Sunday, November 26, 2006

डैमियन - शैतान का बच्चा: ... टोने टुटके

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: तारे और ग्रह
तीसरी पोस्ट: प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
चौथी पोस्ट: यूरोप में खगोल शास्त्र
पांचवीं पोस्ट: Hair Musical हेर संगीत नाटक
छटी पोस्ट: पृथ्वी की गतियां
सातवीं पोस्ट: राशियां Signs of Zodiac
आठवीं पोस्ट: विषुव अयन (precession of equinoxes): हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ
नवीं पोस्ट: ज्योतिष या अन्धविश्वास
यह पोस्ट: अंक विद्या, डैमियन - शैतान का बच्चा
अगली पोस्ट: अंक लिखने का इतिहास

१९७६ में एक फिल्म ओमेन
(Omen) नाम से आयी थी। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार की है,
एक अमेरिकन राजनयिक (Diplomat), के पुत्र की म़ृत्यु हो जाती है और उसकी जगह एक दूसरा बच्चा रख दिया जाता है। इस बच्चे का नाम डेमियन (Damien) है। यह बच्चा वास्तव में एक शैतान का बच्चा है और आगे चलकर इसके एन्टीक्राइस्ट (Antichrist) बनने की बात है। यह बात बाइबिल की एक भविष्यवाणी में है। कुछ लोगों को पता चल जाता है कि यह शैतान का बच्चा है और उसे मारने का प्रयत्न किया जाता है पर पुलिस जिसे नहीं मालुम कि वह शैतान का बच्चा है, उसे बचा लेती है। यह फिल्म यहीं पर समाप्त हो जाती है।

इस फिल्म के बाद, १९७८ में दूसरी फिल्म
Damien: Omern II नाम सेआयी। यह डैमियन के तब की कहानी है, जब वह १३ साल का हो जाता है। १९८१ में इस सीरीज में तीसरी फिल्म Oemn III: The Final Conflict आयी। इस सिरीस की चौथी फिल्म टीवी के लिये १९९१ में Omen IV : The Awakening के नाम से बनी। मैंने इस सिरीस की केवल पहली फिल्म देखी है, यह डरावनी थी। बाद की कोई भी फिल्म नहीं देखी। मुझे ऐसी फिल्मों में मजा नहीं आता है।

इन फिल्मों में यह महत्वपूण है कि यह कैसे पता चला कि डेमियन शैतान का बच्चा है।

डेमियन के सर की खाल
(Scalp) पर बालों से छिपा ६६६ अंक लिखा था। इस नम्बर को शैतान का नम्बर कहा जाता है। इससे पता चला कि डैमियन शैतान का बच्चा है। पर क्या आप जानते हैं कि इस नम्बर को क्यों शैतान का नम्बर क्यों कहा जाता है। चलिये कुछ अंक लिखने के इतिहास के बारे में चर्चा करें, इसी से यह सब पता चलेगा, पर यह अगली बार।

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Saturday, November 25, 2006

अधिकारी, विशेषज्ञ: ... time to think?

फाइनमेन का हमेशा कहना था कि किसी बात को तब स्वीकार करो जब वह तर्क पर खरी उतरे, उसे केवल किसी के कहने पर न स्वीकार करो। १९७६ में मार्क को पत्र लिखते समय सलाह दी कि,
'Don’t pay attention to “authorities,” think yourself.'

अपनी पुस्तक Lectures on Physics में एक जगह उन्होने लिखा था कि
'No static distribution of charges inside a closed conductor can produce any electric field outside.'
एलिज़बेथ ने भौतिक शास्त्र में एक कोर्स लिया था। परीक्षा में एक सवाल का यही जवाब दिया। इस पर उसके शिक्षक ने उसे कोई नम्बर नहीं दिया क्योंकि यह बात गलत थी। शिक्षक ने एलिज़बेथ को यह भी बताया कि यह किस प्रकार से गलत है। एलिज़बेथ ने जब इसके बारे में फाइनमेन को पत्र लिखा। तो फाइनमेन का जवाब था,
'Your instructor was right not to give you any points for your answer was wrong, as he [the teacher] demonstrated using Gauss’ Law. You should, in science, believe logic and arguments, carefully drawn, and not authorities. '

वे आगे कहते हैं कि तुमने मेरी किताब को सही समझा, मैंने ही गलती कर दी थी,
'You also read the book correctly and understood it. I made a mistake, so the book is wrong ... I am not sure how I did it, but I goofed. And you goofed too, for believing me.

