Saturday, May 20, 2006

बचपन की यादों में गुणाकर मुले: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू

पिछली पोस्ट पर हम लोगों ने नारद जी की सोने की छड़ी और शतरंज का जादू विषय पर चर्चा करने का क्रम तय किया था उसी के अनुसार इस पोस्ट पर पहेलीयों की अन्य अच्छी पुस्तकें।

मैने मार्टिन गार्डनर की चिठ्ठी पर उनके द्वारा लिखी पुस्तकों का जिक्र किया था। इस पर रवी-रतलाम जी ने टिप्पणी कर उनके प्रकाशक के बारे मे पूछा। उस समय मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें वाली पोस्ट लिखने से पहले मेरे पास पहेलियों कि पुरानी किताबों को निकाला था और उनसे धूल साफ की थी। मुझे तब मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा, पहेलियों की कुछ अन्य अच्छी पुस्तकें मिली। यह पुस्तकें निम्न हैं,

  • Vicious Circle and Infinity: An Anthology of Paradoxes by Patrick Hughes & George Brecht.
  • The Lady orthe Tiger? And Other Logical Puzzles by Raymond Smullyan
  • What is the name of the book? The Riddle of Dracula and Other Logical Puzzles by Raymond Smullyan
  • The Moscow Puzzles by Boris A. Kordemsky
  • Which Way did the Bicycle Go? ... And other Intriguing Mathmatical Mystries by Joseph D E Konhauser, Dan Velleman, Stan Wagon.
यह सब बहुत अच्छी हैं, पढ़ने योग्य हैं। इसमे से पहली चार पेंग्विन ने तथा पांचवीं mathematical Association of America Dolciani Mathematical Exposition No. 18 ने छापी है। इसमे से पांचवीं पुस्तक का स्तर ऊंचा है थोड़ी गणित ज्यादा है। यह किताबें भी वैसे ही खरिदी जा सकती हैं जैसे कि मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें की पोस्ट पर बताया है।

मुझे इनके अलावा एक किताब और मिली 'गणित की पहेलियां' लेखक गुणाकर मुले। इसे १९६१ मे राजकमल प्रकाशन ने छापा था। मेरे बाबा ने, उस समय यह पुस्तक मुझे भेंट की थी। यह हिन्दी मे है तब मुझे अंग्रेजी समझ मे नहीं आती थी। शुभा के अनुसार मुझे अभी भी अंग्रेजी समझ मे नहीं आती है।

गुणाकर मुले मेरे बचपन मे अकसर इस तरह के लेख लिखते थे। मालुम नहीं आप मे से कितनो को इनकी याद है या उस समय के हैं यह पहेलियों की मेरी पहली पुस्तक थी - बचपन की बहुत सारी यादें वापस ले आयी। 


उस समय न टीवी था, न कमप्यूटर, और न ही ट्रान्जिस्टर: एक वाल्व रेडियो था, जो कि मेरी मां के कमरे मे रहता था। हम भाईयों और बहन को केवल गर्मियों मे हवा-महल सुनने की आज्ञा थी। मालुम नही आप मे से कितनो को वाल्व रेडियो या हवा-महल कि याद होगी। उस समय हम भाईयों और बहन का आपस मे झगड़ना ,एक दूसरे से तरह तरह की पहेलियां बूझना, आंगन का गोबर से पुता रहना, गर्मी के दिनो मे पानी का छिड़काव। बचपन के सारे सपनो को वापस ले आयी। उस समय का एक गाना याद आया

सपने सुहाने लड़कपन के
मेरे नयनो मे डोले बहार बन के

खैर हमे तो बात करनी है नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू के बारे मे न कि बचपन के बारे मे। गुणाकर मुले की इस किताब मे एक अध्याय 'अंकगणित की पहेलियों' पर है इसी मे वह 'शतरंज के जादू' के बारे मे बताते हैं वह क्या है? वह जानेगें - अगली बार।


नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू 

1 comment:

  1. अच्छी और जानकारी भरी पोस्ट है!
    काफ़ी दिनो से उत्सुकता थी,
    आज आपको locate कर पाया हूं बहुत अच्छा लगा।

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