कुंवर बलबीर सिंह, रज्जू भैया के पिता जी
रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना
भूमिका।। रज्जू भैया का परिवार।।
रज्जू भैया के पूर्वज, बुलंदशहर जिले के, बरनैल गांव के रहने वाले थे। उनके पिता बलबीर सिंह गणित के अच्छे विद्यार्थी थे। इसलिये उनके शिक्षक, एक दिन उनके घर आये, औेर घरवालों से कहा कि इन्हें आगे इंजीनियरिंग के लिये भेजें।
उस समय रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज, हिन्दुस्तान में, सबसे अच्छा इंजीनियरिंग कॉलेज माना जाता था। इसलिये, बलबीर सिंह ने वहीं दाखिला लिया। वे वहां १९१५ से १८ तक रहे। उन्होंने नए कीर्तिमान स्थापित किए। वे पढ़ाई में तो अव्वल थे पर इसके साथ एथलेटिक चैंपियन भी थे। तब से आज तक, इस तरह के रिकॉर्ड की, केवल एक बार ही बराबरी हुई है।
रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में, कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के द्वारा जेनरेल प्रॉफिशिऍन्सी पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार वहां पर सबसे अच्छे विद्यार्थी को दिया जाता है, जो पढ़ाई और खेल दोनो में अच्छा हो। १९१८ में यह पुरस्कार बलबीर सिंह को मिला।
बलबीर सिंह मुख्य अभियंता (सिंचाई) के पद से सेवानिवृत्त हुए। वे इस प्रकार नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे। उनका विवाह ज्वाला देवी से हुआ था, जिन्हें सब लोग 'जिआजी' बुलाते थे।
रज्जू भैया छः भाई बहन थे। एक बहन, इन्दू की मृत्यु अल्प आयु में ही, १९३० के दशक में हो गयी थी। बाकी बचे पांच बच्चों में दो बड़ी बहने, सुशीला और चन्द्रा, बीच में रज्जू भैया, और बाद में दो छोटे भाई विजेन्द्र और यतीन्द्र थे। रज्जू भैया - दो बड़ी बहनों और दो छोटे भाइयों के बीच में थे।
सबसे बड़ी बहन की शादी महादेव सिंह से हुई, जो सेना में थे और मेजर जनरल के पद से अवकाश ग्रहण किया। उनसे छोटी बहन चन्द्रा थीं। इनकी शादी डा. आर वी सिंह से हुई, जो बाद में, लखनऊ मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य और लखनऊ विश्वविद्यालय कुलपति रहे।
विजेन्द्र सिंह ने रुड़की से सिविल अभियांत्रिकी की डिग्री ली और केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियन्ता के पद से अवकाश ग्रहण किया।
सबसे छोटे भाई यतीन्द्र सिंह भारतीय प्रशासन सेवा के राजस्थान काडर में थे। वे अपने पिता की तरह खेलकूद (athletics) में अच्छे थे और अपने समय में, इलाहाबाद विश्विद्यालय के विजेता रहे। मुझे उनकी याद है, बचपन में, वे हमें, चक्का और गोला फेंकना सिखाते थे।
चित्र में सोफे पर बायें से दूसरी महिला रज्जू भैया की सबसे बड़ी बहन सुशीला, फिर उनक पिता बलबीर सिंह, फिर उनकी मां जिआजी, फिर दूसरे नंबर की बहन चन्द्रा।
जमीन पर बायें से - रज्जू भैया, उनके सबसे छोटे भाई यतीन्द्र सिंह, और दोनो के बीच के विजेन्द्र सिंह।
सोफे पर सबसे बांये बैठी महिला का नाम शान्ती है। यह किसी को नहीं मालुम कि वह कौन हैं और वे किस प्रकार रज्जू भैया के परिवार से जुड़ी हैं। यदि आप को मालुम हो तो बतायें।
अगली बार कुछ बातें रज्जू भैया के अध्यन के दिनों की और उनका संघ की तरफ झुकाव की।
इस चिट्ठी के चित्र, लेफ्टिनेन्ट जेनरल आदित्य सिंह (अवकाश प्राप्त), डा. गिरीश सिंह, और रुड़की विश्विविद्यालय एल्युमनाई एसोसिएशन के सौजन्य से हैं।
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Thanks Yati for sharing these details. Luckily for me , I had the fortune of meeting Ch BalbirSingh Ji while studying for Engineering in 60-64 . He used to walk past our hostel every day on his morning walk and ask very interesting questions such as “ what is the capacity of that water tank , pointing towards a RCc water tank far away?”. He was full of sense of humour. And he was very tall. Once he was requested to preside over a function where he had gone to attend it and for some reason the Chief Guest couldn’t come. He accepted the request with grace and jokingly said that he was there by virtue of his height as the organiser found him tallest amongst the crowd.
ReplyDeleteHe commanded lot of respect from the student community and the faculty members. Great person. Rajju Bhiyya was kind enough to attended our younger daughters wedding and to Bless her. We ( Shibha and I) went to Pune to meet him in the hospital just a few days before he passed away. We had met Vrijendra Singh Ji in Delhi off and on and had visited him a few times. And of course Yati Bhaiyya was my co brother-in-law. I feel blessed to have known such a selfless and eminent family .
KPSINGH ( kishore)
सुंदर वर्णन।
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