Wednesday, April 01, 2020

संतोष करो, अच्छा समय आयेगा

इस चिट्ठी में, कॉरोना वाइरस संकट के समय राशन या अन्य समान की जमाखोरी न करने, औेर उसका पाठ पढ़ाती एक पोस्ट की चर्चा है।

चित्र मीडियम वेबसाइट से

कुछ दिन पहले, मित्रों के ग्रुप में, उक्त चित्र के साथ, अंग्रेजी में विवरण छपे विवरण को किसी ने पोस्ट किया। संक्षिप्त में यह इस प्रकार था कि दो सहेलियां कार से राष्ट्रीय मार्ग ८ (एनएच-८) पर जा रही थी तब उन्हें ऊपर के चित्र का परिवार मिला। जिसने बताया कि वे रायपुर जा रहे थे। जब उनसे खाने लिये पूछा तो महिला ने कहा कि उनके पास काफी है किसी और को दे देना।

मुझे चित्र और विवरण अच्छा लगा। उसे मैंने अपने परिवार के ग्रुप में डाला। इस पर मेरे साले साहब की टिप्पणी आयी,
'यदि यह परिवार एनएच-८ रायपुर पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं, तो वे बिल्कुल गलत तरीके से बढ़ रहे हैं। यह रोड रायपुर नहीं जाती। जीजाजी, पता करें कि यह पोस्ट कहां से आयी है। इस परिवार को उस रोड पर जाने से रोकें।
मुझे  विश्वास नहीं हो रहा है।  कृपया कर कोई मुझे बताये कि यह सच नहीं है।'
मेरा जवाब इस तरह था।

मैं नहीं कह सकता कि यह पोस्ट कहां से आयी। न तो मुझे यह पता है कि इसमें लिखा विवरण सच है या नहीं। लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि यह विवरण केवल कहानी है सच नहीं। फिर सवाल यह है कि यदि यह कहानी तब मैंने इसे क्यों पोस्ट किया।  पहले, इसे पोस्ट क्यों किया?

मुझे चित्र पसंद आया। पिछले कई दिनो से इतनी सुंदर तस्वीर नहीं देखी थी। उन सभी को देखो, आदमी स्मार्ट है, महिला सुंदर है, और बच्चे कितने प्यारे हैं। सब की मुस्कान और भी प्यारी। मैंने कभी किसी परिवार की इतनी खूबसूरत तस्वीर नहीं देखी। मुझे महिला के साहस ने भी छुआ गया। इसके अतिरिक्त विवरण का नैतिक पहलू भी है।

यह परिवार एक अनिश्चित यात्रा पर चार छोटे बच्चों के साथ निकल गया। मालुम नहीं कब गंतव्य पर पहुंचेंगे। लोग उसे खाने को देते हैं। लेकिन परिवार कहता है कि उसके पास है किसी दूसरे जरूरतमंद को दे दें। दोनो के सिर पर के झोले देखो। उनका भी अपना महत्व है। 

महिला के सिर पर झोले पर लिखा नाम 'संतुष्टि' लोगों को संतोष रखने का और पुरुष के झोले पर लिखा नाम 'गुड टाइमस', अच्छे समय आने का संदेश दे रहा है। यह सबक है भारत के मध्य वर्ग के लिये, जिसकी पसंदीदा भाषा अंग्रेजी है, जो आज-कल बिना सोचे समझे - कि जमाखोरी से किसी के लिये कमी हो सकती है - खाना और समान जमा करने में लगा है। मुुझे इस पोस्ट का यह पहलू भी दिल को छू गया। यह अपनाने योग्य है।

मेरे लिए यह हमें सिखाता है कि,
'संतोष  करो, दूसरों के लिए छोड़ो, अच्छा समय जल्दी आयेगा। इस मुश्किल समय में, हम एक साथ हैं।'
मैंने इतने शानदार तरीके से, जमाखोरी के खिलाफ नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ा। अब चलते हैं कि यह कहानी क्यों है।

बच्चों को देखो, वे एक ही उम्र के दिखाई देते हैं। एक परिवार में एक ही उम्र के चार बच्चे कैसे हो सकते हैं। परिवार परेशानी में है। पैदल, समान उठाये चला जा रहा है। फिर भी, चित्र में, उन पर कोई परेशानी नहीं दिखती है। दोनो के झोलों का बैग पर लिखा नाम भी एकदम माकूल है। यह इतिफ़ाक़ नहीं हो सकता। 

गलत रास्ते पर भी जा रहे हैं। हो सकता है उन्हें न मालुम हो पर कार में बैठी महिलाओं को तो मालुम था। वे भी उन्हें नहीं बताते। मेरे विचार में, यह तो कोई पुराना चित्र है या फिर एक तरह का फोटोशूट और जो कि आज के समय में, नैतकता का पाठ बताने के लिये खींचा गया है और यह कहानी से समझाने के लिये लिखी गयी।

घबराओ नहीं, अगर यह सच भी है तो अब तक उन्हें बीच में ही रोक लिया गया होगा। दिल्ली में हुई बेवकूफी के बाद, भारत सरकार की कड़ी कार्रवाई ने अन्य राज्यों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि इस समय वह कठोर कार्रवाई करने से नहीं कतराएगी। घर से बाहर मत निकलो, लॉकडाउन में आराम करो - यही सबसे बड़ा काम है।

मुझे बाद में पता चला कि वह चित्र और विवरण यहां से है और ऊपर का चित्र भी उन्हीं के सौजन्य से है।  

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सांकेतिक शब्द 
। culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, Etiquette, 
। जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो, तहज़ीब,

#CoronaVirusIndia #HindiBlogging #Contentment

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