Wednesday, November 09, 2011

गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते

इस चिट्ठी में, मथुरा-वृन्दावन के रास्ते में बने वैष्णो देवी मन्दिर की चर्चा है।
वृन्दावन के रास्ते में, वैष्णों देवी का मन्दिर



मथुरा जाने का मुख्य उद्देश्य, बांके बिहारीजी का दर्शन करना था। बांके बिहारी जी वृन्दावन में है और हम लोग शाम को वहां पर गये। रास्ते में एक नया वैष्णो देवी का मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर और वैष्णो देवी न्यास का आपस में कोई सम्बंध नहीं है। हम इस मन्दिर को भी देखने गये।

यह एक बहुत बड़ा मंदिर है। इसमें शेर पर बैठी मां दुर्गा की एक बहुत ऊंची मूर्ति है। जो बहुत दूर से दिखायी पड़ती है। इसके अन्दर एक गुफा है जिसमें उनके नौ रूपों का वर्णन भी है। इस गुफा में जाने पर कुछ पानी बहता रहता है और उसमें कुछ इस तरह का प्रभाव दिखाया गया है जैसा कि वैष्णो देवी के मंदिर में होता होगा। मैं वैष्णों देवी के मन्दिर में नहीं गया हूं इसलिये यह दावे से नहीं कह सकता हुं।

इस मंदिर के अन्दर आप कोई चमड़े की चीज़ नही ले जा सकते है और इसीलिए मैंने अपना चश्मे का आवरण और बेल्ट उतार कर अलग कर दिया। मैंने पूछा,

'हम सब लोग तो भी चमड़े के है तब हम कैसे अन्दर जा सकते है?
वहां पर व्यक्ति ने बताया,
'आप गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते हैं। ज्यादातर चमड़े की चीजों में, इसी के चमड़े का प्रयोग रहता है। इसलिए आप चमड़े की चीज पहन कर या लेकर अन्दर नहीं जा सकते हैं।'
मंदिर देखने के बाद, हम लोग बांके बिहारी के मंदिर में गये। अगली बार वहीं चलेंगे।
वैष्णौ देवी का मन्दिर - चित्र विकिपीडिया से



मथुरा में एक दिन, पूरे बनारसी जीवन पर भारी - मथुरा यात्रा
रस्किन बॉन्ड।। कन्हैया के मुख में, मक्खन नहीं, ब्रह्माण्ड दिखा।। जहाँपनाह, मूर्ति-स्थल नापाक है - वहां मस्जिद न बनायें। । कृष्ण-जन्मभूमि मन्दिर को महमूद गजनवी ने लूटा।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। गाय या भैंस के चमड़े को अन्दर नहीं ले जा सकते।। बांके बिहारी से कुछ न मांग सका।। देना है तो पशु वध बन्द करवा दें।। माई स्वीट लॉर्ड।। चित्रकला से आध्यात्म।। शायद भगवान कृष्ण यहीं होंगे।। महिलायें जमीन पर लोट रही थीं।। हमारे यहां भरतपुर से अधिक पक्षी आते हैं।। भारतीय़ अध्यात्मिकता की नयी शुरुवात - गोवर्धन कथा।।


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3 comments:

  1. ऐसे प्रतिबन्ध भारत के कई मंदिरों में है -प्रतिबन्ध न हों तो फिर देवालय कैसा ?
    श्री काशी विश्वनाथ जी बनारस के मंदिर में तीन भाषाओँ -संस्कृत ,उर्दू और अंगरेजी में गैर हिन्दुओं के प्रवेश को मुख्य द्वार पर ही शिला पट के जरिये प्रतिबंधित किया गया है ..अब यह गैर बात है कि हिन्दू होने की परिभाषा बड़ी लिबरल है -लोग कह भर देते हैं कि हम हिन्दू हैं और सुरक्षा जाँच के बाद प्रवेश पा जाते हैं -मुझे शायद संस्कृत का निषेध वाक्य याद है -
    हिन्दू धर्मेतराणाम प्रवेशो निषिद्धः ......
    आप मथुरा का इस्कान मंदिर नहीं देखे क्या ? या देख आये और हमी भूल गए हैं ?

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  2. हम सब भी चमड़े के थैले ही हैं।

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  3. मथुरा में एक दिन पूरे बनारसी जीवन पर भारी!
    लगता है कान्हां मिल गये आपको!!

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