Saturday, April 29, 2006

१४. ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर: महत्व

पिछली पोस्ट: ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - परिवर्णी शब्द ( acronym)


१- बौद्धिक सम्पदा अधिकार: जब कोई व्यक्ति मालिकाना सॉफ्टवेयर पर काम करता है तो वह मालिकाना सॉफ्टवेयर के बौद्धिक संपदा अधिकारों को बढ़ाता करता है, पर जब वह ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर पर काम करता है तब वह अपने बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को बढ़ाता है, या कम से कम किसी और के नहीं। वह अपने बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को बढ़ा रहा है या किसी के भी नहीं बढ़ा रहा है, यह उस ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर की लाईसेंस की शर्तों के ऊपर निर्भर करता है। हमारा देश दुनिया के सारे देशों में सॉफ्टवेयर के मामले में आगे हैं और यह विचारणीय प्रश्न है कि किसके बौद्धिक सम्पदा अधिकारो को मजबूत किया जाना चाहिये।

 २- बौद्धिक सम्पदा अधिकार के साथ रिश्ता: ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर की सबसे महत्वपूर्ण बात इनका बौद्धिक सम्पदा अधिकार के साथ रिश्ता है। इसको लिखने वाले इसके प्रयोग और  संशोधन करने में कोई भी बौद्धिक संपदा अधिकार का दावा नहीं करते हैं यह बात इस तरह से स्पष्ट है कि इसे लिखने वाले स्वयं कहते हैं कि जो चाहे तो इसका प्रयोग कर सकता है, वितरित कर सकता है तथा संशोधित कर सकता है। यह सच है कि इस शताब्दी में लड़ाईयां पानी तथा तेल पर होंगी पर बहुत सी लड़ाईयां बौद्धिक संपदा अधिकारों को लेकर होंगी। ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर का प्रयोग करने से बौद्धिक संपदा अधिकार के झगडों से बचा जा सकता है।

३- प्रयोग या संशोधन करने में कॉपीराइट का कोई अतिक्रमण नहीं: ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर  को प्रयोग या संशोधन करने में हमेशा छूट रहती है। इसलिये उसका प्रयोग करने से या संशोधन करने से किसी के भी कॉपीराइट का अतिक्रमण नहीं होता है। अक्सर जब आप किसी के मालिकाना सॉफ्टवेयर का बिना पैसा दिये का प्रयोग करते हैं या एक कॉपी लेकर एक से अधिक कंप्यूटर में प्रयोग करते हैं तो आप उसके कॉपीराइट  का उल्लंघन करते हैं।  यह कानूनी तौर पर गलत है इस कारण आप  जेल भी जा सकते हैं और हर्जाना देना पड़ सकता है। यदि ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर के प्रयोग अथवा संशोधन करने में कभी भी कानून का भी उल्लंघन नहीं होता है। इसका प्रयोग एवं संशोधन बिना किसी अपराध भावना के किया जा सकता है। हां जिन शर्तो के अन्दर यह प्रकाशित किया गया है उसका उल्लंधन करने पर अवश्य कॉपीराइट का अतिक्रमण होता है।

 ४- व्यय में कमी: ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर के लिये कोई भी रॉयल्टी नहीं ली जा सकती है। इसलिये इसका प्रयोग करने से हमेशा खर्च कम होता है। यदि कोई योजना शुरू की जाय तो ओपेन सोर्स सोर्स सौफ्टवेर प्रयोग करने से उसका खर्च हमेशा कम रहेगा।

५- सॉफ्टवेयर के दाम में कमी: चूंकि ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर के लिये कोई भी रॉयल्टी नहीं ली जा सकती है तथा इसके प्रयोग करने से खर्च कम होता है इसलिये बहुत से मालिकाना सॉफ्टवेयर के मालिकों ने भी अपने दाम कम किये हैं।

६- मनपसंद किया जा सकता है: ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर को हमेशा संशो‍धित किया जा सकता है इसलिये आप इसे हमेंशा मनपसन्द बना सकते हैं। यह मालिकाना सॉफ्टवेयर में तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि मालिकाना सॉफ्टवेयर का मालिक स्वयं न चाहे। ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर को आप जिस भाषा में चाहे उसमें प्रयोग कर सकते हैं। हमारे देश की बहुत कम जनसंख्या अंग्रेजी जानती है। ज्यादातर लोग मार्तभाषा का प्रयोग करते हैं यदि हम लोगों को मार्तभाषा में कंप्यूटर दे सके तो सूचना प्रौद्योगिकी को जन-जन तक ले जाया जा सकता हैं और यह सूचना प्रौद्योगिकी को तेजी से ऊंचाई तक ले जाने में हमारी सहायक हो सकती है। इसी लिये इस समय कई मालिकाना सॉफ्टवेयरों ने भी हिन्दीमय होने का फैसला किया है।

७- वायरस नहीं: वायरस एक तरह का कंप्यूटर प्रोग्राम होता है जो कि दूसरे कंप्यूटर या कंप्यूटर के डाटा को प्रभावित करता है। ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर में भी वायरस हो सकता है परन्तु यह मालिकाना सॉफ्टवेयर के मुकाबिले नगण्य है। कंप्यूटर वैज्ञनिकों के अनुसार चूंकि ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर खुला है इसलिये ज्यादा स्थायी है परन्तु मैं इसके बारे में इससे अधिक कहना ठीक नहीं समझता क्योंकि यह तकनीक का विषय है और कं‍प्यूटर तकनीक से सम्बन्धित लोग इस बारे में ज्यादा अच्छा बता सकते हैं। 

लिनूस टोरवालडस तथा बिल गेटस सूचना प्रौद्योगिकी के दो दिग्गज हैं अगली बार हम लोग इस सम्बन्ध में इन दोनो के विचारों से आबरू होंगे।


Friday, April 28, 2006

तीन बार तौलो भारी गेंद टटोलो

पहेली की तरफ से यह पहेली पोस्ट की गयी थी
तीन बार तौलो भारी गेंद टटोलो: पहेली-4

आपके पास एक जैसे दिखने वाली 12 गेंदें हैं,
जिनमें से एक का वजन बाकी से ज्यादा है।
आपके पास एक तराजु भी है।
अब तीन बार तौल कर आप उस अलग गेंद को कैसे पता करेंगे?

मैं इस पर कुछ टिप्पणी करना चाहता था पर यह पोस्ट मिली ही नहीं लगता है कि वर्ड-प्रेस को ब्लौगर की बीमारी लग गयी| मैने सोचा कि जो टिप्पणी करनी थी वह मैं पोस्ट करके लिख दूं तो वह यह रही|

तराजू से तौल कर अलग गेंद को निकालने के कई रूप हैं| सबके अपने अपने स्तर हैं| उपर लिखी पहेली इसका सबसे आसान रूप है तथा इसका हल कई तरह से निकाला जा सकता है| इस पहेली का कुछ कठिन रूप इस प्रकार है| इसमें एक शर्त को छोड़ कर सब शर्तें वही हैं अलग गेंद हो सकता है कि बाकी गेंदों से भारी हो या हल्की| यानि कि पहेली बदल कर इस प्रकार से है

आपके पास एक जैसे दिखने वाली 12 गेंदें हैं,
जिनमें से एक का वजन बाकी से कम या ज्यादा है।
आपके पास एक तराजु भी है।
अब तीन बार तौल कर आप उस अलग गेंद को कैसे पता करेंगे?

आप पहले जैसा पहेली ने पहेली-४ के रूप में प्रकाशित किया था वैसे इसे हल करें फिर मैने जैसे उसकी एक शर्त बदल कर रखा है वह कोशिश करें|

Thursday, April 27, 2006

उर्मिला की कहानी - अदालत का फैसला

मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट में बताया था कि उर्मिला और ईकबाल मेरे विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं तथा मुन्ने की मां उर्मिला की फोटो को लेकर गुस्सा हो गयी थी| और इसके बाद उर्मिला की कहानी- मुकदमे की दास्तान पोस्ट में उसके साथ गैंग-रेप तथा उसके पती के द्वारा चलाये गये सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे के बारे में बताया था देखते हैं कि आदालत ने इस मुकदमे में क्या किया|

सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे आज कल पारवारिक अदालतों मे चलते हैं इनमे फैमिली कांउन्सलर होते हैं जो कि महिलायें ही होती हैं इन फैमिली कांउन्सलर ने उर्मिला से बात की और अपनी रिपोर्ट में कहा कि,
  • उर्मिला ज्यादातर समय रोती रही;
  • सारी बात नही बताना चाहती थी; और
  • वह झूठ बोल रही है|
निचली आदालत ने फैमिली कांउन्सलर की बात मान कर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया| तब वह ईकबाल के पास पंहुची| ईकबाल ने हाई कोर्ट में अपील करके उसे जितवा दिया|

