Tuesday, June 01, 2010

गाड़ी से आंटा लेते आना, रोटी बनानी है

स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट कुछ अलग तरह के रुकने की जगहें हैं।
इस चिट्ठी में मनाली में स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट की चर्चा है।
 
हम लोगों का आरक्षण स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट में था। इनके बहुत से रिज़ॉर्ट भारत वर्ष में हैं। यह अच्छे होटल हैं पर कुछ अलग तरह के हैं। इनके कमरों में ही छोटा सा किचन होता है जिसमें आप खाना भी बना सकते हैं।

मनाली के स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट में दो ब्लॉक थे। एक ब्लॉक में किचन था पर दूसरे में नहीं। किचन में, हर तरह के बर्तन थे। हम लोग किचन वाले ब्लॉक में थे। मैं नहीं जानता की यह विचार कहां से लिया गया। मुझे यह व्यवहारिक नहीं लगता था क्योंकि मेरे विचार में लोग अक्सर घूमने के लिए जाते है और खाना बनाने में व्यस्त नहीं रहना चाहते है पर मैं गलत था। शुरू में, उलझन भी लगी पर धीरे धीरे मज़ा आने लगा।

इसमे मुझे कुछ कमियां लगीं। आजकल तो मामूली होटल में भी बिजली की केतली, चाय, चीनी, दूध पैकेट रखे रहते है। सारे होटलों में, स्वयं चाय बनाने की बात रहती है लेकिन यहां पर बर्तनो में न तो बिजली की केटली थी, न चाय, दूध चीनी के पैकेट थे। वहां पर बिजली का एक हीटर था। चाय हीटर में गर्म करके बनानी होती थी। इसमें ज्यादा बर्तन गन्दे होते हैं फिर उन्हें धोना भी पड़ता है। जितने कम बर्तनों का प्रयोग हो, उतना ही अच्छा होता है।

स्टर्लिंग का इसी तरह का रिज़ॉर्ट ऊटी में भी है। हम लोग वहां दस साल पहले ठहरे थे। लेकिन ऊटी में सबसे अच्छी बात यह थी कि वहां पर रिज़ॉर्ट के अंदर ही एक छोटी से दुकान थी जिसके यहां आप सब चीजें खरीद सकते थे। यहां पर सामान खरीदने के लिए होटल के बाहर जाना पड़ता था। लेकिन रोड़ पार करते ही, एक दुकान थी जहां पर सारी चीजें मिल जाती थीं।

मैंने स्वागत कक्ष पर रखी शिकायत पुस्तक में इस बात को लिखा कि वे इन कमरों में बिजली की केटली, टी बैग, मिल्क वगैरह की सुविधा दें। इसका पैसा वे चाहें तो अलग से ले लें। हो सकता है कि जब आप वहां कभी जायें, तो यह सुविधा मिले। तब मुझे धन्यवाद देना न भूलियेगा।


बिजली की केटली न होने कारण शुरू में उलझन लगी। लेकिन मुझे कभी, कभी पीठ में दर्द होता है इसलिये हम बिजली की केटली भी साथ रखते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर पानी गरम कर, गर्म पानी की बोतल से पीठ सेकी जा सके। हम इस बार भी बिजली की केटली साथ ले गये थे। इसलिये चाय बनाने में उलझन नहीं हुई।
सफाई करने की भी जिम्मेवारी मेरी थी।

हम लोग सुबह जाकर डबल रोटी, ब्रेड, अंडे, प्याज, रिफाइन तेल का छोटा पैकेट दूध, १०० ग्राम चीनी और कुरकुरे खरीद लाये। मैं अपने लिए आमलेट बनाता था। टोस्ट को हम रिफाइन आयल में फ्राई करते थे। अमूल दूध का एक पैकेट भी खरीद लिया था। मेरी पत्नी आमलेट की जगह उबला अंडा पसन्द करती थी। नाश्ता बनाने की जिम्मेदारी मेरी रहती थी। इस काम में आनन्द आने लगा।

हम लोग रात का खाना नहीं बनाते थे। लगता है बहुत से लोग रात का खाना बनाते है क्योंकि पहले दिन हम लोग रात का खाना खाने जा रहे थे। ऊपर से एक महिला की आवाज सुनायी पड़ी। वह अपने पति से कह रही थी।

'गाड़ी में आटा रखा है, लेते आना, रोटी बनानी है'।
मैने स्वागत कक्ष में पूछा कि कितने लोग स्वयं अपना खाना भी बनाते हैं। स्वागत कक्ष पर युवक ने बताया,
'उसमें सुबह की चाय सब अपने आप बनाते हैं। ५० प्रतिशत लोग नाश्ता भी स्वयं बनाते है। २० प्रतिशत लोग नाश्ते के साथ रात का खाना भी स्वयं बनाते है। क्योंकि घर का बना हुआ खाना उबला हुआ, बिना मसाले का होता है जो कि होटल के खाने से कहीं बेहतर है। रोज़ रोज़  बाहर का खाना खाते खाते आदमी ऊब जाता है। दोपहर का खाना लोग बाहर खाते हैं।'

