Wednesday, May 31, 2006

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन-२

मैने पिछली बार चर्चा की थी कि मै कैसे फाइनमेन के संसार से आबरू हुआ| इस बार कुछ उनके बचपन के बारे मे
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन, का जन्म ११ मई १९१८ में हुआ था और मृत्यु १९८८ में कैंसर से हो गयी। छुटपन में फाइनमेन अक्सर सोचा करते थे कि वह बडे होकर क्या बनें: विदूषक (Comedian), या वैज्ञानिक। बडे होकर उन्होंने इन दोनो रोलो को एक साथ बाखूबी निभाया| लोग कहते हैं कि वह इतने मशहूर क्यों हुये पर उनके बारे में वैज्ञानिक ठीक ही कहते हैं:
' फाइनमेन तो ऐतिहासिक व्यक्ति हैं उनको जितना सम्मान मिला वे उस सब के अधिकारी हैं ।'

फाइनमेन के पिता का बातों को बताने का अपना ही ढंग था| एक बार का किस्सा है कि पिता और पुत्र पार्क मे घूम रहे थे पिता ने एक चिड़िया की तरफ वह इशारा करके बताया कि यह चिड़िया दुनिया में अलग-अलग नामो से जानी जाती है। यह जरूरी नहीं है कि आप उन सब नामो को जाने, न ही महत्वपूर्ण है। पर महत्वपूर्ण यह है कि वह क्या और कैसे करती है। वे बच्चे के मन मे जिज्ञासा जगाने की कोशिश करते थे यह बताने की जरूरत नहीं है कि फाइनमेन बचपन से जिज्ञासु तथा कुतुहली थे।

फाइनमेन के पिता को आजकल के टीवी के क्विज प्रोग्रामो जैसे 'कौन बनेगा करोड़पति' से तुलना करें कितना अन्तर पायेंगे। इस तरह के क्विज प्रोग्राम तो केवल यह बताते हैं कि कौन कितना रट सकता है। आज के क्विज प्रोग्रामो से यह पता नहीं चलता कि कौन कितना अच्छा सोच सकता है, किसमे कितना बूता है और कौन विज्ञान की दुनिया को बदलने की ताकत रखता है|

फाइनमेन बचपन के दिनों में रेडियों ठीक किया करते थे| उस समय वाल्व रेडियो हुआ करते थे| उनके पड़ोसी का रेडियो में शुरू होने के थोड़ी देर बाद खरखराने लगता था| उसने फाइनमेन से रेडिये ठीक करने के लिये कहा| फाइनमेन रेडियो को छूने के बजाय वही बैठ कर सोचने लगे| उन्हे लगा कि गर्म होने पर बिजली का अवरोध बढ जाता है जिससे खरखराहट बढ जाती है और दो वाल्वों को एक दूसरे से बदलने में यह दूर हो सकती है| उसने ऐसे ही किया और खरखराहट बन्द हो गयी और तभी से कई लोग उन्हे उस लड़के की तरह से याद रखते हैं जो केवल सोच कर रेडियो ठीक किया करता था।

स्कूल में वह गणित में सबसे अच्छे और गणित टीम के हीरो थे| पर उन्होंने गणित को छोड़ दिया उन्हे लगा कि गणित मे उच्च शिक्षा प्राप्त करके वे दूसरों को गणित पढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। वह कुछ व्यवहारिक करने का सोच कर, पहले इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग की तरफ गये पर बाद में भौतिक शास्त्र की पढ़ाई की| शायद यही ठीक था| यह बीसवीं शताब्दी थी: भौतिक शास्त्रियों की शताब्दी| इस शताब्दी मे यदि कोई विज्ञान की दुनिया को बदलने का दम रखता था तो भौतिक शास्त्र ही उसका विषय था| यह उसी तरह से जैसे इक्कीसवीं शताब्दी जीव शास्त्रियों की शताब्दी है। चलिये हम वापस फाइनमेन पर चलें और अगली बार कुछ युवा फाइनमेन के बारे मे बात करेंगे।

Tuesday, May 30, 2006

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन-१

रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन बीसवीं शताब्दी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक थे। इस चिट्ठी में चर्चा है कि मैंने कैसे उनके बारे में जाना। 

 लाल बाईंडिंग में, प्रसिद्ध पुस्तकें

Monday, May 29, 2006

अधूरे सपने

मैने विज्ञान से स्नातक की डिग्री लेने के बाद, विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिये, कसबे से बाहर प्रवेश लिया| सब तय भी कर लिया पर फिर पिता के कहने पर नहीं गया; लगभग ४० वर्षों से फाईलों को इधर से उधर कर रहा हूं| मन आया कुछ नया करूं - ब्लौगिंग करने की सोची: पर हिन्दी मे करूं या अंग्रेजी मे|

भारत सरकार ने कुछ समय पहले Unicode font प्रकाशित की, लगा कि हिन्दी में ब्लौगिंग की जा सकती है लगभग तीन महीने पहले हिन्दी मे ब्लौग करना शुरू किया| उस समय मैं हिन्दी चिठ्ठों के संसार से अनभिज्ञ था| मुझे नहीं मालुम था कि यह कैसी लिखी जाय फिर कुछ कोशिश और गलतियों के साथ हिन्दी मे ब्लौगिंग शुरू कर दी| कुछ समय बाद सर्वज्ञ और नारद का पता चला और नारद के द्वारा अन्य चिठ्ठेकारों का| कुछ दिनो बाद सब कुछ समान्य, पहले जैसा|

फिर एक दिन सुनीलजी ने अपने चिठ्ठे पर बचपन के सपने नाम की चिठ्ठी पोस्ट की| मालुम नहीं कि क्या हो गया: कितनी यादें, कितनी बातें - वापस आकर मन को कचोटने लगीं| कितना समय बिताया बीते हुऐ समय को याद करने मे| पर समय तो किसी की प्रतीक्षा नहीं करता वह तो वापस आयेगा नहीं, पर पुरानी बातों की यादों मे खोने के बाद लगा कि उन लोगों के बारे मे लिखूं जिनसे प्रेणना लेकर सपने देखे थे| क्या हुआ यदि मेरे सपने अधूरे रह गये, वे लोग तो अब भी प्रेणना के सोत्र हैं|

इन लोगों मे से कुछ तो मेरे परिवार के सदस्य हैं जिन्हे न तो आप जानते हैं न जानने मे दिलच्सपी रखते हैं पर ऐसे भी कुछ हैं जो कि जानी-मानी हस्ती हैं और आपने उनका नाम सुना होगा यदि नहीं तो शायद सुनना चाहिये उन्ही मे से कुछ के बारे मे बात करते हैं| शायद कोई इन चिठ्ठियों को, कहीं, कभी पढ़े और वह अपने सपने पूरे करने की ठान ले| उसे इतनी हिम्मत मिले कि वह मेरे जैसा कमजोर होकर केवल फाईल पलटने वाला न बन जाय| वह अपने सपने पूरे कर सके|

मै सबसे पहले बात करना चाहूंगा, १९६६ के नोबेल परुस्कार से स्म्मानित भौतिक शास्त्री रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन के बारे मे, जो कि बहुत समय कैलिफोर्निया इं‍स्टिट्यूट आफ टेक्नोलोजी (कैल-टेक) मे रहे और डिक के नाम से जाने जाते थे| मै उनसे कब और कैसे आबरू हुआ यह अगली बार|

Saturday, May 27, 2006

सृष्टि का अन्त: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू

इस विषय की पहली पोस्ट पर हम लोगों ने इस पर चर्चा करने का क्रम तय किया था और दूसरी पोस्ट पर मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों कि अन्य अच्छी पुस्तकों के बारे मे बात की। तीसरी पोस्ट पर शतरंज के जादू के बारे मे बात चीत की और इस बार देखते हैं कि सृष्टि का अन्त कब होगा।

गुणाकर मुले अपनी किताब मे सृष्टि का अन्त की कथा का वर्णन कुछ इस तरह से करते हैं। यह उन्ही के शब्दों मे,


सृष्टि का अन्त
कथा बहुत प्राचीन है । उस समय काशी में एक विशाल मन्दिर था । कहा जाता है कि ब्रम्हा ने जब इस संसार की रचना की, उसने इस मंदिर में हीरे की बनी हुई तीन छड़ें रखी और फिर इनमें से एक में छेद वाली सोने की ६४ तश्तरियां रखीं सबसे बड़ी सबसे नीचे और सबसे बड़ी सबसे ऊपर। फिर ब्रह्मा ने वहां पर एक पुजारी को नियुक्त किया। उसका काम था कि वह एक छड की तश्तरियां दूसरी छड़ में डालता जाए। इस काम के लिए वह तीसरी छड़ का सहारा ले सकता था परन्तु दो नियमों का पालन जरूरी था,
  • पुजारी एक समय केवल एक ही तश्तरी उठा सकता था; और 
  • छोटी तश्तरी के उपर बडी तश्तरी नहीं रखी जा सकती थी। 
इस विधि से जब सभी ६४ तश्तरियां एक छड से दूसरी छड़ में पहुंच जाएंगी, सृष्टि का अन्त हो जाएगा।

'उन्मुक्त जी, आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं। तब तो सृष्टि का अन्त हो जाना चाहिए था। ६४ तश्तरियों को एक छड़ से दूसरी छड़ में स्थानान्तरित करने में समय ही कितना लगता है!'