बड़े व्यक्तियों का पहला गुण – यदि वे गलत हैं, तो स्वीकार करने में कभी नहीं हिचकते।

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Tuesday, November 21, 2006

ज्योतिष या अन्धविश्वास: ... टोने टुटके

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: तारे और ग्रह
तीसरी पोस्ट: प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
चौथी पोस्ट: यूरोप में खगोल शास्त्र
पांचवीं पोस्ट: Hair Musical हेर संगीत नाटक
छटी पोस्ट: पृथ्वी की गतियां
सातवीं पोस्ट: राशियां Signs of Zodiac
आठवीं पोस्ट: विषुव अयन (precession of equinoxes): हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ
यह पोस्ट: ज्योतिष या अन्धविश्वास
अगली पोस्ट: अंक विद्या - डेमियन

सूरज और चन्द्रमा हमारे लिये में महत्वपूर्ण हैं। यदि सूरज नहीं होता तो हमारा जीवन ही नहीं शुरू होता। सूरज दिन में, और चन्द्रमा रात में रोशनी दिखाता है। सूरज और चन्द्रमा, समुद्र को भी प्रभावित करते हैं। ज्वार और भाटा इसी कारण होता है। समुद्री ज्वार-भाटा के साथ यह हवा को भी उसी तरह से प्रभावित कर, उसमें भी ज्वार भाटा उत्पन करते हैं। ज्वार-भाटा में किसी और ग्रह का भी असर होता होगा, पर वह नगण्य के बराबर है। इसके अलावा यह बात अप्रसांगिक है कि हमारा जन्म जिस समय हुआ था, उस समय
  • सूरज किस राशि में था, या
  • चन्द्रमा किस राशि पर था, या
  • कोई अन्य ग्रह किस राशि पर था।
इसका कोई सबूत नहीं है कि पैदा होने का समय या तिथि महत्वपूर्ण है। यह केवल अज्ञानता ही है।

हमारे पूर्वजों ने इन राशियों को याद करने के लिये स्वरूप दिया। पुराने समय के ज्योतिषाचार्य बहुत अच्छे खगोलशास्त्री थे। पर समय के बदलते उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि किसी व्यक्ति के पैदा होने के समय सूरज जिस राशि पर होगा, उस आकृति के गुण उस व्यक्ति के होंगे। इसी हिसाब से उन्होंने राशि फल निकालना शुरू कर दिया। हालांकि इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि आप ज्योतिष को उसी के तर्क पर परखें, तो भी ज्योतिष गलत बैठती है।

मैंने इस विषय की आठवीं पोस्ट (विषुव अयन: हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ) पर बताया था कि पृथ्वी की धुरी घूम रही है और २५,७०० साल में एक बार चक्कर लगाती है। इसलिये विषुव (equinox) का समय बदल रहा है, जिसे विषुव अयन (precession of equinoxes) कहते हैं। ज्योतिष/ खगोलशास्त्र के शुरु होने के समय, विषुव अप्रैल के माह में आता था, इसीलिये राशि चक्र मेष से शुरु होता है। अब यह मार्च के महीने में आ गया है यानी कि मीन राशि में आ गया है। यदि ज्योतिष का ही तर्क लगायें तो जो गुण ज्योतिषों ने मेष राशि में पैदा होने वाले लोगों को दिये थे वह अब मीन राशि में पैदा होने वाले व्यक्ति को दिये जाने चाहिये। यानी कि, हम सबका राशि फल एक राशि पहले का हो जाना चाहिये पर ज्योतिषाचार्य तो अभी भी वही गुण उसी राशि वालों को दे रहे हैं।

सच में हम बहुत सी बातो को उसे तर्क या विज्ञान से न समझकर उस पर अंध विश्वास करने लगते हैं, जिसमें ज्योतिष भी एक है। ज्योतिष या टोने टोटके में कोई अन्तर नहीं। यह एक ही बात के, अलग अलग रूप हैं। यही बात अंक विद्या और हस्तरेखा विद्या के लिये लागू होती है। यह दोनो, टोने टोटके के ही दूसरे रूप हैं। इनके बारे में अगली पोस्टों पर।


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Sunday, November 19, 2006

हरिवंश राय बच्चन: अमिताभ बच्चन

हरिवंश राय बच्चन
भाग-१: क्या भूलूं क्या याद करूं
पहली पोस्ट: विवाद
दूसरी पोस्ट: क्या भूलूं क्या याद करूं

भाग-२: नीड़ का निर्माण फिर
तीसरी पोस्ट: तेजी जी से मिलन
चौथी पोस्ट: इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के अध्यापक
पांचवीं पोस्ट: आइरिस, और अंग्रेजी
छटी पोस्ट: इन्दिरा जी से मित्रता,
सातवीं पोस्ट: मांस, मदिरा से परहेज
आठवीं पोस्ट: पन्त जी और निराला जी
नवीं पोस्ट: नियम

