Saturday, July 25, 2009

विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है

सृजनवादियों के अनुसार, विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है। इस चिट्ठी इसी की चर्चा है।

इस चिट्ठी को आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,
  • Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;
  • Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; और
  • Linux पर सभी प्रोग्रामो में,
सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें। यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम लिखा है वहां चटका लगायें। इन्हें डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले।


सृजनवाद सारे मज़हबों में है। शायद यह इसलिए कि पुराने समय में प्राणियों की उत्पत्ति समझाने के लिए यह सबसे आसान तरीका था। सृजनवाद के अनुसार मनुष्यों की उत्पत्ति किसी विकासवाद से नहीं, पर किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा सृजन किये जाने पर हुई है। लेकिन यदि डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत सही है तब इसमें ईश्वर की, अदृश्य शक्ति की जरूरत नहीं है। यही दोनो में मतभेद है, विरोध है।


डार्विन के सिद्धांत पर मज़हबी लोगों की दो आपत्तियां हैं
  • पहली, यह उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है।
  • दूसरी, यदि किसी समय, बन्दर और मनुष्य के पूर्वज एक ही थे तब इस समय वह पूर्वज कहां है, उसके बारे में क्या सबूत है? यह उनकी मुख्य आपत्ति है।
चलिए पहले उनकी आसान यानि की पहली आपत्ति के बारे में बात करें। यह आपत्ति उष्मागति - विज्ञान के दूसरे नियम से संबन्धित है। यह नियम बताता है कि,
'In any closed system, entropy always increases'
किसी भी बन्द सिस्टम में एंट्रॉपी (उत्क्रम माप) बढ़ती है।
इसका मोटे तौर पर अर्थ यह है;
'In a closed system, things go from order to disorder'
कोई भी बन्द सिस्टम व्यवस्था से अव्यवस्था की तरफ बढ़ता है।

यह चित्र मेरा नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है।

सृजनवादियों का कहना है कि विकासवाद में प्राणि जगत जीवन के निचले भाग में ऊँचे भाग की तरफ (from lower life form to higher life form) जा रहा है। अर्थात एंट्रॉपी घट रही है। यह नहीं हो सकता है।


सच तो यह है कि यह आपत्ति इस नियम को न समझने की भूल करती है। यह नियम किसी बन्द सिस्टम में ही लागू होता है। यदि कहीं एंट्रोपी घट रही है तो उस सिस्टम में कहीं पर बढ़ रही होगी ताकि पूरे सिस्टम में दोनो का जोड़ बढ़े।

हम सब जानते हैं कि जीवन की उत्पत्ति, इसके विकासवाद, में सूरज के प्रकाश और उष्मा का खास महत्व है। यदि सूरज न होता तो यह जीवन भी नहीं होता। सूरज से प्रकाश और उष्मा, पदार्थ की संहति (mass) का ऊर्जा में बदलने के कारण हो रहा है। इस कारण, वहां एंट्रोपी बढ़ रही है। यह पृथ्वी पर एंट्रोपी में आयी कमी से कहीं अधिक है। इन दोनो का जोड़, उष्मागति के दूसरे सिद्धांत का किसी प्रकार उल्लंघन नहीं करता है।



यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। फ्लोरिडा सिटिज़न फॉर साइंस (Florida Citizen for Science) ने लोगों के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने, उसे आसानी से समझाने के लिये स्टिक साइंस कंटेस्ट (Stick Science Contest) किया। यह उसके बेहतरीन दस कार्टूनो में से एक है। मैंने यह वहीं से लिया है।



अगली बार मिलेंगे तब बात करेंगे सृजनवादियों की दूसरी और उनकी मुख्य आपत्ति पर।

डार्विन, विकासवाद, और मज़हबी रोड़े
भूमिका।। डार्विन की समुद्र यात्रा।। डार्विन का विश्वास, बाईबिल से, क्यों डगमगाया।। सेब, गेहूं खाने की सजा।। भगवान, हमारे सपने हैं।। ब्रह्मा के दो भाग: आधे से पुरूष और आधे से स्त्री।। सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य।। मुझे फिर कभी ग़ुलाम देश में न जाना पड़े।। ऐसे व्यक्ति की जगह, बन्दरों से रिश्ता बेहतर है।। विकासवाद उष्मागति के दूसरे नियम का उल्लंघन करता है।।

About this post in Hindi-Roman and English
srijanvaadiyon ke anusaar, vikasvaad ushmaagati ke doosre niyam kaa ullanghan karta hai. is chithi mein usee kee charchaa hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

According to creationist, evolution violates the second law of Thermodynamics. This post explains it. It is in Hindi (Devanagari script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.



