Saturday, February 02, 2008

माइक्रोब हंटरस् - जीवाणु के शिकारी: किताबी कोना

इस चिट्ठी में 'माइक्रोब हंटरस्: जीवाणु के शिकारी' (Microbe Hunters by Paul deKruif) नामक पुस्तक की समीक्षा है। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये प्ले करने वाले चिन्ह पर चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
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लगभग साढ़े तीन सौ साल पहले, एंटोनियो फिलिप्स् लीवेनहोक (Antonie Phillips Van Leeuwenhoek) ने माइक्रोस्कोप को बेहतर बनाया। उसने माइक्रोस्कोप के द्वारा, पानी की बूंदो में, सबसे पहले, मानव जाति के सबसे बड़े दुश्मन, यानि कि जीवाणुवों (microbes) को देखा। उन्होंने, इन पर, काम किया। इसलिये लीवेनहोक को अणु जीव विज्ञान का पिता (Father of Microbiology) कहा जाता है।

लीवेनहोक के बाद, इस दिशा में अनेक वैज्ञानिकों और डाक्टरों ने काम किया। जिस समय यह पुस्तक लिखी गयी थी उस समय तक इसमें प्रमुख थे: रॉबर्ट कॉक (Robert Koch), लूई पास्चर (Pasteur), रोनाल्ड रॉस (Ronald Ross), जोवान्नी बत्तिस्ता ग्रास्सी (Giovanni Batiste Grassi), वाटर रीड (Water Reed)। इन लोगों ने इस विषय को आगे बढ़ाया।

एंटोनियो फिलिप्स् लीवेनहोक २४.१०.१६३२ – ३०.०८.१७२३

माइक्रोब हंटरस् पुस्तक, पॉल डी क्रुइफ ने १९२६ में लिखी थी। इस पुस्तक में, इस विषय के इतिहास को, इन वैज्ञानिकों और डाक्टरों की जीवनी के द्वारा बताया गया है। इस पुस्तक में इन लोगों के साथ जुड़ी घटनाओं का वर्णन है। पुस्तक का यह अंदाज, इसे निराला बनाता है। इस पुस्तक के बाद के संस्करणों में, अन्य लोगों के नाम भी जोड़े गये हैं।

इस पुस्तक में घटनाओं को लिखते समय उन घटनाओं का भी उल्लेख है जो यह दर्शाती हैं कि यह लोग भी साधरण व्यक्तियों जैसा व्यवहार करते थे। इस संबन्ध में कुछ बातें रॉस और ग्रास्सी के बीच की हैं।

रॉस का जन्म अलमोड़ा भारत में हुआ था। वे बाद में भारतीय चिकित्सा सेवा में कार्यरत रहे। ग्रास्सी इटालियन थे। इन दोनों ने, इस बात का पता लगाया कि मलेरिया, किस तरह से मच्छरों के द्वारा फैलता है।

एक जीवाणु - ई-कोली बैक्टीरिया

रॉस ने यह काम कलकत्ता में चिड़ियों को मच्छरों से कटवा कर पता किया। ग्रास्सी ने व्यक्तियों पर मलेरिया फैलने की बात का पता लगाया। उसका काम किसी भी तरह से रॉस से काम कम नहीं था फिर भी इस कार्य के लिये १९०२ में, रॉस को ही शरीरक्रिया विज्ञान या चिकित्सा शास्त्र (Physiology or Medicine) के लिये नोबल पुरूस्कार मिला, ग्रास्सी को नहीं। वास्तव में इस पुरुस्कार में उसका नाम भी होना चाहिये था।

मलेरिया कैसे फैलता है - इस बात को पता करने का श्रेय किसको मिलना चाहिये। इसके लिये क्या नोबल पुरुस्कार सही मिला - इस बारे में दोनो के बीच विवाद चला। इस पुस्तक में, इसका भी जिक्र है।

इस पुस्तक में इस विवाद के लिये लिखा है कि क्या अच्छा होता कि यह लोग विवाद करने के बजाय कहते,
'The facts of Science are greater than the little men who find those facts!' And then have gone on searching and saving. विज्ञान के तथ्य उन लोगों से कहीं बड़े जो उसे ढूढ़ते हैं। और क्या अच्छा होता कि यह सोच कर ,वे विज्ञान के तथ्यों कर खोज में लग जाते।