भाग-३: बसेरे से दूर
दसवीं पोस्ट: इलाहाबाद से दूर

भाग -४ दशद्वार से सोपान तक
यह पोस्ट: अमिताभ बच्चन
अगली बारवीं पोस्ट: रूस यात्रा

यह बच्चन जी की जीवनी का चौथा एवं अंतिम भाग है। बच्चन जी इलाहाबाद में क्लाईव रोड पर जिस बंगले में रहते थे, उसके कमरों में दरवाजे, खिड़कियों और रोशनदान को मिलाकर १०-१० खुली जगहें थी, इसलिये उसका नाम उन्होंने दशद्वार रख दिया।

सोपान का अर्थ है: सीढ़ी। बच्चन जी जब दिल्ली गये तो वहां पर वे लेखकों व पत्रकारों की सहकारी समिति के सदस्य बन गये। इस सहकारी समिति को गुलमोहर पार्क में कुछ जमीन मिली जिसमें एक प्लाट बच्चन जी को भी मिला। इस पर वहां बच्चन जी ने एक तिमंजिला मकान बनाया। जिसकी मजिंलो को एक लम्बी सीढ़ी जोड़ती है जो नीचे से ऊपर तक एक साथ देखी जा सकती है। इस घर में प्रवेश करने पर सबसे पहले दिखती है , इसलिये इस मकान का नाम उन्होंने सोपान रखा।

इस भाग में, बच्चन जी ने इलाहाबाद से निकल कर जो जीवन बिताया, उसका वर्णन है। जाहिर है, इसमें उनके विदेश मंत्रालय से सम्बन्धित संस्मरण, दिल्ली की राजनैतिक गतिविधियां (जिसमें इमरजेंसी भी है), अमिताभ बच्चन का सिनेमा जगत में उदय और करोड़ों लोगों का चहेता अभिनेता बनने की कहानी है। यह उनके जीवन का सबसे खुशहाल समय भी रहा। इन क्षणों में वे इलाहाबाद की अच्छी बातों को याद करते हैं और कहीं न कहीं उसका अहसान मन्द भी दीखते हैं।

अमिताभ बच्चन ने‍ जिन ऊंचाइयों को छुआ, वह किसी भी पिता के लिये एक हर्ष की बात हो सकती है और इस भाग में वे बहुत कुछ अमिताभ बच्चन के बारे में है। अमिताभ के अभिनय की क्षमता के बारे में कहते हैं कि,
'मुझे याद है १९४२ के "भारत छोड़ो" आंदोलन के समय जब इमर्जेसी लगा दी गई थी, और युनिवर्सिटी दो-तीन महीने के लिए बंद करा दी गई थी तो हम दोनों घर पर शेक्सपियर के नाटकों की प्ले-रीडिंग किया करते थे। अमित पेट में था। अब हमसे लोग पूछते हैं कि अमिताभ में अभिनय की प्रतिभा कहॉं से आई। मैं उन दिनों की याद कर एक प्रति-प्रश्न उछाल देता हूँ, "अभिमन्‍यु ने चक्रव्‍यूह भेदने की क्रिया कहॉं से सीखी?”

अमिताभ बच्चन शुरू में इलाहाबाद में ब्यॉज हाई स्कूल में पढ़े और फिर शेरवुड, नैनीताल पढ़ने के लिए चले गये। वे, स्कूल के नाटकों में भाग लेते थे और पर जीवन में वे इंजीनियर बनना चाहते थे। बी.एस.सी. के बाद उनका यह सपना टूट गया और वे कलकत्ता नौकरी करने चले गये। इसका बात को वे कुछ इस प्रकार से बताते हैं,
'अमिताभ अपने इंजीनियर बनने का सपना से रहे थे।
तीन वर्ष बाद कम्पार्टमेन्टल से उन्होंने बी.एस.सी. की।
इंजीनियर बनने का सपना पूरी तरह ध्वस्त हो चुका था।
...
अमिताभ ने अपने स्नातकीय डिग्री के लिए विज्ञान लेकर अपनी मूल प्रवृत्ति को पहचानने में भूल की थी; परीक्षा-परिणाम संतोषजनक नहीं हुआ। विज्ञान लेकर आगे पढ़ने का रास्ता अब बंद हो गया था।'

मैंने सुना था कि अमिताभ बच्चन ने ऑल इन्डिया रेडियो पर समाचार पढ़ने के लिये आवेदन पत्र दिया था जो कि स्वीकर नहीं हुआ था - उनकी आवाज ठीक नहीं पायी गयी थी। मुझे इस पर कभी विश्वास नही होता था, पर यह सव है। बच्चन जी लिखते हैं कि,
'आल इंडिया रेडियो में कुछ समाचार पढ़ने वाले लिए जाने वाले थे। अमित ने प्रार्थना पत्र भेज दिया। उन्हें आवाज-परीक्षण के लिए बुलाया गया, पर उनकी आवाज ना-काबिल पाई गई। पता नहीं रेडियों वालों के पास अच्छी आवाज का मापदंड क्या था। आज तो अमिताभ के अभिनय में आवाज उनका खास आकर्षण माना जाता है। पर अच्छा हुआ वे रेडियो में नहीं लिए गए। वहॉं चरमोत्कर्ष पर भी पहुँच कर वे क्या बनते? - “मूस मोटाई लोढ़ा होई।" हमारी असफलता और नैराश्य में भी कभी-कभी हमारा सौभाग्य छिपा रहता है।'