नहीं, यह 'ब्रह्म-कार्य' इतनी शीघ्र समाप्त नहीं हो सकता। मान लीजिए कि एक तश्तरी के बदलने में एक सेकेंड का समय लगता है। इसके माने यह हुआ कि एक घंटे में आप ३६०० तश्तरियां बदल लेंगे। इसी प्रकार एक दिन में आप लगभग १००,००० तश्तरियों और १० दिन में लगभग १,०००,००० तश्तरियां बदल लेंगे।

आप तो सोचते होंगे, 

'इतने परिवर्तनो में तो ६४ तश्तरियां निश्चित रूप से एक छड़ से दूसरी छड़ में पहुंच जाएगीं' 
लेकिन आपका अनुमान गलत है। उपरोक्त 'ब्रह्म-नियम' के अनुसार ६४ तश्‍तरियों को बदलने में पुजारी महाशय को कम से कम ५००,०००,०००,००० वर्ष लगेंगे।

इस बात पर शायद यकायक आप विश्वास न करें । परन्तु गणित के हिसाब से कुल परिवर्तनों की संख्या होती है, (२^६४)-१ अर्थात १८,४४६,७४४,०७३,७०९,५५१,६१५

आपने गौर किया कि यह वही नम्बर है जितने गेहूं के दाने राजा को देने थे। इसका हल भी गुणाकर मुले कि किताब मे है पर उसमे मुझे मजा नहीं आया। मै चाहूंगा कि हमारे चिठ्ठेकारों मे कोई इसके जवाब को तर्कसंगत ढ़ंग से रखे। अगली बार चर्चा करेंगे नारद जी की छड़ी पहेली के अन्य रूप।


नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू 

Friday, May 26, 2006

५. लिनेक्स: अन्य लम्बित मुकदमे

हम लोग लिनेक्स की यूनिक्स से यात्रा, इसके करनल, डिस्ट्रीब्यूशन, डेस्कटौप का प्रयोजन, यूनिक्स पर चले मुकदमे, आई.बी.एम. पर चले रहे मुकदमे के बारे मे जिक्र कर चुके हैं| आज लिनेक्स के कारण अन्य मुकदमो के बारे मे| इस तरह के मुख्यत: चार और मुकदमे चल रहें हैं|

१: यह स्पष्ट नहीं है कि नौवल ने एस.सी.ओ. को क्या बेचा क्योंकि नौवल के अनुसार उसने एस.सी.ओ. को यूनिक्स के बौद्धिक सम्पदा अधिकार नहीं बेचे हैं। उसने एस.सी.ओ. को केवल यूनिक्स का विकास करने तथा दूसरे को लाइसेंस देने का अधिकार दिया था। इस पर एस. सी. ओ. ने एक मुकदमा नौवल पर चलाया है कि,
  • नौवल गलत कह रहा है कि एस.सी.ओ. यूनिक्स के बौद्धिक सम्‍पदा अधिकार का मालिक नहीं है;
  • नौवल का यह कहना कि नौवल यूनिक्स के बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का मालिक है एस.सी.ओ. के व्यापार में रूकावट डाल रहा है उसे रोका जाय;
  • इस बात कि घोषणा की जाय कि एस.सी.ओ. यूनिक्स के बौद्धिक सम्पपदा अधिकार का मालिक है न कि नौवल;
  • उसे नौवल से हर्जाना दिलवाया जाय|

२-३: एस.सी.ओ. ने १५०० कम्पनियों को नोटिस भेजा है कि,
  • वे लिनेक्स प्रयोग करने से पहले उससे लाइसेंस ले लें; और
  • वह देखें कि यूनिक्स का कोड ओपेन सोर्स सौफटवेर से न मिल जाय।
उसने ओटोजोन तथा डैमलर क्राईसलर के खिलाफ अलग अलग मुकदमे अपने अधिकार के उल्लंघन के बारे में दायर किये हैं ।

डैमलर काईसलर के खिलाफ मुकदमा अंशत: ९-८-२००४ को खारिज हो गया| फिर मुकदमा २१-१२-२००४ को यह कहते हुये खारिज हो गया कि वह पुन: दूसरा मुकदमा तब तक नहीं ला सकते हैं जब तक डैमलर क्राईसलर के पहले मुकदमे का सारा खर्चा न अदा कर दें | एस.सी.ओ. ने इसके खिलाफ अपील प्रस्‍तुत कर रखी है ।

४: रेड हैट लिनेक्स डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी है। इसने एक मुकदमा इसलिये दायर किया है कि घोषणा की जाय कि उसने लिनेक्स को वितरण करने में एस.सी.ओ. के किसी भी अधिकार का अतिक्रमण नहीं किया है|

यह कहना मुश्किल है कि इन मुकदमों में क्या होगा। यह इन पर आयी गवाही पर निर्भर करेगा| सारे मुकदमे एस.सी.ओ . बनाम आई.बी.एम. के मुकदमे के निर्णय पर निर्भर करेंगे।

बहुत सी प्रमुख कम्पनियां लिनेक्स को अपना रही हैं। इनमें आई.बी.एम., रेड हैट, तथा एच.पी. मुख्य हैं इन्होने इन मुकदमो को मद्दे नज़र रखते हुये, अपने खरीदारों को कहा है कि यदि यह पाया जाता है कि उनका कोई भी सौफ्टवेर किसी के बौद्धिक सम्‍पदा अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं तो वे न ही उसके पूरे हर्जाने की क्षतिपूर्ति करेंगे पर उन्हें नया सौफ्टवेर बना कर देगें| देखिये अगर दो सालो में क्या ‍ होता है ।

इसी कड़ी के साथ लिनेक्स पर यह लेख समाप्त कर रहा हूं हांलाकि लिनेक्स के उपर चल रहे मुकदमो कि चर्चा समय समय पर करते रहेंगे

अन्त करते समय मै आपका ध्यान लिनूस टोरवाल की आत्म कहानी Just for fun: The story of an Accidental Revolutionary की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा। यह बहुत अच्छी तथा प्रेरणादायक पुस्तक है। इसमें कुछ चैप्टर बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के बारे में हैं। यह कुछ हमारे पुरातन विचारो से मेल खाते हैं और पश्चिम के समाज पर जिस तरह से इन अधिकारों की परिभाषा तथा व्याख्या की जाती है उस पर नयी तरह से प्रकाश डालती है - पढ़ कर देंखें। यह किताब भी वैसे ही खरीदी जा सकती हैं जैसे कि मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें की पोस्ट पर बताया है|

Tuesday, May 23, 2006

शतरंज का जादू: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू

इस विषय की पहली पोस्ट पर हम लोगों ने इस पर चर्चा करने का क्रम तय किया था और दूसरी पोस्ट पर मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों कि अन्य अच्छी पुस्तकों के बारे मे बात की। इस बार शतरंज के जादू के बारे मे।

गुणाकर मुले की किताब 'गणित की पहेलियां' मे एक अध्याय 'अंकगणित की पहेलियों' पर है इसी मे वह 'शतरंज के जादू' के बारे मे बताते हैं। इसका बयान करने से पहले मैं आपको एक सांकेतिक चिन्ह के बारे मे बता दूं क्योंकि इसका प्रयोग मै करूंगा।
१=२/२=२^०
२=२=२^१
४=२x२=२^२
८=२x२x२=२^३
१६= २x२x२x२=२^४

