Friday, October 14, 2011

कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा

इस चिट्ठी में में मथुरा-वृन्दावन के महत्व के कारण की चर्चा है।  
कन्धई चित्रकला का नमूना
कहा जाता है कि एक बार कृष्ण कन्हैया ने यशोदा मैया का मक्खन खा लिया। उनके मना करने पर यशोदा मां ने उनसे मुंह खोलकर दिखाने को कहा। कृष्ण कन्हैया के मुख के अन्दर मक्खन तो नहीं दिखा पर सारा ब्रह्माण्ड नज़र आया।

मथुरा, कृष्ण कन्हैया की जन्म भूमि है। 

मथुरा के बगल में वृन्दावन है। यशोदा मां वृन्दावन में थीं। यहीं पर कृष्ण कन्हैया का बचपन बीता और राधा के साथ रास लीला भी यहीं की। 

यमुना और वृन्दावन -गूगल नक्शे से
यमुना नदी की कटान वृन्दावन पर कुछ अजीब तरह से है। ऐसा लगता है कि - यमुना की धारा, जीभ रूपी जमीन का बाहरी भाग हो; वृन्दावन यमुना से घिरी हुई है। इसकी कथा भी कुछ अजीब है। 

कहा जाता है कि एक दिन कृष्ण को देख बलराम को भी जोश आ गया वे भी यमुना के तट पर नृत्य करने लगे। लेकिन उनका नृत्य इतना फूहड़ था कि यमुना ने हंस कर कहा
'अरे बस करो, तुम कैसे कृष्ण की तरह नृत्य कर सकते हो; वह तो दैविक है।'
इस पर बलराम को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने हल से, यमुना तट से इतना गहरा खांचा खींचा कि यमुना उसमें गिर गयी और अपने पथ से भटक कर गोल चक्कर में चली गयीं। वृन्दावन में, बांके बिहारी का मन्दिर है।

मेरे एक मित्र बांके बिहारी के भक्त है। शायद महीने में दो बार, उनके दर्शन के लिए जाते हैं।  कुछ समय पूर्व मेरी तबियत खराब हो जाने के समय, मेरे वह मित्र, मेरे पास आये थे। उन्होंने मुझसे। ५१/-रुपया एक लिफाफे में रख कर, बांके बिहारी का नाम लिख कर देने को कहा। उसके बाद जब मैं दिल्ली में अस्पताल में भर्ती था तब वह मुझसे मिलने के लिए आये। उन्होंने मुझसे कहा कि,
'मैनें बांके बिहारी के मंदिर में आपके नाम से प्रसाद चढ़ाया है। बांके बिहारी ने कहा कि आप एकदम ठीक हो जायेगें। मैंने बांके बिहारी से वायदा किया है कि ठीक हो जाने के बाद आप उनके दर्शन करने जायेगें।'
मथुरा-वृन्दावन, कृष्ण-मय है। शायद, इसी लिये, रस्किन बॉन्ड अपनी मथुरा यात्रा का वर्णन करते समय बताते हैं कि 'मथुरा में एक दिन, पूरे बनारस जीवन पर भारी है'। मैं अज्ञेयवादी हूं ईश्वर पर विश्वास नहीं करता। लेकिन, मित्र का किया वायदा तो पूरा करना  ही था। बस हम, मथुरा का पुण्य कमाने और मित्र किया वायदा निभाने, मथुरा-वृन्दावन की यात्रा करने पहुंचे।
गोवर्धन परिक्रमा में कुसुम सरोवर

अगली बार हम लोग कृष्ण जन्म स्थान चलेंगे।

 मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
इसकी कुछ कड़ियों को आप सुन सकते हैं सुनने केलिये कोष्टक के अन्दर चिन्ह पर चटका लगायें।
रस्किन बॉन्ड ()।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें।। कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।

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सांकेतिक शब्द
Mathura, Krishna, Vrindavan,Govardhan,
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7 comments:

  1. अनगित रवि ससि सिव चतुरानन...

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  2. चलते है मथुरा भी ...एक बार और....

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  3. उन्मुक्त जी आपसे एक शिकायत है -आप पुरानी चिट्ठियों के लिंक न दिया करें, मैं अपने को रोक नहीं पाता और वाहना चला जाता हूँ और फिर उनमें कुछ और लिंक मिलते हैं तो फिर और पीछे चल देता हूँ -और इस सिंहावलोकन(सिंह द्वारा पीछे मुड़ मुड कर देखते हुए चलने की आदत से यह सुन्दर नाम ) चलते ताजा पोस्ट के साथ न्याय नहीं कर पाता ....(बहरहाल यह तो मजाक की बात हुयी)
    मथुरा की नैसर्गिकता जब मैंने कोई तीस वर्ष पहले उसे देखा था तो बड़ी सम्मोहक थी -यमुना में हमने दीपदान किया था ...ठीक दीपावली के दिन क्योंकि दीवाली हमारे एक पूर्वज के मृत्यु के कारण नहीं मनाई जाती थी ..मेरे ७० वर्षीय दादा ने कहा था कि अगर कोई दीवाली के दिन मथुरा में दीपदान कर दे तो दीवाली मनाई जा सकती है ..फिर तो मैं उन्ही को लेकर गया और दीपदान उन्ही के पुण्य हाथों से कराकर लौटा और आज हम दीवाली मनाते हैं -लीजिये मैं अपनी ले के बैठ गया -मगर यह यात्रा उदेश्यों साम्य दिखाने ही जैसा ही है .....
    नदियों का मीन्ड़ेरिंग करना नैसर्गिक गुण है ..बलराम की कथा इसी विस्मयपूर्ण घटना के जवाब में उपजी होगी ....तब प्रश्नों के उत्तर ऐसे ही दिए जाते थे ..विज्ञान का इम्पैक्ट तब था भी कहाँ उतना ..टिप्पणी लम्बी होती जा रही है ..वो ब्रह्मांड वाला भी मामला है -राम के तो पेट में ही भुशुण्डी चले गए और वहां अनगिन ब्रह्माण्ड dekhe एक ही नहीं :) यह थी चिंतन की विराटता..खैर अब अगली पोस्ट पर बाकी लिखूंगा आज का समय तो पिछली पोस्टों पर चला गया ..स्वस्थ रहें आरोग्य रहें !

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  4. अरविन्द जी, पुरानी लिंक देने का कारण भी है।

    यह कोई जरूरी नहीं कि आपके पाठक ने पुरानी लिंक में लिखी चिट्ठी या उसमें व्यक्त किये गये विचारों को पढ़ा हो। बस यही सोच कर लिंक देता हूं कि यदि पाठक चाहे जो उसे भी देख ले।

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  5. कृष्‍णं वंदे जगदगुरू...

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  6. Jai shree krishna

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आपके विचारों का स्वागत है।