Friday, September 02, 2011

महिलाओं की पसन्द

इस चिट्ठी में चर्चा है कि,
  • अन्तरजाल पर लेखन को कॉपीराइट से मुक्त रखने से क्या फायदा है; और
  • इससे कैसे पैसा कमाया जा सकता है।

'उन्मुक्त जी, आप भी बस। यह शीर्षक, सुन्दर सी महिला का चित्र, और इस चिट्ठी का सार—यह कितना बेमेल है। इनका इस विषय से क्या संबन्ध? हुंः।' 

अरे मित्र, जरा ठहरिये।   

मैं तीन चिट्ठे 'उन्मुक्त', 'छुटपुट', और 'लेख' लिखता हूं। कुछ साल पहले, इन पर एक वेबसाइट  से लोग, मेरी चिट्ठियों को पढ़ने के लिये आने लगे। मेरी समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है। देखने पर मालुम चला कि जिस वेबसाइट से लोग आ रहें हैं उसका नाम है उन्मुक्त – Unmukt: हिन्दी चिट्ठाकार उन्मुक्त की चिट्ठियाँ इसमें मेरे तीनों चिट्ठों की चिट्ठियां हैं। यह कौन व्यक्ति है; वह ऐसा क्यों करता है; इससे, उसे क्या फायदा है—मुझे नहीं मालुम पर वह ऐसा कुछ सालों से कर रहा है। 

रवी जी ने, 'जरा सामने तो आओ छलिए...' नाम से एक चिट्ठी, उक्त व्यक्ति के लिये लिखी। लेकिन इसने न तो कोई जवाब दिया, न ही कुछ स्पष्ट किया। मैंने उस वेबसाइट पर कुछ टिप्पणियां भी की, पर न तो उसने जवाब दिया और न ही कभी ईमेल भेजा।  

शायद, मुझे सजा देने का, इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता। क्योंकि, इसके अलावा कि मैं एक छोटे से कस्बे से हूं अन्य परिचय नहीं देता हूं। मैं अज्ञात होकर चिट्ठाकारी करता हूं। हांलाकि यह गैर बात है कि अन्तरजाल में कोई कैसे अज्ञात रह सकता है।

कुछ दिन पहले, मेरे इसी 'उन्मुक्त' चिट्ठे पर 'Interests Of Womens' नामक एक अन्य वेबसाइट से लोग आने लगे। मुझे कुछ आश्चर्य लगा। इस वेबसाइट पर जा कर देखने से मालुम हुआ कि मेरे उन्मुक्त चिट्ठे की शुरुवात यानि कि फरवरी २००६ से फरवरी २०११ तक की सारी चिट्ठियां इसमें हैं। उनके बीच, अंग्रेजी में, महिलाओं से सम्बन्धित चिट्ठियां भी हैं। इस चिट्ठी के सारे चित्र, ऊपर सुन्दर महिला के चित्र सहित, इसी वेबसाइट से हैं।  


इस वेबसाइट में, महिलाओं के स्वास्थ, सुन्दरता, श्रृंगार, आभूषण से सम्बन्धित चिट्ठियां तो सब महिलाओं पर लागू होती हैं लेकिन महिलाओं के कपड़े पाश्चात्य हैं। इस तरह के कपड़ों का पहनावा अपने देश में नहीं है—कम से कम मेरे कस्बे की महिलायें तो नहीं पहनती हैं। हो सकता कि बड़े शहर में महिलायें पहनती हों। 

इस चिट्ठे की मेरी चिट्ठियों पर, मेरा नाम नहीं है लेकिन वे उसी तरह हैं जैसे मेरी चिट्ठियां हैं। इस कारण मेरी अन्य चिट्ठियों का लिंक है। यदि आप उन पर चटका लगायें तो आप मेरे चिट्ठों या पॉडकास्ट 'बकबक' पर पहुंच जायेंगे।

 मैं इस चिट्ठे को चलाने वाले को भी नहीं जानता। इससे मेरी कभी ईमेल से बात नहीं हुई। मैंने इस पर कुछ टिप्पणी भी की, पर इसने कोई जवाब नहीं दिया।

यह दोनो वेबसाइटें, मेरी चिट्ठियां को पुनः प्रकाशित कर, कोई गैरकानूनी कार्य नहीं कर रहीं हैं। क्योंकि, अन्तरजाल पर मेरा लेखन कॉपीराइट से मुक्त है। कोई भी मेरी चिट्ठियों को—संशोधन कर के, या बिना संशोधन किये—मेरे नाम से, या अपने नाम से, छाप सकता है। 

