मैं, हिन्दी चिट्ठाजगत, और वर्ष २००८ - लेखा जोखा
वर्ष २००८ में, मैंने अपने इसी उन्मुक्त चिट्ठे पर ८१, छुटपुट पर २९, और लेख पर ६ चिट्ठियां लिखीं। मुझे टिप्पणियां बहुत कम मिलती हैं। इस साल लिखी इन ११६ चिट्ठियों मे केवल छः चिट्ठियों: 'जब एक घन्टा, एक मिनट लगता है', 'क्या आप इस शख्स को जानते हैं?', 'लगता है कि झुंझलाना जारी रहेगा', 'तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुझे बनाया', 'तारों का अन्त कैसे होता है', और 'स्वीट डिश कैसे बांटी जाय' पर १० या उससे अधिक टिप्पणी मिली।
सबसे अधिक १६ टिप्पणियां 'लगता है कि झुंझलाना जारी रहेगा' चिट्ठी पर मिली। यह चिट्ठी दिल्ली की पुस्तकों की दुकानों के बारे में थी।
मेरे चिट्ठों पर लगभग ६५% सर्च के द्वारा, लगभग २०% सीधे और १५% फीड एग्रेगेटर से आते हैं। मेरी चिट्ठियां उतनी नहीं पढ़ी जाती जितनी की औरों की चिट्ठियां। इनमें मेरा लेख चिट्ठा १८-१२-०८ को १४५ बार देखा गया। यह मेरे चिट्ठों में किसी एक दिन में देखे गये चिट्ठों में सबसे अधिक है।
पिछले साल, मेरी लिखी चिट्ठियों में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली चिट्ठी लेख चिट्ठे की 'ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके' थी। यह बात मुझे दुखी भी करती है कि लोग ज्योतिष के बारे में इतनी रुचि रखते हैं। यह चिट्ठी लोगों के द्वारा सबसे अधिक गलत भी समझी गयी। लोगों को लगा कि मैं कोई ज्यतिषाचार्य हूं और ज्योतिष पर विश्वास भी करता हूं। जबकि यह इसके एकदम विपरीत है।
इस साल इसी चिट्टे पर 'बर्लिन यात्रा' समाप्त हो गयी और 'साउथ अफ्रीका यात्रा' का विवरण शुरू किया। मैंने 'वियाना यात्रा' और 'सिक्किम यात्रा' का विवरण भी इसी साल लिखा।
इसी साल, अरविन्द मिश्र जी के कहने पर एक नयी श्रंखला 'बाईबिल, खगोलशास्त्र, और विज्ञान कहानियां' नाम से लिखी। मुझे इस श्रंखला को लिखने में सबसे अधिक आनन्द आया। यह मुझे मेरी बचपन की यादों के पास ले गया। इसका श्रेय अरविन्द जी को जाता है - मेरा आभार, मेरा धन्यवाद।
इसी साल मैंने बकबक पर २२ पॉडकास्ट किये। इसमें 'यदि भगवान साहूकार होता', सबसे अधिक, ९४१ बार देखी गयी। यह 'इफ गॉड वॉज़ ए बैंकर' (If God was a Banker) नामक पुस्तक की समीक्षा है।
पॉडभारती जो हिन्दी पॉडकास्ट की पहली पत्रिका है इसके ८वें और ९वें एपिसोड में मेरी दो पॉडकास्टों 'पापा क्या आप उलझन में हैं', और 'Scott's Last Expedition' को जगह मिली। यह दोनो पॉडकास्ट मेरी बकबक पर भी ८९८ और ६९६ बार सुने गये। मैंने इन्हे अपने चिट्ठे पर यहां और यहां लिखा भी है।
पिछले साल भी कुछ चिट्टकार इस बात से परेशान रहे कि कुछ लोग कॉपीराइटेड सामग्री को बिना लिंक दिया अपने चिट्ठे पर प्रकाशित कर रहे हैं। यह चिन्ता जायज है। यह गलत काम है। जिसको जो देय है वह अवश्य मिलना चाहिये और किसी और की रचना पर अपनी तारीफ करवाना - शर्म की बात है पर ...।