यह सब नम्बर दो को दो से एक बार या दो से कई बार गुणा करके मिले हैं या यह कह लीजये कि ये दो की पावर (power) हैं। इन्टरनेट पर देखने के लिये इन्हे २^०, २^१, २^२, २^३, २^४ .... से लिखते हैं। पावर को इन्टरनेट पर देखने के लिये ^ चिन्ह का प्रयोग किया जाता है और मै भी इस चिठ्ठे पर इसी प्रकार से लिखूंगा।

अब देखते हैं कि गुणाकर मुले किस तरह से शतरंज के जादू के बारे मे ब्यान करते हैं। यह उन्ही के शब्दों मे,


शतरंज का जादू
शतरंज के खेल के नियमों को आप न भी जानते हों तो कम से कम इतना तो सभी जानते हैं कि शतरंज चौरस पटल पर खेला जाता है। इस पटल पर ६४ छोटे-छोटे चौकोण होते हैं।

प्राचीन काल में पर्सिया में शिर्म नाम का एक बादशाह था। शतरंज की अनेकानेक चालों को देखकर यह खेल उसे बेहद पसंद आया। शतरंज के खेल का आविष्कर्ता उसी के राज्य का एक वृद्ध फकीर है, यह जानकर बादशाह को खुशी हुई। उस फकीर को इनाम देने के लिये दरबार में बुलाया गया:
'तुम्हारी इस अदभुत खोज के लिये मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं । मांगो, जो चाहे मांगो,'
बादशाह ने कहा। फकीर - उसका नाम सेसा था - चतुर था । उसने बादशाह से अपना इनाम मांगा:
'हुजूर, इस पटल में ६४ घर हैं। पहले घर के लिये आप मुझे गेहूं का केवल एक दाना दें, दूसरे घर के लिये दो दाने, तीसरे घर के लिये ४ दाने, चौथे घर के लिये ८ दाने और .... इस प्रकार ६४ घरों के साथ मेरा इनाम पूरा हो जाएगा।'
'बस इतना ही ?'
बादशाह कुछ चिढ गया,
'खैर, कल सुबह तक तुम्‍हें तुम्‍हारा इनाम मिल जाएगा।'
सेसा मुस्कराता हुआ दरबार से लौट आया और अपने इनाम की प्रतीक्षा करने लगा।

बादशाह ने अपने दरबार के एक पंडित को हिसाब करके गणना करने का हुक्म दिया। पंडित ने हिसाब लगाया ... १+ २+ ४+ ८+ १६+ ३२+ ६४+ १२८... (६४ घरों तक ) अर्थात १+ २^२ + २^३ + २^४... = (२^६४)-१ अर्थात १८,४४६,७४४,०७३,७०९,५५१,६१५ गेहूं के दाने। गेहूं के इतने दाने बादशाह के राज्य में तो क्या संपूर्ण पृथ्वी पर भी नहीं थे। बादशाह को अपनी हार स्वीकार कर लेनी पड़ी।

राजा के तो समझ रहा था कि फकीर ने बहुत छोटा इनाम मांगा है उसकी समझ मे नहीं आया कि उसे कितना गेहूं देना था। यही है शतरंज का जादू।

गौर फरमाइयेगा कि हर खाने मे कितने गेहूं के दाने रखे जा रहे हैं क्योंकि यही हमारे इस विषय के लिये महत्वपूर्ण है और यही इसे नारद जी की पहेली से जोड़ेगा।

अगली बार - सृष्टि का अन्त। 


नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू 

Monday, May 22, 2006

४. लिनेक्स: आई.बी.एम. पर मुकदमा

हम लोगों लिनेक्स की यूनिक्स से यात्रा, इसके करनल, डिस्ट्रीब्यूशन, डेस्कटौप का प्रयोजन, तथा यूनिक्स पर चले मुकदमे का जिक्र कर चुके हैं| आज लिनेक्स के कारण आई.बी.एम. पर चले रहे मुकदमो के बारे मे|

कैलडरा कम्पनी, पहले इसी नाम से लिनेक्स का एक डिस्ट्रीब्यूशन निकालती थी यह बहुत सफल नहीं था - कम से कम रेड हैट, सूसे ( नौवल ) तथा मैनड्रिवा के जितना तो नहीं| कैलडरा बाद मे सैन्टा क्रूज औपरेशन (एस.सी.ओ.) हो गयी| एस.सी.ओ. का कहना है कि उसने नौवल से यूनिक्स के बौद्धिक सम्पदा अधिकार खरीद लिये हैं तथा उसने यूनिक्स का एक्स (AIX) नाम का रूपान्तर निकालने लगी जिसे उसने आई.बी.एम. को दिया है। एस.सी.ओ. ने 2003 में एक मुकदमा आई.बी.एम. पर यह कहते हुये दायर किया कि आई.बी.एम. ने,
  • एस.सी.ओ. के ट्रेड सीक्रेट का हनन किया है;
  • ऐक्स यूनिक्‍स का सोर्स कोड लिनेक्स में मिला दिया है;
  • एस.सी.ओ. के साथ ऐक्‍स के बारे में हुयी संविदा का उल्लंघन किया है।

आई.बी.एम. ने इस मुकदमें में अपना उल्टा क्लेम दाखिल किया है कि
  • आई.बी.एम. ने ऐक्स का कोई सोर्स कोड लिनेक्स में नहीं मिलाया है।
  • उसने एस.सी.ओ. की संविदा को नहीं तोडा है।
  • संविदा तो एस.सी.ओ. ने तोडी है।
यह मुकदमा अभी चल रहा है और इन्टरनेट का सबसे चर्चित मुकदमा है| इस मुकदमे के बारे मे हफ्ते मे कम से कम एक बार तो आपको अवश्य कुछ न कुछ पढ़ने को मिल जायगा|

अगली बार हम लोग लिनेक्स के कारण अन्य लम्बित मुकदमो की चर्चा करेंगे|

Saturday, May 20, 2006

बचपन की यादों में गुणाकर मुले: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू

पिछली पोस्ट पर हम लोगों ने नारद जी की सोने की छड़ी और शतरंज का जादू विषय पर चर्चा करने का क्रम तय किया था उसी के अनुसार इस पोस्ट पर पहेलीयों की अन्य अच्छी पुस्तकें।

मैने मार्टिन गार्डनर की चिठ्ठी पर उनके द्वारा लिखी पुस्तकों का जिक्र किया था। इस पर रवी-रतलाम जी ने टिप्पणी कर उनके प्रकाशक के बारे मे पूछा। उस समय मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें वाली पोस्ट लिखने से पहले मेरे पास पहेलियों कि पुरानी किताबों को निकाला था और उनसे धूल साफ की थी। मुझे तब मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा, पहेलियों की कुछ अन्य अच्छी पुस्तकें मिली। यह पुस्तकें निम्न हैं,

  • Vicious Circle and Infinity: An Anthology of Paradoxes by Patrick Hughes & George Brecht.
  • The Lady orthe Tiger? And Other Logical Puzzles by Raymond Smullyan
  • What is the name of the book? The Riddle of Dracula and Other Logical Puzzles by Raymond Smullyan
  • The Moscow Puzzles by Boris A. Kordemsky
  • Which Way did the Bicycle Go? ... And other Intriguing Mathmatical Mystries by Joseph D E Konhauser, Dan Velleman, Stan Wagon.
यह सब बहुत अच्छी हैं, पढ़ने योग्य हैं। इसमे से पहली चार पेंग्विन ने तथा पांचवीं mathematical Association of America Dolciani Mathematical Exposition No. 18 ने छापी है। इसमे से पांचवीं पुस्तक का स्तर ऊंचा है थोड़ी गणित ज्यादा है। यह किताबें भी वैसे ही खरिदी जा सकती हैं जैसे कि मैने मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें की पोस्ट पर बताया है।

मुझे इनके अलावा एक किताब और मिली 'गणित की पहेलियां' लेखक गुणाकर मुले। इसे १९६१ मे राजकमल प्रकाशन ने छापा था। मेरे बाबा ने, उस समय यह पुस्तक मुझे भेंट की थी। यह हिन्दी मे है तब मुझे अंग्रेजी समझ मे नहीं आती थी। शुभा के अनुसार मुझे अभी भी अंग्रेजी समझ मे नहीं आती है।

