इस चिट्ठी में, लॉस ऐंजलीस में हुऐ विश्च हिन्दू परिषद के समारोह की कुछ बातें हैं, जो अम्मा ने मेरे बेटे को नहीं लिखीं थीं।
इस समारोह में, रज्जू भैया (बड़े चाचा जी) मुख्य वक्ता थे, जाहिर है इस चर्चा में, कुछ बातें, उनके बारे में।
बड़े चाचा जी, सेंट जोसेफ नैनीताल में पढ़े थे। नीचे का चित्र उन्हें वहां पुरस्कार में मिली एक पुस्तक का है। इसमें, कोई तारीख नहीं लिखी है। लेकिन, वे वहां, १९३० के दशक में, विद्यार्थी थे। इसलिये यह पुस्तक ८० साल से भी अधिक पुरानी है। मैंने इसे उनकी याद में रख छोड़ी है। ।
दादी की चिट्ठी - रमरीका यात्रा
भूमिका।। लन्दन होते हुऐ, वॉशिन्गटन।। फ्लोरिडा के सी-वर्ल्ड में मस्ती।। जमाइका, एरिज़ोना और सैन फ़्रांसिस्को की यात्रा।। विश्व हिन्दू परिषद के लॉस एंजेलिस सम्मेलन में।। नियागरा फॉल्स - हैलीकॉपटर पर।। न्यू-वृन्दावन - मथुरा में बृन्दावन जैसा है।। अनलिखी - हनुमान तो सुपरमैन हैं।।
अम्मा अमेरिका से लौटने के बाद बहुत सी बातें बताया करती थीं, जो उन्होंने पत्रों में मेरे बेटे को नहीं लिखीं थीं। इसमें अधिकतर लॉस एंजलीस में हुऐ विश्व हिन्दू परिषद के समारोह से जुड़ी थीं। चालीस साल बाद, मैं बहुत कुछ भूल गया और कुछ ही याद रह गयीं हैं।
इस समारोह में लोग, पूरे उत्तर अमेरिका से परिवार सहित आये थे। वहां पर बच्चे भी थे। इसलिये इस बात का खास ख्याल रखा गया था कि उनका मनोरंजन हो सके। बच्चे लोग अक्सर अम्मा को आंटी कह कर बुलाते थे। अम्मा उनसे कहतीं,
I am not your Auntie but your granny, call me Granny.अमेरिका में सब लोग कम उम्र के लगना चाहते हैं। इसलिये कोई अपने को दादी बुलवाना पसन्द नहीं करता। बच्चों को बहुत आश्चर्य होता था कि कि कोई ऐसी भी महिला है जो अपने को दादी कहलवाना पसन्द करती है।
समारोह में बच्चों का खास प्रोग्राम था, जिसमें उनसे हिन्दू धर्म के बारे में सवाल पूछे जाते थे। इनमें से एक प्रश्न था कि उन्हें कौन सा भगवान सबसे अच्छे लगते हैं। इस पर बच्चों का जवाब था कि उन्हें हनुमान सबसे पसन्द हैं। उनसे जब पूछ गया कि उन्हें हनुमान क्यों पसन्द हैं तब उनका जवाब था कि,
हनुमान तो सुपरमैन की तरह उड़ सकते हैं और उसी के तरह, न केवल बलशाली हैं पर अच्छे काम भी करते हैं।बड़े चाचा जी (रज्जू भैया) तो खास तौर से केवल इस समारोह में बोलने के लिये गये थे। वहां पर बहुत से लोग ऐसे थे जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी पर सब लोगों को अंग्रेजी आती थी। इसलिये तय किया गया कि वे अंग्रेजी में बोलेंगे। अम्मा ने कभी भी उन्हें अंग्रेजी में बोलते या बात करते नहीं सुना था। अम्मा सशंकित थीं कि शायद भाषण अच्छा न हो।
अम्मा कि अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। उन्होंने १९४२ में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से स्नातक की डिग्री ली थी। उस परीक्षा में अंग्रेजी में उनके सबसे अधिक नंबर थे। वे उस दिन का अपना अनुभव बताती थीं कि जब बड़े चाचा जी ने बोलना शुरू किया तो धारा प्रवाह अंग्रेजी में बोला। अम्मा कहती थीं कि उन्होंने कभी अंग्रेजी में इतना अच्छा भाषण नहीं सुना था।
बड़े चाचा जी कुछ महीने मॉडर्न स्कूल दिल्ली में पढ़े थे पर उनकी पूरी शिक्षा सेंट जोसेफ नैनीताल में हुई थी। उन्हें वहां बहुत सी पुस्तकें पुरस्कारों में मिली थीं। मेरे पास उनमें से एक बची है जो उन्हें गणित में सबसे अधिक अंक लाने पर मिली थी। इसका चित्र ऊपर लगा है।
मुझे दो बार, सेंट जोसेफ नैनीताल में हुई उत्तर प्रदेश की टेबल टेनिस की प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला। १९७० में हुई प्रतियोगिता में, मैंने और एस के डे ने युगल प्रतियोगिता भी जीती थी। वहां पर मुझे न केवल पूरे हिन्दुस्तान आये छात्र मिले पर विदेश के भी छात्र मिले थे।
मेरे यह पूछने पर कि वे इतनी दूर, नैनीताल में क्यों पढ़ने आये हैं। उनका कहना था कि वे वहां इसलिये पढ़ने आये है क्योंकि सेंट जोसेफ नैनीताल न केवल भारतवर्ष का पर उनके देश में सारे कॉन्वेन्ट स्कूलों में सबसे अच्छा कॉन्वेंट स्कूल है।
भाषण सुनने के बाद, अम्मा को तब याद आया कि बड़े चाचा जी सेंट जोसेफ नैनीताल में पढ़े थे और वहां पर सीखी अंग्रेजी को भूले नहीं थे।
कोई २५ साल पहले, घर पर बड़े चाचा जी |
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