मुझे नहीं लगता है कि हिन्दी चिट्ठाकारिता के लिये यह समय इस बात पर जाया करने का है। इस बारे में मैंने यहां टिप्पणी भी की है। इस विचार धारा के कुछ अन्य लोग (रवी जी, अनूप जी और समीर जी) भी हैं। किसी अन्य परिपेक्ष में उनके द्वारा लिखी गयी चिट्ठियां/ टिप्पणियां यहां, यहां, यहां और यहां हैं। मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि यह तीनों हिन्दी चिट्ठाजगत के स्तम्भ हैं। मेरी इस सोच का एक कारण और भी है।
अन्तरजाल पर इस समय कॉपीराइट का उल्लंघन बचाना बहुत ही मुश्किल कार्य है। यह उतना ही मुश्किल है जितना हर समय, हर जगह के लिये वर्षा की बूंदे रोक पाना। इसके लिये कोई अन्य तरह की तकनीक विकसित करनी होगी, कोई अन्य कारगर कानून बनाना पड़ेगा। इस पर समय नष्ट करने के बजाय, एक अच्छी चिट्ठी ही लिखना उचित है।
उपरोक्त कॉपीराइट उल्लंघन पर चिन्ता वयक्त करने वाली चिट्ठी पर शास्त्री जी ने टिप्पणी की कि कुछ लोगों की रचनाये मुक्त होने के बावजूद न तो कॉपी की जाती हैं और नही उनकी चोरी होती है। इसमें मेरा नाम भी है। यह बात मेरी चिट्ठियों के लिये सही नहीं है।
मेरी चिट्ठियों के कॉपी होने की बात किसी को पता नहीं लगती क्योंकि न तो मैं कभी इसके बारे में पता करता हूं, न ही लिखता हूं, न ही इस पर समय बरबाद करता हूं। हां कभी कभी अन्तरजाल पर विचरण करते समय वे दिख जाती हैं।
मैंने बहुत सी चिट्ठियां भिन्न भिन्न विषयों पर लिखीं। इनमें से कई चिट्ठियों को लिखने में सबसे मुश्किल हुई। यह इसलिये कि उन्हें हिन्दी में लिखना अत्यन्त कठिन था। यदि मैं उन्हें अंग्रेजी में लिखता तो कोई कठिनायी नहीं होती। मेरे विचार से वे मेरी सबसे अच्छी चिट्ठियां थीं पर फिर भी न तो उनमें कोई टिप्पणी हुई न ही उन्हें कभी चिट्ठा चर्चा में जगह मिली। मेरी यह चिट्ठियों मुख्यतः ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर, या सॉफ्टवेयर, से संबन्धित थी। मुझे यह चिट्ठियां अक्सर अंग्रेजी चिट्ठों में या फिर ओपेन सोर्स के फोरम में दिखायी पड़ती हैं।
दूसरों के चिट्ठों पर, मेरी इन चिट्ठियों का कभी मेरा लिंक दिया होता है कभी नहीं भी। कई सीधे मेरे चिट्ठे से उठा ली गयी हैं तो कई मेरे चिट्ठे से विकिपीडिया पर और वहां से दूसरे चिट्ठों पर। इसमें कोई गलती नहीं है क्योंकि मैं अपने चिट्ठियों पर किसी प्रकार के कॉपीराइट का दावा नहीं करता। मेरी चिट्ठियों को आप अपनी कह कर भी प्रकाशित कर सकते हैं हांलाकि यदि मेरा नाम लेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी। यह शर्त कई को अजीब लगती हैं। इसका शर्त का कारण है कि मैं अपने विचारों को लोगों तक को पहुंचाना चाहता हूं, वे जैसे भी पहुंचे। क्या फर्क पड़ता है कि उन विचारों का माध्यम मैं हूं या कोई और है। कम से कम विचार तो औरों के पास पहुंचे।