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात पर विश्वास नही किया जा सकता कि उर्मिला किसी पुरुष मित्र के साथ बच्चा गिरवाने गयी थी, क्योंकि,
  • उर्मिला के किसी भी पुरुष मित्र का नाम भी किसी ने नहीं बताया;
  • किसी ने भी उर्मिला को पुरुष मित्र के साथ जाते देखने की बात नहीं कही;
  • इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उर्मिला का चरित्र खराब है बलकि उसके अच्छे चरित्र की गवाही है (यह बात तो उर्मिला के ससुर ने गवाही में माना था);
  • उर्मिला की शादी हो चुकी थी वह पती के साथ रह चुकी थी जो समय उसने अपने पती के साथ बिताया था उसके कारण वह गर्भवती हो सकती थी| उसको बच्चा गिरवाने का कोई कारण नही था|

हाई कोर्ट ने फैमिली कांउन्सलर की रिपोर्ट खारिज करते हुऐ कहा कि,
  • जिस महिला के साथ ऐसी बुरी दुर्घटना हुई हो उसके लिये वह सब बयान कर पाना मुशकिल है;
  • ऐसे मौके की याद ही किसी को दहला सकती है;
  • कोई भी महिला ऐसी बात को बताते समय सुसंगत नही रह सकती; और
  • ऐसी महिला के लिये उस बात के बारे में पूछे जाने पर रोना स्वाभाविक है|

हाई कोर्ट ने उर्मिला की अपील मंजूर की तथा उसके पति के सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे को यह कहते हुऐ खारिज किया कि,
  • ऐसे मौके पर पती को पत्नी के हालात समझने चाहिये; तथा
  • उसे सहारा देना चाहिये न कि तिरस्कारना|
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बहाल रखा|

हाई कोर्ट ने उर्मिला की अपील मंजूर करते हुऐ उसे जीवन भत्ते के लिये पैसे भी दिलवाये पर यह नहीं मालुम कि उर्मिला ने पैसे लिये कि नहीं क्योंकि इस सब के कुछ महीनो के बाद उर्मिला तथा उसका परिवार शहर छोड़ कर मालुम नहीं कहां चला गया| न मुझे न ही ईकबाल को कुछ भी उसके बारे में पता है|

'क्या उर्मिला को बिलकुल कुछ याद नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ'
मुन्ने की मां ने पूंछा|
'सब याद था, मुन्ने की मां, सब, वह शहर छोड़ने के एक दिन पहले ईकबाल के पास गयी थी और ईकबाल को उस रात की सच्चाई बतायी| पर यह नहीं बताया था कि वह अगले दिन शहर छोड़ कर जा रही है|'
मैने कहा|

उर्मिला ने शहर छोड़ने से पहिले ईकबाल को उस रात के बारे में क्या बताया था - यह अगली बार।

उर्मिला की कहानी
मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया।। मुकदमे की दास्तान।। अदालत का फैसला।। घटना की सच्चाई

Wednesday, April 26, 2006

१३. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर: परिवर्णी शब्द ( acronym)

पिछली पोस्ट: लोकप्रिय ओपेन सोर्स सौफ्टवेर| मैने पिछली पोस्ट पर यह भी जिक्र किया था कि मैं कभी इस बारे में बात करना चाहूंगा कि अच्छे या आसान सौफ्टवेर क्यों नहीं लोकप्रिय हो पाते कुछ साधारण और निम्न स्तर के सौफ्टवेर लोकप्रिय हो जाते हैं इसकी वृस्तित चर्चा तो फिर कभी करेंगे पर कुछ जानकारी यहां पर है|

जब हम लोग ओपेन सोर्स सौफ्टवेर की बात कर रहे हैं तो उन तीन परिवर्णी शब्द ( acronym) की बात कर ली जाय जो इस सम्बन्ध में प्रयोग किये जाते हैं
  • FOSS
  • FLOSS
  • LAMP

FOSS/ FLOSS
फ्री सौफ्टवेर, ओपेन सोर्स सौफ्टवेर है पर हर ओपेन सोर्स सौफ्टवेर, फ्री सौफ्टवेर नहीं है| फ्री सौफ्टवेर के लिये उसे जी.पी.एल. लाइसेंस के अन्दर प्रकाशित होना होगा पर ओपेन सोर्स सौफ्टवेर कई अन्य तरह के लाइसेंस के अन्दर भी प्रकाशित हो सकता है दोनों में अन्तर तो है पर सम्बन्ध भी गहरा है फ्री सौफ्टवेर से ही यह सब शुरू हुआ है इसलिये ऐसे सौफ्टवेर को Free Open Source Software या छोटे में FOSS कहा जाता है

यहां फ्री शब्द का अर्थ स्वतंत्रता से है पर फ्री शब्द का अर्थ बिना पैसे के भी होता है इसलिये फ्री शब्द का प्रयोग कुछ चक्कर में डाल देता है| फ्रेंच भाषा में दो अलग-अलग शब्द हैं
  • Gratis जिसका अर्थ बिना पैसे के होता है
  • Libre जिसका अर्थ स्वतंत्रता से होता है
इसलिये लोग अक्सर Free/Libre Open Source Software या FLOSS का प्रयोग करते हैं

LAMP
ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के चार मुख्य स्तम्भ हैं:
  • Linux
  • Appache
  • MySQL
  • Python, Perl, PHP इत्यादि

लिनेक्स तथा एपैचे के बारे में पहिले चर्चा हो चुकी है| MySQL एक डटा-बेस प्रबंध करने का प्रोग्राम है| Python, Perl, PHP इत्यादि स्क्रिप्टिंग तथा प्रोग्राम लिखने की कमप्यूटर भाषायें हैं इन्हीं के पहले अक्षर को छोटा कर के LAMP शब‍द बना है| आने वाला कल हो सकता है कि इसी LAMP से उज्जवलित हो इसलिये ओपेन सोर्स सौफ्टवेर को किनारा न कीजिये, ध्यान में रखिये|

अगली बार – ओपेन सोर्स सौफटवेयर के महत्व के बारे में चर्चा करेगें|

बड़ी गड़बड़ हो गयी

हिन्दी में चिठ्ठी लिखते लिखते लगता है कि मेरी मति मारी गयी| मालुम नहीं क्या सोच कर, मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट पर रमन जी की टिप्पणी उसे दिख दी फिर उसने बिना बताये अपना जवाब लिख दिया उस पर संजय जी ने उसे शाबासी दे दी| फिर क्या था उसने अपना चिठ्ठा 'मुन्ने के बापू' के नाम से शुरू कर दिया| मेरी तो शामत आयी ही आयी, पर यदि मै उसे इन २८ सालों में जान पाया तो पुरुष जगत की खैर नहीं| जी हां हमारी शादी को २८ साल हो गये हैं झेला तो मैंने ही है| जब तक मुन्नी थी तो वह मेरी तरफदारी करती थी पर जब से वह विदेश पढ़ने (शोध कार्य) करने चली गयी तब से मुन्ने की मां और मुन्ना एक तरफ हो गये|

लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी| हिन्दी में चिठ्ठी लिखते लिखते लगता है कि मेरी मति मारी गयी| मालुम नहीं क्या सोच कर, मैने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट पर रमन जी की टिप्पणी उसे दिख दी फिर उसने बिना बताये अपना जवाब लिख दिया उस पर संजय जी ने उसे शाबासी दे दी| फिर क्या था उसने अपना चिठ्ठा 'मुन्ने के बापू' के नाम से शुरू कर दिया| मेरी तो शामत आयी ही आयी, पर यदि मै उसे इन २८ सालों में जान पाया तो पुरुष जगत की खैर नहीं| जी हां हमारी शादी को २८ साल हो गये हैं झेला तो मैंने ही है| जब तक मुन्नी थी तो वह मेरी तरफदारी करती थी पर जब से वह विदेश पढ़ने (शोध कार्य) करने चली गयी तब से मुन्ने की मां और मुन्ना एक तरफ हो गये|

लगता है 'पुरुषों को बचाओ' संगठन बनाना पड़ेगा या इस नाम का चिठ्ठा बिना उसे बताये अज्ञात की तरफ से शुरू करना पड़ेगा| और उसमें २८ साल के सारे अनुभव तभी आपको असली सच्चाई पता चलेगी|

Sunday, April 23, 2006

उर्मिला की कहानी - मुकदमे की दास्तान

मैंने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया की पोस्ट पर बताया था कि उर्मिला और ईकबाल मेरे विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं तथा मुन्ने की मां उर्मिला की फोटो को लेकर गुस्सा हो गयी थी और उसके पते के बारे में पूछने लग गयी| अब पढ़िये कि ईकबाल जो कि अब वकील है उसने उर्मिला के बारे में क्या बताया|

उर्मिला पढ़ने में तेज, स्वभाव में अच्छी वा जीवन्त लड़की थी| पढ़ाई के बाद उसकी शादी एक आर्मी औफिसर से हो गयी| शादी के समय, वह बौर्डर पर तैनात था| शादी के बाद कुछ दिन रुक कर वापस चला गया| एक दो बार वह और कुछ दिनो के लिये आया और फिर वापस चला गया| वह उससे कहता था कि उसकी तैनाती ऐसी जगह होने वाली है जहां वह अपने परिवार को रख सकता है तब वह उसे अपने साथ ले जायगा| जब उर्मिला का पती रहता था तो वह ससुराल में रहती पर बाकी समय ससुराल और मायके के दोनो जगह रहती| उर्मिला की नन्द तथा नन्दोई भी उसी शहर में रहते थे जहां उसका मायका था इसलिये वह जब मायके में आती तो वह उनके घर भी जाती थी|