गुणाकर मुले मेरे बचपन मे अकसर इस तरह के लेख लिखते थे। मालुम नहीं आप मे से कितनो को इनकी याद है या उस समय के हैं यह पहेलियों की मेरी पहली पुस्तक थी - बचपन की बहुत सारी यादें वापस ले आयी। 


उस समय न टीवी था, न कमप्यूटर, और न ही ट्रान्जिस्टर: एक वाल्व रेडियो था, जो कि मेरी मां के कमरे मे रहता था। हम भाईयों और बहन को केवल गर्मियों मे हवा-महल सुनने की आज्ञा थी। मालुम नही आप मे से कितनो को वाल्व रेडियो या हवा-महल कि याद होगी। उस समय हम भाईयों और बहन का आपस मे झगड़ना ,एक दूसरे से तरह तरह की पहेलियां बूझना, आंगन का गोबर से पुता रहना, गर्मी के दिनो मे पानी का छिड़काव। बचपन के सारे सपनो को वापस ले आयी। उस समय का एक गाना याद आया

सपने सुहाने लड़कपन के
मेरे नयनो मे डोले बहार बन के

खैर हमे तो बात करनी है नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू के बारे मे न कि बचपन के बारे मे। गुणाकर मुले की इस किताब मे एक अध्याय 'अंकगणित की पहेलियों' पर है इसी मे वह 'शतरंज के जादू' के बारे मे बताते हैं वह क्या है? वह जानेगें - अगली बार।


नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू 

Friday, May 19, 2006

३. लिनेक्स: यूनिक्स पर चला मुकदमा

हम लोगों लिनेक्स की यूनिक्स से यात्रा तथा इसके करनल, डिस्ट्रीब्यूशन, डेस्कटौप के बारे मे जिक्र कर चुके हैं| लिनेक्स पर चल रहे मुकदमो के बारे मे बात करने से पहले एक नजर - यूनिक्स पर चले मुकदमे के बारे मे|

ए.टी.&टी. ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बरकले को यूनिक्स का सोर्स कोड शुरू में दिया था। इस विश्वविद्यालय ने उस पर कार्य किया तथा इसे काफी आगे बढाया। विश्वविद्यालय ने इसका अपना रूप भी निकाला जो कि बरकले सौफटवेर डिस्ट्रीब्यूशन (बी.एस.डी.) के नाम से प्रसिद्ध है। यह ओपेन सोर्स है। ए.टी.&टी. कम्पनी 1984 में टूट गयी तथा इसके एक हिस्से के पास कमप्यूटर का काम आया जिसे कमप्यूटर के व्यापार करने की स्वतंत्रता थी।

ए.टी.&टी. के इस अलग घटक ने अपना व्यापारिक यूनिक्स निकाला| इस व्यापारिक यूनिक्स तथा विश्वविद्यालय के बी.एस.डी. यूनिक्स में होड़ होने लगी तब ए.टी.&टी. ने विश्वविद्यालय पर एक मुकदमा दायर किया कि केवल ए.टी.&टी. यूनिक्स के बौद्धिक सम्पदा अधिकार की मालिक है । विश्वविद्यालय का कहना था कि उसे बी.एस.डी. यूनिक्स वितरण करने का हक है क्योंकि इस पर उसने भी बहुत काम किया है। 1993 में ए.टी.&टी. के इस घटक ने नौवल को यूनिक्स का व्यापार बेच दिया तथा 1995 में नौवल तथा विश्वविद्यालय के बीच मुकदमें में सुलह हो गयी। लेकिन उसकी क्या शर्ते हैं यह किसी को मालुम नहीं है।

इस समय लिनेक्स से सम्बन्धित मुख्य रूप से पांच मुकदमे चल रहे हैं| यह मुकदमें क्यों चल रहे हैं, इसके बारे में कई अटकलें ईन्टरनेट पर हैं पर उन पर न जाकर, अगली बार इन मुकदमो के बारे मे चर्चा करेंगे|

Tuesday, May 16, 2006

भूमिका: नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू

पहेली बाज जी ने कुछ दिन पहले नारद जी की छड़ी नामक पहेली अपने चिठ्ठे पर बूझी। मिश्राजी ने इसका सही जवाब दिया। इस पहेली के कई रूप हैं और पहेली बाज जी द्वारा पूछा गया रूप इसका सबसे आसान रूप है| इसके कठिन रूप का जवाब इतनी आसानी से नहीं दिया जा सकता है। यह जवाब, जो वास्तव मे गणित के अंको की एक सिरीस है, मूलभूत है। इसका सम्बन्ध बहुत चीजों से है और शतरंज के जादू से भी है। यह शतरंज का जादू क्या बला है? नारद जी की छड़ी वाली पहेली का शतरंज के जादू से क्या सम्बन्ध है?

अरे भाई, इस पहेली का सम्बन्ध तो उससे से भी है, जिससे हम सब जुड़े हैं। यह सब पर चर्चा करने के लिये एक तरफ से चलना होगा ताकि कहीं हम चक्कर न खा जायें। चलिये एक क्रम तय कर लेते हैं, उसी पर चलेंगे। यह क्रम इस प्रकार रहेगा।

  1. भूमिका (यह चिठ्ठी जिसमे हम चर्चा का क्रम तय कर रहें हैं);
  2. मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों कि अन्य अच्छी पुस्तकें;
  3. शतरंज का जादू क्या है;
  4. सृष्टि का अन्त;
  5. नारद जी की छड़ी वाली पहेली के अन्य रूप। मैं चाहूंगा कि पहेली बाज इन रूपों को 'शतरंज का जादू क्या है' की कड़ी के बाद बूझें। क्योंकि पहेली बूझने का जिम्मा तो उनका है;
  6. इस पहेली के हल का शतरंज के जादू से रिश्ता;
  7. इस पहेली के हल का कमप्यूटर विज्ञान से सम्बन्धों का जिक्र।
यह हो सकता है कि किसी क्रम मे दो पोस्टे हों या दो क्रम को मिला कर एक पोस्ट मे काम चल जाये। पर हमारा क्रम यही रहेगा। आखरी कड़ी मे, इस पहेली के हल का, अन्य विषयों के साथ सम्बन्धों का जिक्र ही रहेगा। अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध किस प्रकार से बन रहे हैं उसकी चर्चा कभी अलग से; यह कुछ बड़ा विषय है

तो अगली बार हम मिलते हैं मार्टिन गार्डनर की पुस्तकों के अलावा पहेलियों की अन्य अच्छी पुस्तकों के साथ।


नारद जी की छड़ी और शतरंज का जादू 

Saturday, May 13, 2006

२. लिनेक्स: करनल, डिस्ट्रीब्यूशन, डेस्कटौप

हम लोगों ने पिछली बार लिनेक्स की यूनिक्स से यात्रा के बारे मे जिक्र किया था अब आगे|

लिनेक्स का कोई भी आफिस नहीं हैं कोई भी कम्पनी या व्यक्ति इसका मालिक नहीं है पर दुनियां भर के प्रोग्रामर इसमें अपना योगदान देते हैं । दुनियां के इतिहास में इससे बडा, इस प्रकार का आन्दोलन, कभी नहीं हुआ । वह भी जो एक अमेरिका से बाहर के विश्वविद्यालय के छात्र ने शुरू किया| क्योंकि कमप्यूटर विज्ञान में नयी दिशायें दिखाने का वर्चस्व तो केवल अमेरीका का था।

लिनेक्स के सौफ्टवेयर के लिये पैसा नहीं लिया जा सकता पर इसका मतलब यह नहीं है कि इससे पैसा नहीं कमाया जा सकता। बहुत सारी कम्पनियां इस पर सर्विस देकर पैसा कमा रही हैं और चल रही हैं। रेड हैट तथा सूसे (नौवल) इनमें मुख्य हैं।

