Friday, March 20, 2009

आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये

साउथ अफ्रीका की यात्रा विवरण की इस कड़ी में, हमारे और विदेशियों के बीच, सार्वजनिक जगहों पर प्रेम एवं स्पर्श करने के व्यवहार के अन्तर तथा क्रुगर पार्क में सुबह की सफारी की चर्चा है।
क्रुगर पार्क में सूर्यास्त

क्रुगर पार्क में, हमने सुबह की भी सफारी ली। सुबह की सफारी में हमारे साथ वही न्यूजीलैंड के दम्पत्ति उनकी पुत्री और ब्रिटानी दम्पत्ति थे। न्यूजीलैंडर पिछले दिन भी और इस समय भी गाडी के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे। पीछे की सीट ऊंची होती है शायद वहां से सबसे अच्छा दिखाई पड़ता हो इसीलिए वे सबसे पीछे की सीट पर बैठना पसन्द करते थे। ब्रिटिश दम्पत्ति कुछ देर से आये इसलिए बीच वाली सीट पर हम लोग बैठ गये। हम लोग पिछले दिन भी साथ थे, वे हमारे ही लॉज़ में ठहरे थे - हमारी उन सब से अच्छी मित्रता हो गयी।


सार्वजनिक जगहों पर, भारतीय प्रेम या स्पर्श करने में हिचकते हैं

सुबह सफारी में ठंडक होती है। हमें हिदायत दी गयी थी कि हम ठीक प्रकार से कपड़ें पहनें। हमने कपड़े भी पहने पर इसके बावजूद भी हमें ठंडक लगने लगी। न्यूजीलैंड और ब्रिटेन से आये दम्पत्ति में, पत्नी या तो पति की गोद में बैठ जाती या फिर वे एक दूसरे को आलिंगन में ले लेते ताकि वे एक दूसरे को गर्मी पहुंचा सकें पर मुन्ने की मां - वह तो एक भारतीय की तरह छटक कर सीट के दूसरे कोने पर जा बैठी। उनकी तरह से बैठने पर, उसे और मुझे दोनो को शर्म आ रही थी - मैं उन्मुक्त होकर भी मुक्त नहीं, अपने बन्धनो में जकड़ा हूं। इस तरह का बर्ताव, विदेशियों से एकदम अलग है। हम लोग, सार्वजनिक जगहों में प्रेम या स्पर्श करने में हिचकते हैं।

हम से, न्यूजीलैंड से आये दम्पत्ति ने कहा,
'आप लोग भी पास पास क्यों नहीं बैठते। भारत में तो खजुराहो (Khajuraho), कोर्णाक (kornak sun temple) जैसे मन्दिर हैं और कामसूत्र (kam sutra) जैसी पुस्तक लिखी गयी है फिर इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहें हैं। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये। मुझे यह कुछ अजीब सा लगता है।'
मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था। मैंने उनसे कहा कि मुझे नहीं मालुम। लेकिन मुझे भी यह अजीब लगता है।


रॉड्रिक्स के पास कम्बल थे। हमने उसे ओढ़ लिया। तब ही ठंड से पीछा छूटा।



सुबह चलते समय कुछ बूंदा बांदी हो रही थी। हम लोगों को लगा कि शायद आज का दिन तो बेकार जायेगा और कोई जानवर नही दिखेगें। लेकिन यह सच नही हुआ। वहां पहुंचने के बाद मौसम साफ हो गया, हांलाकि कुछ ठंड थी। हम लोग तरह तरह के जानवर देख पाये। वे धूप लेने के लिए निकले थे। हमें गैंडे भी दिखायी पड़े।


यह चित्र मेरा लिया हुआ नहीं है। इसे रासमस नामक जर्मन लड़के ने खींचा है। इस श्रंखला की अगली कड़ी में, मैंं आपकी मुलाकात, उससे और शेरों से करवाउंगा।

रॉड्रिक्स ने बताया,
'गैंडे दो प्रकार के होते है एक तो सफेद (white rhinoceros) और दूसरा काला (black rhinoceros)।'
मुझें तो दोनों का रंग एक ही सा लगा। मैंने जब यह बात कही तो रॉड्रिक्स ने कहा,
'दोनों का रंग एक है पर उन्हें सफेद या काला इसलिए कहा जाता है कि एक गैंडा बड़ा होता है। इसे सफेद कहा जाता है। दूसरी तरह का गैंडा कुछ छोटा होता है जिसे काला कहा जाता है। सफेद गैंडा केवल जमीन की घास खाता है क्योंकि उसकी गर्दन की बनावट इस प्रकार होती है कि वह अपनी गर्दन ऊपर नहीं कर सकता है और काला गैंडा छोटा होता है और वह जमीन की घास और ऊपर की पत्ती भी खा लेता है।'



मेरे यह पूछनें पर कि क्या वे एक ही योनि के है रॉड्रिक्स इसका ठीक से जवाब नही दे पाये। मैंने पूछा कि क्या इन दोनो के सम्भोग से कोई बच्चा पैदा हो सकता है। उसने कहा कि नहीं। मैंने कहा कि तब वे अलग अलग योनि के हैं अन्यथा बच्चा पैदा हो सकते है।



सच यह है कि गैंडे (rhinoceros) की पांच तरह की प्रजातियां पायी जाती हैं। इसमें से तीन एशिया में और दो अफ्रीका में पायीं जाती हैं। इन्हीं दो के बारे में रॉड्रिक्स हमें बता रहे थे।