एक दिन उर्मिला बज़ार गयी तो रात तक वापस नही आयी| उसके पिता परेशान हो गये उसके ससुराल वालों से पूछा, नन्दोई से पूछा, सहेलियों से पूछा - पर कोई पता नहीं चला| पिता ने हारकर पुलिस में रिपोर्ट भी की| वह अगले दिन पोस्ट औफिस के पास लगभग बेहोशी कि हालत में पड़ी मिली| उसके साथ जरूर कुछ गलत कार्य हुआ था| उसका पति भी आया वह कुछ दिन उसके पास रहने के लिये गयी और वह उर्मिला को मायके छोड़ कर वापस ड्यूटी पर चला गया| उर्मिला फिर कभी भी अपने ससुराल वापस नहीं जा पायी|

कुछ महीनो के बाद उर्मिला पास उसके पती की तरफ से शादी के सम्बन्ध विच्छेद की नोटिस आयी| उसमे लिखा था कि,
  • उर्मिल अपने पुरुष मित्र (पर कोई नाम नहीं) के साथ बच्चा गिरवाने गयी थी;
  • उसके पुरुष मित्र ने उसे धोका दिया तथा उसके साथ गैंग-रेप हुआ है;
  • ऐसी पत्नी के साथ, न तो बाहर किसी पार्टी में (जो कि आर्मी औफिसर के जीवन में अकसर होती हैं) जाया जा सकता है, न ही समाज में रहा जा सकता है;
इसलिये दोनो के बीच सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाय|

उर्मिला का कहना था कि,
  • वह बाज़ार गयी थी वंहा उसके नन्दोई मिल गये;
  • नन्दोई के यह कहने पर कि उर्मिला पति का फोन उससे बात करने के लिये आया था तथा फिर अयेगा और वे उससे बात करना चाहते हैं वह उनके साथ घर चली गयी क्योंकि उसके घर का फोन कुछ दिन से खराब चल रहा था ;
  • नन्दोई के यहां चाय पीने के बाद उसकी तबियत खराब हो गयी| जब उठी तो उसने अपने आप को रेलवे लाईन के पास पाया;
  • उसे कुछ याद नहीं कि उसके साथ क्या हुआ|
वह अपने पति से प्रेम करती है सम्बन्ध विच्छेद न किया जाय|

अगली बार देखेंगे कि अदालत इस मुकदमे में क्या फैसला सुनाती है|


उर्मिला की कहानी
मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया।। मुकदमे की दास्तान।। अदालत का फैसला।। घटना की सच्चाई

Saturday, April 22, 2006

१२. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – लोकप्रिय

पिछली पोस्ट: ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - क्या है

चलिये कुछ लोकप्रिय ओपेन सोर्स साफटवेयर के बारे में भी बात करें|

१. आपरेटिंग सिस्टम वह साफटवेयर होता है जो किसी कमप्यूटर के हार्डवेयर में समंव्य लाता है तथा कमप्यूटर को चलाता है मुख्यत: तीन तरह के आपरेटिंग सिस्टम हैं
  • विन्डोज़ की तरह के: यह दुनियां में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है
  • यूनिक्स की तरह के: इसमें कई तरह के आपरेटिंग सिस्टम हैं इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय लिनेक्स (Linux) है| इसका ग्राफिकल इन्टरफेस विन्डोज़ की तरह का है परन्तु दोनों में तकनीक की भिन्नता है| मैं खुद लिनेक्स के कमप्यूटर पर काम करता हूं और मैं नहीं समझता कि इसमें काम करने में विन्डोज़ से ज्यादा मुश्किल होती है| पहले मैंने इसी सिरीज़ के लेखों में लिनेक्स के इतिहास तथा इसके बारे में चल रहे मुकदमें के बारे में बताने के लिये कहा था पर शायद इसे अलग से बताना ही ठीक रहेगा यह सिरीस बहुत लम्बी हो रही है| लिनेक्स के बारे में अलग से ही बात करना ही ठीक रहेगा|
  • मैक/ औ.एस. की तरह के: परसनल कम‍प्यूटर की शुरूआत इन्हीं से हुई थी तथा चलाने में यह सबसे आसान हैं| अपने देश में तो नहीं, पर बाहर के देशों में ज्यादा लोकप्रिय है| बरक्ले यूनिक्स, यूनिक्स का ही रूप है| मैक सिस्टम में बरक्ले यूनिक्स का काफी योगदान है|
ओ.एस.-२, आई.बी.एम. के द्वारा निकाला हुआ आपरेटिंग सिस्टम था पर अब यह नही चल रहा है| यह भी अपने में विचारणीय प्रश्न है कि ओ.एस.-२ बहुत अच्छा आपरेटिंग सिस्टम होने के बाद क्यों नही चला तथा मैक भी इतना आसान आपरेटिंग सिस्टम होने के बाद भी विन्डोज़ की तरह क्यों नहीं लोकप्रिय है - पर यह सब फिर क्भी - अभी केवल इतना कि यूनिक्स के अधिकतर रूप ओपेन सोर्स साफटवेयर हैं| लिनेक्स ओपेन सोर्स साफटवेयर है और जी.पी.एल. के अन्दर प्रकाशित है|

२. फायरफोक्स(Firefox), थन्डरबर्ड(Thunderbird) तथा सनबर्ड (Sunbird) मौज़िला फाउन्डेशन के साफटवेयर हैं | यह मौज़िला प्बलिक लाईसेंस के अन्दर प्रकाशित है| यह लिनेक्स तथा विन्डोज़ दोनों पर चलते हैं फायरफौक्स, इन्टरनेट एक्सप्लोरर की तरह वेब ब्राउजर है, थन्डरबर्ड, आउटलुक एक्सप्रेस की तरह ई-मेल भेजने व पाने के लिये साफटवेयर है सनबर्ड, माइक्रोसौफ्ट आउटलुक की तरह को ई-मैनेजर है|

३. जिम्प (GIMP) यह फोटो ठीक करने का फोटोशौप की तरह का सौफटवेयर है| यह जी.पी.एल. के अन्दर प्रकाशित है| यह लिनेक्स एवं विन्डोज़ दोनों पर चलता है|

४. ओपेन आफिस डाट ओर्ग (OpenOffice.Org) - यह एल.गी.पी.एल. के अन्दर प्रकाशित है| यह माइक्रोसौफ्ट औफिस की तरह का साफटवेयर है तथा आफिस में कार्य आने वाले सारे कार्य कर सकता है| यह विन्डोज़ तथा लिनेक्स दोनों पर चलता है| यह माइक्रोसॉफ्ट औफिस में बनाये गये अलग-अलग तरह के फौरमेट (Format) के दस्तावेजों, प्रस्‍तुतीकरण को खोल सकता है तथा उसी फौरमेट में सुरक्षित कर सकता है

५. ऐपाचे (Apache): यह वेब सरवर के लिये सबसे ज्यादा लोकप्रिय साफटवेयर है|

यदि आप विन्डोज़ में काम करते हैं तथा लिनेक्स पर जाने की बात सोचते हैं तो आप ओपेन आफिस डाट और्ग, फायरफौक्स, थन्डरबर्ड,सनबर्ड और जिम्प पर काम करके देखें|

अगली बार – ओपेन सोर्स साफटवेयर से सम्बन्धित कुछ परिवर्णी शब‍द ( acronym)|

Friday, April 21, 2006

मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया

मैने पिछली बार कहा था कि मुन्ने की मां हमेशा नही हंसती है कभी कभी गुस्सा हो जाती है आज ऐसे ही एक दिन के बारे में।

एक दिन औफिस से घर पहुंचा तो महौल कुछ तना, तना सा लगा। मुन्ने की मां चाय बड़े बेमन से रख कर चली गयी मैने चुप रहने में ही खैर समझी। चाय चुपचाप पी, फिर नहाने चला गया। नहाया, कपड़े बदले और कमप्यूटर पर। थोड़ी देर बाद लगा कि पीछे से कोई घूर रहा है - आज तो शामत है। मैने चुप रहने मे ही भलायी समझी।


इतने में मुन्ने की मां की तन्नाई हुई अवाज़ सुनायी पड़ी, 'यह क्या है'।

मैंने तिरछी नज़र से देखा: कुछ पिकनिक की फोटो थीं। मैने कहा कि मुन्ना से पूछो कहीं पिकनिक पर गये होंगे वंही की फोटो होंगी।
'यह ब्लैक एन्ड वाईट हैं और आजकल रंगीन फोटो होती हैं और न तो मुन्ना दिखायी पड़ रहा है न ही उसके कोई दोस्त। फिर यह फोटो तुम्हारे बक्से में क्या कर रहीं थी।'
लगा कि जैसे कोई गुर्रा रहा हो। अब तो ठीक से देखना लाजमी हो गया।

