इस चिट्ठी में, मुक्तेश्वर में पीडब्लू के निरीक्षण भवन की चर्चा है।
मुक्तेश्वर में पीडब्लू का निरीक्षण भवन |
मुक्तेश्वर में हमारा आखरी पड़ाव पीडब्लू का निरीक्षण भवन था। यह भवन १८७५ में बना हुआ है और शायद यह आईवीआर से भी पुराना है। यह निरीक्षण भवन बहुत ही सुन्दर जगह पर है और इसके चारों तरफ का दृश्य सुन्दर है। इसी के ऊपर कुमायूं विकास मण्डल का अतिथि गृह भी बना हुआ है।
जिम कॉबेर्ट आदमखोर बाघिन को मारने आये थे तब यहीं ठहरे थे। वहां के लोगों ने केटली दिखायी, जिसमें उन्हें यहां चाय दी गयी थी। मालूम नहीं सच में या हमें बहला रहा था। लेकिन केटली इतनी भारी थी कि एक हाथ से उठाने में नानी याद आ गयी।
इसके बाद हम लोग वापस काठ गोदाम आये। वहां रात में रानी खेत एक्सप्रेस पकड़ कर वापस दिल्ली।
इसी के साथ कुमाऊं की यात्रा समाप्त होती है।
कुमाऊं यात्रा के बाद, हम गुजरात, अंडमान द्वीप समूह, और राजस्थान भी गये पर समयाभाव के कारण उन यात्राओं को नहीं लिख पाया। हांलाकि चित्र अवश्य खींचे है। देखिये हिम्मत पड़ती है और समय मिलता है तब वहां भी ले चलूंगा।
निरीक्षण भवन से बाहर का दृश्य |
जिम कॉर्बेट की कर्म स्थली - कुमाऊं
जिम कॉर्बेट।। कॉर्बेट पार्क से नैनीताल का रास्ता - ज्यादा सुन्दर।। ऊपर का रास्ता - केवल अंग्रेजों के लिये।। इस अदा पर प्यार उमड़ आया।। उंचाई फिट में, और लम्बाई मीटर में नापी जाती है।। चिड़िया घर चलाने का अच्छा तरीका।। नैनीताल में सैकलीज़ और मचान रेस्त्रां जायें।। क्रिकेट का दीवानापन - खेलों को पनपने नहीं दे रहा है।। गेंद जरा सी इधर-उधर - पहाड़ी के नीचे गयी।। नैनीताल झील की गहरायी नहीं पता चलती।। झील से, हवा के बुलबुले निकल रहे थे।। नैनीताल झील की सफाई के अन्य तरीके।। पास बैटने को कहा, तो रेशमा शर्मा गयी।। चीनी खिलौने - जितने सस्ते, उतने बेकार।।कमाई से आधा-आधा बांटते हैं।। रानी ने सिलबट्टे को जन्म दिया है।। जन अदालत द्वारा, त्वरित न्याय की परंपरा पुरानी है।। बिन्सर विश्राम गृह - ठहरने की सबसे अच्छी जगह।। सूर्य एकदम लाल और अंडाकार हो गया था।। बिजली न होने के कारण, मुश्किल तो नहीं।। हरी साड़ी पर लाल ब्लाउज़ - सुन्दर तो लगेगा ना।। यह इसकी सुन्दरता हमेशा के लिये समाप्त कर देगा।। सौ साल पुरानी विरासत, लेकिन रख रखाव के लिये पैसे नहीं।। वहां पहुंचने का कोई सुविधाजनक तरीका न था।। ठीक रख-रखाव के लिये, पुस्तक पर सोने की प्लेटिंग।।ठंडा रखने के लिये, प्रकृति का प्रयोग।।किलमोड़ा - अलमोड़ा नाम इसी नाम से पड़ा।।मोक्ष का स्थान - मुक्तेश्वर।। बाघिन को मार कर पोस्ट ऑफिस के सामने रखा था।। सन्तान प्राप्त करने का तरीका।।ऎसी चट्टानें तो केवल भगवान बना सकते हैं।। केटली इतनी भारी कि उठाने में नानी याद आ गयी।।
सांकेतिक शब्द
। Kuaon, Mukteshwar,
। Travel, Travel, travel and places, Travel journal, Travel literature, travelogue, सैर सपाटा, सैर-सपाटा, यात्रा वृत्तांत, यात्रा-विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा विवरण, यात्रा संस्मरण, मस्ती, जी भर कर जियो, मौज मस्ती,
इतनी भारी केटली उस समय के लोगों के लिये सहज थी या उनके लिये भी आश्चर्यवत थी।
ReplyDeleteबड़ी घटनाओं के नायक पुरुषों के साथ उत्तरोत्तर अतिरंज्नाएं जुड़ती जाती हैं यह ठेठ भारतीय मानस का एक ख़ास चरित्र हैं ०आल्ह काव्य इस प्रवृत्ति का अद्भुत प्रतिनिधि काव्य है .आल्हा के यहाँ ऐसी डेन्गची जी जिसमें कथित तौर पर नौ मन दाल आती थी(अमाती थी ...) और आप केतली की बात कह रहे हैं -ऐसी कोई डेगची उठानी पद जाय तो नानी क्या अल्लाह मियाँ याद आ जायं :-)
ReplyDeleteThat sounds interesting ! if you have any pic of that kettle then please post it .
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