लिनेक्स के तीन स्तर हैं।

  1. करनल (Kernel) या कोर: करनल से सीधे कमप्यूटर नहीं चलाया जा सकताउसे चलाने से पहले कमपाईल करना पड़ता है| लिनेक्स करनल को लिनूस टोरवाल्डस देखते हैं।
  2. डेस्कटौप: आपके कमप्यूटर मे औपरेटिंग सिस्टम किस प्रकार से दिखे उसमें अलग अलग काम करने वाले सौफटवेयर किस प्रकार से चले यह डेस्कटौप पर निर्भर करता है कई तरह के डेस्कटौप हैं पर नोम (Gnome) तथा के.डी.ई. (K.D.E) मुख्य हैं ।
  3. डिस्ट्रीब्यूशन: किसी करनल से कमप्यूटर चलाने के लिये पहले उसे कमपाईल करना पड़ता है तब वह चलता है । यह कार्य डिस्‍ट्रीब्‍यूशन करते हैं इस तरह के लगभग 100 डिस्ट्रीब्यूशन हैं जिसमें रेड हैट, सूसे ( नौवल ) तथा मैनड्रिवा मुख्य हैं। हर डिस्ट्रीब्यूशन कम से कम नोम तथा के.डी.ई. दोनो डेस्कटौप रहते हैं| आप दस मुख्य डिस्ट्रीब्यूशन के बारे मे यहां पढ़ सकते हैं

लिनेक्स से सम्बन्धित कुछ मुकदमें चल रहें हैं। उनके बारे में भी जानना आवश्यक है। उसके पहले अगली बार यूनिक्स पर चल चुके मुकदमे की चर्चा करेंगे|

यह क्या है?



इन्तज़ार करें - इसके बारे मे पोस्ट का|
इन्तज़ार नही करना चाहते, तो देरी किस बात की है - क्लिक कीजये और खुद देखे लीजये|
यह तो है एक्दम गर्म - This is hot

Thursday, May 11, 2006

पहेली बाज ज़ज

मैने मार्टिन गार्डनर की पोस्ट पर पहेली बाज ज़ज के बारे मे बात की थी उनका किस्सा यह रहा है|

डैन ब्राउन ने 'द विन्सी कोड' (Da Vinci code) नाम की पुस्तक लिखी है तथा इसे रैन्डम हाउस ने छापी है| यह काल्पनिक कहानी है| लेखक के शब्दों में यह यहां है|

इसकी कहानी कुछ इस तरह की है कि यीशू मसीह ने शादी की थी तथा उनके वंशज भी हैं यह बात वेटिकन ने छिपा कर रखी है| एक संग्रहाध्यक्ष को यह मालुम था जिसका खून हो जाता है वह मरते समय लियोनार्दो द विन्सी के एक चित्र की आकृति बनाते हुये, फिबोनाकी सिरीस के नम्बरो के साथ संकेत के रूप में छोड़ जाता है| आगे क्या होता है यह जानने के लिये तो किताब पढ़नी पड़ेगी पर रैन्डम हाऊस के उपर इस किताब के पीछे एक मुकदमा दायर हो गया और हमें तो इसके फैसले से मतलब है|

कुछ साल एक और किताब 'द होली ब्लड ऐन्ड होली ग्रेल' तीन लेखकों ने छापी थी उसमें से दो ने रैन्डम हाउस के उपर एक मुकदमा यह कहते हुऐ दायर किया कि द विन्सी कोड की पुस्तक में उनकी किताब कि ने उनका सार ले लिया है इससे उनके बौधिक सम्पदा अधिकारों का हनन हुआ है| यह मुकदमा इंगलैंड मैं चला तथा न्यायमूर्ती पीटर स्मिथ ने इसे ७ अप्रैल २००६ को खारिज कर दिया| यह फैसला इस जगह पर है| इस मुकदमे मे कुछ शब्दों का एक अक्षर तिरछे (italics) में टाईप है| यह कुछ अजीब बात है| फैसले मे पूरे पूरे शब्द तो अकसर तिरछे में रहते हैं पर शब्दों का एक अक्षर तिरछे में - कभी नहीं| पहले तो लोगों ने यह समझा कि यह गलती है पर बाद मे यह लगा कि इसमे भी कोई रहस्य हो|

पहले नौ तिरछे अक्षरों को देखें तो वे smithcode हैं या इन्हे ठीक से रखें तो यह हो जाता है Smith code| जज़ साहब का नाम भी Smith है, इससे लगा कि कि वह भी 'द विन्सी कोड' (Da Vinci code) की तरह रहस्यमयी बात कहना चाहते हैं| लेकिन बाद के तिरछे अक्षरों का कोई मतलब नहीं निकल रहा था| जज़ साहब ने पहले तो अपने फैसले के बारे में कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया पर बाद में ईमेल से पुष्टि की कोई पहेली है फिर उन्होने किताब के उस पेज पर इशारा किया जहां पर फिबोनाकी सिरीस के नम्बर के नम्बर का जिक्र है और इन नम्बरों की सहायता से तिरछे अक्षरों का रहस्य खुला| वे सौ साल पहले नेवी के एडमिरल जैकी फिशर के बारे मे लोगों का ध्यान आर्कषित करना चाह रहे थे|

मैने अपने विश्वविद्यालय के सहपाठी ईकबाल, जो कि वकील है, से पूछा कि क्या कभी इतिहास मे पहले कभी किसी जज़ ने इस तरह से अपने फैसले मे पहेली बूझी है? उसका जवाब था कि शायद नहीं यह पहली बार हुआ है पर वह इस पर देख कर बतायेगा| उसने कहा कि वह इस समय अनूप के मुकदमे मे व्यस्त है|

अनूप भी मेरा विश्वविद्यालय का सहपाठी है और भारत सरकार की राजकीय सेवा में है| वह अपने समय का लड़कियों के बीच मे सबसे लोकप्रिय| हम सब उससे जलते थे क्योंकि विश्वविद्यालय मे सब लड़कियां उसी पर मरती थीं| वह किस मुकदमे मे फंस गया, यह अगली बार|

गूगल मे द विन्सी कोड क्वेस्ट जिस किताब के बारे में बात है तथा मिश्रा जी जिसकी बात यहां कर रहे हैं वह यही किताब है|

फिबोनाकी सिरीस १ नम्बर से शुरू होती है बाद के नम्बर पिछले दो नम्बर का जोड़ होते हैं| यानि कि सिरीस में नम्बर १, (०+१) =१, (१+१)=२, (१+२)=३, (२+३)=५, (३+५)=८, इत्यादि होते हैं| इनका प्रकृति से अपना सम्बन्ध है इसके बारे मे जानने के लिये यहां देखें|

यह सब आप कुछ विस्तारसे पढ़ना चाहें तो यह सब न्यू यौर्क टाईम्स के इस लेख में यहां है|

यदि आप इस पहेली का हल कुछ विस्तारसे पढ़ना चाहें तो न्यू यौर्क टाईम्स का यह लेख देखें|

डैन टेन्च वकील हैं तथा गार्जियन नाम के आखबार के लिये लिखते हैं उन्होने इसका हल निकाला और यदि आप उनही की भाषा में इसका हल पढ़ना चाहें तो वह यहां पर है|

यह क्या है?



इन्तज़ार करें इसके बारे मे पोस्ट का|

ऐसे यह तो है The Solution
क्या यह है Solutionकिसी पहेली का|
क्लिक कर के खुद ही देखे लीजये|

Wednesday, May 10, 2006

ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर – बी.बी.सी. सिरीस

बी.बी.सी. 'द कोड ब्रेकरस' (The Code Breakers) के नाम से एक ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर पर सिरीस १० मई २००६ से शुरू कर रही है| यह बी.बी.सी. की सिरीस है, अच्छी होनी चाहिये| इसके बारे मे यहां पर विस्तृत मे चर्चा है | भारतवर्ष में पहली बार १०-११ कि रात १ बजे - फिर कई दिन पुन: - दिखायी जायगी| आप इसका समय अपने देश के लिये बी.बी.सी. की वेब-साईट पर यहां देख सकते हैं|

Monday, May 08, 2006

अनुगूँज १९ - संस्कृतियाँ दो और आदमी एक

Akshargram Anugunj,

किसी व्यक्ति के लिये दूसरी जगह, दूसरी संस्कृति में,
  • जीवन यापन के लिये जाना; या
  • उन लोगों से उन बातों की महारत हासिल करने के लिये जाना जिसमे वे दक्ष हों; या
  • बेहतर जीवन के लिये जाना; या
  • अपनी संस्कृति का दूसरी जगह प्रचार करने के लिये जाना;
एक बात है|