देखा तो कई पुरानी यादें ताजी हो गयी। विश्यविद्यालय के समय में हम लोग पिकनिक में गये थे तभी की फोटो थीं मैं कुछ भावुक हो कर उसे पिकनिक के बारें में बताने लगा। इकबाल, जो अब वकील हो गया है; अनूप जो बड़ा सरकारी अफसर हो गया; दिनेश जो कि जाना माना वैज्ञानिक है।

'मुझे इन सब में कोई दिलच्सपी नहीं है पर यह लड़की कौन जिसकी तुमने इतनी फोटूवें खींच रखी हैं और क्यों इतना सहेज कर रखे हो, आज तक बताया क्यों नही'
मुझे एक पतली सी चीखती हुई आवाज़ सुनायी पड़ी। सारा गुस्सा समझ में आ गया।


यह लड़की उर्मिला थी। वह हम लोगों के साथ पढ़ती थी, अच्छा स्वभाव था, बुद्धिमान भी थी। वह सब लड़कों से बात करती थी और अक्सर क्लास में, बेन्च खाली रहने के बावजूद भी, लड़कों के साथ बेन्च में बैठ जाती थी। वह इस बात का ख्याल रखती थी कि वह सबसे बात करे तथा सब के साथ बैठे। हम सब उसे पसन्द करते थे। पर वह हम से किसी को खास पसन्द करती हो ऐसा उसने किसी को पता नही लगने दिया।

'कहां रहती है' फिर वही तन्नाती हुई आवाज़।
'विश्वविद्यालय में साथ पढ़ती थी। मुझे मालुम नहीं कि वह आजकल कहां है, शायद नहीं रही।'
'तुम्हे कैसे मालुम कि वह नही रही'
'विश्वविद्यालय के बाद वह मुझसे कभी नही मिली पर इकबाल से मुकदमे के सिलसिले में मिली थी। उसी ने बताया था।'

इकबाल मेरा विश्वविद्यालय का दोस्त है और इस समय वकील है उसके बारे में फिर कभी - पर अभी केवल इतना कि मुन्ने की मां उसकी बात का विश्वास करती है।

'इकबाल भाई उर्मिला के बारे मे क्या बता रहे थे'
आवाज से लगा कि उसका गुस्सा कुछ कम हो चला था - उर्मिला की कहानी अगली बार।


उर्मिला की कहानी
मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया।। मुकदमे की दास्तान।। अदालत का फैसला।। घटना की सच्चाई

Thursday, April 20, 2006

११. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - क्या है

पिछली पोस्ट - फ्री तथा गीपीएल्ड (GPLed) सौफ्टवेर की शर्तें

यदि साफटवेयर के लिये पैसा नहीं मिलेगा तो काम कैसे चलेगा तब व्यापारी वर्ग को ऐसा लगा कि यह साफटवेयर बेकार है और उन्‍होंने इसे अपने से बहुत दूर रखा| हालांकि ऐसे साफटवेयर से भी पैसा कमाया जा सकता है लेकिन उसका तरीका कुछ अलग है परन्तु फ्री साफटवेयर पर कुछ ऐसा ठप्पा लग गया कि व्यापारी वर्ग उन दूसरे तरीकों को भी अपनाने से दूर रहने लगे| 1997 में फ्री साफटवेयर में उत्साही लोगों ने सैन-फ्रांसिस्‍को में एक मीटिंग की तथा ओपेन सोर्स ईनिशियेटिव (Open Source Initiative) (OSI) (ओ.एस.आई.) नाम की सार्वजनिक कारपोरेशन बनायी| इसमें १० मार्ग दर्शक सिद्धां‍त बनाये गये| और यदि साफटवेयर का लाइसेंस उन १० शर्तो को सन्तुष्ट करता हो तो ऐसे साफटवेयर को उन्होंने ओपेन सोर्स साफटवेयर की सज्ञा दी इन १० मार्ग दर्शक सिद्धांतो में मुख्य ३ निम्न हैं:
  • साफटवेयर का सोर्सकोड प्रकाशित होना चाहिये
  • साफटवेयर के लिये कोई भी रायल्टी नहीं ली जा सकती है
  • सोर्सकोड को संशोधित करने की सभी को स्‍वतंत्रता रहेगी

ओ.एस.आई. ने अपने मार्ग दर्शक सिद्धां‍तों के अंतर्गत तरह-तरह के लाइसेंसों का मुआयना किया और करीब ५८ लाइसेंसो के लिये कहा कि वह 10 मार्ग दर्शक सिद्धां‍तों को सन्तुष्ट करते हैं जो भी साफटवेयर इन लाइसेंसो के अंतर्गत प्रकाशित किये जाते हैं उनहे ही ओपेन सोर्स साफटवेयर कहा जाता है|

ओ.एस.आई. के द्धारा‍‍ चिन्हित लाइसेन्सों के एक छोर पर जीपीएल्ड लाइसेंस है जो किसी भी साफटवेयर को सबसे ज्यादा कापीलेफट करता है ओपेन सोर्स सौफ्टवेर लाइसेन्सों में यह सबसे लोकप्रिय भी है| दूसरे छोर पर बरकले साफटवेयर डिस्ट्रीब्यूशन (Berkeley Software Distribution) (बी.एस.डी.) है| जिसके अंतर्गत प्रकाशित किये हुये साफटवेयर को आप संशोधित कर, अपने स्वामित्व में ले सकते हैं| बाकी सारे चिन्हित किये गये लाइसेंस में इन दो किनारों के बीच में हैं तथा अलग-अलग स्तर तक साफटवेयरों को कापीलेफट करते है

केवल सोर्सकोड प्रकाशित किये जाने पर सौफटवेयर को ओपेन सोर्स सौफटवेयर नहीं कहा जा सकता जब तक कि उस साफटवेयर का लाइसेंस ओ.एस.आई. की दसों मार्ग दर्शक सिद्धांतो को भी न सन्तुष्ट करे|

(ओ.एस.आई. का लोगो)

जिन सौफटवेयर में ओ.एस.आई. का लोगो लगा होता है इसका अर्थ है कि वह ओपेन सोर्स सौफटवेयर है|

कौन कौन से लोकप्रिय ओपेन सोर्स साफटवेयर हैं इसके बारे में अगली बार बात करेंगे|

Sunday, April 16, 2006

शान्ति रहे हमेशा, उससे चिपकी

गर्मी शुरू हो गयी है। हम लोग छत पर सोने लगे। सोने से पहिले पानी का छिड़काव, बिस्तरे पर मसहरी और बगल में सुराही का पानी। नयी, नयी सुराही के पानी में भी एक भीनी भीनी सोनी सी महक है,स्वाद भी अलग है। पूरा साल इसी के इन्तज़ार में बीतता है।

चांद अभी निकला नहीं है तारे चमक रहे हैं उपर ओरायन तारा समूह दिखायी पड़ रहा है। मालूम नही क्यों इसे शिकारी (Orion the Hunter) से चिन्हित किया जाता है। इसके जो तारे आसानी से पहचाने जाते हैं वे तो तितली की तरह दिखायी पड़ते हैं।

मैं इन्ही तारों के बारे मैं सोच रहा था कि मुन्ने कि मां भी आ गयी मैने कहा कि देखो तुम्हारा वायदा भी पूरा कर दिया धर्म दास जी की अनुगूंज के लिये चिठ्ठी लिख कर पोस्ट भी कर दी अब तो खुश हो।

'अच्छा किया कई दिन से कह रहे थे। सब बातें टाईप कर दी थी न, कुछ छूटा तो नहीं।' वह बोली।

'हां जैसा उन्होने कहा वैसा ही टाइप कर दिया था। तुम्हे कोई शक है क्या?' मैने झुझंलाते हुऐ कहा।

'नहीं, नहीं मैं तो ऐसे ही कह रही थी', फिर कुछ रुक कर बोली, 'एक बात बताओ, धर्म दास जी के मुताबिक कर्म स्थल ही पूजा स्थल है। जो वहां मन लगायेगा उसके घर मे सुख शान्ति रहेगी।'

मैंने हामी भरी।

वह बोली,
'पर एक बात समझ में नहीं आयी। तुम्हारे कमप्यूटर से कोई मतलब नही, न कमप्यूटर इन्जीनियर हो, न ही कमप्यूटर प्रोग्रामर हो। आफिस में भी कमप्यूटर का कोई काम तुम्हारे पास नही है। तुम काम की जगह जब देखो कमप्यूटर पर रहते हो। तुम काम के अलावा सब करते हो। फिर भी अपने घर में इतनी सुख और शान्ति क्यों है। बगल के घरों में देखो कितना रोना-धोना, मार-पीट मची रहती है।'

बात सही थी। मेरा काम औफिस में फाईलों को इधर उधर करना है कमप्यूटर से उसका सम्बन्ध टाईपिंग के अलावा कोई नही है। मैं अपने काम में कुछ कम, कम्पयूटर पर ज्यादा ध्यान देता हूं। होली पर कामचोर की उपाधि पर मेरा कॉपीराईट है पर घर में काफी सुख, शान्ति है।