अमिताभ बच्चन की बात हो और जया भादुड़ी का जिक्र न आये - यह तो हो ही नहीं सकता। बच्चन जी पर उसकी पहली छाप के बारे में तो उन्ही से सुनना ठीक रहेगा,
'जया कद में नाटी, शरीर से न पतली, न मोटी, रंग से गेहुँआ; उसकी गणना सुंदरियों में तो न की जा सकती थी, पर उसमें अपना एक आकर्षण था, विशेषकर उसके दीर्घ-दीप्त नेत्रों का, और उसके सुस्पष्ट मधुर कंठ का। एक अभाव भी उसमें साफ था—समान अवस्था की लड़कियों की सहज सुलभ लज्जा का, पर फिल्म में काम करने वाली लड़की से उसकी प्रत्याशा भी न की जा सकती थी।'

इस भाग को पढ़ने के बाद, मुझे अमिताभ बच्चन की दो बातें बहुत अच्छी लगीं। पहली यह कि उन्होने अपने माता-पिता को हमेशा सम्मान दिया। अक्सर लोग अपने वृद्ध माता-पिता को भूल जाते हैं।

दूसरा उनका अपने पुराने सहयोगियों तथा कर्मचारियों के साथ व्यवहार। अक्सर लोग जब बड़े आदमी हो जाते हैं तो अपने मुश्किल समय के लोगों को भूल जाते हैं, अमिताभ बच्‍चन ने ऐसा नहीं किया। यह बात बच्चन जी को भी बहुत अच्छी लगी। एक बार कलकत्ता में पिक्चर शूटिंग के दौरान उनके व्यवहार के बारे में बच्चन जी लिखते हैं,
'एक शाम को उन्होंने याद कर-करके बर्ड और ब्‍लैकर्स के अपने पूर्व सहयोगियों को चाय पर आमंत्रित किया और एक-एक से ऐसे मिले जैसे अब भी उनके बीच ही काम कर रहे हों। वे लोग भी अमिताभ की इस भंगिमा से बहुत प्रसन्न हुए। कई तो अपने बच्चों को साथ लाए जो अमिताभ के फैन हो गए थे और जिनकी आँखें यह विश्वास न कर पाती थीं कि यही व्यक्ति उनके पापा या डैडी के साथ बरसों काम कर चुका है। कभी उनके दफ्तर के पुराने चपरासी आदि भी आते तो वे उनको बुला लेते, खुशी से मिलते; और वे तो अपना भाग्य सराहते विदा लेते। अमिताभ की इस मानवीयता ने उनके कलाकार को कितना उठाया है शायद स्वयं उन्हें भी अभी इसका अंदाजा नहीं है।'

इस भाग को पढ़ने से यह भी पता लगा कि अमिताभ को अभिनेता के मार्ग में प्रोत्साहित करने में सबसे बड़ा हाथ उनके छोटे भाई अजिताभ का था। बच्चन जी को कई बार रूस जाने का मौका मिला। एक बार अजिताभ ने उनसे एक खास तरह का कैमरा मंगवाया जो बहुत ही मंहगा था। उस समय, यह उनकी समझ में नहीं आया कि वह क्यों इतना महंगा कैमरा मगंवा रहा है। इसका भेद तो बाद में खुला। उसने कैमरे से अमिताभ बच्चन की खास फोटो लेकर फिल्म जगत के लोगों को दिया ताकि अमिताभ बच्चन का फिल्म जगत में रास्ता खुल सके।

इस भाग में बच्चन जी की रूस यात्रा और वहां के कई शहरों का भी वर्णन है। मैं कभी वहां नहीं गया पर मुन्ने की मां गयी है। वह भी उन शहरो में गयी, जहां बच्चन जी गये थे। इस सीरिस का अगला भाग रूस यात्रा के बारे में, मुन्ने की मां से, उसी के चिट्ठे पर, उसी के द्वारा।


