Saturday, July 16, 2022

अरे काहे की पोलिश भाषा

इस चिट्ठी में, जयन्त नार्लीकर की रिचर्ड फाइनमेन से मुलाकात की भी चर्चा है। 

१९६२ में, वॉरसा में हुऐ सम्मेलन में, पॉल डिरैक और रिचर्ड फाइनमेन - यह चित्र 'वॉन्डरस ऑफ फिजिक्स' की इस चिट्ठी से है

चार नगरोंं की मेरी दुनिया - जयंत विष्णु नार्लीकर

भूमिका।।  कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किस्से।। फ़्रेड हॉयल - नार्लीकर के प्रेरणा स्रोत।। अरे काहे की पोलिश भाषा।।

१९६२ में, वॉरसा (पौलेण्ड) के निकट, याब्वोन्ना में, गुरुत्वाकर्षन और सापेक्षिता विषयों पर एक सम्मेलन हुआ था। इसमें नार्लीकर ने भाग लिया था। इसमें जाने- माने वैज्ञानिक – डिरैक, रिचर्ड फाइनमैन, व्हीलर, चन्द्रशेखर भी भाग लेने आये थे। यहीं उनकी पहली मुलाकात फाइनमेन के साथ हुई।
सम्मेलन के बाद, सब लोग झाकोपन हिल स्टेशन और क्रॅकाॅ  की प्राचीन विश्वविध्यालय नगरी घूमने भी गये। क्रॅकाॅ जाते समय की  एक घटना की वे इस तरह से चर्चा करते हैं।
'हमारी टूरिस्ट बस चाय-पानी के लिए दस मिनट के लिए रूकी थी। सभी यात्री चाय-कॉफी-टॉयलेट आदि निपटाकर समय पर हाजिर हो गए। पन्दह मिनट ऊपर हो गए, लेकिन ड्राइवर महाशय का कोई पता नहीं था। यह देख फाइनमन तैश में आकर बस से उतरा और जोर-जोर से हाथ हिलाते हुए, सड़क पर आगे-पीछे करते हुए बतियाने लगा। वो कौन सी भाषा में बोल रहा था यह हमारी समझ से परे था। लेकिन उसकी वह नौटंकी देख, ड्राईवर भागता हुआ वापस आ गया और हमारी बस चल पङी। एक पैसेंजर ने फाइनमन से पूछा,
“तुम पोलिश भाषा में बोल रहे थे क्या?”
फाइनमेन ने उत्तर दिया,
"अरे काहे की पोलिश भाषा, वह तो अनेक भाषाओं की मिली-जुड़ी मेरी खिचड़ी भाषा थी। जब हम जोर-जोर से ऐसे बोलने लगते है, तो सुनने वाले को लगता है, कि यह आदमी बहुत अपसेट है, इसे शान्त करना चाहिए, वो ड्राइवर को देखा कैसे दौड़ा चला आया”'

१९६३ की मई में,  नार्लीकर को कॉर्नेल विश्वविद्यालय में हो रहे एक सम्मेलन में भाग लेने गये थे। उसके बाद, वे कैलटेक भी गये, जहां उन्होंने  फाइनमेन का सुना था। इसके बारे में वे लिखते हैं

'कैलटेक में मुझे मिला अविस्मरणीय अनुभव था फाइनमेन के लेक्चरकोर्स का। उसकी खोज थी 'पाथ इंटीग्रल'। उसी विषय पर उसने एक सत्र का आयोजन किया था। उसकी लेक्चर देने की पध्दति नाट्यमय थी। आवाज के उतार-चढ़ाव, भावभंगिमाओं,और स्टेज पर इधर से उधर घूमते हूए सिखाने से विध्यार्थियों का ध्यान हमेशा अपनी ओर केन्दित रखना और अपनी बात श्रोताओं तक सहज रूप से पहुंचाने पर उसका बल रहता था।'
यही कारण था कि फाइनमेन इतने ज्यादा लोकप्रिय थे। 

कॉर्नेल विश्वविद्यालय में हुऐ सम्मेलन में, नार्लीकर की मुलाकात फाइनमेन से हुई थी। इसकी कुछ प्रासंगिकता न्यायलय के द्वारा पूछे गये सवालों और टिप्पणियों और मीडिया के रोल से भी है। इसकी चर्चा अगली बार।

About this post in Hindi-Roman and English

Hindi (Devnagree) kee is chitthi mein, jayant Narlikar aur Richard Feyneman kee meeting kee charchaa hai.
This post in Hindi is about meeting of Jayant Narlikar and Richard Feynman.

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