मेरी और मुन्ने की मां की कभी लड़ाई नहीं हुई। मैं मुन्ने की मां कि सब बात मान लेता हूं। मुन्ना, मुन्नी किस स्कूल में जायें, क्या करे, क्या पढ़े, घर में क्या ठीक है क्या ठीक नही है सब उसकी मुताबिक चलता है? मैं इस घर का बौस हूं क्योंकि मुन्ने की मां ने मुझे यह कहने कि अनुमति दे रखी है। घर में उसी की चलती है बगल के घरों मे शायद यह नियम नहीं है, इसीलिये अशान्ति। मैंने सोचा कि उसे बता दूं, खुश हो जायगी।

'मुन्ने की मां, मुन्ने की मां' मैने पुकारा। उधर से कोई जवाब नहीं मिला। मैंने उसकी तरफ देखा, वह सो रही थी पर लगा कि वह मुस्करा रही है।

क्या सपना देख रही होगी। जरूर शारुख खान से मिल रही होगी। शारुख खान उसके चहेते कलाकार है। उसने 'दिल वाले दुलहनियां ले जायेंगे' अनगिनत बार देखी होगी। कभी कभी तो मुझे शारुख खान से जलन होती है। चांद निकल रहा था कुछ रोशनी थी मुझे लगा कि उसकी मुस्कान कुछ बढ़ गयी।

क्या वह कोई और सपना देख रही है। कहीं वह धर्मदास जी जब मुझे अनुगूंज के लिये चिठ्ठी बोल रहे थे तब का दृश्य तो सपने मैं नही देख रही है। मुझे वह दृश्य कुछ याद पड़ रहा है। धर्मदास जी इस तरह कि एक लाईन भी लिखने को कह रहें हैं:
'मैं वह आचरण भी हूं ,
जो माने पत्नी की हर बात।'

धर्म दास जी की अनुगूंज के लिये पोस्ट हुई चिठ्ठी में यह लाईन नहीं लिखी है। मैने मुन्ने की मां कि तरफ देखा तो लगा कि उसकी मुस्कराहट कुछ और बढ़ गयी है।

धर्मदास जी ने यह लाईन बोली तो थी, पर मैने क्यों नहीं लिखी। क्या भूल गया था पर धर्म दास जी की बात कैसे भूली जा सकती है यह तो अधर्म होगा। क्या मैने इस लाईन को जान-बूझ के टाईप नहीं किया? चांद पूरा निकल आया। रोशनी काफी हो गयी है - पुर्णमासी है न आज। मैने मुन्ने की मां तरफ देखा वह निश्चित तौर पर खिल-खिला कर हंस रही है।

आपका क्या राय है क्या कोई सपने देखते हुये खिल-खिला कर हंस सकता है। जहां तक लाईन जानबूझ कर न टाईप करने की बात है उसमे तो आप तो मेरे साथ हैं न। आपको तो नही लगता कि मैने जानबूझ के वह लाईन टाईप नहीं की।

अब धर्मदास जी यदी कुछ कह देगें वह तो हमारा धर्म ही हो जायेगा - पर पत्नी की हर बात मानना, यह तो पुरषों के स्वाभिमान की बात है।

आज तो मुन्ने की मां खिल-खिला कर हंस रही है पर एक दिन वह बहुत गुस्सा हो गयी थी - वह अगली बार

Sunday, April 09, 2006

अनुगूंज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व

धर्म की पाती, अनुगूंज के नाम।
बताती है अपना धाम,
इसी के साथ अपना काम।
यही है, उन्मुक्त के जीवन का धर्म,
यही है, उन्मुक्त के जीवन में इसका महत्व।

Akshargram Anugunj

नहीं बसता मैं किसी मन्दिर या मस्जिद में,
न ही रहता हूं किसी गिरिजाघर या गुरुद्वारे में,
न ही बसता हूं किसी पूजा घर में।
यह तो है केवल अपना दिल बहलाना,
मैं तो हूं तुम्हारे आशियाना।

मैं नहीं पाया जाता पुरी, रामेश्वर में,
न ही मक्का, मदीना में,
जेरूसलम या कोई अन्य पवित्र स्थल भी नहीं है मेरे ठिकाने।
यह सब तो है लोगों के अफसाने,
तरीके दिल बहलाने के,
क्योंकि मैं तो वास करता हूं, तुम्हारे मन मानस में।

मुझे, न बता सकते हैं कोई महात्मा, योगी,
न ही कोई बाबा सांई,
न ही मेरी व्याख्या कर सके फकीर, पादरी।
यह तो सब हैं लोगों के फसाने,
तरीके खुद को फुसलाने के।

मैं नहीं सीमित गीता या रामायण में,
न ही हूं बंधा बाईबल या कुरान में।
यह तो थे अपने समय के उचित आचरण,
मैं तो हूं ऊपर इनसे।
मैं नहीं बंधता समय से,
मैं हूं स्वयं समय,
क्या करूंगा, खुद से लड़ कर।

जो परम्परा समय के साथ नहीं बदलती,
वह कहलाती रूढ़िवादिता।
मैं नहीं हूं, रूढ़िवादिता,
न ही, जकड़ा जा सकता किसी परम्परा से।
मैं नही बन्धता इनसे,
मैं तो हूं उन्मुक्त, इन बन्धनों से परे।

मैं न तो हूं राम, न ही कृष्ण,
न ही अल्लाह, न ही पैगमबर,
न ही हूं मैं ईसा मसीह,
या पूजा किये जाने वाले कोई और नाम।
यह तो हैं तरीके, लोगों को समझाने के,
मैं तो हूं ऊपर इन सबके।

नही हूं मैं दकियानूसी,
न ही हूं, अन्धी आधुनिकता।
मैं तो हूं केवल एक आचरण।

मैं नही वह आचरण, जो तोड़े दूसरों के पूजा स्थल।
मैं तो हूं वह आचरण,
जो जवानी के मदहोश दिवानो से, रात में अकेली अबला चाहे;
अभिलाशे दंगे में फंसा इन्सान, आवेश में अधें दंगाइयों से।

मैं नहीं धरोवर केवल हिन्दुवों की,
न ही केवल मुस्लिम, सिख, ईसाई की।
मैं तो हूं वह आचरण,
जो पाया जाये, सब मज़हब में।

मैं नही हूं विचारों का टकराव।
मैं तो हूं दूसरे के विचारों का समझाव।
मैं करता विचारों का आदर, समझता दूसरों का पक्ष।
मैं तो हूं अलग अलग विचारों का सगंम,
जो लाता जीवन में कभी खुशी कभी गम।

मैं हूं वह आचरण—
जो आप अपने लियें चाहें, दूसरे से;
या आप लें, अपने ईमान से।

जो मेरे मर्म को जाने,
नहीं जरूरत उसे किसी पूजा स्थल की।
न ही किसी इष्ट देव की,
शान्ति रहे हमेशा, उससे चिपकी।1

जो चले मेरे रस्ते
न भटके वह,
किसी महात्मा, फकीर के बस्ते।
क्योंकि मैं हूं हमेशा संग उसके।

जो मेरे महत्व को समझे
करे कर्म का वह सेवन,
कर्म ही पूजा, कर्म ही उसका जीवन।
उसका मन, मानस चले संग।

आओ ढूढ़ो, पहचानो मुझको,
मैं हूं खड़ा तुम्हारे अन्दर।
मैं तो हूं केवल,
जी हां, केवल
अन्त:मन से लिया गया विवेकशील आचरण।

1इसका एक पहलू अगली बार

Saturday, April 08, 2006

९. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - फ्री सौफ़टवेर: इतिहास

इस विषय में पिछली पोस्ट - कौपीलेफ्ट पर

कौपीलेफ्ट शब्द का प्रयोग होने के पहले और अब भी ऐसे सौफटवेयर के लिये फ्री शब्द प्रयोग किया जाता है|

फ्री शब्द का प्रयोग करना रिचर्ड स्टालमेन ने शुरू किया और यह आन्दोलन भी उनका ही शुरू किया गया है| वे 1980 के दशक में मैसाचुसेट इस्टिंट्यूट आफ टेक्नौलोजी में पढ़ाते थे । उनके मुताबिक पहले कम‍प्यूटर प्रोग्रामर सौफटवेयर में कापीराइट क्लेम नहीं करते थे और बहुत आसानी से एक दूसरे को अपना प्रोग्राम दे देते थे लेकिन बाद में कमप्यूटर प्रोग्रामरों ने अपना प्रोग्राम एक दूसरे को देना बन्द कर दिया और किसी और को उनके प्रोग्राम में संशोधन करने का अधिकार भी समाप्त कर दिया । स्टालमेन को लगा कि इस तरह से कम‍प्यूटर सौफटवेयर कुछ खास लोगों के पास रह जायेगा और उसका सर्वांगीण विकास नहीं हो पायेगा । इसलिये उन्‍होंने अपना इन्‍स्‍टीटयूट को छोड कर घन्यू प्रोजेक्‍ट (GNU project), फ्री सौर्स फाउण्डेशन (Free Source Foundation) के अंतर्गत शुरू किया| इसमें उस तरह के सौफटवेयर लिखने शुरु किये जो कि कौपीलेफ्टेड हों|

उन्होंने इस तरह के साफटवेयर को फ्री-सौफटवेयर का नाम दिया| यह इसलिये, क्यों कि उनके मुताबिक इसमें लोगों को कम‍प्यूटर प्रोग्राम या सौफटवेयर को संशोधन करने की स्वतंत्रता है उनका कहना है कि फ्री को ऐसे मत सोचो जैसा फ्री बीयर में है पर ऐसे देखो जैसा कि फ्रीडम आफ स्पीच में है| फ्री सौर्स फाउण्डेशन की वेबसाईट के मुताबिक, उन्ही के शब्दों में
'Free software' is a matter of liberty, not price. To understand the concept, you should think of 'free' as in 'free speech', not as in 'free beer'.