पेड़ों पर बहुत बड़े घोंसले बने हुए थे। मेरे पूछने पर कि ये किसके घोंसलें है तो उसने कहा कि इनमे चील, बाज और गिद्व रहते है । मैने इन पंक्षियों को भी वहाँ देखा। यह सफारी ८ बजे समाप्त हो गयी। हम लोग वहीं पर नाश्ता करने के लिये रुक गये पर न्यूजीलैंड और अंग्रेज दम्पत्ति ने वहाँ हमसे विदा ली।


इस श्रंखला की अगली कड़ी में मुलाकात होगी शेरों से और जर्मन नवयूवक रासमस से।


अफ्रीकन सफारी: साउथ अफ्रीका की यात्रा
झाड़ क्या होता है? - अफ्रीकन सफारी पर।। साउथ अफ्रीकन एयर लाइन्स और उसकी परिचायिकायें।। मान लीजिये, बाहर निलते समय, मैं आपका कैश कार्ड छीन लूं।। साउथ अफ्रीका में अपराध - जनसंख्या अधिक और नौकरियां कम।। यह मेरी तरफ से आपको भेंट है।। क्रुगर पार्क की सफाई देख कर, अपने देश की व्यवस्था पर शर्म आती है।। हम दोनो व्यापार कर बहुत पैसा कमा सकते हैं।। फैंटम टार्ज़न ... यह कौन हैं?।। हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये।।।


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About this post in Hindi-Roman and English










is post per kruger park mein subah kee safari aur hamaare evam videshiyon ke beech, sarvjnik jgahon per prem tthaa sparsh krne ke vyvhaar ke anter ke baare mein charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.


This post talks describes about our morning safari in the Kruger park. It also talks about difference in our attitude from foreigners at public places regarding love and touch. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.





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17 comments:

  1. रोचक चल रही सफारी !

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  2. उन्मुक्त जी सफारी यात्रा अच्छी लगी और हाँ भारतीय सारे आप और आपकी श्रीमती जी की तरह ही होते हैँ -
    - लावण्या

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  3. "सार्वजनिक जगह पर प्रेम" आज के भारतीय युवा वर्ग में इस से परहेज नहीं दिख रहा. आभार..

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  4. Anonymous9:28 am

    safari varnan aur tasveer bahut achhe lage.

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  5. बहुत इन्तिज़ार करवाया आपने.

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  6. हम लोग, सार्वजनिक जगहों में प्रेम या स्पर्श करने में हिचकते हैं।

    और जो हम कर सकते है वह शायद ही कोई कर सके :)

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  7. interesting ।

    अगली श्रृंख्ला का इंतजार रहेगा ।

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  8. रोचक सफारी वर्णन लगा ....

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  9. कई भारतीय तो अकेले में भी प्रेम और स्पर्श से हिचकते हैं।

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  10. मैं उन्मुक्त होकर भी मुक्त नहीं, अपने बन्धनो में जकड़ा हूं।
    --------
    पता नहीं मैं कितना उन्मुक्त हूं। शायद एक जन्म और लगे साउथ अफ्रीकीय उन्मुक्तता के लिये!

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  11. 'आप लोग भी पास पास क्यों नहीं बैठते। भारत में तो खजुराहो (Khajuraho), कोर्णाक (kornak sun temple) जैसे मन्दिर हैं और कामसूत्र (kam sutra) जैसी पुस्तक लिखी गयी है फिर इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहें हैं। आपको तो शर्म नहीं आनी चाहिये। मुझे यह कुछ अजीब सा लगता है।'
    आप ने कहना था कि हमारे यहां गीता ओर रामायण भी है, उन्मुक्त जी आप ने कहना था कि हमारे समाज मै यह सब पर्दे मै होता है, क्यो कि हमारा प्यार एक दिखावा नही, जो कपडो की तरह से बदला जाये, हम सब एक जेसे ही है.ओर हमे मान है.
    मेने आधी से ज्यादा जिन्दगी इन गोरो मै बिताई है, लेकिन फ़िर भी भारतीया हूं, ओर यह लोग हमारी ससंस्कति की इज्जत भी करते है

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  12. मैं उन्मुक्त होकर भी मुक्त नहीं, अपने बन्धनो में जकड़ा हूं।

    -अरे, आप तो घूमने गये थे. हमें तो वहाँ रहते जमाना गुजरा फिर भी ससुर जकड़न है कि जाती नहीं...

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  13. वैसे संजय बैंगाणी जी की बात भी सही है:

    जो हम कर सकते है वह शायद ही कोई कर सके :)

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  14. रोचक वृत्तांत. प्रेम प्रदर्शन में झिझक के बारे में कहना चाहूंगा कि अपनी अपनी पसंद और अपना अपना विवेक है.
    वैसे मेरे विचार भाटिया जी के विचारों से मिलते हैं.

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  15. जीवंत चित्रण चल रहा है. आगे की कड़ी का भी इंतज़ार रहेगा और (विदेशी) सार्वजनिक जगहों पर नए भारतीय दम्पति भी हिचकिचाते हुए ही सही थोडा बहुत प्रेम प्रदर्शन तो करने ही लगे हैं.

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  16. Anonymous1:34 pm

    इतनी शर्म तो ठीक ही है! :)

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  17. यात्रा विवरण अच्छा लगा.

    CC0 1.0 Universal के बारे में आज पहली बार पता चला. क्लिक करके देख लिया.

    सस्नेह -- शास्त्री

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