पर किसी भी व्यक्ति का दो अलग अलग संस्कृतियों को अपने आप मे आत्मसात कर लेना आसान नहीं है| यह कुछ बिरले ही कर पाते हैं| ऐसे लोगों के, क्या गुण होते हैं; क्या खासियत है - शायद वही बता सके जिसने दो अलग अलग संस्कृतियों में जीवन जिया है मेरे जैसा नहीं जो एक ही जगह एक ही संस्कृति में रहा हो| फिर भी कल्पना के घोड़े दौड़ाने में तो कोई मनाही नहीं है| मेरे विचार से ऐसे व्यक्ति को,
  • दूसरे कि बात सुनने तथा समझने की क्षमता होनी चाहिये|
  • इस बात को स्वीकारने का बड़प्पन होना चाहिये कि हो सकता है कि उसकी संस्कृति में कुछ कमी है जो दूसरी संस्कृति में नहीं है|
  • यदि दूसरी संस्कृति में कुछ अच्छाई है तो उसे अपनाने की शक्ति होनी चाहिये|



यह कौन है


यह हैं daredevill
जो होते हैं succeed
जायें वे जहां
क्लिक करके देखें न|

Sunday, May 07, 2006

१. लिनेक्स: शुरुवात - यूनिक्स से

ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर की चर्चा पहली कड़ी ओपेन सोर्स सौफ्टवेर से शुरू होकर पंद्रवीं कड़ी लिनूस टोरवाल्डस एवं बिल गेट्स के विचार पर समाप्त हो गयी। इस चर्चा के दौरान जिक्र हुआ था कि लिनेक्स तथा उसके बारे मे चल रहे मुकदमे की भी चर्चा करना ठीक रहेगा। चलिये यह चर्चा शुरू की जाय।

लिनेक्स, ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर का सबसे कामयाब तथा सबसे लोकप्रिय सौफ्टवेयर है। यह जीपीएल्ड है और यूनिक्स से बनाया गया है। यूनिक्स का विकास, 1960 के दशक में ऐ.टी.&टी. की बेल प्रयोगशाला के द्वारा किया गया। उस समय ऐ.टी.&टी. कम्पनी एक नियंत्रित इजारेदारी (Regulated monopoly) थी इसलिये वह कमप्यूटर का सौफ्टवेयर नही बेंच सकती थी। उसने इसे, सोर्स कोड के साथ, बिना शर्त, सरकार तथा विश्वविद्यालयों को दे दिया: वे चाहे तो उसमें फेरबदल कर सकते हैं। 1980 के दशक के आते आते यूनिक्स सबसे लोकप्रिय, शक्ति शाली, एवं स्थिर औपरेटिंग सिस्टम बन गया हालांकि उस समय तक उसके कई रूपान्तर आ चुके थे।

यूनिक्स में एक कमी थी इसको समझना तथा चलाना मुश्किल है। एन्डी टेनेबौम, ऐमस्टरडैम में कमप्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उन्होंने इसकी सहायता के लिये मिनिक्स नाम का प्रोग्राम लिखा। इसमें भी कुछ कमियां थीं। लिनूस टोरवाल्ड फिनलैण्ड के हेलसिन्की विश्‍वविद्यालय में कमप्यूटर विज्ञान के छात्र थे। उन्होंने मिनिक्स की कमी को दूर करने के लिये एक प्रोग्राम लिखा जो कि बाद 'लिनूस का यूनिक्स' या छोटे में लिनेक्स कहलाया । इसका सबसे पहला कोर या करनल (Kernel) उन्होने 1991 में इन्टरनेट में पोस्ट किया। तब तक, रिचर्ड स्‍टालमेन का घन्यू ( GNU) प्रोजेक्ट शुरू हो चुका था। लिनूस टोरवाल्ड ने इससे बहुत सारे प्रोग्राम अपने लिनेक्स में लिये। इसलिये रिचार्ड स्टालमेन का कहना है कि इसे घन्यू-लिनेक्स कहना चाहिये। पर यह नाम, शायद लम्बा रहने के कारण चल नहीं पाया। पर इसका अर्थ यह नहीं हैं कि लिनेक्स की सफलता में घन्यू प्रोजेक्ट का हाथ नहीं है। घन्यू प्रोजेक्ट के बिना लिनेक्स सम्भव नहीं था।

1991 में शुरू हुआ यह औपरेटिंग सिस्टम आज विन्डोस के बराबर तो लोकप्रिय नहीं है पर बहुत तेजी से उंचाईयों को छू रहा है और पांच दस साल बाद बात उल्ट भी हो सकती है। अगली बार इसके करनल, डेस्कटौप, डिस्ट्रीब्यूशन, के बारे मे बात करेंगे।

१- लिन्कस के बारे में मजाक यहां देखें।|

यह क्या है? इन्तज़ार करें - इसके बारे मे पोस्ट का|

इन्तज़ार नही करना चाहते, तो देरी किस बात की है - क्लिक कीजये और खुद देखे लीजये।
ईन्टरनेट पर तो तरह तरह की वेब साईट हैं मुन्ने की मां से उसका इतिहास कैसे छिपाया जाय, इसका राज है, हांऽ.ऽ..ऽ..ऽ
:-) :-) :-)

Saturday, May 06, 2006

ब्लागर डाट काम में परेशानी

उड़नतश्तरी ने कुछ दिन पहले ब्लागर डाट काम के नखरे- कुछ शरमाता है नाम की पोस्ट की थी| इसमे उन्होने ब्लागर डाट काम मे हो रही परेशानी का जिक्र किया था| मुझे भी कुछ परेशानी हो रही थी जिसकी मैने टिप्पणी भी की| इधर लगता है कि परेशानी ज्यादा बढ़ गयी इसके कारण कुछ पोस्टें दो तीन बार करनी पड़ गयीं| मेरा भी समय बरबाद हुआ| और आप सब को बहुत असुविधा - उसके लिये मैं माफी चाहूंगा|

मैने अभी पुन: उड़नतश्तरी की इसी पोस्ट पर गया पर कोई हल नहीं दिखायी पड़ा| पर इसका क्या कोई हल है? क्या कोई जानता है?
१५. ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर: लिनूस टोरवाल्डस एवं बिल गेट्स के विचार
पिछली पोस्ट: ओपेन सोर्स सौफ्टवेयर – महत्व|

लिनूस टोरवालल्डस, जो लिनेक्स के जन्मदाता हैं, ने अपनी जीवनी डेविड डाईमन्ड के साथ लिखी है| इसका नाम है 'Just for Fun: the Story of an Accidental Revolutionary’| यह बहुत अच्छी किताब है तथा इसे पढने से जीवन में आगे बढने की प्रेरणा मिलती है वे, इसमें ओपेन सोर्स सौफटवेयर के बारे में कहते हैं,
‘The GPL and open source model allows for the creation of the best technology. … It also prevents the hoarding of technology and ensures that anyone with interest won’t be excluded from its development.

So open source would rather use the legal weapon of copyright as an invitation to join in the fun, rather than as a weapon against others. It’s still the same old mantra: Make Love, Not War, except on a slightly more abstract level.

Imagine an intellectual property law that actually took other people’s rights into account, too. Imagine IP laws that encouraged openness and sharing. Laws that say sure, you can still have your secrets, whether they be technological or religious, but that doesn’t mandate legal protection for such secrecy.’

जब हम लोग बात ओपेन सौफटवेयर में कुछ फायदे के बारे में कर रहे है तो बहुत अच्छा होगा कि कुछ दूसरा पक्ष भी देखें| बिल गेट्स, विन्डोज़ के जन्‍मदाता हैं| उन्होंने ‘The Road Ahead’ किताब लिखी है| यह किताब भी बहुत अच्छी है| अपने नाम के मुताबिक यह बताती है कि सूचना प्रद्योगिकी भविष्य में किस तरफ जायेगी| इसमें कई मुश्किल सवालों को बहुत आसानी से समझाया गया है| इसमें वे फ्री सौफटवेयर की कमियों को इस तरह से वर्णन करते हैं,
'In addition to free information, there's a lot of free software on the Internet today, some of it quite useful. Sometimes it's commercial software given away as part of a marketing campaign. Other times the software has been written as a graduate student project or at a government-funded lab. But I think consumer desire for quality, support, and comprehensiveness in important software applications means that the demand for commercial software will continue to grow. Already many of the students and faculty members who wrote free software at their universities are busy writing business plans for start-up companies that will provide commercial versions of their software with more features, not to mention customer support and maintenance.'

