखते हैं,
'यहां पर लिखने और पढने से मेरे विचार भी बदले हैं और आम जीवन में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करने का तरीका भी । उदाहरण के तौर पर मेरी लिखी ४=‍‍‍५ वाली ईमेल और उसका इतना गंभीर मतलब! शायद मैं ऐसा कभी ना सोच पाता।'



प्रेम की अभिव्यक्ति शायद इससे बेहतर ब्यान नहीं हो सकती

यह सच है कि उनके द्वारा भेजी गयी पहेली की व्याख्या करते समय असमंजस में था। कई बार लगा कि मैं उस व्याख्या को भूल जाऊं। फिर हिम्मत कर, उसे प्रकाशित किया। यह ठीक किया क्योंकि यह मेरी अधिक पढ़ी जाने वाली चिट्ठियों में से एक है। इस पर आज भी लोग सर्च कर पढ़ने आते हैं।

उक्त चिट्ठी के कारण ही, मैंने कुछ अन्य अधिक पढ़ी जाने वाली चिट्ठियां, 'मां को दिल की बात कैसे बतायें','मां को दिल की बात कैसे पता चली', 'यौन शिक्षा जरूरी है', और 'उफ, क्या मैं कभी चैन से सो सकूंगी' जैसी चिट्ठियां लिखीं। सच तो यह है कि मेरे उन्मुक्त चिट्ठे या छुटपुट चिट्ठे पर यौन शिक्षा (यहां और यहां देखें) पर लिखी सारी चिट्ठियां इसी के कारण लिखीं गयीं। मेरे चिट्ठे पर लोग इस श्रेणियों की चिट्ठियों को, या फिर इस श्रेणी पर, सबसे ज्यादा चटका लगाते हैं।

'लेकिन उन्मुक्त जी, आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र की बात कर रहे हैं ...?'

ओफ हो, पहले क्यों नहीं बताया कि आप धुआंधार के चित्र को फिर से देखना चाहते हैं। मैं उसे फिर से दिखा देता हूं। इसमें क्या मुश्किल है।


हैं न कितना सुन्दर।
'उन्मुक्त जी, यदि आपने अपनी बकबक बन्द नहीं की तो मैं यहां से चला जाउंगा और कसम आपकी, मैं यहां फिर कभी नहीं आउंगा। आप भी न, बस, बिना सवाल सुने बहकने लगते हैं। मैं यह जानना चाहता हूं कि आप भेड़ाघाट-धुआंधार चित्र की बात कर रहे हैं पर पहला चित्र हाथी का क्यों लगा रखा है? क्या आपको सवाल समझ में आया या फिर से बताऊं।'
अरे भाई, अरे बहना, यह पहले क्यों नहीं बताया। इसका जवाब तो बहुत आसान है। यह चित्र नितिन जी ने अपने परिचय में अपने चित्र की जगह लगाया है। वहीं से मैंने लिंक दी है।
'उन्मुक्त जी, उन्होंने हाथी का चित्र क्यों लगया है क्या वे हाथी की तरह भारी-भरकम हैं?'
अब मैं तो यह कह नहीं सकता। मैं न तो उनसे मिला हूं न ही उनका चित्र देखा है। इसका सही उत्तर तो वही दे सकते हैं। ऐसे मैं कुछ अनुमान लगा सकता हूं।

लोग गलत समझते हैं कि जंगल का राजा शेर होता है। शायद यह इसलिये कहा जाता कि वह मांसभक्षी है। वास्तव में, हाथी शाकाहारी होने बावजूद भी, जंगल का राजा है क्योंकि वह सबसे शक्तिशाली जानवर है। शेर भी उसके रास्ते में नहीं आता है। हाथी जिस रास्ते से जाता है शेर उसके लिये वह रास्ता छोड़ देता है। शायद वास्तविक जीवन में, नितिन जी हाथी जैसे शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी हैं। ऐसे अन्तरजाल के काल्पनिक संसार में तो वे ऐसे ही लगते हैं।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi
(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where 'Download' and there after name of the file is written.)

यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
बताये गये चिन्ह पर चटका लगायें या फिर डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर लें।

About this post in Hindi-Roman and English

is post per hindi chitthakaar nitin vyas (phalaa panna) kee charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.


This post talks about Hindi bloggr Nitin Vyas (Pahlaa panna). It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

13 comments:

  1. राजा शेर हो सकता है, पर जैसे राजा ॠषि के आने पर सिंहासन छोड़ खड़े हो जाते हैं; वैसा ही ॠषि है हाथी।

    ReplyDelete
  2. नितिन जी से मुलाक़ात अच्छी रही -मेरी निगाह तो हाथी के बजाय पांडे की जोड़ी पर रही जो सकुचा संकोचा प्रेमाभिव्यक्ति में लगे हैं -यह नजर नजर -या पर्यवेक्षण का फर्क है !

