इस चिट्ठी में, चर्चा है कि हमें चौधरी का ख़िताब कैसे मिला।
रारी में हमारा मकान
इस मकान को, चौधरी धनराज सिंह ने १९२० के दशक में बनवाना शुरू किया था। यह १९३४ में पूरा हुआ। धनराज सिंह और उनकी पहली पत्नी यहीं रहे। जिनसे उनके एक पुत्र चन्द्र भान सिंह हुऐ। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद, उन्होंने दूसरी शादी की। जिनसे उनकी कोई सन्तान नहीं हुई। वे अवकाश प्राप्त करने के बाद, यहां न रह कर, हमारे बाबा के साथ, बांदा में रहे।
इस मकान को, चौधरी धनराज सिंह ने १९२० के दशक में बनवाना शुरू किया था। यह १९३४ में पूरा हुआ। धनराज सिंह और उनकी पहली पत्नी यहीं रहे। जिनसे उनके एक पुत्र चन्द्र भान सिंह हुऐ। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद, उन्होंने दूसरी शादी की। जिनसे उनकी कोई सन्तान नहीं हुई। वे अवकाश प्राप्त करने के बाद, यहां न रह कर, हमारे बाबा के साथ, बांदा में रहे।
इस घर के फाटक के खम्बे पर, चौधरी धनराज सिंह ने अपने पिता और हम सब के पूर्वज, रामभवन का नाम, लिखवाया है। इस पर १९३४, जिस साल पूरा हुआ, भी लिखा है।
यह मकान बायें से दायें बहुत लम्बा है और एक फोटो में नहीं आ सका। यह फोटो भी, दो फोटों को जोड़ कर बनाया है। इसके बाद भी, दाहिने तरफ, कुछ और दूर तक है, जो नहीं जुड़ सका।
इस समय यहां पर रक्षपाल सिंह की शाखा के तीन परिवार अलग-अलग हिस्से में रह रहे हैं। उन्होंने ही कई चित्र भेजे थे, जिससे यह फोटो बनाया गया है।
तुम्हारे बिना
।। 'चौधरी' ख़िताब - राजा अकबर ने दिया।। बलवन्त राजपूत विद्यालय आगरा के पहले प्रधानाचार्य।। मेरे बाबा - राजमाता की ज़बानी।। मेरे बाबा - विद्यार्थी जीवन और बांदा में वकालत।। बाबा, मेरे जहान में।। पुस्तकें पढ़ना औेर भेंट करना - सबसे उम्दा शौक़।। सबसे बड़े भगवान।। मेरे नाना - राज बहादुर सिंह।। बसंत पंचमी - अम्मां, दद्दा की शादी।। अम्मां - मेरी यादों में।। दद्दा (मेरे पिता)।। My Father - Virendra Kumar Singh Chaudhary ।। नैनी सेन्ट्रल जेल और इमरजेन्सी की यादें।। RAJJU BHAIYA AS I KNEW HIM।। मां - हम अकेले नहीं हैं।। रक्षाबन्धन।। जीजी, शादी के पहले - बचपन की यादें ।। जीजी की बेटी श्वेता की आवाज में पिछली चिट्ठी का पॉडकास्ट।। चौधरी का चांद हो।। दिनेश कुमार सिंह उर्फ बावर्ची।। GOODBYE ARVIND।।