Saturday, April 02, 2022

फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत

जयन्त नार्लीकर ने, अपना शोद्ध फ़्रेड हॉयल के साथ किया। इस चिट्ठी में कुछ बातें उनके बारे में।

फ़्रेड हॉयल का यह चित्र The Guardian के लेख 'Fred Hoyle: the scientist whose rudeness cost him a Nobel prize' के सौजन्य से है।

चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकर

भूमिका।।  कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किस्से।। फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत।।

फ़्रेडेरिक हॉयल (२४ जून १९१५ – २० अगस्त २००१) अंग्रेज खगोलशास्त्री थे। उन्होंने अपनी शिक्षा गणित से, कैम्ब्रिज के इमैनुएल कॉलेज में पूरी की।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, वे रडार पर काम करने के लिये, ब्रिटानी नौसेन में चले गये। विश्वयुद्ध के बाद वे वापस कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट जॉन्स कॉलेज में, एक अध्यापक के रूप में लौट आए। १९४५ से १९७३ तक वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ही रहे। इसी दौरान, उन्होंने खगोल शास्त्र में मौलिक योगदान दिया।
वे रॉयल सोसाइटी के फेलो भी रहे। उन्हें कलिंग पुरस्कार, रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी का स्वर्ण पदक, ब्रूस पदक से भी नवाज़ा गया। 

१९८३ में भौतिकी का नोबेल पुरुस्कार दो लोगों को दिया गया था। इनमें से, एक व्यक्ति  विलियम अल्फ्रेड फाउलर थे और उन्हें यह पुरुस्कार,'ब्रह्मांड में रासायनिक तत्वों के निर्माण में, परमाणु प्रतिक्रियाओं का सैद्धांतिक और प्रायोगिक अध्ययन के लिए' दिया गया था।
इस विषय पर, सबसे पहले, मौलिक काम हॉयल ने किया था।  फाउलर के साथ, उन्हें भी यह पुरुस्कार मिलना चाहिये था। वे इसके हकदार थे।
लेकिन, हॉयल कुछ विवादास्पक व्यक्ति थे। शायद, इस लिये उन्हे यह पुरुस्कार में नामित नहीं किया गया।

ब्रह्माण्ड के जन्म के बारे में दो सिद्धांत प्रचलित हैं - पहला  बिग बैंग और दूसरा स्टेडी-स्टेट। इस समय  खगोलशास्त्रियों के बीच बिग बैंग का सिद्धान्त प्रचलित है। लेकिन हॉयल बिग-बैंग पर विश्वास नहीं करते थे। वे स्टेडी-स्टेट सिद्धान्त के जनक थे। उनका विचार था कि ब्रह्माण्ड एक स्टेडी-स्टेट अवस्था में था और है।  
हॉयल का यह भी विश्वास था कि पृथ्वी पर जीवन, धूमकेतुओं के जरिए अन्तरिक्ष से आए विषाणुओं के जरिये शुरु हुआ। वे नहीं मानते थे कि रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए जीवन का प्रारंभ संभव है।

जयन्त नार्लीकर, अपने  कैम्ब्रिज प्रवास के दौरान, हॉयल के सम्पर्क में आये और उनके साथ शोद्ध  किया। हॉयल बहुआयामी व्यक्ति थे और समय का बहुत अच्छा प्रयोग करते थे। जयन्त की अपनी जीवनी में कहना था कि उन्होंने कई बार गौर किया था कि जब-जब खाली समय मिलता, तब-तब फ़्रेड अपने भिन्न-भिन्न प्रकार के लेखन में व्यस्त रहते थे।
उनसे अपनी एक मुलाकात के बारे में, जयन्त लिखते हैं कि वे चार बजे फ़्रेड और बार्बरा ( फ़्रेड की पत्नी) के पास गये। उन्होंने चाय-केक वगैरह का आर्डर दिया। आर्डर आने तक, फ़्रेड छोटे बच्चों के लिए, एक नाटक लिखते रहे।  वे यह भी लिखते हैं कि जब भी जयन्त, हॉयल के साथ हाईकिंग पर जब मैं गया था। तब भी मैंने गौर किया कि उसका विचार चक्र अखंड रूप से लगातार चलता रहता था। कभी किसी वैज्ञानिक कल्पना को लेकर, तो कभी किसी विज्ञान कथा की रूपरेखा के बारे में।
फ़्रेड ने बेहतरीन विज्ञान कहानियां भी लिखी हैं। इनमें से प्रमुख 'द ब्लैक क्लाउड’, 'ए फॉर एंड्रोमेडा’, 'फिफ्थ प्लैनेट’, 'अक्टूबर द फर्स्ट इज़ टू लेट’, 'इनटू डीपेस्ट स्पेस’, एवं 'सेवेन स्टेपस् टू सन' हैं।

