इस चिट्ठी में रामानुजन के अन्तिम समय और उनके मृत्यु की चर्चा है।
ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज़, जहां रामनुजन गये - विकिपीडिया के सौजन्य से। |
रामानुजन, १९१४ में, इंग्लैड पहुंचे। वे शाकाहरी थे। उन्हें, वहां का खान पान रास नहीं आया। वहां की आबो हवा ठंडी थी। वे अकेलेपन के भी शिकार हो गये। १९१८ में, वे बीमार हो गये और १९१९ में, भारत वापस आ गये। लेकिन बहुत जल्दी ही, २४-४-१९२० को, उनकी मृत्यु हो गयी।
रामानुजन की मृत्यु का ठीक कारण नहीं पता। हांलाकि उनकी मृत्यु के लिये तपेदिक की बिमारी कही जाती है। लेकिन उनके शरीर में, विटामिन की कमी ने भी, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
१९९४ में डाक्टर डीऐबी यंग (Dr. DAB Young) उनके चिकित्सीय रिकॉर्ड देखने के बाद निर्णय निकाल कि उनकी मृत्यु लीवर के यकृत अमीबारुग्णता (hepatic amoebiasis) के कारण हुई। यह परजीवी संक्रामक रोग (parasitic infection) है और उस समय मद्रास में काफी फैला था।
रामानुजन अपना खाना तांबे के बर्तनों में खुद बनाते थे। उस समय, कैम्ब्रिज़ विश्विद्यालय में, इस तरह की अफवाह थी कि बर्तन ठीक प्रकार से साफ न होने के कारण उनमें जहर फैल गया था।
रामनुजन की विधवा - जानकी की मृत्यु १९९४ में हो गयी। वह अपनी मृत्यु तक चेन्नई में रहीं।
उन्मुक्त जी,
'क्या यह श्रृंखला पूरी हो गयी?'अभी कैसे, अभी तो उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण किस्सा, रामनुजन - हार्डी के टैक्सी नम्बर किस्से की चर्चा तो हुई ही नहीं। अगली बार उसी की चर्चा होगी।
अनन्त का ज्ञानी - श्रीनिवास रामानुजन
सांकेतिक शब्द
। Srinivasa-Ramanujan,। जीवनी, जीवनी, जीवनी, biography,
यह दुखद रहा ....
ReplyDeleteहार्डी साहब के बारे में भी एक विस्तृत चर्चा हो जाये.
ReplyDeleteहार्डी के बारे में एक छोटी चर्चा यहां की है। विस्तृत चर्चा में समय चाहिये।
Deleteघर के पंछी को बाहर की हवा कहाँ रास आती है। दुखद अन्त।
ReplyDeleteरामानुजन के बारे में पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है।
ReplyDeleteहमेशा ही ज्ञान के सागर की तरह लगते है रामानुजन ।
ReplyDeleteAti uttam
ReplyDelete