परबाबा शिवराज सिंह के दो बेटे और दो बेटियां थीं। मेरे बाबा, केशव चन्द्र सिंह चौधरी, उनमें सबसे बड़े थे। पिछली शताब्दि के शुरू में, वे इलाहाबाद विश्विद्यालय से विज्ञान में स्नातक की शिक्षा लेने आये। उस समय २ रुपये में, महीने का खर्च चल जाता था। उन्हें ४ रुपये महीने का छात्रवृत्ति मिलती थी। २ रुपये घर से आते थे, जिसमें तीन विद्यार्थी खर्चा चलाते थे। कहते हैं कि उनके पास ५ धोतियां थीं, जो दो पहले नहा लेते थे वे तो पिछले दिन की सूखी धोती पहन लेते थे और तीसरे को उस दिन की धोयी, गीली धोती पहननी पड़ती थी।
गिरजा शंकर बाजपेयी, आईसीएस और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल, उनके सहपाठी थे। जहां तक मेरा विचार है कि उन्होंने १९१० में स्नातक की डिग्री ली। यह १९११ भी हो सकता है। विज्ञान विषयों में, बाबा के सबसे अधिक अंक थे। लेकिन, उस समय अंग्रेजी अनिवार्य हुआ करती थी। उसमें बाजपेयी के नंबर अधिक थे। इसलिये उन्हें प्रथम स्थान मिला और बाबा को द्वितीय स्थान। बाजपेयी को विलायत जाने के लिये ५०० पाउन्ड की छात्रवृत्ति मिली। राजा साहब तिरवा ने, बाबा को विलायत भेजने के लिये ७०० पाउन्ड की छात्रवृत्ति दी पर परदादी ने जाने से रोक लगा दी। उन्हें लगा कि विलायत जाने से, वे मलेच्छ हो जायेंगे। बाबा ने गणित में स्नातकोत्तर और कानून की शिक्षा आगरा से ली और वहीं राजा बलवंत सिह कॉलेज में कुछ समय पढ़ाया।
जलालपुर, अलीगढ़ के कल्यान सिंह तालुकदार हुआ करते थे। राजा बलवंत सिंह कॉलेज बनाने में सहयोग किया था। उनके छः बेटे और एक बेटी राजकुमारी हुई। अभिनेता चन्द्रचूड़ सिंह इसी परिवार से आते हैं। बाबा होनहार थे और पढ़ाई में अव्वल। पिछली शताब्दी के शुरू में, बाबा की पहली शादी, कल्यान सिंह की बेटी राजकुमारी से हुई।
कल्यान सिंह के पास बहुत जमीन इलाहाबाद में थी। आजाद चन्द्रशेखर (कंपनी ) बाग के पूरब की, पार्क रोड की पर जमीन, शादी में दी। यह जमीन पार्क रोड पर उत्तर-दक्षिण में, इंडियन प्रेस से कन्हैया लाल मिश्र अधिवक्ता के मकान के दक्षिण रोड तक, और पूरब-पश्चिम में इंडियन प्रेस और कोचिंग सेन्टर के पीछे और पशु चिकित्सालय के सामने से जाने वाली रोड तक थी। बाबा ने, वहीं से वकालत शुरू की पर वे बहुत दिन इलाहाबाद में रहे नहीं।
कल्यान सिंह अपने पांच पुत्रो, बहुओं एक पौत्र के साथ - कह नहीं सकता कि इसमें नरेन्द्र पाल सिंह हैं कि नहीं |
राज कुमारी, स्वाभिमानी थीं। उन्होंने ने बाबा को कहीं और वकालत करने के लिये कहा। हमारा गांव रारी हुआ करता था। उसके पास केवल बांदा में ही मुंसफी थी, जहां सिविल की वकालत हो सकती थी। बाबा सिविल की वकालत करते थे। इसलिये बांदा वकालत करने आ गये।
बांदा में राजकुमारी ने बेटी, शीलेन्द्रा कुमारी को २६ फरवरी १९१७ में जन्म दिया पर बेटी के जन्म के समय ही उनकी मृत्यु हो गयी। दुर्भाग्यवश, २४ दिसमबर १९१९ पर, बेटी शीलेन्द्रा की भी मृत्यु हो गई। राजकुमारी और बेटी की मृत्यु के बाद, बाबा ने अपने अपने ससुर कल्यान सिंह से कहा कि वे इलाहाबाद की जमीन वापस ले लें, क्योंकि वह जिस कारण वह दी गयी थी वह नहीं रहा। लेकिन, उन्होंने जमीन वापस लेना मना कर दिया। उनका कहना था कि वह उनकी इकलौती बेटी के लिये ही थी, वे उसे वापस नहीं लेंगे।दादी राजदुलारी |
बाबा के छः पुत्र - बांये से शीलेन्द्र, भूपेन्द्र, वीरेन्द्र, योगेन्द्र, ज्ञानेन्द्र और धीरेन्द्र (जिनका चित्र मैंने बाद में जोड़ा है)। हम सब पहले पांच भाइयों से हैं। |
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