इस चिट्ठी में रज्जू भैया के जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं की चर्चा है।
२१ सितंबर १९९५ में गणेश जी की मूर्तियों के दूध पीने की घटना के बाद, कुछ पेपरों में छपी घटना का जिक्र |
रज्जू भैया, जैसा मैंने जाना
भूमिका।। रज्जू भैया का परिवार।। रज्जू भैया की शिक्षा और संघ की तरफ झुकाव।। रज्जू भैया - बचपन की यादें।। सन्ट्रेल इंडिया लॉन टेनिस चैम्पियनशिप और टॉप स्पिन।। आपातकाल के 'निकोलस बेकर'।। भगवान इतने कठोर कि दूध पीने लगें।।।कई साल पहले, मेरा कुत्ते को लाइलाज बीमारी हो गयी थी। उसे दर्द था, जिसे मैं दूर नहीं कर पा रहा था। इस लिये, मैंने उसे हमेशा के लिये सुलाने का निश्चय किया। इस बात से, मैं बहुत दुखी था। रज्जू भैया बोले,
'शोक मत करो। यह उसके लिए सबसे अच्छा था। जीवन दूसरों को देने के लिए है न कि दूसरों से लेने के लिए। आत्म-दया कोई गुण नहीं है। वह पुनर्जन्म ले कर वापस आयेगा।'
वे अपने बारे में कम, दूसरे के बारे में, उनकी मुश्किलों के बारे में, ज्यादा सोचते थे। एक बार उनकी ट्रेन देर रात पर आयी। उन्होंने रात को किसी को परेशान करने के बजाय, स्टेशन पर रात बितायी। अगले दिन, सूरज निकलने के बाद, घर आये।
उनका स्वभाव वैज्ञानिक था। उनके छात्र, उन्हें, उनकी स्पष्ट अवधारणा और विषय की समझ के लिए याद करते हैं। वे न तो ज्योतिष पर विश्वास करते थे, न ही अंधविश्वास उन्हें छू भी गया था।
१९९० के दशक में, २१ सितंबर, १९९५ में, एक अफवाह उड़ी कि 'गणेशजी' की मूर्तियां दूध पी रही हैं। उस दिन रज्जू भैया इलाहाबाद में थे और हमारे साथ रुके थे। कई लोगों ने आकर, उन्हें इस बारे में बताया और पूछा कि क्या यह अलौकिक है, क्या भगवान हमसे कुछ कहना चाहते हैं। वे सोचते थे कि रज्जू भैया इसमें हामी भरेंगे। लेकिन उन्होंने कहा कि,
'मैं नहीं मानता कि जिस देश में कड़ोरों बच्चे, दूध की एक बूंद पिए बिना सो जाते हों, वहां के भगवान इतने कठोर हों कि दूध पीने लग जायें।'
इसके बाद, उन्होंने इसका कारण भी बताया कि यह सतह तनाव के कारण हो रहे कैपलेरी ऐक्शन का कमाल है। उन्होंने अपनी वैज्ञानिक सोच के ऊपर किसी अन्य बात को नहीं हावी होेने दिया।
अगली बार, उनकी कुछ और यादों की चर्चा करेंगे।
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thanks for shearing
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