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Thursday, November 16, 2006

On Balance

मैंने अपनी पोस्ट 'मां को दिल की बात कैसे पता चली' पर यह जिक्र किया था कि मैं न्यायमूर्ति लीला सेठ की आत्म कथा On Balance के बारे में ज्लदी ही चर्चा करूंगा। यह रही वह चर्चा।
वकालत का पेशा पुरुष प्रधान है। इस पेशे में महिलाओं के लिये पग-पग पर मुश्किलें हैं। इस क्षेत्र में ऊंचा उठना, या जज बनना, किसी भी महिला के लिये मुश्किल की बात है। यदि कोई महिला अच्छा वकील, या जज बन बन पाती है तो यह बहुत सम्मान की बात है और उसके आत्मविश्वास की द्योतक है। न्यायमूर्ति लीला सेठ ने वकालत पटना में शुरु की। पटना उच्च न्यायालय में कितनी मुश्किलें थीं, इसका अन्दाजा आप उनके इस बात से लगा सकते हैं,
'There was, unfortunately, no proper women’s toilet. A musty storeroom, a good distance away, had been allotted for this purpose. It was kept locked and the key was with Dharamshila Lal. After my arrival, it was decided that the key should be kept with the librarian, Khadim, a gentle and quiet man... The most awful part of it all was that this room was infested with bats. I was just terrified to go inside. Having heard stories that bats clung to your hair, I used to cover my head with the end of my sari, clinging to it while using the toilet. The room was dark and full of old, discarded files and every time the door squeaked open, the bats started flying about in great agitation.'
न्यायमूर्ति लीला सेठ जब इस बारे में एक अन्य महिला वकील सुश्री धर्मशीला से बात की तो उसने आश्चर्यचकित हो कर कहा कि,
‘How do you intend to practice and do well in Bihar if you are afraid of bats?'
शायद यह बात सब जगह सच हो। अपने प्रतिद्वन्दी के लिये अफ़वाह फैला देना तो समय बिताने का सबसे प्रिय तरीका है - वकील इससे अलग नहीं हैं। न्यायमूर्ति लीला सेठ इसका जिक्र इन शब्दों में करती हैं,
'It made me unhappy when I realized that however hard I worked, the younger male lawyers kept spreading the rumour that I was not serious, and that, being a woman, I could not run around alike them and get things done. Further, I was a fashionable and frivolous woman who, because she had no need for money, would quit a case without notice.'

यह हाल जब पटना उच्च न्यायालय का है तो आप समझ सकते हैं कि निचली अदालतों का क्या हाल होगा। On Balance पुस्तक सरल भाषा में लिखी है और पढ़ने योग्य है। 

मैं इस किताब के बारे में यह कहना चाहता था कि यह किताब क्यों न अच्छी लिखी हो, आखिरकार न्यायमूर्ति लीला सेठ, विक्रम सेठ की मां हैं: अच्छा तो लिखेंगी ही। पर मैंने इसे लिखा नहीं, क्योंकि इस पर मुझको यह किस्सा याद आता है। बीसवीं शताब्दी में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में आईज़ेक एसीमोव (नीचे नोट-१ देखें) का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने जितना इस क्षेत्र में कार्य किया उतना किसी और ने नहीं। उनके द्वारा विज्ञान पर कल्पित ( fiction) या अकल्पित (non-fiction) पुस्तकें पढ़ने योग्य हैं। 

आईज़ेक एसीमोव के माता पिता यहूदी थे और रूस में रहते थे। आईज़ेक का जन्म रूस में १९२० में हुआ था। इनके माता पिता अच्छे जीवन की तलाश में १९२३ में अमेरिका आ गये। इन दोनो को अंग्रेजी नहीं आती थी। ये लोग रूस में यह खाते-पीते परिवार के थे पर अमेरिका में सब कुछ नये सिरे से करना पड़ा - काफी मुश्किलों का सामना किया। आईज़ेक के पिता छोटे-मोटे काम करते थे और इनकी मां मिठाई (candy) का स्टोर चलाती थीं। वृद्धावस्था में उन्होंने यह कार्य करना छोड़ दिया और सोचा कि क्यों न अंग्रेजी सीख ली जाय। वे बहुत तेजी से अंग्रेजी सीखने लगीं। इस पर उनके अध्यापक ने पूंछा,

’क्या वे आईज़ेक एसीमोव की रिश्तेदार हैं ?‘
उन्होंने इसका उत्तर हां में दिया और बताया,
'मैं उसकी की मां हूं।‘
इस पर अध्यापक ने कहा,
‘कोई आश्चर्य नहीं कि आप अंग्रेजी सीखने में इतनी तेज हैं।‘
इस पर आईज़ेक एसीमोव की मां ने अध्यापक की आंखों में आंखे तरेर कर कहा,
‘आश्चर्य नहीं, कि आईज़ेक एसीमोव की अंग्रेजी इतनी अच्छी है।'
न्यायमूर्ति लीला सेठ अच्छा इसलिये नहीं लिखती हैं कि वे विक्रम सेठ की मां हैं पर विक्रम सेठ इसलिये अच्छा लिखते हैं क्योंकि वे न्यायमूर्ति लीला सेठ के पुत्र हैं।

नोट-१: आईजेक एसीमोव मेरे प्रिय लेखकों में से एक हैं। मेरे पास इनकी लगभग सारी किताबें हैं जिन्हे मैंने कम से कम एक बार पढ़ा है। मैं इनके बारे में चर्चा करूंगा - पर यहां केवल इतना ही। शायद चर्चा करने को इतनी बातें हैं कि इनका नम्बर ही नहीं आ पा रहा है।