मैंने १९ अप्रैल २००६ को, संजय जी के द्वारा आयोजित अनुगूंज के लिये एक चिट्ठी 'मेरे जीवन में धर्म का महत्व' नाम से लिखी थी। रचना जी के द्वारा टैग किये जाने पर मैंने 'एक अनमोल तोहफ़ा' चिट्ठी लिखते समय लिखा था कि मेरी लिखी चिट्ठियों में, मुझे यह चिट्ठी सबसे अच्छी लगती है। यह आज भी सत्य है।
'मेरे जीवन में धर्म का महत्व' चिट्ठी, मेरे दर्शन को उजागर करती है। मुझे वर्ष २००८ में यह चिट्ठी धर्म से संबन्धित सांई बाबा के चिट्ठे पर बिना लिंक दिये 'कुछ अटपटे कुछ हटकर ख्याल' नाम से रमेश रमानी के द्वारा पोस्ट की हुई दिखी। हांलाकि वहां इसे २४ मार्च २००७ को पोस्ट किया गया है जो कि मेरी चिट्ठी के लगभग एक साल बाद है।
सांई बाबा के चिट्ठे पर, उक्त चिट्ठी को, लगभग ७ हज़ार बार देखा गया है। मैं नहीं समझता कि मेरे चिट्ठे पर यह चिट्ठी १५० से अधिक बार देखी गयी है। यह मुझे उत्साहित करती है कि सांई बाबा के चिट्ठे पर इसे ७ हजार लोगों ने इसे पढ़ा ओर वे लोग धर्म के बारे में मेरे विचार से वाकिफ हुऐ। यदि यह चिट्ठी केवल मेरे चिट्ठे पर ही रहती तो उसे केवल १५० लोग ही पढ़ पाते। सांई बाबा के चिट्ठे पर उसे ७,००० लोगों ने पढ़ लिया। इसमें कुछ तो ऐसे होंगे जो उनसे प्रभावित होंगे, उसे अपने जीवन में लागू करते होंगे। यह पुरुस्कार ही मेरे लिये पर्याप्त है।
इस साल कई हिन्दी चिट्टाकारों ने मुझे ई-मेल कर और कई ने अपने चिट्ठे में चिट्ठी लिख कर बताया कि वे लिनेक्स को अपना रहे हैं। यह सही कदम है। मुझे यह भी लगता है कि लिनेक्स पर जाने से पहले, लोगों को उन प्रोग्रामों को विंडोज़ पर ही महारत हासिल कर लेनी चाहिये हो विंडोज़ और लिनेक्स दोनो पर चलते हैं ताकि कम से कम उन्हें उन प्रोग्राम में मुश्किल न हो। इन प्रोग्रामों में प्रमुख हैं,
- ओपेनऑफिस डाट कॉम लिखने और प्रस्तुतिकरण के लिये,
- फायरफॉक्स वेब ब्राउज़र की तरह,
- थंडरबर्ड ई-मेल देखने और भेजने के लिये,
- सनबर्ड ई-मैनेजर की तरह,
- जिम्प (या गिम्प आपको जो अच्छा लगे) चित्रो के सम्पादन के लिये,
- वीएलसी मीडिया प्लेयर या एम-प्लेयर ऑडियो और वीडियो के लिये,
- ऑडेसिटी ऑडियो रिकॉर्ड करने के लिये।
वर्ष २००८, मेरे लिये मुश्किलों का साल भी रहा। मैंने मौत को बहुत करीब से देखा। वह मेरे पास तक आयी पर मालुम नहीं क्यों बगल से गुजर गयी। मैं भगवान नहीं मानता हूं पर यदि वह है तो या वह मुझे बिलकुल पसन्द नहीं करता इसीलिये उसने मुझे अपने पास नहीं बुलाया या फिर मुझसे बहुत प्रेम करता है उसने मुझे कोई खास काम करने के लिये पृथ्वी लोक पर छोड़ दिया। इसमें क्या सही है यह तो भविष्य ही बतायेगा।
वर्ष २००८, मेरे व्यक्तिगत जीवन खुशी भी लाया।
मेरे मुश्किल समय में, अनगिनत लोगों ने मुझे प्यार दिया, समर्थन दिया। मेरे मित्र मुझे अक्सर सनकी या सिर-फिरा कहते हैं। यह मेरे अपने कुछ नियम, कुछ बर्ताव के कारण है। जो कि एक साधारण प्रचलित नियमों, बर्ताव से एकदम उलटे हैं। मैं कभी नहीं समझता था इतने लोग मुश्किल समय में मुझे अपना प्यार, अपना समर्थन देंगे।
