Sunday, July 29, 2007

यौन अपराध: आज की दुर्गा

(इस बार चर्चा का विषय है यौन अपराध। इसे आप सुन भी सकते हैं। सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।)

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यौन अपराध के मुकदमों में सबसे ज्यादा चर्चित मुकदमा
Tuka Ram Vs. State of Maharashtra है। यह मथुरा बलात्कार केस के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्दर मथुरा नाम की लड़की अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी। उसके भाई ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी। इस पर वह पकड़ी गयी और पुलिस स्टेशन लायी गयी। वहां उसका बयान भी दर्ज किया गया। कहा जाता है कि पुलिस स्टेशन के अन्दर, उसके साथ हेड कांस्टेबिल और अन्य कांस्टेबिलों ने उसके साथ बलात्कार किया। मैं यह इसलिये कह रहा हूं क्योंकि यह आरोपी, उच्चतम न्यायालय के द्वारा वे छोड़ दिये गये हैं। इस केस की महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें इस बात से कोई इंकार नहीं था कि पुलिस स्टेशन के अन्दर हेड कांस्टेबिल और बाकी कांस्टेबिलों ने लड़की के साथ संभोग किया पर सवाल यह था कि क्या इस संभोग में लड़की की रजामंदी थी अथवा नहीं।

इस मुकदमे में परीक्षण न्यायालय ने आरोपियों को छोड़ दिया था पर बम्बई उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की अपील स्वीकार कर ली थी। उच्चतम न्यायालय ने आरोपियों की अपील स्वीकार कर, उन्हें छोड़ दिया। उच्चतम न्यायालय के अनुसार,
'The consent in question was not a consent which could be brushed aside as passive submission'.
...
'It [ The High Court ] did not give a finding that such fear [for sexual intercourse] was shown to be that of death or hurt.'
प्रश्नगत सहमति ऎसी सहमति नहीं थी जिसे यह कहकर अस्वीकृत किया जा सके कि वह निश्चेष्ट आत्म-समर्पण है।
...
उच्च न्यायालय ने इस तरह का कोई भी निष्कर्ष नहीं दिया गया कि संभोग करने के लिये मृत्यु या चोट पहुंचाने की धमकी दी गयी थी।'
अधिकतर न्यायविद इस निर्णय को गलत निर्णय मानते हैं। मेरे विचार से यह उच्चतम न्यायालय के अच्छे निर्णयों में से नहीं है।

इस निर्णय के आने के पहले ही, विधि आयोग ने १९७१ में ही अपनी ४२वीं रिपोर्ट पर बलात्कार के कानून को बदलने के लिए कहा था पर सरकार ने कुछ नहीं किया था। इस निर्णय के बाद उठे तूफान पर, सरकार ने पुन: विधि आयोग से रिपोर्ट देने की प्रार्थना की।

विधि आयोग ने १९८० में अपनी ८४वीं रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट की कुछ संस्तुतियों की स्वीकृति के बाद,
Criminal Law Amendment Act 1983 ( Act no. 43 of 1983) के द्वारा फौजदारी कानून में इस विषय पर आमूल-चूल परिवर्तन किया गया।

इस संशोधन अधिनियम से,
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा ३७५ व ३७६ के स्थान पर नई धारायें स्थापित की गयी और धारायें ३७६-क से ३७६-घ जोड़ी गयी।
  • साक्ष्य अधिनियम में भी नयी धारा ११४-क जोड़ी गयी। इस संशोधन के द्वारा, कुछ परिस्थितियों में (जैसे कि मथुरा बलात्कार मुकदमे में थीं) आरोपी को सिद्घ करना है कि बलात्कार नहीं हुआ है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ३२३ भी बदली गयी। अब न्यायालय बलात्कार के मुकदमे का विचारण बन्द कमरे में कर सकता है; या मीडिया में उसके प्रचार को मना कर सकता है।

आज की दुर्गा
महिला दिवस|| लैंगिक न्याय - Gender Justice|| संविधान, कानूनी प्राविधान और अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज।। 'व्यक्ति' शब्द पर ६० साल का विवाद – भूमिका।। इंगलैंड में व्यक्ति शब्द पर इंगलैंड में कुछ निर्णय।। अमेरिका तथा अन्य देशों के निर्णय – विवाद का अन्त।। व्यक्ति शब्द पर भारतीय निर्णय और क्रॉर्नीलिआ सोरबजी।। स्वीय विधि (Personal Law)।। महिलाओं को भरण-पोषण भत्ता।। Alimony और Patrimony।। अपने देश में Patrimony - घरेलू हिंसा अधिनियम।। विवाह सम्बन्धी अपराधों के विषय में।। यौन अपराध

1 comment:

  1. पूरा केस जाने बिना बड़ा कठिन है कह पाना. पर थाने में सेक्स - चाहे रजामन्दी से हो; किसी न किसी स्तर पर अपराध तो है ही.

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