सांकेतिक शब्द
book, book, books, Books, books, book review, book review, book review, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,

Sunday, November 12, 2006

विषुव अयन (precession of equinoxes) - हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ: ... टोने टुटके

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके
पहली पोस्ट: भूमिका
दूसरी पोस्ट: तारे और ग्रह
तीसरी पोस्ट: प्राचीन भारत में खगोल शास्त्र
चौथी पोस्ट: यूरोप में खगोल शास्त्र
पांचवीं पोस्ट: Hair Musical हेर संगीत नाटक
छटी पोस्ट: पृथ्वी की गतियां
सातवीं पोस्ट: राशियां Signs of Zodiac
यह पोस्ट: विषुव अयन (precession of equinoxes): हेयर संगीत नाटक के शीर्ष गीत का अर्थ
अगली पोस्ट: ज्योतिष

हम पृथ्वी की तीसरी गति के बारे में छटी पोस्ट पर चर्चा कर चुके हैं। यही कारण है विषुव अयन का और राशि चक्र के मेष राशि से शुरू होने का।

साल के शुरु होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्द्ध जाता है। साल के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्द्ध पहुचं जाता है। इस तरह से सूरज साल में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। इस समय को विषुव (equinox) कहते हैं। यह इसलिये कि, तब दिन और रात बराबर होते हैं। यह सिद्धानतः है पर वास्तविकता में नहीं, पर इस बात को यहीं पर छोड़ देते हैं। आजकल यह समय लगभग 20मार्च तथा 23 सितम्बर को आता है। जब यह मार्च में आता है तो हम (उत्तरी गोलार्द्ध में रहने वाले) इसे महा/बसंत विषुव (Vernal/Spring Equinox) कहते हैं तथा जब सितम्बर में आता है तो इसे जल/शरद विषुव (fall/Autumnal Equinox) कहते हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में इन ऋतुओं के आने की सूचना देता है।

विषुव का समय भी बदल रहे है। इसको विषुव अयन (Precession of Equinox) कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर २४ घन्टे में एक बार घूमती है। इस कारण दिन और रात होते हैं। पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और यह धुरी २५,७०० साल में एक बार घूमती है। यदि आप किसी लट्टू को नाचते हुये उस समय देखें जब वह धीमा हो रहा हो, तो आप देख सकते हैं कि वह अपनी धुरी पर भी घूम रहा है और उसकी धुरी भी नाच रही है। विषुव का समय धुरी के घूमने के कारण बदल रहा है। इसी लिये pole star भी बदल रहा है। आजकल ध्रुव तारा पृथ्वी की धुरी पर है और दूसरे तारों की तरह नहीं घूमता। इसी लिये pole star कहलाता है। समय के साथ यह बदल जायगा और तब कोई और तारा pole star बन जायगा।

पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २५,७०० साल में एक बार घूमती है। वह १/१२वें हिस्से को २१४१ या लगभग २१५० साल में तय करती है। वसंत विषुव के समय सूरज मीन राशि में ईसा के 500 साल बाद (500 AD) में आया। इसके पहले वह मेष राशि में २१५० साल से था - यानि कि ईसा से १६५० साल पहले (1650 BC) से, ईसा के ५०० साल बाद (500 AD) तक सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मेष राशि में रहा। अलग अलग सभ्यताओं में, इसी समय खगोलशास्त्र या ज्योतिष का जन्म हुआ। इसी लिये राशिफल मेष से शुरु हुआ। पर अब ऐसा नहीं है। इस समय सूरज वसंत विषुव के समय पृथ्वी के सापेक्ष मीन राशि में होता है। यह अजीब बात है कि विषुव के बदल जाने पर भी हम राशिफल मेष से ही शुरु कर रहें है - तर्क के हिसाब से अब राशिफल मीन से शुरु होने चाहिये, क्योंकि अब विषुव के समय सूरज, मेष राशि में न होकर मीन राशि में है।

ईसा के ५०० साल (500 AD) के २१५० साल बाद तक यानि कि २७वीं शताब्दी (2650 AD) तक, वसंत विषुव के समय सूरज पृथ्वी के सापेक्ष मीन राशि में रहेगा। उसके बाद वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, कुम्भ राशि में चला जायगा। यानि कि तब शुरु होगा कुम्भ का समय। अब आप हेयर संगीत नाटक के शीर्षक गीत Aquarius की पंक्ति 'This is the dawning age of Aquarius' (पांचवीं पोस्ट) का अर्थ समझ गये होंगे। मेरे मित्र इस गाने को सुनते थे, गाते थे, इस संगीत नाटक की बात करते थे, पर अर्थ नहीं समझते थे - ज्योतिष में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यह अगली बार।


इस बात को यदि आप देख कर समझना चाहें तो नीचे देखें




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Friday, November 10, 2006

खेलो, कूदो और सीखो ... time to think?