मैं 'उन्मुक्त – Unmukt: हिन्दी चिट्ठाकार उन्मुक्त की चिट्ठियां' चिट्ठे का शुक्रगुज़ार हूं कि इसने अपना चिट्ठा मेरी चिट्ठियों का कह कर बनाया है। 'Interests Of Womens'  चिट्ठे पर मेरी अन्य चिट्ठियों का लिंक है जिन पर चटका लगाने से वह मेरे चिट्ठों या पॉडकास्ट पर पहुंच सकता है। यह उन चिट्ठों से बेहतर है जो बिना इस तरह का लिंक दिये, मेरी चिट्ठियां के निहित विषय को अपने चिट्ठे पर छाप देते हैं। लेकिन उसमें भी कोई गलती नहीं है। क्योंकि मेरा लेखन कॉपीराइट की झंझटों से मुक्त हैं। इनसे मेरे अन्तरजाल पर लिखने का प्रयोजन भी सफल होता है जैसा कि शुभा ने यहां स्पष्ट किया है।

मेरे विचार से इन वेबसाइटों पर मेरी चिट्ठियां इसलिये हैं क्योंकि मेरा लेखन कॉपीराइट से मुक्त हैं। 

कुछ साल पहले मैथली जी ने 'कैफे हिन्दी' नामक वेबसाइट पर लोगों की चिट्ठियां उनके नाम से प्रकाशित किये। उस समय विवाद उठा था। तब भी, मैंने अपने यही विचार 'डकैती, चोरी या जोश या केवल नादानी' नाम से लिखे थे। यह विवाद कुछ समय पहले फिर उठा। उस समय भी 'जिया धड़क धड़क जाये ' चिट्ठी पर अपनी बात रखी।

'उन्मुक्त जी लेकिन इससे फायद क्या होगा, क्या पैसे मिल सकेंगे?' 
जरूर मिलेंगे। जब किसी लेखक की रचना पत्रिका या पुस्तक में छपती है तब पत्रिका के द्वारा कुछ पैसा लेखक को या पुस्तक के बिक्री पर मिले पैसे का अंश लेखक को मिलता है। यही उसकी आमदनी है। लेकिन अन्तरजाल पर ऐसा नहीं होता। कुछ वेबसाइट पर जाने के लिये पैसा देना होता है। लेकिन, लगभग सारी वेबसाइट मुफ्त ही हैं। अन्तरजाल पर पैसा विज्ञापनों से आता है। विज्ञापन तभी मिलते हैं जब लोग आपकी वेबसाइट पर आयें। इस बात की कुछ विस्तार से चर्चा,  मैंने 'अंतरजाल की मायानगरी में' श्रृंखला की 'लिकिंग, क्या यह गलत है' कड़ी में किया है।

मेरे चिट्ठों पर, बहुत से लोग, इन वेबसाईटों से आते हैं। मेरे चिट्ठों पर कोई विज्ञापन नहीं हैं। क्योंकि मेरा उद्देश्य, पैसा कमाना न होकर अपनी बातें लोगों के सामने रखना और विचार फैलाना है। यदि मैं विज्ञापन रखूं हो सकता है कि उनसे कुछ पैसा मिले। यदि ऐसा हो तब उसमें इन दोनो वेबसाइट का योगदान रहेगा।


यदि आप चाहते हैं कि दूसरे व्यक्ति आपकी रचनाओं को बिना संशोधन या संशोधन कर,
दूसरों का, आपकी रचानयें छापना, अवश्य ही लोगों को आपके चिट्ठे पर लायेगा। यह विज्ञापनों को बढ़ायेगा और उनसे होने वाली आमदनी भी। 


विकीपीडिया एक बेहतरीन वेबसाइट है। इसके बारे में कुछ तथ्य आप यहां पढ़ सकते हैं। विकिपपीडिया पर लेख डालने से भी, लोग आपके चिट्ठे पर आते हैं। है। विकिपीडिया पर मैंने कुछ लेख डालें हैं। वहां से लोग अक्सर मेरे चिट्ठों पर आते हैं। लेकिन आजकल समयाभाव के कारण, मैं लेख विकिपीडिया पर नहीं डाल पा रहा हूं। कोशिश करके, पुनः शुरू करूंगा।  

यह तो हुआ, आमदनी बढ़ाने के तरीके और कॉपीलेफ्ट के बारे में बातें। मैंने यह चिट्ठी उस चिट्ठे के संदर्भ से शुरू की जिसके अधिकतर चिट्ठियां महिलाओं के सौंदर्य के बारे में है इसलिये कुछ बातें - खूबसूरती पर। 

