Saturday, January 29, 2022

रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना - भूमिका

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के चौथे सरसंघ चालक, रज्जू भैया का जन्म २९ जनवरी १९२२ में हुआ था। आज उनकी जन्म शताब्दी है। इसी अवसर पर, उनके ऊपर, यह श्रंखला शुरू कर रहा हूं। आने वाले समय में, उनकी यादों को साझा करूंगा।

मेरे पिता के ७०वें जन्मदिन पर, मिठाई खिलाते रज्जू भैया

रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना

भूमिका।।

प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (२९.०१.१९२२ – १४.०७.२००३) को लोग रज्जू भैया के नाम से जानते थे। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के चौथे सरसंघ चालक (१९९४ से २००० तक) रहे। 

वे इलाहाबाद विश्वजीवनविद्यालय के भौतिकी विभाग में कार्यरत थे और उनकी गिनती विश्वविद्यालय के बेहतरीन शिक्षकों में की जाती है। १९६७ में, उन्होंने विश्वविद्यालय से तयागपत्र दे दिया और अपना जीवन सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।

हमारे और उनके परिवार में कोई रिश्तेदारी नहीं थी  लेकिन पारिवारिक मित्रता थी। मेरे बाबा केशव चंद्र सिंह चौधरी शिक्षित और प्रगतिशील थे और रज्जू भैया के पिता भी। इसी कारण हमारे परिवार करीब थे। हम उन्हें बड़े चाचा जी कहते थे क्योंकि हमारे साथ हमारे एक और चाचा रहते थे, जिन्हें हम, रज्जू चाचा कहते थे।

मेरे पिता वीरेन्द्र कुमार सिंह चौधरी वकील थे। उन्होंने बांदा में वकालत शुरू की। बाद में, १९५० में, वकालत के सिलसिले  में, वे इलाहाबाद चले आये। वे शुरू में, रज्जू भैया के साथ, उनके किराए के मकान पार्क रोड में रहे। मेरा जन्म, मेरी मां के वहां रहते हुआ।
कुछ समय बाद, दोनो ने एक साथ जमीन खरीदी। रज्जू भैया ने, पहले अपना मकान क्लाइव रोड पर बनाया और उसका नाम अपनी दादी के नाम से 'आनन्दा' रखा। १९५३-५४ में, हम सब उसी मकान में रहने लगे। 

हम तीन परिवार (रज्जू भैया, अशोक सिंघल और हमारा) के बीच अटूट सम्बन्ध था - १९५० दशक के शुरू में, रज्‌जू भैया के घर के आंगन की सीढ़ियों पर, मेरी मां (बायें) और अशोक सिंघल की बहन ऊषा बुआ (दायें)

हमारी जमीन क्लाइव और ताशकन्त रोड के चौराहे पर थी। १९५५-५६ में हमारा मकान बना और हम उसमें चले गये। 
दोनो मकान एक ही अहाते में थे और बीच में कोई दीवाल नहीं थी। इस समय रज्जू भैया के मकान में संघ कार्यालय है और अब दोनो के बीच एक दिवाल हो गयी है।
इसके बगल की जमीन, रज्जू भैया की मां ने खरीदी थी। वहां इस समय, उन्हीं के नाम से, ज्वाला देवी विद्या मन्दिर चलता है।

रज्जू भैया अक्सर इलाहाबाद से बाहर रहते थे लेकिन जब भी वह इलाहाबाद में होते, तो वे सुबह हमारे घर अखबार पढ़ने आते और अक्सर शाम को शाखा के बाद, हमारे साथ समय बिताने के लिए आते।
वे हमें प्रेरित करते, विज्ञान की बातें करते और जीवन के मूल्य बताते। यह सब १९६७ तक चला, जब तक वे इलाहाबद में रहे।

इसके बाद, वे जब इलाहाबाद आते, तब हमारे साथ ठहरते थे। उनके साथ, समय गुजारना सुखद अनुभव था। 

मेरे लिये, उन्हें निष्पक्ष रूप से आंकना मुश्किल है। लेकिन मैं इतना अवश्य कह सकता हूं कि वे एक बेहतरीन व्यक्तित्व के स्वामी थे और ऐसे लोग बिरले ही होते हैं।  
आगे की चिट्ठियों में, मैं उनकी कुछ स्मृतियां आपके साथ साझा करूंगा। आप स्वयं उनका आंकलन करें।

मेरी मां का यह चित्र, उस समय का है जब हम रज्जू भैया के मकान में रह रहे थे।

About this post in Hindi-Roman and English

Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) ke chauthe Sar-Sanghchalak (Chief) Rajju Bhaiya thhey. Hindi (devnaagree) kee yeh chitthi, un per likhi ja rahee shrankhala kee bhoomika hai.  ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post in Hindi (Devanagari script) is introduction to a new series on Rajju Bhaiya, 4th Sar-Sanghchalak (Chief) of Rashtriya swayamsevak Sangh (RSS). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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