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर.

    ReplyDelete
  4. उन्मुक्त जी आपने पहला पन्ना के लिये नितिन बागला का नाम लिखा है, मैने लिन्क देखा तो वहाँ नितिन व्यास नज़र आये, और ये तस्वीरें उन्हीं के चिट्ठे पर दिखीं।
    कुछ तो गड़बड़ है...

    ReplyDelete
  5. मिश्र जी, धन्यवाद। आप बहुत बारीकी से चिट्ठा पढ़ते हैं। मैं नितिन व्यास जी के बारे में कह रहा था। मैंने गलती सुधार ली है।

    ReplyDelete
  6. आप ने नितिन जी का परिचय इस तरह दिया है कि भूल नहीं सकते।

    ReplyDelete
  7. उन्मुक्त जी, आपका और सारे पाठकों को शुक्रिया।
    आपका अनुमान सही है फोटो मैंने सिर्फ इसीलिये लगाया है कि अपने आप को गजराज के जैसा शाकाहारी विशालकाय काया का प्राणी मानता हूँ। लेकिन मेरा ऐसा मानना सिर्फ काया को लेकर था, आपके आंकलन और पारखी नज़र ने आज फिर से दुनिया को देखने का नया तरीका सिखा दिया,बहुत बहुत धन्यवाद।

    ReplyDelete
  8. उन्मुक्त जी आपके इस लेख से मेरे चिट्ठे पर आने वाले लोगों में से कुछ http://unmukt.com/ से भी आये हैं क्या ये डोमेन आपका ही है?

    ReplyDelete
  9. नितिन जी, यह डोमेन मैंने नहीं शुरू किया है। मुझे नहीं मालुम कि यह किसका है। मैं स्वयं उत्सुक हूं कि इसे किसने शुरू किया है। मैं उसे धन्यवाद देना चाहता हूं कि उसने मेरी सारे चिट्ठों और पॉडकास्ट की प्रविष्टियों को पुनः छाप कर मुझे सम्मान दिया, इज्ज़त दी। मैं कभी नहीं समझता था कि कोई व्यक्ति मेरे लेखन को इतना महत्व देगा कि वह इसके लिये डोमेन लेकर पैसा और समय खर्चा करेगा।

    काश, वह मेरा नाम उनमुक्त से ठीक कर उन्मुक्त कर दे।

    मेरे अज्ञात प्रिय मित्र यदि तुम इसे पढ़ रहे हो तो तुम्हें मेरा धन्यवाद, शुक्रिया मुझे यह सम्मान और इज्ज़त देने के लिये।

    ReplyDelete
  10. मैंने वह वेबसाईट देखि .. अब मैं नेट पर हिंदी के प्रचार -प्रसार लिए चिंता मुक्त हो गई हूँ. अज्ञात शुभचिंतक को साधुवाद. अब उन्होंने आपका नाम ठीक कर दिया है.

    ReplyDelete
  11. "वे मेरी चिट्ठियों पर अक्सर टिप्पणियां करते हैं हांलाकि मैं उनके चिट्ठे पर टिप्पणी करने से चूक जाता हूं। गलत बात है न। लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का बड़प्पन दिखाता है कि वे दूसरे के चिट्ठे पर टिप्पणियां अपने चिट्ठे पर टिप्पणियां पाने के लिये नहीं करते। यह, टिप्पणियों के विश्लेषण में लिखी गयी, बहुत सी चिट्ठियों को नकारता है।"

    Niswarth bhav! Warna hindi blogjagat mein jo dkehne ko milta hai uske bare mein sbahi jante hain. Yahan log len den ka sambandh bahut achhe se nibhate hain.

    Unmukt sir, aapka post ajkal daily padh rahi hun. Waise bahut kam samay mil pata hai, lekin jitna bhi mil pata hai, unhe main kuch khas blogs jo mujhe achhe lagte hain unhe padhne mein bhi lagane ki koshish karti hun. Aapki bhasha kafi priy aur mithas liye huye pravahmay hain. Achha lagta hai aapke blog per aakar, isliye aapke blog link maine apne blogroll mein daal liya hai.


    rgds.

    ReplyDelete
  12. नितिन जी का परिचय भी आपने अपने ही रोचक अंदाज़ में दिया है उन्मुक्त जी ..शुक्रिया अच्छा लगा

    ReplyDelete
  13. .
    उन्मुक्त जी,

    इस पोस्ट का लिंक देने के लिए आभार , बहुत सुन्दर लेख, सुन्दर शैली में लिखा हुआ। नितिन जी से मुलाकात बढ़िया रही ।

    आपका आभार।
    .

    ReplyDelete

आपके विचारों का स्वागत है।