यानि कि, हम ५० प्रतिशत लोग जैसे थे जो सुबह का नाश्ता स्वयं बनाते थे। यह भी, छुट्टियों का आनन्द लेने का अलग तरह से तरीका है। जो कि शायद समान्य तरह के होटल में रहकर पूरा नहीं हो सकता है। यह भी सच है कि रोज़  बाहर का खाना भी नहीं खाया जा सकता है।

स्टर्लिंग रिज़ॉर्ट में, प्रत्येक शाम को कुछ न कुछ गतिविधि होती रहती थी - कभी बुझौवल, तो कभी ज्ञान विज्ञान, प्रतियोगिता कभी कविताओं की तो कभी गानों की शाम। एक व्यक्ति हम लोगों को रोज उसमें भाग लेने के लिये फोन करता था। लेकिन हम इतने थके रहते थे कि वहां नहीं जा पाते थे।

एक रात को खाना खा कर लौट रहे थे, एक हॉल से गाने की आवाज आ रही थी। उस दिन शाम को वही गतिविधि थी। हम लोग वहां रुके अच्छा लगा। ईश्वर ने बहुत कुछ मुझे दिया पर संगीत, नृत्य चित्रकारी, कविता जैसी बेहतरीन विधाओं को से दूर रखा। ऐसी जगह जा कर लगता है कि मैंने क्यों नहीं बचपन में इनमें रुचि ली। यदि लेता तो शायद आज बात अलग होती है।


स्टर्निंग रिज़ॉर्ट  में मुझे एक बात अजीब लगी। एक दिन जब रात्रि में खाना खाकर वापस आये तो हमारे कमरे में सिगरेट की बदबू आ रही थी। हमारी समझ में नहीं आया कि यह कैसे हो गया क्योंकि, हमारे कमरे में कोई नहीं आया था। बाद में इसका कारण, हमारी समझ में आया।

रिज़ॉर्ट की लॉबी में स्मोकिंग करना मना था। लेकिन कमरों में स्मोकिंग करना मना नहीं था। यानी कि आप अपने कमरे में सिगरेट पी सकते थे। हर कमरे के बाथरूम में एक्ज़ॉस्ट फैन लगा हुआ था। एक तल के कमरों में एक्ज़ॉस्ट, एक पाइप में हवा फेंकते थे और वह होटल के बाहर निकलती थी। लगता है कि बगल के कमरे से किसी ने सिगरेट पीते समय अपना एक्ज़ॉस्ट चल रखा था। हम  कमरे में नही थे। इसलिए हमारे कमरे का एक्ज़ॉस्ट नही चल रहा था। इस कारण पाइप से सिगरेट का धुंआ हमारे कमरे में आ गया। अगली बार जब हम कमरे से बाहर गये तो एक्ज़ॉस्ट चला कर गये ताकि किसी अन्य कमरे से सिगरेट का धुआं हमारे कमरे में न आ सके और ऐसा ही रहा। फिर हमारे कमरे में सिग्रेट का धुआं नहीं आया।


मेरे विचार से  कमरों  में भी सिगरेट पीने की मनाही होनी चाहिये। मैं जर्मनी और साउथ अफ्रीका में होटल में ठहरा था। वहां न केवल लॉबी में पर कमरों में भी सिगरेट पीना मना था। हलांकि कुछ खास कमरे थे। केवल उनमें ही सिगरेट पी जा सकती थी। यहां भी ऐसा ही होना चाहिए। मैंने इसके बारे में भी स्वागत कक्ष में कहा भी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि अपने देश मे कमरों में सिगरेट पीने में, कभी मनाही हो सकेगी।

देव भूमि, हिमाचल की यात्रा

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6 comments:

  1. निश्चित ही कमरों में सिग्रेट पीने की मनाही होना चाहिए। होटल में एक अलग कमरा होना चाहिए जहाँ सिगरेट पी जा सके।

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  2. अच्छा वृत्तान्त रहा उन्मुक्त जी.
    आपका चेहरा देखने का एक मौका था, वह भी आपने न दिया.
    सिगरेट पीने की सम्पूर्ण पाबन्दी होना कठिन है. मेरे दफ्तर में आदमी कहीं भी पी लेते हैं.

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  3. बढियां -इस जहाँ में सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता -डार्विन बिचारे भी कविता ,संगीत में अपनी रूचि के कम होते जाने से दुखी थे-आप तो फैंटम की तरह अपना चेहरा हमेशा छुपा ही लेते हैं ! यह भी एक अच्छी लुका छिपी है .....

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  4. रोचक संस्मरण

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  5. संस्मरण तो बहुत रोचक रहा...बन्द कमरों में सिगरेट पीने की मनाही तो निश्चित तौर पर होनी ही चाहिए...

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