मेरी शादी देर में हुई। फिर भी २००८ में, मैंने अपने के जीवन के ३० साल उसके साथ बिता लिये जो, यदि मुन्ने को छोड़ दें तो, मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। इस मुश्किल के समय में वह मेरे साथ रही। वह भी अपने जीवन में मुश्किल समय के साथ गुजरी है पर उस समय मैं उसके साथ नहीं था। मैंने हमेशा उसे उसके मां, पिता, या भाई के जिम्मे छोड़ दिया था। मुझे दुख है है कि उसके मुश्किल के समय मैं क्यों नहीं उसके साथ था। वह भी मुझे मेरे भाइयों और बहनों के जिम्मे छोड़ सकती थी। मेरा भाई और बहन इस मुश्किल में मेरे साथ थे पर वह भी मेरे साथ बराबर रही। शायद वास्तव में 'मैं तुमसे प्यार करता हूं कहने के एक तरीका यह भी' है। शक नहीं, 'पुराने रिश्तों में नया-पन, नये रिश्ते बनाने से बेहतर है' पर यह रिश्तों को मजबूत करने और एक दूसरे को विश्वास दिलाने का ज्यादा कारगर तरीका है।
मेरे यहां केबल टीवी नहीं आता है। मैंने उसे जानबूझ कर नहीं लिया है। हमारे पास दूरदर्शन का सॅटेलाइट है। इसमें दूरदर्शन के सारे चैनल आते हैं। कभी कभी स्टार उत्सव या ज़ी स्माइल भी आता है। यह दोनो चैनल, बीच बीच में, गायब हो जाते हैं।
ज़ी स्माइल पर एक सीरियल 'कसम से ' आता है। यह ज़ी टीवी से लगभग सवा साल पीछे है। इसकी नायिका बानी है। इसमें अभी भी पुरानी युवती - प्राची देसाई - बानी का रोल कर रही है। ज़ी टीवी के इसके एपीसोड में नयी युवती बानी का रोल अदा कर रही है। मुझे पुरानी बानी बेहद पसन्द है।
मालुम नहीं पुरानी बानी में क्या है और वह मुझे क्यों पसन्द आती है - शायद उसके चेहरे का भोलापन, शायद उसकी सादगी, शायद परिवार के लिये उसका जस्बा, शायद उसका आत्म विश्वास, शायद उसका त्याग, शायद उसका अपने पति के लिये समर्पण।
कसम से सीरियल में एक गाना अक्सर आता है। यह गाना मुझे बहुत पसन्द है। शायद, यह गाना मूल रूप से कलयुग फिल्म से है पर इस सीरियल में किसी और ने गाया है।
'तुझे देख देख सोना,मुझे कभी कभी इसे गाने का मन करता है पर गा नहीं सकता हूं - ईश्वर ने मुझे सब दिया पर संगीत से वंचित रखा। लेकिन इस गाने को, जरूर सुन लेता हूं। इससे मुझे कोई नहीं रोक सकता है।
तुझे देख देख सोना,
तुझे देख कर है जगना।
मैंने यह जिन्दगानी,
संग तेरे बितानी
हाय, जिया धड़क धड़क,
जिया धड़क धड़क
जिया धड़क धड़क जाये'
वर्ष २००९ हम सब के लिये सुख, समृद्धि लाये। हिन्दी वहां पहुंचे जहां इसे हम सब देखना चाहते हैं।
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(सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।: Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. Click where 'Download' and there after name of the file is written.)