यह सच है कि महिलाओं की स्कर्ट छोटी नहीं हो सकती और सुन्दर वह, जो सुन्दर काम करे। वास्तव में  खूबसूरती का राज और सुन्दरता का पैमाना कुछ और है। लेकिन यह भी शक नहीं कि स्वस्थ एवं सुन्दर मानव (महिला या पुरुष) सबको अच्छा लगता है। किसी व्यक्ति की पहली धारणा, उसके स्वस्थ शरीर, उसकी शारीरिक सुन्दरता, और कपडों के पहनने के ढ़ंग से होती है। यह भी, जीवन में महत्वपूर्ण है। 


अच्छे पहनावे की बात, मैंने, अलग तरीके से, 'पृथ्वी, हमारे पास, वंशजों की धरोहर है' में और स्वस्थ रहने के लिये साइकिल चलाने की बात, केरल यात्रा की कड़ी 'साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं' में की है। 

मेरी पत्नी, शुभा और बिटिया परी को फैशन पसन्द नहीं हैयह बात मैंने अपनी 'सिक्किम – छोटा मगर सुन्दर' श्रृंखला की 'मस्का नहीं, मस्कारा कैसे लगायें और मस्का पायें' कड़ी में बताया था।  

लेकिन, मुझे फैशन अच्छा लगता है। मैं कभी, कभी 'Iterest of Womens' वेबसाइट पर जाता हूं, इसकी चिट्ठियों पर एक नज़र डालता हूं। मुझे अच्छा लगेगा कि शुभा और परी कभी इस वेबसाईट पर नजर डालें। आप भी इसे देखें। शायद, आपको यह काम की वेबसाइट लगे। 

हांलाकि, इस वेबसाइट की एक बात समझ में नहीं आयी यह Interest of Womens क्या होता है। शायद शीर्षक Women's interest या All that Interests Women होता, तो ठीक था।
  
इस चिट्ठी के सारे चित्र Interest of Womens चिट्ठे से हैं।

हिन्दी में नवीनतम पॉडकास्ट Latest podcast in Hindi

सुनने के लिये चिन्ह शीर्षक के बाद लगे चिन्ह ► पर चटका लगायें यह आपको इस फाइल के पेज पर ले जायगा। उसके बाद जहां Download और उसके बाद फाइल का नाम अंग्रेजी में लिखा है वहां चटका लगायें।:
Click on the symbol ► after the heading. This will take you to the page where file is. his will take you to the page where file is. Click where ‘Download’ and there after name of the file is written.)
यह पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में है। यदि सुनने में मुश्किल हो तो,
ऊपर दाहिने तरफ का विज़िट, 'बकबक पर पॉडकास्ट कैसे सुने', पढें। 

About this post in Hindi-Roman and English 
is chitthi  mein, rachanaon ko anterjaal mein, copyright se mukt rkhne ke fayde aur paisa kamaane ke baare mein charcha hai. yeh {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. iske liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

Keeping ones writing on the Internet, free of copyright has its own advantages and may lead to earning money. This post talks about the same. It is in Hindi (Devnagri script). You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
Beauty, fashion,
culture, Family, Inspiration, life, Life, Relationship, जीवन शैली, समाज, कैसे जियें, जीवन, दर्शन, जी भर कर जियो,


6 comments:

  1. पता नहीं कौन है पर है तो आपका शुभचिन्तक।

    ReplyDelete
  2. इन दिनों फुरसत में लग रहे हैं उन्मुक्त जी....
    रोचक और जानकारियों से अटी पटी पोस्ट...
    आपका यह उद्घोष लोगों के लिए प्रेरणा सूत्र का काम करता रहता है -
    "हांलाकि यह गैर बात है कि अन्तरजाल में कोई कैसे अज्ञात रह सकता है।"
    आपके सौन्दर्यबोध की भी प्रशंसा की जानी चाहिए .....मगर मेरा मूड नहीं है आज इंगित वेबसाईट पर जाने का ..
    फिर कभी गर याद रहा

    ReplyDelete
  3. अरविन्द जी, फुरसत का क्या कहूं लेकिन प्रयत्न करता हूं कि हर शुक्रवार को एक चिट्ठी और हर दो हफ्ते में एक बार पॉडकास्ट प्रकाशित करूं। चिट्ठी तो किसी तरह निभ जाती है पर पॉडकास्ट नहीं।

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत अच्छी बात बांची जो आपने बताई ।

    ReplyDelete

आपके विचारों का स्वागत है।