यह तो कहना मुश्किल है कि सौफटवेयर उद्योग किस तरफ जायेगा परन्तु दुनिया के बहुत सारे देश तथा व्यापार घराने ओपेन सोर्स सौफटवेयर को अपना हिस्सा बना रहे हैं क्योंकि इसमें व्यय कम है तथा इसे वह अपने मुताबिक ढाल भी सकते हैं| देखिये अगले ५ सालों में यह नाव किस तरफ जाती है|

Friday, May 05, 2006

मार्टिन गार्डनर की पुस्तकें

मैने मार्टिन गार्डनर की पोस्ट पर उनके द्वारा लिखी पुस्तकों का जिक्र किया था| इस पर Raviratlami जी की टिप्पणी
इन नायाब किताबों के प्रकाशक तथा ये कहाँ से मिलेंगे इनके आईएसबीएन नं इत्यादि भी दे सकें तो मेहरबानी होगी, ताकि यहाँ दूर स्थस्थानों में भी हम जैसे-तैसे मंगवा तो सकें!

मैं पहले सोचा कि वहीं परइसका जवाब दे दूं फिर लगा कि शायद और लोग भी यह सूचना जानने मे उत्सुक हों इसलिये यह चिठ्ठी|

मैने यह पुस्तकें पिछले ४० सालों में पढ़ी हैं इस बीच इन सब के प्रकाशक बदल गये और कईयों के नाम भी| इसलिये महत्वपूण यह है कि इस समय इसका क्या नाम है तथा कौन प्रकाशक है| यह पता करने का सबसे अच्छा तरीका है www.amazon.com पर जा कर किताबों के मेनू पर martin Gardner लिख कर पता करना| मैने कई किताबें यहां से अपने अमेरिकी दोस्तों से मंगवायी है पर यह मंहगी पड़ती हैं| इसलिये यह तरीका ठीक नहीं|

आजकल ईंटरनेट पर बहुत सारी किताबों के स्टोर अपने देश में भी खुल गये हैं जो अच्छे हैं मैं इनमे से एक http://www.firstandsecond.com/ से किताबें मंगवाता हूं यह अच्छा है और भरोसे मन्द भी| आप कहीं भी हों किताब इनसे मंगवाये कोई मुशकिल नहीं है| यहां भी आप सर्च कर सकते हैं|

मार्टिन गार्डनर या विज्ञान से सम्बंधित किताबें न तो हर किताबों कि दुकानो पर मिलती हैं न ही हर दुकान वालों को इन किताबों का ज्ञान होता है हांलाकि कुछ बड़ी किताबों की चेन (जैसे क्रौसर्वड, लैन्डमार्क) खुल गयी हैं वंहा मिल जाती हैं| मैं दिल्ली-गुड़गांव, अहेमदाबाद, बम्बई कि क्रौसर्वड पर तथा चेन्नाई एवं बैंगलोर की लैन्डमार्क पर गया हूं कभी मौका मिले तो जरूर जाइये|

दिल्ली में इस तरह की किताबों सबसे अच्छी दुकान कनौट प्लेस मे बुक-वर्म है| यह छोटी दुकान है पर इस तरह कि किताबों के लिये अच्छी| इसके मालिक को जितना अच्छा ज्ञान इस तरह किताबों के बारे में है शायद उतना किसी और किताब-दुकान के मालिक को नहीं| कभी लखनऊ जाने का मौका मिले, तो कपूरथला में युनिर्वसल की पहली मंजिल पर की दुकान पर जाना न भूलें|

जहां तक साईंटिफिक अमेरिकन पत्रिका की बात है उसके बारे मे आप यहां से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
Scientific American India
201, Competent House
F-14 Middle Circle,
Connaught Place
New Delhi-110001
email: editor@sciam.co.in

ओह मैं भूल ही गया| नितिन बागला जी का जवाब पहेलियों के बारे में सही है|

१०. ओपेन सोर्स सौफ्टवेर - फ्री तथा जीपीएल्ड (GPLed) सौफ्टवेर की शर्तें



पिछली पोस्ट- फ्री सौफ़टवेर: इतिहास|

फ्री या कापीलेफटेड साफटवेयर में निम्न बातें मुख्य हैं -
  • इसमें सोर्स कोड हमेशा प्रकाशित किया जाता है
  • इस तरह के सौफटवेयर के लिये कोई पैसा या रौयल्टी नहीं देनी पडती है पर यदि उसके सम्बन्ध में यदि आप कोई सर्विस दे रहें है तो सर्विस देने का पैसा ले सकते हैं|
  • इस तरह के सौफटवेयर को कोई भी संशोधित कर सकता है
  • इस तरह के सौफटवेयर को संशोधन करने के बाद प्रकाशित करने या बाटंने की कोई आवश्यक्ता नही है| आप उसे बिना प्रकाशित या बाटें अपने संगठन में प्रयोग कर सकते हैं|
पर यदि इस तरह के सौफटवेयर को बिना संशोधन किये या संशोधित करने के बाद बांटा जाता है तो उसमें वही शर्तें रहेंगीं जो कि पहले थीं यानी कि
  • सोर्सकोड प्रकाशित करना पडेगा;
  • अन्य लोगों को संशोधन करने की स्वतंत्रता देनी होगी; तथा
  • सौफटवेयर के लिये कोई पैसा या रौयल्टी नहीं ली जा सकती है|

स्टालमेन ने कुछ वकीलों की मदद से जनरल पब्लिक लाइसेंस (General Public License) (GPL) लिखा, जिसमें इस तरह की घोषणा एवं शर्त है जो किसी भी साफटवेयर को कौपीलेफट करता है| इसलिये इस तरह के सौफ्टवेर को गीपीएल्ड (GPLed) सौफ्टवेर भी कहा जता है| यानि कि फ्री सौफ्टवेर या कौपीलेफ्टेड सौफ्टवेर या गीपीएल्ड सौफ्टवेर एक ही तरह के सौफ्टवेर के पर्यायवाची शब्द हैं|

क्या ओपेन सोर्स सौफ्टवेर इन सौफ्टवेर से अलग होता है? क्या होता है ओपेन सोर्स सौफ्टवेर? अगली बार - इसी के बारे में चर्चा करेंगे|

Thursday, May 04, 2006

मार्टिन गार्डनर

यह चिठ्ठी पहेली-बाज को समर्पित है।

नवीन युग में गणित को लोकप्रिय बनाने में जितना काम मार्टिन गार्डनर ने किया शायद उतना किसी और ने नही किया। मैंने १९६० के दशक के अन्त में विश्विद्यालय में पैर रखा। उस समय अमेरिका में रहने वाले, मेरे एक चाचा ने मेरे लिये साईंटिफिक अमेरिकन1 नाम की पत्रिका भिजवानी शुरू की। मार्टिन गार्डनर उस समय इसमें मनोरंजनात्मक गणित पर एक स्तम्भ लिखा करते थे। उसी से मैं पहली बार उनसे आबरू हुआ। इनमे बहुत सारे लेख पहेलियों के बारे में होते थे। यह बहुत ज्ञानवर्धक और मनोरंजक थे। मार्टिन गार्डनर के लेख मुझे तब से पसन्द हैं| मार्टिन गार्डनर ने आगे चल कर कई पुस्तकें भी लिखीं जिसमें कई पहेलियों के बारे में थीं। उनमे से पहेलियों की मेरी मन पसन्द पुस्तकें निम्न हैं।
  • Mathematical puzzles and Diversions
  • More Mathematical puzzles and Diversions
  • Further Mathematical Diversions
  • Mathematical Carnival
  • Mathematics Magic and Mystery
  • Entertaining Mathematical Rules
  • Science Fiction, Puzzle Tales
  • Aha! Gotcha, Paradoxes to puzzle and delight

मार्टिन गार्डनर अपनी एक किताब की भूमिका लिखते हुऐ पहेलियों के महत्व को इस प्रकार से समझाया,
'In one of L. Frank Baum's funniest fantasies, The Emerald City of Oz, Dorothy (together with the Wizard and her uncle and aunt) visit the city of Fuddlecumjig in the Quadling section of Oz. Its remarkable inhabitants, the Fuddles, are made of pieces of painted wood cleverly fitted together like three dimensional jigsaw puzzles. As soon as an outsider approaches they scatter in a heap of disconnected pieces on the floor so that the visitor will have the pleasure of putting them together again. As Dorothy's party leaves the city, Aunt Em remarks:
“Those are certainly strange people, but I really can't see what use they are, at all”
“Why, they amused us for several hours,” replies the Wizard. “That is being of use to us, I am sure.”
“ I think they're more fun than playing solitaire or mumbletypeg,” Uncle Henry adds. “For my part, I'm glad we visited the Fuddles.”

