Saturday, April 04, 2020

जरूरत है - दान प्रवृति बढ़ाना, ज़कात अपनाना

इस चिट्ठी में, कॉरोना वाइरस से लड़ाई में, पाकिस्तान में ज़कात के महत्व के साथ, समाज को वापस देने के लिये, दान प्रवृति पर जोर देना और ज़कात के मर्म को अपनाने की चर्चा है। 

करांची में अन्नदान करते पाकिस्तानी - बीबीसी की रिपोर्ट से
बीबीसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कर, करोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के दौरान, करांची में हालात की चर्चा की है। यहां पर लोग, दुकानों से सामान ख़रीदने के बाद घर नहीं चले जा रहे हैं। वे पहले ऐसे लोगों की मदद करते हैं, जिनके पास न रहने का ठिकाना है और न ही खाने का कोई जुगाड़। 

रिपोर्ट यह भी बताती है कि ब्रिटेन और कनाडा में जीडीपी का १.३ फ़ीसदी और १.२ फ़ीसदी दान से आता है। पाकिस्तान में भी, यह जीडीपी के एक फ़ीसदी से ज़्यादा है। जबकि, हमारे देश में यह जीडीपी का आधा ही है। यानि कि वे हमसे दूने से भी अधिक हैं। शायद, इसका कारण इस्लाम है।

इस्लाम के पांच मूल-भूत नियम  हैं। शहादा - इसलाम के प्रति गवाही देना। नमाज़ -  अल्लाह के लिये प्रार्थना करना, यह मक्का की ओर मुँह कर, दिन में ५ बार की जाती है। रोज़ा -इस्लामी कैलेंडर के नवें महीने में व्रत रखना। ज़कात - आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति का गरीबों के लिये दान। हज - इस्लामी कैलेण्डर के १२वें महीने में, मक्का जाकर, तीर्थ यात्रा करना।

ज़कात या दान इसमें चौथे नंबर पर आता हैै। ज़कात  अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ 'शुद्ध करना’ है। इसके द्वारा धनवान लोग अपनी धन और संपत्ति से, जरुरतमंद को दान कर, अपनी सम्पत्ति का शुद्धिकरण या गंदगी दूर करते हैं। मुझे इस्लाम की यह सोच अच्छी लगती है।

ज़कात के लिए दो शर्ते हैं। पहली, यह कि उनके पास एक न्यूनतमन संपत्ति होनी चाहिये। इस न्यूनतम संपत्ति को निसाब कहते हैं। दूसरा, यह न्यूनतम संपत्ति पिछले एक चंद्र वर्ष (३५४ दिन) से होनी चाहिये। निसाब की गणना के लिये कई तरीके हैं पर इसे हम गरीबी रेखा कह सकते हैं। यानि हर गरीबी रेखा के ऊपर इंसान को, एक चंद्र वर्ष बीतने के बाद, निसाब से अधिक संपत्ति पर दान देना चाहिये। लेकिन यह कितना हो, इस पर मतभेद है।

परम्परागत तरीके से, पूंजीगत संपत्ति (capital asset) पर, यह २.५% (या १/४०) है। इसके अतिरिक्त, अन्य प्रकार की संपत्ति - जैसे कृषि, खनिजों, पशुधन इत्यादि पर अलग-अलग दर से देय है। इस्लाम में, सामाजिक और आर्थिक असमानता  को दूर करने में, ज़कात की महत्वपूर्ण भूमिका है।

अधिकतर इस्लाम बहुल देशों में, ज़कात स्वैच्छिक है। यह आपकी मर्ज़ी पर है, आप दें या न दें। लेकिन कुछ देशों में (जिसमें बंगलादेश भी है), सरकार स्वैच्छिक ज़कात योगदान कार्यक्रम संचालित करती है और कुछ देशों में (जिसमें पाकिस्तान शामिल है) ज़कात देना क़ानूनन ज़रूरी है और ये टैक्स यहां की सरकारें वसूलती हैं। मेरे विचार में, यदि सरकार इन्कम टैक्स वसूल रही है, तब ज़कात कानूनन लेना उचित नहीं है।
मन्दिर के सामने भिक्षा - चित्र राजा रवी वर्मा

हर धर्मों में, दान का महत्व है। यह अलग-अलग जगह, अलग-अलग कथाओं से, अलग- तरीकों से बताया गया है। यदि हम हिन्दुओं की बात करें तो इसकी चर्चा ऋग्वेद, बृहदारण्यक उपनिषद, छांदोग्य उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत (आदिपर्व, अरयण्कपर्व, अनुशासनपर्व, यक्ष-युधिष्ठिर संवाद, भीष्म-युधिष्ठिर संवाद), भागवत पुराण, व्यास संहिता में है। 


अल-बिरूनी, एक फारसी विद्वान था जो ११वीं शताब्दि में भारत आया था। उसने अपने प्रवास के दौरान, हिंदुओं के बीच दान और भिक्षा की प्रथा का उल्लेख किया है। उसने लिखा,
" हिंदुओं के लिये यह अनिवार्य है कि वे हर दिन जितना संभव हो सके भिक्षा दें।"
राजा हरिश्चन्द्र, दानवीर कर्ण और राजा हर्षवर्धन के दान के किस्से मशहूर हैं। यदि संकट के समयों को छोड़ दें तब आधुनिक भारत में, दान की पुरानी सोच में बदलाव आया है। शायद, इसका कारण वर्षों की गुलामी या फिर हिन्दू धर्म का रूढ़िवादि न होना या फिर बिना कारण दान न देने की प्रवृति का बढ़ना हो या फिर इस क्षेत्र में मेरा अनुभव गलत हो। हम समाज से जितना ले रहे हैं, उतना वापस नहीं कर रहे है। 

सब यहीं रह जाना है। कोई कुछ ऊपर नहीं ले जा सकता। यहीं हम सबका जीवन खुशहाल कर सकें वही जीवन का असली उद्देश्य है। जरूरत है दान देने की प्रवृति पर जोर देना, ज़कात के मर्म को अपनाना।

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