Saturday, June 08, 2013

ठीक रख-रखाव के लिये, पुस्तक पर सोने की प्लेटिंग

इस चिट्ठी में, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (इंडियन वेर्टनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट) (आईवीआरआई) के पुस्तकालय, इमारत, एवं क्लब की चर्चा है।


नेचर का पहला अंक



हम संस्थान का पुस्तकालय भी देखने गये। यह उसी समय बना था जब यहां संस्थान बना। पुस्तकालय में आलमारियां लकड़ी की बनी हुई थीं। हालांकि उसमें नेपथलीन की गोलियां ज़रूर रखी थी पर शर्मा जी के मुताबिक उनका आज तक कोई ट्रीटमेंट नहीं किया गया क्योंकि उसमें बेहतर तरीके की लकड़ी का प्रयोग किया गया है, जिस कारण आज तक अलमारियों में दीमक नहीं लगी। 

नेचर जाना माना जर्नल है यदि नेचर में आपका कोई भी पेपर प्रकाशित हो जाता है तो यह अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। इसका सबसे पहला अंक १८७६ में निकला था। शर्मा जी के मुताबिक इस अंक की केवल एक ही प्रति है जो उनके पुस्तकालय में है।


वहां पर कुछ पुरानी पुस्तकों पर के पन्नों पर सोने की प्लेटिंग की गयी थी। मैंने पूछा कि ऎसा क्यों है। शर्मा जी ने बताया कि यह इस पुस्तक के ठीक के ठीक रख रखाव के लिये किया गया था।


वर्ष १९२५ में, संस्थान की इमारत में आग लग गयी थी। उसके बाद इसे पुन: बनाया गया और इसमे आग बचाने के लिए एक हौज पाइप की भी सुविधा की गयी है जो उसी समय की है। 

इमारत में, डायरेक्टर (Director) के कमरे में बहुत सी ऎसी चीजें  है जो कि उसी समय की मूल रूप से है। यानी की, डाइरेक्टर  की कुर्सी  कमरे में  लगने वाला ताला, डाइरेक्टर के कमरे में ब्रास (पीतल) में किया हुआ है। यह उसी समय का है।  वह बेहतरीन तरह से चमक रहा था। 

इंस्टीट्यूट का अपना एक क्लब है जो कि सौ साल पहले बना था और उस इंस्टीट्यूट में लगभग सौ साल पुरानी बिलिर्यड टेबल और पियानो है। पियानो की सारे  तार काम नहीं कर रही है और शर्मा के अनुसार उसको बनवाने में पांच लाख रूपया लगेगा जिसे सरकार देने में आना कानी कर रही है। कल्ब को देखने वाला एक ८५ वर्षीय बूढा व्यक्ति है, न तो वह इंस्टीट्यूट छोडना चाहता है और न ही इंस्टीट्यूट  उसे।

अगली बार हम संस्थान के संग्रहालय एवं वैक्सीन भण्डार गृह की बात करेंगें। 

जिम कॉर्बेट की कर्म स्थली - कुमाऊं
जिम कॉर्बेट।। कॉर्बेट पार्क से नैनीताल का रास्ता - ज्यादा सुन्दर।। ऊपर का रास्ता - केवल अंग्रेजों के लिये।। इस अदा पर प्यार उमड़ आया।। उंचाई फिट में, और लम्बाई मीटर में नापी जाती है।। चिड़िया घर चलाने का अच्छा तरीका।। नैनीताल में सैकलीज़ और मचान रेस्त्रां जायें।। क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है।। गेंद जरा सी इधर-उधर - पहाड़ी के नीचे गयी।। नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती।। झील से, हवा के बुलबुले निकल रहे थे।। नैनीताल झील की सफाई के अन्य तरीके।। पास बैटने को कहा, तो रेशमा शर्मा गयी।। चीनी खिलौने - जितने सस्ते, उतने बेकार।।कमाई से आधा-आधा बांटते हैं।। रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है।। जन अदालत द्वारा, त्वरित न्याय की परंपरा पुरानी है।। बिन्सर विश्राम गृह - ठहरने की सबसे अच्छी जगह।। सूर्य एकदम लाल और अंडाकार हो गया था।। बिजली न होने के कारण, मुश्किल तो नहीं।। हरी साड़ी पर लाल ब्लाउज़ - सुन्दर तो लगेगा ना।। यह इसकी सुन्दरता हमेशा के लिये समाप्त कर देगा।। सौ साल पुरानी विरासत, लेकिन रख रखाव के लिये  पैसे नहीं।। वहां पहुंचने का कोई सुविधाजनक तरीका न था।। ठीक रख-रखाव के लिये, पुस्तक पर सोने की प्लेटिंग।।

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7 comments:

  1. यह संस्थान तो एक हेरिटेज लगता है !

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  2. यह संस्थान आज भी अपने आपको संजोये हुए है

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  3. पुरानी धरोहर को अच्छी तरह सहेजे हुए ।

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  4. पुराने ज़माने की ताज़गी..

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  5. पच्चासी साल का बूढ़ा काम पर है - सुखद!

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  6. अजय11:05 pm

    इंग्लेंड में रामानुजन का शोषण ही हुआ, उनके कई नोटबुक और पेपर चोरी हो गए. अंग्रेजों को उनके जूस से मतलब था, उन्हें रामानुजन से कोई हमदर्दी नहीं थी.

    http://ajitvadakayil.blogspot.in/2011/11/fractal-mind-of-srinivasa-ramanujan.html

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  7. @Capt Ajay .
    that's very nice link ...... Thanks !

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