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8 comments:

  1. सबसे पहले यह उच्चस्तरीय सूचनात्मक लेख लिखने के लिये साधुवाद।


    "सृजनवादियों का कहना है कि विकासवाद में प्राणि जगत जीवन के निचले भाग में ऊँचे भाग की तरफ (from lower life form to higher life form) जा रहा है। अर्थात एंट्रॉपी घट रही है। "

    क्या प्रानिजगत का निचले स्तर से ऊंचे स्तर पर जाने का अर्थ यह है कि एण्ट्रापी बढ़ रही है?

    यदि ऐसा है तो सब जगह एन्ट्रापी बढ़ रही है - मानव जब बच्चा होता है तो हर दृष्टि से सरल होता है; पहले के औजार सरल थे, अब जटिळ औजार बनाये गये हैं; पहले की इन्टीग्रेटेड सर्किटों (आई सी) में कम ट्रान्जिस्टर हुआ करते थे; अब कई मिलियन ट्रान्जिस्टर होते हैं।

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  2. अनुनाद जी, जीवन के निचले भाग में ऊँचे भाग की तरफ (from lower life form to higher life form) जाने से एंट्रॉपी घट रही है। आपने जो उदाहरण दिये हैं उनमें भी एंट्रॉपी घट रही है। लेकिन यह वातावरण या सूर्य से ऊर्जा ले रहे हैं जिसके कारण वहां एंट्रॉपी बढ़ रही है और दोनो को जोड़ बढ़ रहा है।

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  3. मुझे लगता है जैवीय मामलों में entropy का सिद्धांत लागू नहीं होता -बीज की संरचनात्मक जटिलता अधिक होती है मगर वह ज्यो ज्यों वृक्ष बनता जाता है सरलीकरण होता है
    मगर मैं कुछ निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता -लेख बहुत ही जानकारीपरक है .

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  4. इसे समझना सरल नहीं है, उन्मुक्त जी.
    ऐंत्रोपी के बारे में मैंने हॉकिंग की किताब में पढ़ा है. यह परिकल्पना दुरूह है.
    निवेदन है कि इसे कुछ सरल रूप में प्रस्तुत किया जाए.
    यह इस विषय पर हिन्दी में होनेवाला संभवतः पहला विश्लेषण होगा.

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. अरविन्द जी, यह विज्ञान का सिद्धांत है। इसे सब जगह लगना चाहिये नहीं तो यह नियम सही नहीं है। जहां तक मुझे मालुम है यह जैवीय मामलों में लगता है।

    निशांत जी, यह सच है कि एंट्रॉपी एक मुश्किल विषय है। मुझे इस विषय को पढ़े ४० साल से भी अधिक समय हो चुका है। उस समय भी यह मुश्किल लगता था। फिर George Gamov की 'One, Two, Three ...Infinity और Asimov on Physics पढ़ी। इन्हें पढ़ने के बाद यह विषय कुछ समझ में आया।

    हॉकिंग की पुस्तक 'The Brief History of Time' वास्तव में दर्शन से ज्यादा और विज्ञान से कम संबन्धित पुस्तक है। आप उपर लिखी गैमव और एसिमोव की पुस्तकें पढ़ कर देखिये वे इस विषय हॉकिंग की पुस्तक से कहीं बेहतर हैं।

    मेरे लिये इस विषय को इससे सरल तरीके से समझा पाना मुश्किल है फिर भी प्रयत्न करता हूं।

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  7. उन्मुक्त जी, मैंने Lee Smolin की पुस्तक The Trouble with Physics कुछ समय पहले पढी थी. यह मुझे अच्छी लगी.
    चूँकि मेरी गणित बहुत कमज़ोर है इसलिए मैं वे पुस्तकें नहीं पढ़ सकता जिनमें घोर गणितीय शैली में Theoretical Physics को समझाया गया हो. वैसे भी आजकल की अधिकतर ऐसी पुस्तकें स्ट्रिंग थेओरी को बहुत गहराई से डील करती हैं और कभी-कभी विषय एक आम पाठक के हाथ से निकलकर भौतिकी के निष्णात ज्ञाता के हाथ में चला जाता है.

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  8. उन्मुक्त जी
    बहुत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक लेख है
    अच्छा लगा आप के ब्लॉग में आ कर

    विराम के बारे में में ध्यान रखूँगी
    मार्गदर्शन का
    शुक्रिया !!!!

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आपके विचारों का स्वागत है।