यह ऑडियो फइलें ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप -- Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
- Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
- Linux पर सभी प्रोग्रामो में - सुन सकते हैं।
आप स्वस्थ रहें, परिवार के साथ सुखपूर्वक रहें यही कामना करते हुये नव वर्ष की शुभकामनायें.
ReplyDeleteउन्मुक्त जी ,पोस्ट को पढ़ कर मन संवेदित हुआ -आप सरीखे व्यक्तित्व का होना ही अपने आप में एक बड़ी और आपवादिक किंतु सुखद घटना है ! ईश्वर आपको, .श्रीमती उन्मुक्त ,मुन्ने और बिटिया को स्वस्थ ,सानंद बनाये रखे -यही कामना है !
ReplyDeleteआपको शुरू शुरू में ही मैंने अपने बचपन के प्रिय पात्र मैन्ड्रेक के रूप में पहचाना था जो जनाडू महल में रहता है -बस एकही अन्तर है उसका चेहरा दिखता है पर आपका चेहरा फैंटम की भांति ढंका छुपा है -मतलब आपके व्यक्तित्व में एक तरह से दो कामिक्स महानायकों का मिलन है जो मेरे बचपन को उल्लसित ,पुनर्जीवित करते रहते हैं ! मेरे तो मजे हैं !
मेरे बचपन को भी लौटा लेने की कुंजी आपके पास है -और मैं अक्सर आपके चेहरे की खोज बीन की बचकानी हरकतों में लगा रहता हूँ -आपके पास तो कोई शेरा नही है ना ? क्योंकि जो फैंटम का चेहरा देखने की कोशिश करता है उसका प्रिय भेड़िया उस पर झपट पड़ता है !
आप उन तमाम लोगों की एंटी थीसिस हैं जो हर काम में अपना थोबडा आगे कर कर के शाबाशी लूटने को लालायित रहते हैं !
आप की आज की चिट्ठी पर बहुत पाठक आएंगे। हालांकि यह बहुत लम्बी है फिर भी। उस का कारण है कि यह पाठकों के साथ तादात्म्य स्थापित कर रही है।
ReplyDeleteआप की एक ही चिट्ठी में बहुत से केंद्र होते हैं और चिट्ठी पाठक बहुत कम समय के लिए किसी चिट्ठी पर आता है। वह इन सारे केंद्रों पर रुक नहीं पाता है। चल देता है। उस के पास टिप्पणी करने को कुछ होता नहीं है।
आप की आज की चिट्ठी में भी बहुत सी बातें एक साथ आ गई हैं। आप चाहते तो इन्हें चार-पांच बार में कह सकते थे और कुछ विस्तार दे कर भी। तब शायद पाठक से तादात्म्य स्थापित होता।
अनेक बार आप की चिट्ठी ऐसी लगती है जैसे आप ने उस में चार पांच अनमोल वचन एक साथ डाल दिए हैं। अब एक दिन में एक पाठक के लिए एक ही बहुत होता है।
यह लंबी टिप्पणी चिट्ठा जगत के अनुरूप नहीं है। लेकिन मैं समझता हूँ कि आलोचना का भी जीवन में एक स्थान है। उसे सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।
उन्मुक्त जी आप उन्मुक्त हो लिखते रहें. टिप्पणियों की अपनी अलग कहानी है. कभी कभी हम चाह कर भी टिपण्णी भेज नहीं पते क्योंकि नेट एकदम धीमा रहता है. टिपण्णी तो एक ओउप्चारिकता है. आप की यह पोस्ट भी बहुत अच्छी है. परेशानी यह है की यदि आपके द्वारा दी गई सभी लिंक्स खोलने लगें तो दिन भर उसी में लगे रहना पड़ेगा. आप भी मनन कर देखें.