डार्विन ही ऐसे वैज्ञानिक हुऐ हैं, जिन्होने वॉलस को वह श्रेय दिया जो उसे मिलना चाहिये था। यह दर्शाती है कि वे महान व्यक्ति भी थे।

मेरे संज्ञान में शायद डार्विन ही ऐसे वैज्ञानिक हुऐ हैं, जिन्होने वॉलस को वह श्रेय दिया जो उसे मिलना चाहिये था - अन्य किसी ने नहीं। वे महान वैज्ञानिक तो थे ही पर यह बात दर्शाती है कि वे महान व्यक्ति भी थे। यह गुण कम लोगों में पाया जाता है: वैज्ञानिक भी मानव होते हैं, उन में भी ईर्ष्या होती है।

यह पुस्तक बेहद रोचक तरीके से लिखी गयी है। इसका अपना धारा प्रवाह है। यह एकदम आसान है, पढ़ने योग्य है, प्रेरणामय है। इसने अनगिनत लोगों को इस दिशा में कार्य करने के लिये प्रेरित किया। इसलिये इस पुस्तक का १८ भाषाओं में अनुवाद किया गया है। यदि आपने इसे नहीं पढ़ा, तो अवश्य पढ़िये। यदि आपके मुन्ने, मन्नी ने नहीं पढ़ी है तो उन्हें पढ़ने के लिये दीजिये।

नासा में जीवाणुवों के बारे में प्रयोग करती हुई एक अनुसंधानकर्ती

मुझे Giovanni Batiste Grassi को देवनगरी में कैसे लिखा जाय, समझ में नहीं आ रहा था। वे इटालियन थे। इसलिये मैंने राम चन्द मिश्र जी से पूछा। उन्होने बताया कि इसे देवनागरी मे जोवान्नी बत्तिस्ता ग्रास्सी लिखा जा सकता है। इसके लिये उन्हें धन्यवाद, मेरा आभार।

मिश्र जी की पी एच.डी. थीसिस का प्रथम अध्याय मलेरिया पर है। इसका शीर्षक है Malaria: Current Status and Future Strategies. इसे यहां पढ़ा जा सकता है।




सांकेतित शब्द
science, microbiology, अणु जीव विज्ञान,
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लीवेनहो वा ई-कोली बैक्टीरिया का चित्र, विकिपीडिया से है और ग्नू स्वतंत्र अनुमति पत्र की शर्तों के अन्दर प्रकाशित हैं। अनुसंधानकर्ती सुश्री हमी टील हैं। यह चित्र नासा वेबसाइट के इस पन्ने से है और उन्ही के सौजन्य से हैं।

यह पोस्ट 'माइक्रोब हंटरस् : जीवाणु के शिकारी' नामक पुस्तक की समीक्षा है। यह हिन्दी (देवनागरी लिपि) में है। इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें।

yah post 'Microbes Hunters' naamak pustak kee smeekshaa hai. yah hindee {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

This post is review of the book 'Microbe Hunters'. It is in Hindi (Devnaagaree script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

2 comments:

  1. बहुत उपयोगी जानकारी -चिट्ठाकार ने सचमुच परिश्रम से जीवाणुओं पर शोध के इतिहास को उकेरा है -मलेरिया तो सचमुच घातक हो चला है -एक २३ वर्षीय युवक ने मेरी आंखों के सामने दम तोडा जो एक दह्शात्नाक दृश्य था .कारण ? उसे और घर वालों और यहाँ तक की चिकित्सकों तक को यह लंबे समय तक पता नही चल पाया कि उसे मलेरिया है और उसे लाक्षणिक उपचार के तौर पर बुखार की दवाएं दी जाती रहीं .मलेरिया से सावधान !

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  2. अच्छा, यह नहीं ज्ञात था कि जोवान्नी ग्रॉस्सी ने भी ई-कोलाई की खोज स्वतंत्र रूप से की थी! यह तो मारकोनी-बसु जैसी बात हो गयी।

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