इस चिट्ठी में, रज्जू भैया के अध्यन के दिनों के साथ, उनके संघ की तरफ झुकाव की चर्चा है।
सेंट जोसेफ नैनीताल - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से |
रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना
भूमिका।। रज्जू भैया का परिवार।। रज्जू भैया की शिक्षा और संघ की तरफ झुकाव।।
रज्जू भैया का जन्म २९ जनवरी १९२२ को हुआ था। शुरुवात में, कुछ समय मॉडर्न स्कूल, दिल्ली राजकीय विद्यालय उन्नाव में पढ़ने के बाद, वे सेंट जोसेफ नैनीताल पढ़ने चले गये गये।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वालों में, शायद सबसे बेहतरीन बैच १९३९ का था। इस साल हरीशचन्द्र, आरसी मेहरित्रा, रज्जू भैया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।
१९४१ की स्नातक परीक्षा में रज्जू भैया का पांचवा और १९४३ की भौतिक शास्त्र की परास्नातक की शिक्षा में दूसरा स्थान रहा।
वे बेहतरीन छात्र थे। उन्हें पुरुस्कार में कई पुस्तकें मिली थीं। बाद में, रज्जू भैया ने वे पुस्तकें मुझे दे दी थीं। इस समय मेरे पास एक बची है जो उन्हें सेंट जोसेफ नैनीताल में, गणित में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर मिली थी। इसका चित्र नीचे लगाया है।
अपने देश में, रामानुजन के बाद, सबसे बड़े गणितज्ञ हरीश चंद्र रहे। उन्होंने ने भी, १९३९ में, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रज्जू भैया के साथ दाखिला लिया। हरीश चंद्र ने, स्नातक और भौतिक शास्त्र की परास्नातक शिक्षा दोनो में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
उसी समय, होमी जहांगीर भाभा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय देखने आये। वहां पर, उन्हें भौतिक शास्त्र विभाग के प्रमुख बनने की बात थी। लेकिन वे सैद्धांतिक क्षेत्र के व्यक्ति थे; जबकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्र का विभाग में प्रयोगात्मक की तरफ झुकाव था। इसलिये वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नहीं आये।
लेकिन, भाभा की गणित कमजोर थी। वे चाहते थे कि कोई उनके गणित के पक्ष को संभाल ले। इसलिये वे हरीश चंद्र को अपने साथ ले गये। इसकी कुछ चर्चा, बाद में होगी पर भाभा के हरीश चन्द्र को अपने साथ ले जाने का कुछ असर, रज्जू भैया के जीवन पर भी पड़ा।
प्रायोगिक परीक्षा का परीक्षक, हमेशा बाहर से आता है। उन दिनों, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर केएस कृष्णन हुआ करते थे। वे सीवी रमन के छात्र थे, इसी लिये सीवी रमन अक्सर प्रायोगिक परीक्षक के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय आते थे।
रज्जू भैया की, स्नातकोत्तर प्रायोगिक परीक्षा में, सीवी रमन ही परीक्षक थे। रज्जू भैया को रमन प्रभाव का संचालन करना था। उन्होंने अपने द्वारा लिए गए रमन इफेक्ट का फोटो दिखाया।
रमन ने उससे पूछा कि वह कौन सा पदार्थ था। रज्जू भैया ने उन्हें बताया कि यह बेंजीन है। रमन ने कहा, यह कार्बन टेट्राक्लोराइड है और उन्होंने कैसे कहा कि यह बेंजीन था।
रज्जू भैया ने कहा कि वह इसे बेंजीन इसलिए कह रहे थे क्योंकि प्रोफेसर कृष्णन ने उन्हें ऐसा बताया था। रमन ने, कृष्णन को फोन किया और हंसते हुए उससे कहा कि एक छात्र है जो आपको रमन से ज्यादा मानता है।
सीवी रमन, रज्जू भैया से प्रभावित थे वे उन्हें अपने साथ, शोध के लिये बैंगलोर ले जाना चाहते थे। रज्जू भैया भी वहां जान चाहते थे।
एक दिन रज्जू भैया ने, कृष्णन से, बैंगलोर जाने की चर्चा की। लेकिन कृष्णन ने उनसे कहा कि हरीश चंद्र भाभा के साथ पहले ही जा चुके हैं, अगर वे भी चले जाएंगे तो कृष्णन के साथ, इलाहाबाद में कौन काम करेगा। यही कारण है कि वे इलाहाबाद में ही रुक गये। यह अच्छा ही रहा अन्यथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपने सबसे अच्छे शिक्षक से वंचित रह जाता।
१९४२ के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में, रज्जू भैया ने सक्रिय भाग लिया। पुरुषोत्तम दास टंडन, लाल बहादुर शास्त्री जैसे उस समय के कई वरिष्ट नेताओं के समपर्क में भी रहे। लेकिन उस समय वांछित परिणाम न मिलने के कारण निराशा थी और भविष्य के बारे में कोई संतोषजनक प्रोग्राम समझ में नहीं आ रहा था।
इसी समय, वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक, बापूराव मोघे के संपर्क में आए और पास की शाखा में जाने लगे। यहीं से, वे धीरे-धीरे संघ से जुड़ने लगे और अपना जीवन पढ़ाने और संघ में लगा दिया।
१९६७ में, रज्जू भैया ने विश्विविद्यालय से त्यागपत्र दे दिया और अपना जीवन पूरी तरह से संघ को समर्पित कर दिया।
अगली बार, बचपन में, उनके साथ घटी कुछ घटनाओं की सुखद यादें।
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