ReplyDeleteमैं निशब्द हूँ. आपको थोड़ा और जाना. लिखने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteथोड़ी देर के लिए मन अजीब सा हुआ जब पढ़ा की आप मौत के नजदीक थे.
टिप्पणियाँ आपको कम मिलती है. सही ही है. गुणवत्ता को कम पढ़ा जाता है. आपको खुशी होनी चाहिए कि जो भी पाठक आ रहे हैं, वे प्रतिटिप्पणी की आश में या केवल वाह वाह करने नहीं आ रहे है. वे आपको पढ़ने के लिए आ रहे है.
आप दीर्घायू हो. हमारे लिए.
और..
ReplyDeleteवर्ष भर का विश्लेषण अच्छा लिया है.
गा मैं भी नहीं सकता...गला बहुत बेसुरा है. :)
आपके उत्तम स्वास्थ्य और वर्ष 2009 के लिए ढेरों ब्लॉगीय शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआपके लिखे चिट्ठे दरअसल परिपूर्ण और काल-बंधन से मुक्त होते हैं, वे सदैव प्रासंगिक रहते हैं अत: उनमें टिप्पणी मिलना या न मिलना उतना महत्वपूर्ण नहीं है. वैसे भी, काम की चीजों पर लोग-बाग गूगल सर्च जैसे उपायों से ही आते हैं. हिन्दी में सर्च अभी शुरू हुआ है - बहुतों को हिन्दी में सर्च करना ही नहीं आता - परंतु जब सामग्री भरपूर होगी, सभी हिन्दी में सर्च करेंगे तो आप जैसों के द्वारा लिखी सारगर्भित सामग्री ही लोग ढूंढेंगे, न कि त्वरित हिट्स या टिप्पणी प्राप्त करने के लिए लिखा गया उत्तेजक लेखन.
कण्टेण्ट महत्वपूर्ण है। शेष तो सब स्वान्त: सुखाय ही होना चाहिये। आप उसमें समर्थ हैं।
ReplyDeleteबहुत सहजता व निराडम्बरपूर्ण ढंग से आपने स्वयं को जिस प्रकार अभिव्यक्त किया है, वह प्रशंसनीय है। टिप्पणियों या पाठकों की संख्या को आंकड़ों के रूप में लिया जाना बेहतर है। इसके लिए यों ही यथावत् लिखते रहें, मौलिकता और निजता से समझौता
ReplyDeleteकिए बिना।बिना किसी टोने-टोटके के अपने व्यक्तित्व के अनुरूप लिखना ही आपकी अपनी पहचान है। वह चिरायु हो,यशस्वी हो, सलामत रहे। वरना तो एक दूसरे की पीठखुजाती भीड़ में निर्वाह संभव नहीं स्तरीयता का।
आपका आने वाला हर वर्ष सुखद हो।
Ek hi post mai kafi kuchh padhne ko mil gaya.
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली सहज पोस्ट . ईमानदार आत्ममंथन और कृतज्ञता का भाव इसे बेजोड़ बनाता है .
ReplyDeleteआगे के बड़े काम सुसम्पन्न हों यही शुभकामना है .
दुसरों का मुझे पता नहीं है मगर मैं जब से चिट्ठाजगत में आया हूं(2006 नवंबर), तब से आपकी हर चिट्ठी पढ़ता हूं.. जिस पर जैसा उचित लगता है उस पर वैसा कमेंट भी करता हूं, मगर हर चिट्ठे पर नहीं.. क्योंकि मेरा मानना है कि चिट्ठाजगत में कुछ लोग कमेंट जैसी चीजों से ऊपर उठ चुके हैं और उनमें कुछ प्रमुख नाम मैं जरूर लेना चाहूंगा.. मेरे उस लिस्ट में आप हैं, रवि रतलामी जी, ज्ञान जी, समीर जी, दिनेश जी, अनूप जी जैसे लोग हैं.. आप नेपथ्य में रहकर भी बहुत बढ़िया कार्य कर रहे हैं..
