Wednesday, October 27, 2021

प्रकृति और ईश्वर, दोनो असममित (asymmetrical) हैं

इस चिट्ठी में,  डाबर फॅम क्रीम ब्लीचिंग के विज्ञापन पर उठे विवाद पर चर्चा है।

फॅम केयर फार्मा लिमिटेड एक औषधीय और प्रसाधन सामग्री  बनाने वाली कंपनी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय और बम्बई उच्च न्यायालय ने, इस कंपनी का विलय, डाबर इंडिया लिमिटेड के साथ, १९ अप्रैल २०१० और ७ मई २०१० को अनुमोदित कर दिया। य़ह विलय बीती तारीख, १ अप्रैल, २००९ से लागू किया गया। अब, फॅम केयर फार्मा लिमिटेड के उत्पाद, डाबर इंडिया के हो गये हैं।
फॅम केयर फार्मा लिमिटेड, चेहरे को उजला करने के लिये क्रीम बनाती थी जो कि अब डाबर फॅम क्रीम ब्लीचिंग के नाम से बिकती है। इस करवा चौथ पर, डाबर ने इसका विज्ञापन, महिला समलैंगिक  दम्पत्ति के साथ दिखाया है, जिसमें वे सजती हैं, एक दूसरे को बधाई और शुभकामनायें देती हैं। यह विवादों में पड़ गया और डाबर ने इसे वापस ले लिये है।
 

कुछ लोग, इस विज्ञापन को हिन्दू सभ्यता का मज़ाक कहने लगे; कुछ कहने लगे कि केवल हिन्दू त्योहारों के साथ ही, क्यों  मज़ाक किया जाता है, अन्य धर्म के त्योहारों के साथ क्यों नहीं; कुछ का कहना था कि हम अब भी गुलामी मानसिकता से ग्रसित हैं, गोरों को ऊंचा और कालों को नीचा समझते हैं। मेरे विचार में, यह लोग, इस  विज्ञापन की सकारात्मक बातों को छोड़, केवल नकारात्मकता ही देख रहे हैं।

डाबर के विज्ञापन को नीचे देखें

 

समलैंगिक रिश्ते इब्राहीमी धर्म में खराब माने गये। बाइबिल और कुरान दोनो में, इन्हें तिरस्कृत किया गया है। लेकिन, हिन्दू धर्म में नहीं।
कहा जाता था है कि भगीरथ, मां गंगा को पृथ्वी पर लाये। वे सम्राट दिलिप के पुत्र थे। बंगाला के पुराने ग्रंथों में, उन्हें सम्राट दिलीप की दो विधवाओं के आपसी संबंध से पैदा होना बताया जाता है। यदि ऐसे रिश्ते स्वीकृत न होते तो  ऐसा क्यों लिखा जाता।
रुथ वनिता अपनी पुस्तक 'लव्स राइट - सेम सेक्स मैरिज इन इंडिया एण्ड वेस्ट' में कई पौराणिक ग्रन्थों का जिक्र करती हैं, जहां समलैंगिक रिश्तों की बात स्वीकारी गयी है।
हम तो अर्धनारीश्वर की कल्पना करते हैं। इस तरह के रिश्तों की खिलाफत, तो बाहर से आयी है परन्तु मै हिन्दू या किसी अन्य धर्म और सभ्यता का ज्ञानी नहीं हूं। इस बारे में, गलत हो सकता हूं। लेकिन धर्म के अतिरिक्त, इसका एक दूसरा पहलू है, जो कि इससे अधिक महत्वपूर्ण है।
हम एकान्तता के अधिकार की बात करते हैं। हाल में ही, सर्वोच्च न्यायायलय की संवैधानिक पीठ ने इसे स्वीकारा है। यह न केवल  एकान्तता के अधिकार के अन्दर आता है पर अल्पसंख्यक अधिकार का भी हिस्सा है। हम इसे कैसे नकार सकते हैं।

