इस चिट्ठी में, जयंत विष्णु नार्लीकर की आत्मकथा 'चार नगरोंं की मेरी दुनिया' से, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुछ किस्सों की चर्चा है।
कैम्ब्रिज विश्वविदयाल का फिट्ज़विलियम कॉलेज का खेल का मैदान, जहां जयन्त नार्लीकर ने पढ़ाई की - चित्र विकिफीडिया से |
चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकर
जयन्त नार्लीकर ने विज्ञान में स्नातक की शिक्षा, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ली फिर उसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन में पढ़ाई, वहीं अपना शोद्ध, और फिर कुछ समय वहीं पढ़ाया। जाहिर है उनकी आत्मकथा में बहुत से किस्से से कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़े हैं।
हर विश्विद्यालय की अपनी परम्परायें होती हैं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की भी हैं। ईस्टर के बाद, वहां कुछ अजिबो-गरीब हरकत करने की परम्परा है। पुस्तक में उनके समय का एक मज़ेदार किस्से का जिक्र है।
एक दिन सुबह, लोगों ने देखा कि सिनेट हाउस की इमारत कि छत पर, ऑस्टिन गाड़ी खड़ी है। किसी को यह नहीं मालुम चला कि यह कब, कैसे और किसने किय। फिर गाड़ी को नीचे लाने की सारी कोशिशें बेकार हो गयी।
जब सब ने हार मान ली, तब विश्विद्यालय ने, विद्यार्थियों से अनुरोध किया कि, जिसने यह काम किया है वह गाड़ी को नीचे लाये, उन्हें कोई डण्ड नहीं दिया जायगा। इसके बाद छुपे रुस्तम प्रगट हुए और उस गाड़ी को नीचे उतार लाए।
कैम्ब्रिज विश्विदयालय में लड़कियों के लिये कम और लड़कों के लिये अधिक कॉलेज थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वे बुद्धिमान तो होंगी पर वे सुन्दर भी होगीं, ऐसा नहीं था। इस बारे में, वहां से एक किस्से की चर्चा भी है।
एक बार, भूगोल के अध्यापक ने , एक खास द्वीप की जानकारी देते बताया कि वहां हर दस पुरुषों में केवल सात ही महिलाएं थीं। इस पर उनकी टिप्पणी थी कि महिलाओं की इतनी कमी देखते, यह कहा जा सकता है कि कैम्ब्रिज की छात्राओं को भी वहां आराम से पति मिल सकते हैं।
उनकी उक्त बात पर लड़के तो हंस दिए, लेकिन लड़कियों ने आपत्ति जताते हुऐ 'वॉक आउट' किया। तब अध्यापक ने पीछे से चिल्ला कर कहा,
“अरे, इतनी जल्दी कया है ? अभी उस द्वीप पर जाने के लिए बोट निकलने में काफी दिन है।"
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में, अध्यापकों के बीच, अपने विषयों के बारे में भी बहस होती है। इस बारे में, एक किस्सा मशहूर है, जिसमें चर्चा है कि किसकी परीक्षा ज्यादा कठिन है। गणित के अध्यापक ने कहा,
“गणित ट्रायपास की यह परम्परा है कि हर वर्ष नए-नए प्रश्न निकाल कर, विद्यार्थियों को कैंची में पकड़ाना। इसके विपरीत आपके इकोनॉमिक्स ट्रायपास में हर वर्ष वही प्रश्न पूछे जाते है। ऐेसा मैंने अक्सर देखा है।"
इस पर, इकोनॉमिक्स के अध्यापक ने कहा,
“किन्तु महाशय, हमारे प्रश्न भले ही वही हों, लेकिन हर वर्ष उनके उत्तर बदलते रहते हैं।"
जयन्त नार्लीकर ने, अपना शोद्ध फ़्रेड हॉयल के बारे में है अगली बार कुछ उसकी चर्चा।
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