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में पोस्ट यहां देखें
पहली पोस्ट: Don’t you have time to think?
दूसरी पोस्ट: पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
तीसरी पोस्ट: गायब
चौथी पोस्ट: मानद उपाधि
यह पोस्ट: खेलो, कूदो और सीखो

जीवन में हमें वह करना चाहिये जो हमें पसन्द हो - चाहे उसका कोई महत्व हो अथवा नहीं। महत्व अपने आप निकल आता है। मैंने फाइनमेन के बारे में लिखते समय वह किस्सा बताया था जब वे कौरनल विश्विद्यालय के अल्पाहार गृह में बैठे थे। वहां एक विद्यार्थी ने एक प्लेट को फेंका। प्लेट सफेद रंग की थी और उसमें बीच में कौरनल का लाल रंग का चिन्ह था। प्लेट डगमगा भी रही थी और घूम भी रही थी। यह अजीब नज़ारा था। फाइनमेन इसके डगमगाने और घूमने और के बीच में सम्बन्ध ढ़ूढ़ने लगे। इसमे काफी मुश्किल गणित के समीकरण लगते थे। इसमे उनका बहुत समय लगा। उन्होंने पाया कि दोनो मे २:१ का सम्बन्ध है। उनके साथियों ने उनसे कहा कि वह इसमे समय क्यों बेकार कर रहे हैं। उनका जवाब था,
'इसका कोई महत्व नहीं है मैं यह सब मौज मस्ती के लिये कर रहा हूं।'
लेकिन जब वे एलेक्ट्रौन के घूमने के बारे में शोध करने लगे तो उन्हें कौरनल की डगमगाती और घूमती प्लेट में लगी गणित फिर से याद आने लगी। उस काम का महत्व हो गया। उसी ने उस सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण उन्हें नोबेल पुरूस्कार मिला।

उन्होने इस बात को न केवल अपने जीवन में उतारा पर यही सलाह औरों को भी दी। एक बार सोलह साल के लड़के ने उन्हें पत्र लिख कर यह सलाह मांगी कि वह क्या करे। उनका जवाब था कि,
'It is wonderful if you can find something you love to do in your youth which is big enough to sustain your interest through all your adult life. Because, whatever it is, if you do it well enough (and you will, if you truly love it) people will pay you to do what you want to do anyway.'
उनके मुताबिक,
  • बहुत ज्यादा पढ़ना; या
  • किताबी कीड़ा बना रहना; या
  • अपने उम्र से ज्यादा पढ़ाई करना,
ठीक नहीं।

वे देखने और सीखने में विश्वास करते थे। एक बार , एक भारतीय बच्चे ने उन्हें एक पत्र परमाणु विज्ञान के बारे में लिखा। उनकी सलाह थी,
'Your discussion of atomic forces shows that you have read entirely too much beyond your understanding. What we are talking about is real and at hand: Nature. Learn by trying to understand simple things in terms of other ideas—always honestly and directly. What keeps the clouds up, why can’t I see stars in the day time, why do colors appear on oily water, what makes the lines on the surface of water being poured from a pitcher, why does a hanging lamp swing back and forth - and all the innumerable little things you see all around you. Then when you have learn to explain simpler things, so you have learn what an explanation really is, you can then go on to more subtle questions.
Do not read so much, look about you and think what you see there.'

बचपन में बड़े, बूढ़ों से सुना करता था,
'खेलो कूदोगे तो होगे बर्बाद,
पढ़ोगे लिखोगे तो होगे नवाब।'
शायद इसे इस तरह से कहना चाहिये,
'खेल, कूद कर सीखोगे,
केवल तब ही बनोगे, नवाब।'

Wednesday, November 08, 2006

निज़ाम के गहने और जैकब हीरा

एक बार हैदराबाद ट्रिप पर मालुम चला कि सलारजंग संग्रहालय में निज़ाम के गहनों की प्रदर्शनी चल रही है। बस, मैं और शुभा भी देखने पहुंच गए। गहने तो इतने भारी, तड़क भड़क वाले थे कि मन में कुछ अनिच्छा सी हो गयी। मैंने कहा
‘क्या इन्हें कोई भी पहन सकता है’
बगल में एक विवाहित महिला अपने परिवार के साथ थी मुझे और शुभा को देख कर कुछ मुस्करायी और बोली,
‘आप लोगों को देखकर लगता है कि कोई आप तो किसी प्रकार के गहने नहीं पहन सकते।‘
मैं न तो कोई अंगूठी और न ही कफ-लिंक वगैरह पहनता हूं। यही हाल शुभा का है - वह तो फैशन से बहुत दूर रहती है। उसे गहनो से लगाव नहीं। यहां तक कि न चूड़ी, न बिन्दी न सिन्दूर।