फ्री सौफ़टवेर की क्या शर्तें है तथा इसे क्यों गीपीएल्ड (GPLed) सौफ्टवेर भी कहा जाता है इसके बारे में चर्चा - अगली बार

Friday, April 07, 2006

बोरियत से बचने के लिये, उमंग क्या कर रहा है

पिछली बार यह बताने की बात हुई थी कि उमंग बोरियत से कैसे बच रहा है—यह रहा उसका तरीका|

मैं बहुत दिनो से अपने मित्र उमंग के यहां जाने की सोच रहा था| पिछले इतवार सुबह की सैर के बाद उसके यहां चाय पीने जा पहुंचा| देखा कि महाशय लौन में कुर्सी बैठे थे, मुंह से धुंआ, हांथ में पेन्सिल, सर मेज पर झुका हुआ, और मेज के ऊपर अखबार| उमंग की पत्नी बहुत चाहती है कि उमंग की सिग्रेट छूट जाये पर यह लत ऐसी लगी कि छोड़ने का नाम ही नही ले रही है इन दोनो के बीच बस यही टकरार है पर इसके अलावा सब बढ़िया|

'अच्छा तो सुबह, सुबह क्रौसवर्ड हो रहा है' मैने कहा|

'३ नहीं चलेगा, यहां ९ चलेगा|' मैने उसे बुदबुदाते सुना|

'अरे भाई क्रौसवर्ड में नम्बर कब से चलने लगे' मेरी अवाज कुछ उसका मज़ाक बनाते हुए थी|

'अरे उन्मुक्त अभी तक हिन्दी चिठ्ठेकारों को बोर करते थके नहीं, कि यहां भी चले आये| अरे घनचक्कर यह सुडोकू है न कि क्रौसवर्ड| समय काटने, दिमाग को चुस्त रखने, और बोरियत दूर करने के लिये इससे और कोई अच्छा तरीका नही' उसने कहा|

इसके पहले वह कुछ और कहता कि अन्दर से प्यारी सी आवाज आयी, 'उमुंक्त भैय्या बहुत अच्छे समय पर आये हो, आलू के परांठे बना रही हूं खा कर जाना, दही शहद के से लोगे या आम के अचार के साथ|'

'दोनो के साथ' मैने वहीं से कहा|

मुन्ने की मां को मालुम है कि मेरा उमंग के घर जाने का मतलब नाशता या खाना उसी के यहां| उमंग मेरे बचपन का दोस्त है और हम लोग साथ साथ खेले हैं| उमंग थोड़ा पढ़ाकू किस्म का है और पढ़ाई के बाद अध्यापक हो गया है| उमंग की पत्नी और मुन्ने की मां एक ही जगह से हैं हांलाकि शादी के पहिले जान पहचान नहीं थी पर उमंग की पत्नी सुलझी हुई महिला है और मुन्ने की मां की उससे अच्छी पटती है| मेरी और उमंग कि भी दोस्ती शायद इसी लिये चल रही है कि इन दोनो की पटती है| मुझे समझ मे नही आता है कि लोगों की दोस्ती बरकरार रहने के लिये पत्नियों का भी आपस मे पटना क्यों जरूरी है|

इधर उमंग चालू हो गया सुदोकू के बारे में, 'इसमें क्रौसवर्ड की तरह खाने होतें हैं पर वर्णमाला के अक्षर होने के बजाय कुछ खानों में अकं लिखे होते हैं जिन्हे givens कहा जाता है| बाकी खाने खाली होते हैं जिसमे अकं भरने होते हैं पर वह अकं न तो उस खाने की समतल लाईन, न ही खड़ी लाईन, और न ही उस ब्लौक में होना चाहिये'|

उसने बात को आगे बढ़ाते हुये कहा, 'यह खेल बहुत पुराना नहीं है सबसे पहिले १९७९ में डेल पेसिंल पज़लस एन्ड वर्ल्ड गेमस (Dell Pencil Puzzles & Word Games) नामक एक अमेरिकन पत्रिका में छपा था| इसका ईज़ाद भी वहीं हुआ'

'पर नाम तो जापनी है' मैने अपना ज्ञान बघेरा|

'हां' उसने समझाया| 'यह जपान में ज्यादा लोकप्रिय हो गया तथा वहां पहिले इसे "सूजी वा दोकुशिन नी कगिरू" (suji wa dokushin ni kagiru) कहा गया जिसका मतलब है "केवल एक ही नम्बर हो सकता है"| यह छोटा होकर सुडोकू (Sudoku)हो गया है| अब यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि इसकी विश्व प्रतियोगितायें भी होती हैं'

मैने भी कोशिश की| लगा कि अच्छी दिमागी कसरत है| करके देखिये और अपने मुन्ने और मुन्नी से भी करने को कहिये| यह रखेगा अपके दिमाग को चुस्त और ताजा|

यदी इसके बारे कुछ विस्तार में जानकारी चाहें तो अमेरिकन साईटिंस्ट का यह लेख देखें|

चलूं देखूं कौन दरवाजा खटकटा रहा है लगता है धर्मदास जी आ गये हैं| कई दिन से वे अनुगूंज के लिये चिठ्ठी लिखने को कह रहे हैं| यदि नही लिखी, तो गड़बड़ होगी| मुन्ने की अम्मा, मुझसे बात करना छोड़ देगी - अगली बार वही|

Thursday, April 06, 2006

८. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – कौपीलेफ्ट

इसी विषय पर पिछली पोस्ट थी—सौफ्टवेर कैसे सुरक्षित होता है


 कुछ लोग कॉपीराइट का वर्णन कर कंप्यूटर प्रोग्राम को सुरक्षित  इस प्रकार से  कर रहे हैं कि न तो वे स्वयं उस पर कोई भी मालिकाना हक रख रहें हैं न ही कोई और व्यक्ति उनके द्वारा बनाये गये कं‍प्यूटर प्रोग्राम पर मालिकाना अधिकार रख सकता है। उदाहरणार्थ, यदि मैं कोई कं‍प्यूटर प्रोग्राम लिखूं और उसका सोर्स कोड और ऑबजेक्ट कोड में इस तरह की घोषणा तथा शर्त लगाते हुये प्रकाशित करूं कि

  • यह मैने लिखा है; और
  • इसमें मेरा कॉपीराइट है; और
  • मैं हर व्यक्ति को इस कम‍प्यूटर प्रोग्राम (सोर्सकोड और ऑबजेक्ट कोड) की कापी करने, वितरण करने, तथा संशोधन करने का अधिकार देता हूं। इसके लिये उन्हें मुझे कोई रॉयलटी नहीं देनी होगी;
पर इसकी शर्त यह है कि,

  • यदि वह व्यक्ति कम‍प्यूटर प्रोग्राम का संशोधित करके या बिना संशोधित किये वितरित करता हैं तो उसे भी सोर्सकोड और ऑबजेक्ट कोड प्रकाशित करना होगा; और
  • अन्य लोगों को वही स्वतंत्रता देनी होगी जैसी कि मैंने उसे दी है।
अब इस घोषणा और शर्त के कारण न तो मैं स्वयं न और कोई अन्य व्यक्ति इस कं‍प्यूटर प्रोग्राम के प्रयोग करने अथवा संशोधन करने हक रख सकता है। इस तरह की घोषणा के द्वारा मैने सुनिश्चित कर दिया है कि कोई अन्य व्यक्ति भी इसका प्रयोग अथवा संशोधन बिना कॉपीराइट के उल्लंघन किये कर सकता है । साधारणतय:,  कॉपीराइट का अर्थ यह होता है कि कोई अन्य व्यक्ति उसका प्रयोग अथवा संशोधन उसके मालिक की अनुमति के  न कर सके। यहां कॉपीराइट का प्रयोग करते हुये ठीक इसका उल्टा काम हुआ। कॉपीराइट का यदि कोई उल्टा शब्द हो सकता है तो वह है कॉपीलेफ्ट। यह एक नया शब्द है और अभी तक अंग्रेजी के शब्द कोश में नहीं आया है हालांकि कंप्यूटर शब्दकोश में यह एक प्रचलित शब्द है। जिस कं‍प्यूटर प्रोग्राम के लाईसेंस में इस तरह की घोषणा और शर्त होती है उसे कॉपीलेफ्टेड सॉफ्टवेयर कहा जाता है। इस तरह का सॉफ्टवेयर फ्री सॉफ्टवेयर, भी कहलाता है। इसके बारे में - अगली बार

