इस चिट्ठी में, जयन्त विष्णु नार्लीकर के जयोतिष के बारे में विचारों की चर्चा है।
२००७ में रामनाथ गोयनका पुरस्कार के दौरान, जाते समय, जब जवाब सुनने के रोकने पर, वहीं फर्श पर जवाब सुनते और उसका जवाब देते हुऐ अब्दुल कलाम। |
हमारे ग्यारवें राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, मिसाइल मैन के नाम से जाने जाते थे। राष्ट्रपति पद पर, उनके नामंकन करने से पहले से , संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन ने, इसके लिये दिन और शुभ मुहूर्त पूछा। इस पर उनका जवाब था कि,
'पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है इससे हमें दिन-रात मिलते हैं। पृथ्वी, सूरज के चारों तरफ परिक्रमा करती है। यह एक साल में होता है। जब तक ये दो खगोलीय (ज्योतिषीय नहीं) घटनाएं होती रहेंगी, मेरे लिये हर दिन, हर समय शुभ है। आपको जब ठीक लगे, तब नामंकन दाखिल करें।'जयन्त विष्णु नार्लीकर भी, यही बात, अलग तरह से कहते हैं। उनके अनुसार,
'मुझे लगता है कि फलज्योतिष में सबसे व्यापक अन्धविश्वास है, ग्रहों का मानवी जीवन पर परिणाम होता हे, यह विश्वास इतना गहरा पैठ चुका है कि लोग इस बात को पूरी अनदेखी कर देते हैं कि न तो इसका कोई वैज्ञानिक आधार है और न ही यह वैज्ञानिक कसौटियों पर खरा उतरता है।'वे कहते हैं कि इसी कारण
'कुंडली के मेल खाए बिना विवाह नहीं, पितृ पक्ष में कुछ नया नहीं खरीदना, अमावस्या के दिन सर्जरी को टालना, ग्रहों की स्थिति के अनुसार दिन चुनकर मंत्रियों का शपथविधि करना, यात्रा पर जाने से पहले किसी दूसरे के घर से प्रस्थान करना आदि अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं।'आज की यूवा पीढ़ी के बारे में वे दुखी लगते हैं,
'आज की युवा पीढी तो हमारी युवा पीढी से कहीं अधिक अन्धश्रध्दालु जान पड़ती है क्योंकि उसके जीवन में तनाव और स्पर्धा बहुत है।'हांलाकि वे अपने प्राचीन ज्ञान को स्वीकारते हैं लेकिन आज कल उस पर हो रहे ढोंग से दुखी हैं। वे कहते हैं कि,
'भारत के पास प्राचीन साधु-सन्तों की सीख, उनके तत्वज्ञान आदि की सामृध्द धरोहर है, लेकिन आजकल दिखाई देने वाले अनेकों उदाहरण ढोंगी बाबाओं के है। वे जादूगरों जैसी हाथ की सफाई का उपयोग करके चमत्कार दिखाते है। अपने दिव्यत्व का खुद ही ढिंढोरा पीटने वाले सैकड़ों लोग पकड़े गए हैं, लेकिन फिर भी चालाकी से पैसे कमाने वालों की संख्या कम नही हैं।'ज्योतिष विज्ञान नहीं है। यह एक मिथ्या है। कुछ समय पहले मैंने एक श्रंखला 'ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके' नाम से इसी चिट्ठे पर लिखी थी। इसकी आखरी कड़ी यहां है, जहां से आप इसके पहली कड़ियों पर जा सकते हैं। इसमें आयी कई टिप्पणियां, हमारे अन्धविश्वास को दर्शाती हैं।
बाद में, इन कड़ियों को संजो कर, अपने लेख चिट्ठे पर, इसी नाम से प्रकाशित की। इस पर आयी कुछ टिप्पणियां, इतनी निम्न स्तर की थीं कि मैं उन्हे प्रकाशित नहीं कर सका।
इन सब के बावजूद, ज्योतिष पर विश्वास बढ़ता ही जा रहा है। शायद आने वाले समय में, हम कुछ सीख सकें और इससे उबर सकें।
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Sir
ReplyDeleteThen why we teaches these in our University. I know BHU has a department of Jyotish
अच्छा सवाल है। शायद यह इस लिये कि बहुत से लोग इस अन्धविश्वास को मानते हैं।
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