हम लोग सुबह -७ बजे शिमला से मनाली के लिए चले। कार से यह दूरी लगभग -७ घंटे में पूरी होती है।
लगभग ४० साल पहले मैं, अपने विद्यार्थी जीवन में दोस्तों के साथ मनाली गया था। बहुत सारी यादें, ताजी हो गयी। मुझे याद है कि जब हम पिछली बार जा रहे थे तब एक जगह एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी। जिसमे जॉनी वॉकर और मुमताज थे। मुमताज किसी गाने पर नाच रहीं थी। जॉनी वॉकर हास्य भूमिका के लिए जाने जाते है। लेकिन वहां पर बहुत गम्भीर किस्म के व्यक्ति लगे।
पिछली बार मनाली जाते समय रास्ते में कोई भी सुरंग नही थी पर इस बार, थलोट और आउट के बीच लारज़ी ट्रैफिक सुरंग (Larji Traffic Tunnel) मिली यह २००४ में बनी थी और २.६ किमी लम्बी है। पवन के अनुसार, इस सुरंग बनने के कारण १५ किमी रास्ते में कमी हो गयी है।
शिमला से जाते समय थलोट के कुछ पहले, व्यास नदी के दूसरी तरफ, एक छोटा सा बिजली की परियोजना बन रही है। जिसमें पहाड़ी के दूसरी तरफ बांध बनेगा। बांध के बाद, पानी पाइप के द्वारा नीचे लाया जायेगा। यहां पर १.५ मेगावाट बिजली बनेगी। पाइप लाइन तो बिछ गयी है पर बांध अभी तैयार नहीं हुआ है। अभी एक साल और लगेगा।
आउट पर एक पानी का बांध बना हुआ है। वहां एक सुरंग के द्वारा व्यास नदी का पानी, अंदर ले जाया जाता है और यह पानी थलोट जहां पर यह सुरंग खत्म होती है वहां पर बाहर निकलता है। इस जगह पर एक बिजली की परियोजना भी है। जहां १२६ मेगावाट बिजली बनायी जाती है।
हिमाचल में जगह जगह छोटे छोटे बांध बनाये जा रहे हैं। छोटे बांध बनाना बड़े बांध बनाने से ज्यादा अच्छा है। बड़े बांध से लोग, जानवर विस्थापित होते है। इन्हे पुन: स्थापित करना, अपने में बहुत बड़ी चुनौती है। जहां जहां बहुत बड़े बांध बन रहें हैं वहां इन विस्थापित लोगों को पुन: स्थापित करने में मुश्किल हो रही है। इसके अतिरिक्त इसका पर्यावरण पर भी असर होता है। पेड़, जंगल समाप्त हो जाते हैं। यह पर्यावरण के लिये कभी भी अच्छा नहीं होता है। इसलिए हमेशा छोटे बांध बनाना ही अच्छी बात है। मुझे, इस तरह का अनुभव, सिक्किम यात्रा के दौरान भी हुआ। जिसका जिक्र मैंने अपनी चिट्ठी 'टिस्ता नदी (सिक्किम) पर बांध बने अथवा नहीं' में किया है।
हम लोग दोपहर ३ बजे मनाली पहुंचे। अगली बार मनाली के बारे में।
देव भूमि, हिमाचल की यात्रा
वह सफेद चमकीला कुर्ता और चूड़ीदार पहने थी।। यह तो धोखा देने की बात हुई।। पाडंवों ने अज्ञातवास पिंजौर में बिताया।। अखबारों में लेख निकले, उसके बाद सरकार जागी।। जहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे की बात हुई हो, वहां मीटिंग नहीं करेंगे।। बात करनी होगी और चित्र खिंचवाना होगा - अजीब शर्त है।। हनुमान जी ने दी मजाक बनाने की सजा।। छोटे बांध बनाना, बड़े बांध बनाने से ज्यादा अच्छा है।। आप, क्यों नहीं, इसके बाल खींच कर देखते।।
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मनाली कभी जा नहीं पाया -अब आपकी आँखों से दृश्यावलियां निहारूंगा! छोटे बांध ही उपयुक्त है और पर्यावरण के अनुकूल हैं !
ReplyDeleteछोटे बाँध ही बनें ।
ReplyDeleteजी बिल्कुल.बांध तो छोटे ही बनना चाहिये.मनाली जाने का मौका नही मिला कभी,बस आपके जरिये सैर कर रहे हैं.
ReplyDeleteसही कहा है आपने. वैसे नदियों को गहरा और उनके तटों को पक्का करके उनकी क्षमता बढ़ाना शायद छोटे बांधों से भी बेहतर हो
ReplyDeleteऐसा लगता है हम आपके साथ गाडी मे पीछे की सीट पर बैठे हैं.....
ReplyDeleteकिसी भी कारण से विस्थापित हुए हों फ़िर से स्थापित होना या करना हमेशा मुश्किल होता है ......
चलिए आपके जरिये हम अपनी मनाली यात्रा के दिन दोबारा याद करेंगे।
ReplyDeleteबाँध छोटे ही बने, उसी से लाभ है ।
ReplyDeleteहां यह तो है - और उनकी बिजली बनाने में उपयोगिता उथले पठारी क्षेत्र में भी है।
ReplyDeleteये अच्छी बात बताई आपने... लाभ का लाभ और नुकसान कम.
ReplyDeleteछोटे बांधों और बिजली परियोजनाओं का एक ही नुकसान है. बजट के साथ साथ 'कमीशन' में भी भारी कमी आ जाती है.
ReplyDeleteमसलन सौ अरब डॉलर की परियोजना में बीस तीस प्रतिशत का घपला किया जाए तो नेता अफसर और ठेकेदार कम्पनी आपस में बीस से तीस अरब डॉलर बाँट सकते हैं, इंजीनियरों और परियोजना अधिकारीयों को अपना ट्रेक रिकोर्ड मजबूत करने का मौका मिलता है, फिर साल दर साल अनाप शनाप मेंटेनेंस फंड भी निश्चित हो जाते हैं. पर एक एक अरब डॉलर की छोटी परियोजनाओं कोई कितना घपला करे और कितना बांटे? छोटी परियोजना होने के कारण इंजिनियर और निर्माण एजेंसियां भी इन्हें पसंद नहीं करती.
अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता.