अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय से दो बार हार जाने के बाद भी मज़हबी कट्टरवादियों ने हार नहीं मानी। उन्होनें अपना पैंतरा बदल दिया। इस चिट्ठी में उनकी इस चाल और उस पर टैमी किट्ज़मिलर बनाम डोवर एरिया स्कूल डिस्ट्रिक्ट मुकदमें में हुऐ फैसले की चर्चा है।
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मज़हबी कट्टरवादियों ने १९८९ में एक पुस्तक प्रकाशित की। इसका नाम 'ऑफ पांडास् एण्ड पीपल' है। इसमें सिद्वान्त तो सृजनवाद का ही है पर सृजनवाद की जगह 'इंटेलिजेन्ट डिज़ाईन' (Intelligent Design) शब्द का प्रयोग किया गया है। इन लोगों ने स्कूलों को निम्न तरह की यह नीति निर्णय लेने के लिए बाध्य किया,
'The Pennsylvania Academic Standards require students to learn about Darwin’s Theory of Evolution and Case eventually to take a standardized test of which evolution is a part.
Because Darwin’s Theory is a theory, it continues to be tested as new evidence is discovered. The Theory is not a fact. Gaps in the Theory exist for which there is no evidence. A theory is defined as a well-tested explanation that unifies a broad range of observations.
Intelligent Design is an explanation of the origin of life that differs from Darwin’s view. The reference book, Of Pandas and People, is available for students who might be interested in gaining an understanding of what Intelligent Design actually involves.
With respect to any theory, students are encouraged to keep an open mind. The school leaves the discussion of the Origins of Life to individual students and their families. As a Standards-driven district, class instruction focuses upon preparing students to achieve proficiency on Standards-based assessments.'
'स्कूल में डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत पढ़ाया जा सकता है। लेकिन शिक्षक उसको पढ़ाने के पहले विद्यार्थियों को बतायें कि यह केवल सिद्धांत है और इस सिद्धांत का कोई तथ्य नहीं है।यह नीति बहुत सारे स्कूलों में लागू कर दी गयी। कुछ अभिभावकों ने इस नीति निर्णय को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी।
इंटेलीजेंट डिज़ाइन सिद्धांत भी प्राणियों की उत्पत्ति के बारे में बताता है और यह डार्विन के विकासवाद से भिन्न है। इस बारे में 'ऑफ पांडास एण्ड पीपल' नामक पुस्तक विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है जो इस सिद्वान्त के बारे में बताती है।
विद्यार्थियों से कहा जाता है कि वे अपने मस्तिष्क को खुला रखे। इस बारे में, विद्यालय विद्यार्थियों को उनके एवं परिवार के विवेक पर छोड़ते है।'
दो बेटियों की मां, टैमी किट्ज़मिलर २६ सितम्बर २००५ में, हैरिसबर्ग पैनिसलवेनिया के न्यायालय से बाहर आती हुईं - चित्र कैरलिन कैस्टर/ एपी फोटो Carolyn Kaster/ AP Photo
अमेरिका के पेन्सिलवेनिया राज्य के परीक्षण न्यायालय ने, टैमी किट्ज़मिलर बनाम डोवर एरिया स्कूल डिस्ट्रिक्ट मुकदमें में, दिनांक २० दिसम्बर,२००५ को अपना फैसला देते हुऐ घोषणा की,
'A declaratory judgement is issued in favour of Plaintiff ... that Defendant's [School's] policy violates the First Amendment of the Constitution of the United States and Article 1& 3 of the Constitution of the Commonwealth of Pennsylvania.
... Defendants are permanently enjoined from maintaining ID Policy in any school within Dover Area District.'यह नीति अमेरिका के प्रथम संशोधन का उल्लघंन करती है, और असंवैधानिक है।
विपक्ष पक्ष को आदेशित किया जाता है कि वे इस नीति को डोवेर क्षेत्र के किसी भी स्कूल में लागू न करें।
नवम्बर २००५ में डोवर स्कूल बोर्ड़ के सदस्यों का चुनाव हुआ। इस चुनाव में इंटेलीजेन्ट डिज़ाइन नीति के पक्ष में वोट दिये जाने वाले सारे सदस्य नहीं चुने गये। नये सदस्यों के मुताबिक यह नीति ठीक नहीं थी। उन्होनें इसे ठुकरा दिया।
क्या कट्टरवादियों ने हार मान ली या कुछ नया राग छेड़ दिया - यह अगली बार।
डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।। सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य।। मुझे फिर कभी ग़ुलाम देश में न जाना पड़े।। ऐसे व्यक्ति की जगह, बन्दरों से रिश्ता बेहतर है।। विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है।। समय की चाल - व्यवस्था से, अव्यवस्था की ओर।। मैंने उसे थूकते हुऐ देखा है।। यदि विकासवाद जीतता है तो इसाइयत बाहर हो जायगी।। विकासवाद पढ़ाना मना करना, मज़हबी निष्पक्षता का प्रतीक नहीं।। सृजनवाद धार्मिक मत है विज्ञान नहीं है।। 'इंटेलिजेन्ट डिज़ाईन' - सृजनवादियों का नया पैंतरा।।
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बड़ा रोचक है। कट्टरवाद/विकासवाद का यह युद्ध चर्च सदैव हारता नजर आता है!
ReplyDeleteकट्टरवादियों को अंततः हारना तो है ही।
ReplyDeleteहमें पहले भ्रम था की कट्टरवाद केवल कठमुल्लाओं तक ही सीमित है परन्तु ऐसी जानकारियों ने हमें हताश कर दिया. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteक्या कहें.
ReplyDeleteएक अपुष्ट सर्वे में यह पता चला कि अधिकांश भौतिकविद भीतर-ही-भीतर यह मानते हैं कि ईश्वर ने यह कॉसमोस सात दिनों में बनाया है. वस्तुतः, पदार्थ और चेतना को सम्बद्ध करने के सभी प्रयास, चाहे वे तत्व्मीमान्सकों के हों या क्वांटम शास्त्रियों के, मुंह के बल गिरे हैं. ऐसे में मन सहज ही उस युक्ति को मानने पर विवश हो जाता है जो तर्कसंगत नहीं है लेकिन पोपुलर है. ये एक refuge है, politically correct.
यह मामला सुलझने वाला नहीं है ! कई वैज्ञानिक भी सृजन्वादियों के खेमे में आ गए हैं !
ReplyDeleteआज से पचास साल बाद की दुनिया सोचता हूँ.. क्या सब वैसा ही रहेगा या कुछ बदलेगा ? कट्टरवाद तब भी होगा या नहीं ?
ReplyDeleteयह तर्क वितर्क सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
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बहुत रोचक तथ्य. कट्टरवाद का खात्मा तो शायद कभी होगा नहीं..
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