Wednesday, April 25, 2007

अंकल तो बच्चे हैं

गोवा से अपने कसबे पंहुचने के लिये, हमें पहले हवाई जहाज से फिर ट्रेन की यात्रा करनी थी। एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन पंहुंचने समान्यतः ४५ मिनट का समय लगता था। हवाई जहाज के पहुंचने तथा ट्रेन के चलने में ३ घंटे का समय था। हमारे विचार से यह काफी था और आराम से ट्रेन पकड़ सकते थे। गोवा एयरपोर्ट पर हवाई जहाज की फ्लाइट फिर से निर्धारित कर, ढ़ाई घन्टा देर से उड़ी। हम लोग कुछ तनाव में आ गये, लगा कि कहीं गाड़ी न छूट जाये।

हवाई जहाज में उड़ते समय विमान परिचारिका ने उद्घोषणा की, कि अन्तरराष्ट्रीय नियम के अनुसार, उड़ते तथा उतरते समय,
  • खिड़की के शटर खुले रखें;
  • हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी बन्द कर दी जायगी।
शटर इसलिये खुले रखे जाते हैं कि यदि कोई बाहर दुर्घटना हो तो वह दिखायी पड़ जाय पर मुझे यह नहीं मालुम था कि हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी क्यों बन्द कर दी जाती है। मैंने परिचारिका को बुलाने वाला बटन दबाया। वह कुछ देर बाद आयी तब तक मैं The Economics Times में ढूब चुका था। एक मीठी अवाज, बनावटी मुस्कराहट के साथ, सुनायी पड़ी,
'May I help you, Sir'
मैंने अखबार से नजर उठाते हुऐ कहा,
'मुझे अंग्रेजी कम समझ में आती है क्या हम हिन्दी में बात कर सकते हैं।'
उसने The Economics Times की तरफ कड़ी नजर डाली, फिर मुस्करायी। इस बार मुझे उसकी मुसकराहट बनावटी नहीं लगी। मुझे तो वह बिलकुल अपने मुन्नी जैसी लगी। उसकी मुस्कराहट जैसे कह रही हो, कि पापा तुम्हें तो झूट बोलना भी नहीं आता पर उसने मुस्करा कहा कि,
'अंकल मुझे भी हिन्दी अच्छी लगती है पर क्या करूं यहां पर अंग्रेजी बोलने को कहा जाता है।'
वह काफी देर तक बतियाती रही। बिलकुल वैसे ही जैसे कि मुन्नी अक्सर लड़ियाती है। उसने मुझे बताया कि परिचारिका की ट्रेनिंग में क्या क्या सिखाया जाता है और यह भी बताया कि,
'हवाई जहाज के अन्दर की रोशनी इसलिये बन्द कर दी जाती है कि दुर्घटना हो और बहर जाना पड़े तो आंखे न चौधियाऐं।'
मेरे उसे यह बताने पर कि मुझे न केवल उड़ान के बारे में पर शायद जीवन में उन सब बातों में रुचि है जो मुझे नहीं मालुम हैं पर वह मुन्ने की मां से बोली,
'दीदी, अंकल तो बच्चे हैं।'
वह नये युग की थी। जानती थी कि, अब किसी भी महिला को आंटी नहीं कहा जाता है केवल दीदी या भाभी।

एयरपोर्ट में मेरे सहयोगी ने अपनी कार ड्राईवर के साथ भेजी थी। कार में बैठने और ट्रेन छूटने में केवल ३० मिनट शेष था। ड्राईवर बहुत कुशल था। उसने हमें केवल २९ मिनट में रेवले स्टेशन पंहुचाया। मैं लैपटॉप लेकर प्लेटफॉर्म पर डिब्बे के सामने पहुंचा तो ट्रेन ने चलना शुरू कर रही थी। मैं तो चढ़ गया। मुन्ने की मां एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में एक हैण्ड बैग पकड़े थी। चढ़ते समय उसका पैर फिसला, पर उसका पैर वापस प्लेटफॉर्म पर। मैंने उससे बैग लिया और दूसरे हाथ से उसे ट्रेन में चढ़ने में सहायात की। समान भी और लोगों ने चलती ट्रेन में चढ़ाया।