ReplyDeleteआपके साथ मेरी शुभकामनायें हमेशा रहेगी.. आपसे हमेशा संपर्क में रहना चाहता हूं, कृप्या इस पते पर एक मेल करके मुझे अनुग्रहित करें.. prashant7aug@gmail.com
एक संवेदनशील हृदय की भावुक झंकार सहज ही इस पोस्ट में सुनाई दे रही है.
ReplyDeleteआपकी लेखनी के तो हम यूँ भी मुरीद हैं मगर भावुकता का यह नया आयाम आज देखा.
मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि आप कहानियाँ लिखें, तो लोग आँखों में आसूं लिए उसे पढ़ेंगे.
आप भगवान से ज्यादा हम सब के प्रिय हैं इसलिये तो मौत करीब आकर भी आपका बाल बांका न कर सकी. आईंदा बाद, ऐसी बातें करना बंद करें, दुख होता हैं यह सोच कर भी.
आपके सुखद भविष्य के लिए अनेक मंगलकामनाऐं.
उन्मुक्त जी जब भी मेने आप की पोस्ट पढी तो भाई टिपण्णी जरुर दी है मै भी पिछले दो दिन से बहुत बिमार रहा, ओर बिस्तर से बाहर भी नही निकला,बस बेहोश सा पडा रहा, लेकिन जेसे ही आज जान आई तो सब से पहले इस मुई ब्लागिंग को ही पकडा,
ReplyDeleteचलिये आप भी जल्द से जल्द ठीक हो जाये. शुभकामनाये
आपके नियमित पाठकों में से एक हूँ, हर पोस्ट में कुछ नया सीखता हूँ। परमात्मा से प्रार्थना है कि आपको स्वस्थ रखे।
ReplyDeleteशुभकामनायें!
साल भर का लेखा जोखा ही नहीं कुछ विचारणीय प्रश्नों सहित बहुआयामी लेख के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteनमस्ते!! आपकी लगभग हर चिट्ठी को मैने पढा है.. पिछले कुछ महीनो को छोड दूं तो हर बार मैने बेधडक, बेखौफ़ टिप्पणी लिखकर जो दिल मे आया वो कहा भी है... आज मै चकित हूं कि आपको भला इस सारे हिसाब किताब की क्या जरूरत आ पडी है? आपको बहुत सारे पाठक और टिप्पणियां क्यूं चाहिये? मै रवि भाई की बात का समर्थन करती हूं... और क्या कहूं समझ नही पा रही..
ReplyDeleteपहली बार जब आपने मेरी एक कविता (काश) पर टिपण्णी की थी, मैं तबसे आपका हर एक चिट्ठा पढ़ती आ रही हूँ | ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे, आप और आपका परिवार स्वस्थ रहे, यही कामना करती हूँ |
ReplyDeleteटिपण्णी गिनने का लेखा जोखा छोड़ दें तो बेहतर होगा, मैंने भी छोड़ दिया है | :-)
हाँ, यह अवश्य है कि इससे बढ़ावा मिलता है और मन एक बार और कुछ अच्छा लिखने को कर उठता है | लगता है हमारी बात सुननेवाला कोई तो है |
ब्लॉग का विवेचनात्मक अध्ययन जहां कुछ उपयोगी सूत्र देता है, वहीं पाठकों की रूचि मन को खिन्न भी करती है।
ReplyDeleteआत्मविश्लेषण यकीनन जीवन को बेहतर बनाने का एक उपाय है, भले ही वह ब्लॉग को लेकर ही क्यों न हो।
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