समलैंगिक रिश्ते, तो समाज में होते ही हैं।  यह प्रकृति की देन हैं। पिछली शताब्दी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक, आर्टिफिशल इन्टेलिजन्स के जनक, आधुनिक कंप्यूटर के पिता, द्वितीय विश्व युद्ध की जीत में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले - ऐलेन ट्यूरिंग समलैंगिक थे। जिनको इस तरह के संबन्धों पर सजा दी गयी। बाद में, उन्होंने सजा की जगह हारमोन इंजेक्शन लगवाना स्वीकार कर लिया। फिर, इस सजा की शर्मिन्दगी के कारण, पौटेशियम साइनाइड में डूबा सेब खा कर, खुदकुशी कर ली। उनके साथ इस तरह के खराब व्यवहार के लिये, १० सितंबर २००९ को, ब्रितानी प्रधान मंत्री ने यह कहते हुऐ माफी मांगी,

'ऐलन ट्यूरिंग के साथ, भयावह और खराब तरीके से व्यवहार किया गया ... उनका इलाज, अन्यायपूर्ण था।  मैं, ब्रितानी सरकार और उन सभी लोगों की तरफ से, जो उनके कारण खुली हवा में सांस ले सके - उनको धन्यवाद देता हूं और बताना चाहता हूं कि हमें खेद है, आप बेहतर व्यवहार के हकदार थे।'
दिसंबर २०११ में, एक ई-याचिका बनाई गयी, जिसमें अनुरोध किया गया कि ब्रितानी सरकार उनकी सजा को क्षमा करे। इसमें हजारों लोगों ने दस्खत किये थे, जिसमें मैं भी एक था। इसके लिये कानून बना और उन्हें  क्षमा किया गया। बाद में, इस तरह की सजा मिले अन्य लोगों को भी, क्षमा करने की बात की गयी है।
ऐलन ट्यूरिंग के जीवनी पर एक बेहतरीन देखने लायक फिल्म 'द इमिटेशन गेम' बनी है। मैंने इसकी समीक्षा यहां की है।

मैं यौन शिक्षा एवं समलैंगिक अधिकारों का समर्थक हूं। मैंने इनके समर्थन में कई चिट्ठियां भी लिखीं हैं। 'चार बराबर पांच, पांच बराबर चार, चार…', 'आईने, आईने, यह तो बता – दुनिया मे सबसे सुन्दर कौन', 'मां को दिल की बात कैसे बतायें', और 'अब, मां को बताने पर शर्म कैसी' शीर्षक की चिट्ठियां समलैंगिक अधिकारों के समर्थन में हैं। 

कुछ साल पहले मेरी मुकालात ऑस्ट्रेलिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश माईकिल किर्बी से हुई थी। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि वे समलैंगिक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उनकी मां जिन्दा रहीं उन्होने इस बात को गुप्त रखा, केवल उनके मरने के बाद उसको जग जाहिर किया। मेरे उनसे पूछने पर कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, उनका जवाब था,

‘मै जो हूं, मेरी जो पसन्द है वह ईश्वर के कारण है। इसमें मेरा कोई दोष नहीं। मेरी मां यह नहीं समझ पाती। उन्हें बहुत दुख होता और वे अपने को ही दोषी ठहरातीं। मैं उन्हें दुख नहीं देना चाहता था इसलिये इस बात को गुप्त रखा। आज वे नहीं हैं इसलिये सही बात को छुपाने का कोई कारण नहीं है।‘
हमारा समाज भी, उनकी मां की तरह है। वे समझ नहीं पाते हैं कि प्रकृति और ईश्वर दोनो का स्वभाव असममिति, या कहें विषम (asymmetrical) है। इसमें समरूपता ढूढना बेईमानी है। ऐसे लोगों को भी, सर उठा कर जीने का अधिकार है। डाबर का विज्ञापन भावुक है, संवेदनशील है, समावेशी है - इसका विरोध करना या मज़ाक बनाना गलत है। 

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This post in Hindi (Devanagari script) is about controversy on advertisement of Dabar Fem Creme Bleaching . You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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