Monday, September 15, 2025

फौस अपनाने का कारण

यह 'भारतीय न्यायालयों में फौस का प्रयोग: इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रेरित' श्रृंखला की सातवीं पोस्ट है। इसमें बताया गया है कि हमने फौस को क्यों अपनाया।

दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में महात्मा गांधी की प्रतिमा

भारतीय न्यायालय में FOSS का प्रयोग: इलाहाबाद उच्च न्यायालय से प्रेरित

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कई लोगों ने हमसे पूछते हैं कि हमने फौस क्यों अपनाया; हमने ई-कमेटी से क्यों झगड़ा किया और अपना रास्ता अलग क्यों चुना, जिसके कारण अंततः ई-कमेटी ने फौस को अपनाया। क्या यह फौस की कम लागत थी, या इसकी स्थिरता थी, या फिर वायरसों का अभाव? वास्तव में, यह सब और कुछ और भी जो इनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। 

पिछली शताब्दी की शुरुआत में एक अर्धनग्न भारतीय का उदय हुआ, जिसे विंस्टन चर्चिल ने 'अर्धनग्न फकीर' कहा था। उनका दर्शन था,

'साधन, साध्य से अधिक महत्वपूर्ण हैं: केवल सही साधनों से ही वांछित साध्य प्राप्त हो सकता है।'

'साधन तो केवल साधन ही हैं' इस आरोप पर वे कहते थे,

'आखिरकार, साधन ही सब कुछ हैं।'

उनका नाम मोहनदास करमचंद गांधी, हमारे राष्ट्रपिता और दुनिया के लिये - महात्मा गांधी।

उनका दर्शन, कानून में भी गहराई से निहित है। लॉर्ड डेनिंग, २०वीं शताब्दी के महानतम न्यायाधीशों में से एक थे। उन्होंने आर बनाम आईआरसी एक्सपार्टे रॉसमिनस्टर लिमिटेड १९७९(३) ऑल ईएलआर ३८५में कहा,

'लेकिन हमारे कानून में का मौलिक सिद्धान्त है कि जो भी साधन अपनाए जाएं... वे वैध साधन होने चाहिए। एक अच्छा लक्ष्य बुरे साधनों को उचित नहीं ठहराता।'

आज की दुनिया में,

  • लक्ष्य सूचना का प्रसार, संचार और पुनर्प्राप्ति है; और
  • साधन हैं, इसे कैसे प्राप्त किया जाए, इसे कैसे लागू किया जाए, किस प्रकार के सॉफ़्टवेयर का उपयोग किया जाए, किस प्रकार के मानक अपनाए जाएँ, किस प्रकार के प्रारूप अपनाए जाएँ।

ओपन सोर्स और ओपन फ़ॉर्मेट अच्छे साधन हैं, और इसी कारण से हमने इन्हें अपनाया।

मैं अपने कारणों को, पंचतंत्र की एक कहानी के द्वरा बताता हूं। यह इस श्रृंखला की अगली और अंतिम चिट्ठी में।

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