मार्टिन गार्डनर ने न केवल पहेलियों के बारे में किताबें लिखीं पर विज्ञान के कुछ पहलुवों के बारे में भी लिखा। इनमे से कुछ किताबें अलग अलग नाम से प्रकाशित की गयीं मैं नही कह सकता कि ऐसा क्यों किया गया पर इसके कारण कुछ भ्रम अवश्य पैदा होता है। इनमे से कुछ किताबें निम्न हैं
  • The Ambidextrous Universe.
  • Science: Good, Bad, and Bogus यह Fads and Fallacies in the Name of Science नामक किताब का नया रूपान्तर है| इसमें ये ESP और UFO के अन्धविश्वास को दूरकरते हैं|
  • The Relativity Explosion यह Relativity for the Million नामक किताब का नया रूपान्तर है|

उपर लिखी सारी किताबें बहुत अच्छी हैं और मेरी मन पसन्द हैं। पढ़ कर देखिये और यदि आपके मुन्ने या मुन्नी नवी कक्षा या उसके उपर पढ़ते हों तो उन्हे अवश्य पढ़ने को दीजये। मार्टिन गार्डनर की पहेलियों पर तथा विज्ञान पर लिखीं पुस्तकें बहुत आसान भाषा में, सरल तरीके से लिखी गयी हैं और पढ़ने लायक हैं। पर उनकी कुछ और किताबें जो कि दर्शन पर लिखी गयीं हैं उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता है। इनमे से मैं कुछ पुस्तकों को समाप्त नही कर पाया, वे हैं
  • The Whys of a Philosophical Scrivener; तथा
  • The Night is large.

मेरे मन की इच्छा है कि हमारी पहेली बाज का चिठ्ठा, मार्टिन गार्डनर से भी ज्यादा नाम कमाये, ज्यादा लोकप्रिय हो। उसको मेरी शुभकामनायें।

पता चला है कि पहेली बाज अवकाश पर हैं जब तक वह वापस आतें हैं मैं मार्टिन गार्डनर की पुस्तक Entertaining Mathematical Puzzles से दो पहेलियों को आपके लिये पेश कर रहा हूं यह अंग्रेजी मे उन्ही के शब्दों में,
पहली:
Divide 30 by ½ and add 10. What's the result?

हम् म् ऽऽऽ...म् जवाब २५ तो नहीं है।

दूसरी:
Suppose you take a new job and the boss offers you a choice between:
  1. Rs. 40,000 for your first year of work, and a raise of Rs.8,000 for each year thereafter;
  2. Rs. 20,000 for your first six months of work, and a raise of Rs. 2000 every six months thereafter.
आप कौन सा औफर लेगें और क्यों। बेशक वह औफर लेंगे जिसमें ज्यादा पैसे मिलते। हम् म् ऽऽऽ...म् पर वह है कौन सा।

पहेलियों का आजकल बहुत जोर है एक ज़ज साहब पहेली बाज बन गये हैं उन्होने अपने फैसले में एक पहेली बूझ ली। अगली बार हम लोग उस फैसले में बूझी गयी पहेली के बारे और उसके हल के बारे में चर्चा करेंगे।

1साईंटिफिक अमेरिकन अब भारतवर्ष में प्रकाशित होने लगी है यदि आपके मुन्ने या मुन्नी ग्यारवीं कक्षा या उसके उपर पढ़ते हों तथा विज्ञान मे रुचि रखते हों तो इसे उनके लिये मंगवाइये।

सांकेतिक शब्द
book, book, books, Books, books, book review, book review, book review, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,

Monday, May 01, 2006

उर्मिला की कहानी - घटना की सच्चाई

मैंने मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया पोस्ट में बताया था कि उर्मिला और ईकबाल मेरे विश्वविद्यालय के सहपाठी हैं तथा मुन्ने की मां उर्मिला की फोटो को लेकर गुस्सा हो गयी थी| और इसके बाद उर्मिला की कहानी- मुकदमे की दास्तान पोस्ट उस पर चले मुकदमे के बारे में जिक्र किया था| उर्मिला की कहानी - अदालत का फैसला पोस्ट पर बताया था कि मुकदमे के बाद उर्मिला तथा उसका परिवार शहर छोड़ कर कहीं चले गये| पर शहर छोड़ने से पहिले उर्मिला ने ईकबाल को उस रात की सच्चाई बतायी थी अब वही सच्चाई|

यह भी अजीब कहानी है उस दिन उर्मिला नन्दोई के घर मे चली गयी थी वहां उसे पता चला कि उसकी ननन्द नहीं थी| वह अपने मायके यानि कि उर्मिला के ससुराल में थी घर में नन्दोई के मित्र थे| उर्मिला वापस अपने मायके आना चाहती थी पर नन्दोई ने उससे सबके लिये चाय बनाने के लिये अनुरोध किया| इसको वह मना नहीं कर पायी क्योंकि घर में चाय बनाने के लिये और कोई नहीं था|

वह जब चाय बनाने गयी तब नन्दोई तथा उनके मित्रों ने दरवाजा बन्द कर दिया| उसके साथ उन सब ने रात भर जबरदस्ती गलत कार्य किया| वे लोग अगले दिन उसे बेहोशी की हालत में पोस्ट औफिस के पास छोड़ आये| मैने जब इकबाल से पूछा कि उसने यह बात क्यों नहीं अपने पति या कोर्ट मे कही| तब ईकबाल ने कहा कि उसने उर्मिला से यह पूछा था पर उर्मिला ने उसे कोई जवाब नहीं दिया|

मैने मुन्ने की मां की प्रतक्रिया जानने के लिये कहा,
'उर्मिला ने गलती की| उसे यह बात कोर्ट में कहनी चाहिये थी'
उसने कोई जवाब नही दिया मैने उसकी आखों की तरफ देखा| उनसे गुस्सा तो काफूर हो चुका था पर वह किसी गहरे सोच में डूबी लग रही थी; वह मेरी बात से सहमत नहीं लगती थी मुझे तो उसके हाव-भाव से लगा कि वह कहना चाह रही है कि मर्द क्या समझें औरत का जीवन|

लक्षमण की उर्मिला के दर्द को तो तुलसी दास जी भी नही समझ पाये| वह तो केवल सीता जी के त्याग को समझ पाये| उर्मिला के त्याग तथा दर्द को समझने के लिये नव-युग में मैथली शरण गुप्त को जन्म लेना पड़ा|

हा स्वामी! कहना था क्या क्या
कह न सकी कर्मों का दोष!
पर जिसमें सन्तोष तुम्हे हो
मुझे है सन्तोष!
वह क्या इस पर विशवास करती थी, मालुम नहीं, कह नहीं सकता| पर इस उर्मिला के दर्द को क्या उसका लक्षमण या कोई और समझेगा?

मैं एक बात अवश्य जानता हूं कि उर्मिला एक साधारण लड़की नहीं थी वह एकदम सुलझी, समझदार, बुधिमान, वा जीवन्त लड़की थी| उसने पुरानी बातों को भुला कर नया जीवन अवश्य शुरू कर दिया होगा| उसका एक भाई विदेश में था क्या उसी के पास चली गयी| कुछ पता चलेगा तो बतांऊगा| आप में से तो बहुत लोग विदेश में रहतें हैं कभी आपको उर्मिला मिले तो कहियेगा कि हम सब उसे याद करते हैं; मिलना चाहेंगे और मुन्ने की मां भी मिलना चाहेगी।

उर्मिला की कहानी
मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया।। मुकदमे की दास्तान।। अदालत का फैसला।। घटना की सच्चाई