Wednesday, April 05, 2006

लोगों को बोर कर रहे हो

मेरी '६. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – कौपीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट' पोस्ट पर एक अज्ञात टिप्पणी के बारे में मेरी पत्नी ने कहा कि किसी ने मुझे अप्रैल फूल बनाया है। मैं कहां दबने वाला; तुरन्त उस अज्ञात व्यक्ति के लिये एक चिठ्ठा 'पल भर के कोई हमें प्यार कर ले' पोस्ट किया। एक टिप्पणी फिर आ गयी। मैने जैसे ही टिप्पणी देखी, तो आवाज दी,
'मुन्ने कि मां. देखो ने फिर से टिप्पणी आ गयी है और नाम भी है। अब तो मान गयीं, कि किसी ने मुझे अप्रैल फूल नहीं बनाया।'

'देखूं' वह किचेन से निकल रही थी और हाथ साड़ी में पोंछती हुई बोली। देखने के बाद कहा,
'मुझे जरा पुरानी टिप्पणी तो दिखाओ।'
देखने के बाद, वह कुछ शर्लौक होम्लस के अन्दाज मे बोली,
'अच्छा तो यह माज़रा है'।
'क्या माज़रा है', मैने घबराते हुए सवाल पूछा। उसने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे कह रही हो elementary my dear Watson फिर बोली
'देखो दोनो टिप्पणी एक ही है न'।
मैने कहा
'हां, तो क्या टिप्पणी तो आयी है।'

उसने मेरी बात की अनसुनी कर दी। वह कई बार मुझसे कह चुकी है कि यदि चौका चूल्हा मैं सम्भाल लू और वह काम करे तो हम लोगों की ज्यादा तथा जल्दी तरक्की हो। उसने मुझे दिखाते हुये सम्झाया कि दोनो टिप्पणी एक ही हैं और कोई अन्तर नही है। उसकी यह बात सच है उसने इसके तीन कारण बताये:
  1. तुम्हारे कमप्यूटर में कोई वायरस आ गया। यदि यह है तो बहुत अच्छा है क्योंकि कुछ दिन तक इस मुये कमप्यूटर से तो छुट्टी मिली; मुन्ने और मुझे तो समय मिलेगा।
  2. यह टिप्पणी कोई व्यक्ति न करके कोई मशीन कर रही हो।
  3. यदी पहली दोनो बात सच नहीं हैं तो तुम अवश्य लोगों को बोर कर रहे हो।
मैंने झुंझलाते हुए कहा कि
'यदी तीसरी बात सच है तो तुम कैसे कह सकती हो कि मैं लोगों को बोर कर रहा हूं'।

उसने ठन्डे स्वर में कहा,
'टिप्पणी की आखरी पंक्ति पढ़ो। तुमने हिन्दी में लिखा और वह चायनीज़ भाषा के बारे में कह रहा है। बोर कर रहे होगे, इसी लिये वह ऐसा कह रहा है।'

मुन्ने का टिफिन लगाना है कह कर चल दीं। मैने जाते जाते, उसे बुदबुदाते सुना,
'यदी मैं तुम्हे इन २५ सालों में समझ पायी हूं तो तीसरी ही बात सच होगी|'
मैं अक्सर सोचता हूं यदी उसने मुन्नी और मुन्ने का इतना अच्छा ख्याल न रखा होता या खाना इतना लाचीज़ न बनाती तो बस मैं ....श श श कहीं उसने पढ़ लिया तो।

मैने भी तीनो संभावनावों पर बारी बारी विचार करना शुरू किया,
  • मेरा कमप्यूटर लिन्कस पर है। लिनेक्स पर वायरस नहीं आते हैं पर आ तो सकते हैं। यदि आये तो इस सोते हुये कस्बे में कोई ठीक नही कर सकता है बाहर ही ले जाना पड़ेगा। चेतावनी: नारद जी यदि १५ दिन तक मेरा कोई चिठ्ठा पोस्ट न हो तो समझ जाईयेगा। कहीं से वायरस आ रहा है। संजय जी तरकश से कोई न कोई अच्छा तीर निकाल कर चलाइयेगा, ताकि और किसी को न तंग कर पाये। मैने तो अपना सारा डाटा का बैक अप ले लिया है।
  • मैने ब्लौगरस डौट कौम से पूछा है कि शब्द सत्यापित करके टिप्पणी देने वाले प्रोग्राम की क्या किसी ने काट निकाल ली है। उन्होने कहा है कि वे टेस्ट करके बतायेंगे। जैसे ही मुझे कुछ पता चलता है मैं आप तक पहुंचाता हूं
  • ह म् म् म् म् म् म् ..... यह तो बिलकुल बेकार की बात है। हर जना मुझसे कहता है कि मैं लोगों को बोर कर रहा हूं। इसका मतलब यह थोड़ी है कि यह बात सही है। मैं तो यह एक कान से सुनता हूं और दूसरे से निकाल देता हूं। पिछले इतवार को उमंग ही मुझसे यही कह रहा था। उसने तो इस बोरियत से बचने के लिये कुछ करना शुरू कर दिया है।
अब आप पूछेंगे कि उमंग ने क्या करना शुरू कर दिया है आप भी तो बोरियत से बचना चाहते होगें - यह अगली बार

Tuesday, April 04, 2006

७. ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर – सॉफ्टवेयर कैसे सुरक्षित होता है

इस विषय पर कौपीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट के बारे में पिछली पोस्ट|

१. कॉपीराइट की तरह: इस विषय की चौथी पोस्ट (४. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – सौफ्टवेर क्या है) पर चर्चा की थी कि आजकल सोर्सकोड ऊचें स्तर की कमप्यूटर भाषाओं (high level languages) में अंग्रेजी भाषा के शब्दों एवं वर्णमाला का प्रयोग करते हुये लिखा जाता है। यह उस सॉफ्टवेयर के कार्य करने के तरीके को बताता है तथा यह एक तरह का वर्णन है। यदि, इसे प्रकाशित किया जाता है तो उस सॉफ्टवेयर के मालिक या जिसने उसे लिखा है उसका कॉपीराइट होता है।

ऑबजेक्ट कोड कम्प‍यूटर को चलाता है और यह हमेशा प्रकाशित होता है, परन्तु क्या यह किसी चीज का वर्णन है अथवा नहीं इस बारे में शक था। ट्रिप्स के समझौते के अन्दर यह कहा गया कि कंप्यूटर प्रोग्राम को कॉपीराइट की तरह सुरक्षित किया जाय। इसलिये ऑबजेक्ट कोड हमारे देश में तथा संसार के अन्य देशों में इसी प्रकार से सुरक्षित किया गया है।

कंप्यूटर प्रोग्राम के ऑबजेक्ट कोड तो प्रकाशित होतें हैं पर सबके सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं। जिन कमप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित किये जाते हैं उनमें तो वे कॉपीराइट से सुरक्षित होते हैं। पर जिन कंप्यूटर प्रोग्राम के सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किये जाते हैं वे ट्रेड सीक्रेट की तरह सुरक्षित होते हैं।

२. ट्रेड सीक्रेट की तरह: मालिकाना कंप्यूटर प्रोग्राम में समान्यत: सोर्स कोड प्रकाशित नहीं नही किया जाता है तथा वे सोर्स कोड को ट्रेड सीक्रेट की तरह ही सुरक्षित करते हैं। यह भी सोचने की बात है कि वे सोर्स कोड क्यों नही प्रकाशित करते हैं?

