इस चिट्ठी में, वसन्तकुंज दिल्ली में स्थित, डी.टी. स्टार प्रॉमेनेड नामक मॉल में स्थित , ओम शांति की पुस्तकों की दुकान के साथ, तुषार राहेजा की 'एनीथिंग फार यू मैम' पुस्तक की चर्चा है।
पॉन्डचेरी यात्रा से लौटते समय, दिल्ली में भी रुकना हुआ। वहां पर हमारे पास कुछ समय था। सोचा कि कोई फिल्म देखी जाय।
हमारे कस्बे में अब अंग्रेजी फिल्म देखने को नहीं मिलती है। यदि मिलती है तो हिन्दी में डब की हुई। वह समझ में तो ज्यादा आती हैं पर मजा नहीं आता है। अंग्रेजों को, हिन्दी में बात करते हुए देख, अजीब सा लगता है। इसलिए कस्बे के बाहर, वह अंग्रेजी फिल्म देखना पसंद करता हूं जो कि हिन्दी में डब न की गयी हो। यानी, अंग्रेजी में हो।
हम लोगों ने 'लव हैपेनस्' (Love Happens) फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया। फिल्म देखने का मज़ा तो केवल पीवीआर में है। इसलिये हम, वसंतकुज की डी.टी. स्टार प्रॉमेनेड नामक मॉल में गये। हमने फिल्म का टिकट लिया और वहां एक रेस्त्रां में इटलियन खाना खाया। फिल्म शुरू होने में कुछ समय था। वहां पर, ओम शांति नाम की पुस्तकों की दुकान है। समय काटने के लिये, हम उसमें चले गये। मुझे अच्छा लगा कि वहां पर एक आलमारी में, हिन्दी की पुस्तकें थी।
तुशार राहेजा आई टी दिल्ली के पुरातन छात्र हैं। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है 'एनीथिंग फार यू मैम' (Anything for you Ma'am)। यह पुस्तक भी वहां थी। मैंने इस पुस्तक को अंग्रेजी में खरीदने को सोचा पर हिन्दी पुस्तक आलमारी में, इसका हिन्दी अनुवाद भी था। मैंने उसे लिया और दुकान वाले से पूछा कि क्या आपकी हिन्दी में लिखी पुस्तकें बिकती हैं। उसने अंग्रेजी लहज़े में, हिन्दी बोलते हुए कहा कि बहुत कम बिकती हैं। मैंने पूछा,
'क्या यह पुस्तक बिकी?'उसने बताया,
'बहुत ज्यादा बिकी है अंग्रेजी की लगभग ५० कापियां और हिन्दी में आप पहले व्यक्ति हैं जो इसे ख़रीद रहे हैं। यही कारण है कि हम हिन्दी की बहुत कम पुस्तकें रखते हैं।'मैनें कहा,
'मैं हिन्दी की कॉपी लेता हूं। अगली बार हिन्दी की और पुस्तकें लूंगा। इससे आपकी हिन्दी की पुस्तकों की मांग बढ़ेगी।'मालूम नहीं कि आगे यह हुआ कि नहीं।
मुझे चेतन भगत की 'फ़ाइव प्वाइंट समवन' पसन्द आयी थी पर यह यह पुस्तक कुछ साधारण सी लगी; कुछ खास पसन्द नहीं आयी। लगा कि 'फ़ाइव प्वाइंट समवन' की सफलता देख कर, लिखी गयी है। यह सच है कि पढ़ाई के साथ कुछ मस्ती भी होनी चाहिये। लेकिन, ऐसी मस्ती जो आपके विद्यालय को अच्छे प्रकाश में न दिखाये, वह किस काम की।
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में लव हैपन्स् फिल्म देखने चलेंगे।
मां की नगरी - पॉन्डेचेरी यात्रा
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चलिए, यह पुस्तक तो निकली बेका, अब अगली कडी का इंतजार...
ReplyDelete------
ये है ब्लॉग समीक्षा की 32वीं कड़ी..
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चलिए अगली कड़ी का इंतज़ार है
ReplyDeleteचेतन भगत जी को तो पूर्णतया पढ़ डाला है, यह भी प्रयास करते हैं।
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