इस चिट्ठी में, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (इंडियन वेर्टनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट) (आईवीआरआई) के इतिहास के बारे में चर्चा है।
संस्थान के संग्रहालय में रखे कुछ पुराने यंत्र |
इस संस्थान को १८८९ में, पूना में स्थापित किया था। उस समय इसे इम्पीरियल बैक्टोलाॅजिकल लेबोरेटरी कहा जाता था। बहुत जल्द ही, महसूस किया कि यह संस्थान ऎसी जगह पर हो जहां पर कोई भी आबादी न हो तो बेहतर होगा। इसके बाद जब इस तरह की जगह ढूंढना शुरू किया तो उन्हें मुक्तेश्वर उपयुक्त लगा।
१८९३ में, संस्थान को मुक्तेश्वर में स्थानान्तरित किया गया। उस समय तक काठ गोदाम तक आने की सुविधा थी। लेकिन उसके बाद न कोई रोड़ थी न ही वहां पहुंचने का कोई और सुविधाजनक तरीका था। मुक्तेश्वर पहुंचने के लिए केवल घोड़े और टटरों का इस्तेमाल किया जाता था।
यह इस इंस्टीट्यूट की पहली और मुख्य इमारत है। लेकिन काम करने के कुछ सालों बाद यह समझा गया कि इसका एक आफिस मैदान में भी हो तो अच्छा रहेगा इसीलिए १९१३ में, बरेली के इज्जत नगर में एक दूसरा ऑफिस स्थापित किया गया और इस समय इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर वहीं पर बैठते हैं।
सन् १९२५ में इम्पीरियल बैक्टीरियोलाॅजिकल लेबोरेटरी का नाम बदलकर इम्पीरियल वेर्टनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट किया गया। १५ अगस्त सन् १९४७ को देश की स्वतन्त्रता पर, इसका नाम भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (इंडियन वेर्टनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट) (आईवीआरआई) किया गया।
इंस्टीट्यूट के कुछ रीजनल आफिस भी है। एक रीजनल आफिसर भुनेश्वर में बन रहा है तथा दूसरा रीजनल आफिस भोपाल में है। अलग अलग जगह पर अलग अलग जो इंस्टीट्यूट के लैब है उनका स्तर अलग है।
इस इंस्टीट्यूट में मुख्य रूप से जानवरों के लिए वैक्सीन बनायी जाती है और उनका एक पशमीना भेड़ों का फार्म भी है। लेकिन यह फार्म सफल नहीं हो पाया है। इस तरह की भेड़ों के लिये यह जगह ज्यादा गर्म है। इसलिए भेड़ों से ज्यादा ऊन नहीं निकल पाता है। लेह में ज्यादा ऊन निकलता है।
गोट फार्म पर कुछ भेड़ें |
यह संस्थान, लगभग ४० लाख रूपया कमाता है। यह पैसा मुख्यत: वह जानवरों के वैक्सीन बनाने से मिलता है। कुछ पैसा बागों के फलो को बेचकर और कुछ पैसा जानवरों का मीट बेचकर भी मिलता है।
अगली बार मुक्तेश्वर में इस संस्थान की अन्य सुविधाओं के बारे में चर्चा होगी।
जिम कॉर्बेट की कर्म स्थली - कुमाऊं
जिम कॉर्बेट।। कॉर्बेट पार्क से नैनीताल का रास्ता - ज्यादा सुन्दर।। ऊपर का रास्ता - केवल अंग्रेजों के लिये।। इस अदा पर प्यार उमड़ आया।। उंचाई फिट में, और लम्बाई मीटर में नापी जाती है।। चिड़िया घर चलाने का अच्छा तरीका।। नैनीताल में सैकलीज़ और मचान रेस्त्रां जायें।। क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है।। गेंद जरा सी इधर-उधर - पहाड़ी के नीचे गयी।। नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती।। झील से, हवा के बुलबुले निकल रहे थे।। नैनीताल झील की सफाई के अन्य तरीके।। पास बैटने को कहा, तो रेशमा शर्मा गयी।। चीनी खिलौने - जितने सस्ते, उतने बेकार।।कमाई से आधा-आधा बांटते हैं।। रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है।। जन अदालत द्वारा, त्वरित न्याय की परंपरा पुरानी है।। बिन्सर विश्राम गृह - ठहरने की सबसे अच्छी जगह।। सूर्य एकदम लाल और अंडाकार हो गया था।। बिजली न होने के कारण, मुश्किल तो नहीं।। हरी साड़ी पर लाल ब्लाउज़ - सुन्दर तो लगेगा ना।। यह इसकी सुन्दरता हमेशा के लिये समाप्त कर देगा।। सौ साल पुरानी विरासत, लेकिन रख रखाव के लिये पैसे नहीं।। वहां पहुंचने का कोई सुविधाजनक तरीका न था।।
सांकेतिक शब्द
। Kumaon,
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इसकी उपलब्धियां देखेंगे तो चौंक जायेंगे.
ReplyDeleteआप ठीक कहते हैं। इनकी उपलब्धियां यहां देखी जा सकती हैं।
Deleteएकांत में कार्यरत एक संस्थान
ReplyDeleteभारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान के बारे में आपकी कलम से जानना हुआ -आभार!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख
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