सोर्स कोड से ऑबजेक्ट कोड कम्पाईल (compile) करना आसान है; यह हमेशा किया जाता है और इसी तरह प्रोग्राम लिखा जाता है। पर इसका उलटा यानि कि ऑबजेक्ट कोड से सोर्स कोड मालुम करना असम्भ्व तो नहीं पर बहुत मुश्किल तथा महंगा है। इस पर रिवर्स इन्जीनियरिंग का कानून भी लागू होता है। इसी लिये सोर्स कोड प्रकाशित नहीं किया जाता है। इसे गोपनीय रख कर, इसे ज्यादा आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है। रिवर्स इन्जीनियरिंग भी रोचक विषय है, इसके बारे पर फिर कभी।

३. पेटेन्ट की तरह: ‘बौधिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights)’ शीर्षक में चर्चा हुई थी कि सॉफ्टवेयर को पेटेन्ट के द्वारा भी सुरक्षित करने के भी तरीके हैं कई मालिकाना सॉफ्टवेयर इस तरह से भी सुरक्षित हैं पर यह न केवल विवादास्पद हैं, पर कुछ कठिन भी हैं। इसके बारे में फिर कभी।

४. सविंदा कानून के द्वारा: सविंदा कानून(Contract Act) भी सॉफ्टवेयर की सुरक्षा में महत्वपूण भूमिका निभाता है। आप इस धोखे में न रहें कि आप कोई सॉफ्टवेयर खरीदते हैं। आप तो केवल उसको प्रयोग करने के लिये लाइसेंस लेते हैंl आप उसे किस तरह से प्रयोग कर सकते हैं यह उसकी शर्तों पर निर्भर करता है । लाइसेंस की शर्तें महत्वपूण हैं। यह सविंदा कानून के अन्दर आता है।

ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर में सोर्स कोड हमेशा प्रकाशित होता है। यह किस प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है यह इसके लाइसेंसों की शर्तों पर निर्भर करता है, जिसके अन्तर्गत यह प्रकाशित किये जाते हैं। इसके बारे में बात करने से पहिले हम लोग बात करेगें: कॉपीलेफ्ट (Copyleft), फ्री सॉफ्टवेयर, और जी.पी.एल. {General Public License (GPL)} की। यह उस सौफ्टवेर के कार्य करने के तरीके को बताता है तथा यह एक तरह का वर्णन है यदि इसे प्रकाशित किया जाता है तो उस सौफ्टवेर के मालिक या जिसने उसे लिखा है उसका कौपीराइट होता है|

अगली बार - कौपीलेफ्ट
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Monday, April 03, 2006

पल भर के कोई हमें प्यार कर ले

मैने २ अप्रैल को '६. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – कौपीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट' नाम का चिठ्ठा पोस्ट किया था। उसी दिन इस पर एक अज्ञात टिप्पणी इस प्रकार की आयी।
'hello my friend!
i'm portuguese and your blog is amazing!
stay like this!
bye-bye!
a little thing: I don't know read chinese!

7:09 PM' प्रसन्नता और आश्चर्य दोनो एक साथ: पुर्तगाली लोग भी हिन्दी में लिखे चिठ्ठे पढ़ते हैं; नारद मुनि ने कहां तक आपनी पैंठ बना ली। फिर आखरी लाईन पढ़ी, तो सोचा कि यदि इस पोस्ट को चाईनीस़ समझ कर अनुवाद किया जाय तो इसका जरूर कोई आश्चर्यजनक मतलब निकलेगा। फिर लगा कि सच है भी कि नहीं। अरे मित्र, इस तरह की पोस्ट अज्ञात नही की जाती है। इंडीब्लागीस प्रतियोगिता-नामांकन शुरू हो गया है, नारद मुनि तो यही कहेंगे कि उनमुक्त जी ने तो अभी से अपनी ही ढपली बजानी शुरू कर दी है। कम से कम नाम तो लिखा करो; कुछ तो विश्वसनीय लगे।

टिप्पणी में कुछ अच्छी बात भी लिखी थी; पत्नी को दिखायी, तो बोली,
'अरे अकलमन्द यदी हिन्दुस्तान में २ अप्रैल है तो पश्चिम में १ अप्रैल होगी। आखरी लाईन से तो लगता है कि तुम्हारे किसी मित्र या फिर किसी पाठक ने तुम्हे अप्रैल फूल बनाया है'
बात समझ में आयी। पत्नियों की बातें तो कभी गलत होती नहीं; कम से कम उनके पतियों के लिये।

खैर बहुत साल पहिले एक पिक्चर देखी थी, भूल गया कि कितने साल पहिले की बात है। उसमे एक गाना सदा बहार देव आनंद ने हेमा मालिनी की शोख अदायों पर गाया था। मै पूरा गाना भूल गया हूं, उसकी लय और कुछ पंक्तियां याद हैं। इस टिप्पणी पर याद आयीं,
पल भर के कोई हमें प्यार कर ले
झूठाऽऽ ही सही
ल ल ल ला ल ला ला
झूठाऽऽ ही सही।

Sunday, April 02, 2006

६. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर – कौपीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट

इस विषय पर पिछला चिठ्ठा|
कौपीराइट
कौपीराइट किसी चीज के वर्णन में हैं। यदि आप कोई अच्छी कहानी लिखें, या कोई गाना संगीत-बद्ध करें, या पेन्टिंग करे तो यह किसी चीज़ का वर्णन होगा| उसमें आपका कापीराइट होगा| यदी उसे प्रकाशित करें तो कोई और उसे आपकी अनुमति के बिना प्रयोग नही कर सकता है|

ट्रेड सीक्रेट
ट्रेड सीक्रेट जैसा की नाम कहता है यह केवल उसी को मालुम होता है जो उसे निकालता या ढ़ूढता है| दुनिया का सबसे अचछा ट्रेड सीक्रेट है कोका-कोला का नुसखा| उसे केवल कोका-कोला के मालिक ही जानते हैं| कोका-कोला का मिश्रण गाढ़े रूप में आता है और लोग तो केवल उसमें पानी मिलाते हैं और बोतलों में भरते हैं|

ट्रेड सीक्रेट को सुरक्षित करने के लिये दुनिया के कई देशों में अलग कानून है पर अपने देश में नहीं| इसके लिये तो संविदा तोड़ने या विश्वास तोड़ने का मुकदमा ही ठोका जा सकता है| हांलाकि ट्रिप्स इस तरह का कानून बनाने को कहता है पर हमने नहीं बनाया | हमारे हिसाब से संविदा या विश्वास तोड़ने का मुकदमा दायर करना, ट्रिप्स की शर्तों को पूरा करता है| चलिये जब विश्व व्यापार संगठन में कोई यह मुद्दा उठायेगा तो देखेंगे, हम तो अगली बार की चिन्ता करें जब हम बात करेंगे कि सौफ्टवेर कैसे सुरक्षित होता है|


इसमें पहली टिप्पणी पर पोस्ट 'पल भर के कोई हमें प्यार कर ले'

Saturday, April 01, 2006

धर्म - मेरे विचार से

लगता है कि हिन्दी चिठ्ठाकारों के बीच धर्म की बहस गर्म हो रही है। इसमें मेरे विचार भी - मालुम नहीं कि घी का काम करेगें या पानी का।

मैं agnostic (अज्ञेयवादी) हूं। मेरे विचार से—
  • दूसरे से अपने प्रति जिस आचरण की आपेक्षा हो, वही आचरण दूसरे के साथ करना;
  • जिस आचरण को अपना अन्त:मन ठीक कहे, उस आचरण का ही पालन करना;
  • जिस आचरण को अपना अन्त:मन ठीक न कहे, उसको त्यागना—
ही धर्म है।

Agnostic की हिन्दी अज्ञेयवादी ही है न? अंग्रेज़ी का शब्द इस लिये प्रयोग किया क्योंकि मैं agnostic के हिन्दी अर्थ के बारे में विश्वस्त नहीं था। पिछली बार धार्मिक शब्द के गलत प्रयोग पर आलोक जी ने गलती ठीक की थी। क्या Agnostic के हिन्दी शब्द की कोई पुष्टि करेगा?

५. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - बौधिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights)

इस विषय पर पिछला चिठ्ठा|
बौधिक सम्पदा अधिकारों मस्तिक्ष की उपज हैं| दुनिया के देश, कई सदियों से अपने-अपने कानून बना कर इन्हे सुरक्षित करते चले आ रहें हैं | सन १९९५ में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) बना| इस संगठन का एक समझौता है Agreement on the Trade related aspect of intellectual property rights (TRIPS) या ट्रिप्स| सारे देश जो विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं, उन्हे इसे मानना है तथा अपने कानून इसी के मुताबिक बनाने हैं| हम भी बौधिक सम्पदा अधिकार से सम्बन्धित कानूनों को इसी के कारण बदल रहे हैं ताकि वह ट्रिप्स मुताबिक हो जाये| कई लोगों का इसी लिये कहना है कि हम लोग कानून इसलिये नही बदल रहें हैं कि हमें उनकी आवश्यकता है पर इस लिये कि ट्रिप्स कहता है तथा विश्व व्यापार संगठन एवं ट्रिप्स के कारण हमने अपनी प्रभुत्ता खो दी है| खैर यह विवाद अलग है हमें तो ओपेन सोर्स सौफ्टवेर के बारे में बात करनी है तथा केवल इसी सम्बन्ध में बौधिक सम्पदा अधिकारों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी कर रहें हैं|


ट्रिप्स में सात तरह के बौधिक सम्पदा अधिकार के बारे में चर्चा की गयी है इसमें तीन तरह के अधिकार, यानी की कापीराइट (Copyright), ट्रेड सीक्रेट (Trade Secret), तथा पेटेन्ट (Patent), कमप्यूटर सौफ्टवेर को प्रभावित करते हैं| सौफ्टवेर को पेटेन्ट कराने का मुद्दा विवादास्पद है तथा कुछ कठिन भी| यदी आप चाहेगें तो पेटेन्ट के बारे में कभी आगे बात करेगें क्योंकि पेटेन्ट भी अपने में महत्वपूर्ण मुद्दा है| इसे फिलहाल हम छोड़ देते हैं तथा अगली बार कापीराइट एवं ट्रेड सीक्रेट के बारे मे बात करेगें|