जयन्त नार्लीकर भी, फ़्रेड के कदमों पर चले। वे भी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं। जयन्त ने भी, न केवल विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया पर विज्ञान के बारे में और विज्ञान कहानियां भी लिखी।  

जयन्त  का लिखा उपन्यास ‘द रिटर्न ऑफ वामन’ मुझे बहुत पसन्द आया। मैंने इसकी कहानी को कई बार मुक्त मानक (Open Format) (ओपेन फॉरमैट) के महत्व को बताने के लिये किया है। इनमें से एक भाषण का पाठ 'Return of Vaman in an E-Governed E-Society: - Importance of Open Source and Open Format for better E-Governance' है।
जयन्त की लिखी सारी विज्ञान कहानियां पढ़ने योग्य हैं पर मुझे उनकी लिखी लघु कहानियों का संग्रह 'धूमकेतु' भी बहुत पसन्द आया। यह कहानियां मूल रूप से मराठी में लिखी गयी हैं और उनका हिन्दी में अनुवाद किया गया हे़ इसलिये हिन्दी में, अनुवाद की कमियां खटकती हैं। 

१९८० के दशक में, दूरदर्शन ने, कार्ल सेगन का चर्चित सीरियल 'कॉसमॉस’ दिखाया। इसकी हर कड़ी के पहले, जयन्त इसे हिन्दी में समझाते थे। इससे यह सीरियल आसानी से लोगों के समझ में आ सका। इसी के बाद, दूरदर्शन ने खगोलशास्त्र पर एक कार्यक्रम 'ब्रह्मांड’ नाम से, जयन्त के ही मार्गदर्शन पर बनाया था। इसका शीर्षक गीत मुझे अभी तक याद है।

आकाश बहुत ऊंचा है और दूर बहुत हैं तारे
फिरते हुए सैकड़ों  सूरज, ब्रह्माण्ड के ये बंजारे
आकाश बहुत ऊंचा है।
सदियों के भंवर बहते हैं, अनगिनत हैं समय के ये तारे
और नीला सा एक मोती, कहते हैं ज़मी हम सारे
छोटी सी गेंद सी धरती, सागर से कहीं गहरी है
आकाश की गंगा में ये, बजरे की तरह बहती है
आकाश बहुत ऊंचा है।

इसका पहली कड़ी नीचे देखें। यदि आपके मुन्ने या मुन्नी ने नहीं देखी है तब उन्हें देखने के लिये प्रेरित करें

जब विज्ञान की बात हो तब फाइनमेन की बात न हो यह तो हो ही नहीं सकता। अगली बार जयन्त नार्लीकर की जीवनी में फाइनमेन की चर्चा के बारे में, बात करेंगे।

About this post in Hindi-Roman and English

Fred Hoyle, jayant Narlikar ke guide tthe. unhone jayant ko prerna dee. Hindi (devnaagree) kee is chitthi mein usee kee charcha hai. iise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

Fred Hoyle was Jayant Narlikar's research guide. He has inspired Jayant. This post in Hindi (Devanagari script), talks about the same. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand side widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द

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