निज़ाम के गहनों की प्रदर्शनी में जैकब हीरा भी रखा था। यह रोचक लगा - कुछ इसके बारे में।

जैकब हीरा सवा सौ साल पहले अफ्रीका की किसी खान में कच्चे रूप में मिला था। वहां से इसे एक व्यवसाय संघ द्वारा ऐमस्टरडैम लाया गया और कटवा कर इसे नया रूप दिया गया। कहते हैं कि, यह दुनियां के सबसे बड़े हीरे में से एक है इसका वजन कोई १८४.७५ कैरेट (३६.९ ग्राम) है। यदि आप इसकी तुलना कोहिनूर हीरे से करें तो पायेंगे कि कोहिनूर हीरे का वजन पहले लगभग १८६.०६ कैरेट (३७.२ ग्राम) था। अंग्रेजी हुकूमत ने कोहिनूर हीरे की चमक बढ़ाने के लिये इसे तरशवाया और अब इसका वजन १०६.०६ कैरेट (२१.६ ग्राम) हो गया है।

जैकब हीरे को भारत लाने का श्रेय अलैक्जेंडर मालकन जैकब को जाता है। जैकब रहस्यमयी व्यक्ति था पर भारतीय राजाओं के विश्वास पात्र था। कहते हैं कि वह इटली में एक रोमन कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ था। किपलिंग के उपन्यास किम में ब्रितानी गुप्त सेवा के लगन साहब का व्यक्तित्व जैकब पर आधारित है।

१८९० में जैकब ने, इस हीरे को बेचने की बात, छठे निज़ाम महबू‍ब अली पाशा से की। उस समय इसका दाम १ करोड़ २० लाख रूपये आंका गया पर बात बनी ४६ लाख में। निजाम ने २० लाख रूपये उसे हिन्दुस्तान में लाने के लिये दिये, फिर लेने से मना कर दिया क्योंकि British Resident ने इस पर आपत्ति कर दी। निज़ाम ने जब पैसे वापस मांगे तो जैकब उसे वापस नहीं कर पाया। इस पर कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा चला और सुलह के बाद यह हीरा निज़ाम को मिल गया।

महबूब अली पाशा ने जैकब हीरे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया और इसे भी अन्य हीरों की तरह अपने संग्रह में यूं ही रखे रखा। उनके सुपुत्र और अंतिम निज़ाम उस्मान अली खान को यह उनके पिता की मृत्यु के कई सालों बाद में उनकी चप्पल के अगले हिस्से में मिला। उन्होने अपने जीवन में इसका प्रयोग पेपरवेट की तरह किया।

इस हीरे का दाम इस समय ४०० कड़ोड़ रुपये है। प्रर्दशनी के बाहर इस हीरे के नकल का क्रिस्टल ४०० रुपये में बिक रहा था। मैंने इसे खरीद लिया। कम से कम इसे तो मैं पेपरवेट की तरह प्रयोग कर सकता हूं।

मुन्ने की मां को गहनो से लगाव न रहने के कारण मुझे इस तरह के खर्चे नहीं करने पड़ते। इस कारण मेरे पैसे तो बचते हैं पर कभी कभी इस तरह का उपहार न दे पाने की टीस रहती है।

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Monday, November 06, 2006

मानद उपाधि: ... time to think?

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे में पोस्ट यहां देखें
पहली पोस्ट: Don’t you have time to think?
दूसरी पोस्ट: पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा
तीसरी पोस्ट: गायब
यह पोस्ट: मानद उपाधि

आजकल मानद उपाधि का जमाना है। जिस विश्व विद्यालय को देखो वही दे रहा है और सब इसे स्वीकार कर रहें हैं। फाइनमेन को दुनिया के हर देश के विश्वविद्यालय मानद उपाधि से विभूषित करना चाहते थे। १९६७ में, सबसे पहले शिकागो विश्व विद्यालय ने उन्हें मानद उपाधि से विभूषित करने की बात की। उन्होने इसे अपने लिये सम्मान की बात बतायी, पर स्वीकारा नहीं। उनका कहना था कि,
'I remember the work I did to get a real degree at Princeton and the guys on the same platform receiving honorary degrees without work — and felt an “honorary degree” was a debasement of the idea of a “degree which confirms certain work has been accomplished.” It is like giving an “honorary electrician license”. I swore then that if by chance I was ever offered one I would not accept it.'
जब कभी कोई उन्हे मानद उपाधी देने की बात करता, तो हमेशा उनका यही जवाब रहता था।

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Saturday, November 04, 2006

राशियां Signs of Zodiac: ... टोने टुटके

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके की इस चिट्ठी मे, राशियों के बारे में चर्चा है। 

चित्र विकिपीडिया से