कुछ देर बाद समान ठीक से रख कर मैंने उससे कहा कि वह हैण्ड बैग क्यों पकड़े थी कहीं वह वास्तव में ऊपर चली जाती तो। उसने कहा कि वह निश्चिंत थी कि वह चढ़ जायगी इसलिये उसने ट्रेन में चढ़ने का प्रयत्न किया। वह कुछ आगे और भी कह रही थी पर तब तक मेरा लैपटॉप खुल चुका था। मेरी उंगलियां गोवा की यात्रा का संस्मरण लिखने के लिये थिरकने लगी थीं। फिर भी मैंने उसे कहते हुऐ सुना,
'इतनी जल्दी मुझसे पल्ला झाड़ रहे थे। सुना नहीं था कि परिचारिका कह रही थी कि तुम बच्चे हो अभी तो तुम्हें २५ साल और देखना है जब तक बड़े न हो जाओ।'
मैंने उसकी बात अनुसुनी कर दी। २५ साल तो बहुत समय होता है, मेरे पास शायद केवल १० या १२ साल का समय है। बहुत कुछ करना है, इसीलिये मैं काफी हड़बड़ी में रहता हूं।

इसी कड़ी के साथ गोवा की यात्रानामा समाप्त होती है। हो सका तो अगली बार, मैं आपको कशमीर ले चलूंगा।


गोवा
प्यार किया तो डरना क्या।। परशुराम की शानती।। रात नशीले है।। सुहाना सफर और यह मौसम हसीं।। डैनियल और मैक कंप्यूटर।। चर्च में राधा कृष्ण।। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।। न मांगू सोना, चांदी।। यह तो बताना भूल ही गया।। अंकल तो बच्चे हैं

9 comments:

  1. Anonymous12:01 am

    धन्यवाद गोवा यात्रा के बारे में इतना विस्तार से बताने के लिये! मुन्ने की मां जी का कुछ ख्याल रखा कीजिये !

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  2. हम तो मनायेंगे कि मात्र 25 ही क्यों, आपके पास उससे भी कई गुना समय हो। और जहाँ तक कम समय और अधिक कार्य की बात है तो अंग्रेज़ी में (शायद लैटिन भाषा की) कहावत है, Arsa Longa, Vita Brevis (Art is Long and Life is Short) करने को, सीखने को तो बहुत कुछ है - अनंत, असीम पर जीवन तो सीमित ही है! तब फिर इसमें क्यों हड़बड़ी की जाय। कोई अनंत कार्य तो कभी कर ही नहीं सकता, फिर क्योंकर तनाव। (मैं भी व्यवहार में इस का अनुपालन नहीँ कर पाता)

    आपका गोवा यात्रा-वृत्तांत तो अच्छा रहा, कश्मीर का इंतज़ार रहेगा, पर उससे पहले और भी बहुत कुछ।

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  3. बहुत बेहतरीन रही गोवा यात्रा. भाई जी, अब कितने साल तो किसने देखा है, मगर सोचें तो दूर तक. अनेकों शुभकामनायें... :)

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  4. रुचिकर, वो हेयर डाई वाली एड याद आ गई जिसमें एक लड़का व्यक्ति को अंकल और उसकी पत्नी को दीदी कहता था।


    @राजीव,
    धन्यवाद Arsa Longa, Vita Brevis बहुत बार सुना था, आपने मतलब बताया।

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  5. Anonymous11:20 am

    उन्मुक्त अंकल, काफी अच्छा लगा आपका संपूर्ण यात्रा वृत्तांत... :)

    आपसे एक गुजारिश है, ये जो ब्लाग खोलने पर नज्म बजती है, वो क्या ऐसा नही हो सकता कि डिफाल्ट मोड में Pause रहे और जो सुनना चाहे वो Play का बटन दबा कर सुन सके ।

    डिफाल्ट प्ले रहने से कभी कभार ऐसी जगह, जहाँ गाना-बजाना मना हो (मसलन आफिस), अचानक आपका चिट्ठा खोलते ही अप्रिय सी स्थिति पैदा हो जाती है..

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  6. Anonymous1:26 pm

    आप्की गोवा यात्रा बहुत खूब लगी...
    यकीनन अब कश्मीर यात्रा का इंत्ज़ार रहेगा ...
    बहुत बहुत शुभ्काम्नाये आप्को...

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  7. गोवा की यात्रा खूब रही..
    अब कहां की यात्रा कराएंगे?

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  8. नितिन जी आपकी बात के बारे मे नहीं सोचा था। मैंने इसे ठीक कर दिया है और आगे भी ख्याल रखूंगा। यह बताने के लिये धन्यवाद।

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  9. उन्मुक्त जी आपकी गोवा यात्रा पढ़कर बहुत अच्छा लगा। अच्छा लगा जो आपने हवाई जहाज मे बत्ती बंद क्यों करते है इसके बारे मे बताया ।

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आपके विचारों का स्वागत है।