इस चिट्ठी में, रज्जू भैया के साथ बिताये बचपन की यादों की चर्चा है।
रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना
भूमिका।। रज्जू भैया का परिवार।। रज्जू भैया की शिक्षा और संघ की तरफ झुकाव।। रज्जू भैया - बचपन की यादें।
हमारे बचपन में, एयर-कंडीशनर तो क्या, एयर-कूलर भी दुर्लभ था। हमारे पास तो दोनो ही नहीं थे। लेकिन, रज्जू भैया के घर में तहखाना था। गर्मियों में यह ठंडा रहता था। हम अपना दोपहर वहीं बिताते थे। लेकिन, इसके बदले हमें काम करना पड़ता था।
रज्जू भैया उत्तरपुस्तिकाओं को जांच कर नंबर देते थे। हमारा काम, नंबरों को जोड़ कर बताना होता था। कभी-कभी वे नंबर जोड़ देते थे तब हमें जोड़ कर बताना होता था कि जोड़ सही है कि नहीं।
कभी-कभी रज्जू भैया हमारी प्रैक्टिकल और विज्ञान की कॉपियों की देखते थे कि हम सही लिख रहे हैं या नहीं। वे हमारी गलतियों, को सुधारते थे।
कुछ रोज की अजूबा घटनाटों की तरफ हमारा ध्यान खींचते थे। पहेलियां पूछते थे लेकिन जवाब न बता कर, उसके बारे में सोचने के लिए छोड़ देते थे। फिर अगले दिन, या कुछ दिन बाद, उसके हल पर चर्चा करते थे। यह सबने हमें जिज्ञासु के साथ-साथ तार्किक भी बनाया।
उनके द्वारा पूछी गई एक पहेली मुझे आज भी याद है। यह कुछ इस प्रकार है कि १२ गेंदें हैं। उनके आकार और ११ गेंदों के भार समान हैं लेकिन एक का भार भिन्न है या तो कुछ कम या फिर कुछ ज्यादा। एक तराजू से, तीन बार तौल कर, कैसे, उस भिन्न गेंद का पता लगाया जा सकता है। आपको यह असंभव लगे पर इसे हल किया जा सकता है। मुझे इस पहेली का हल निकालने में महीने का समय लगा था।
एक घटना, आज तक नहीं भूलती। १९६४ में, टोक्यो ओलंपिक हो रहे थे। सुबह अखबार पढ़ते-पढ़ते, मुझसे पूछा,
'क्या तुमने १०० मीटर और ४×१०० मीटर रिले दौड़ का समय देखा है?'
मैंने हामी भरी। उन्होंने पूछा कि क्या कुछ अजीब लगा। मैंने पुनः देखा। १०० मीटर के लिए समय लगभग १० सेकंड था। लेकिन ४×१०० मीटर रिले लगभग ३८ सेकंड था। यह अजीब था।
सबसे तेज दौड़ने वाल व्यक्ति १०० मीटर दौड़ने के १० सेकेंड लेता है लेकिन ४ लोग अलग-अलग १०० मीटर दौड़ने के लिये १० सेकंड से कम समय कैसे ले सकते हैं। मुझे लगा कि गलत छपा होगा। मैंने अन्य समाचार पत्रों को पढ़ा। उनमें भी वही छपा था। मुझे आश्चर्य लगा। फिर मुझे सोचने के लिये छोड़ दिया गया।
अगले दिन, इसका जवाब - कुछ चर्चा, कुछ इशारों की सहायता से मिल ही गया। दौड़ की शुरुआत में, अधिकतम गति प्राप्त करने तक, यानी पहले १५ मीटर में अधिक समय लगता है। रिले दौड़ में, दूसरे, तीसरे और चौथे धावक को डंडा (बैटन) तब दिया जाता है, जब वह, लगभग १५ मीटर दौड़ चुका होता है और अपनी अधिकतम गति प्राप्त कर लेता है। इस तरह समय की बचत होती है।
रज्जू भैया अपने विश्वविद्यालय के वर्षों में स्क्वैश और टेनिस खेलते थे। लेकिन बाद के वर्षों में, वे टेनिस फिर क्रिकेट में दिलचस्पी लेने लग गये। अगली बार इसी की चर्चा करेंगे।
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