Friday, June 03, 2011

ईश्वर का आस्तित्व नहीं है

ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का एक रूप यह भी सिद्ध करता है कि ईश्वर का आस्तित्व नहीं है। आज कुछ चर्चा उसी के बारे में।
इस चिट्ठी को आप सुन भी सकते हैं। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह पॉडकास्ट ogg फॉरमैट में है। यदि सुनने में मुश्किल हो तो ऊपर दाहिने तरफ का पृष्ट, "'बकबक' पर पॉडकास्ट कैसे सुने" देखें।
यह कार्टून मेरा बनाया नहीं है। मैंने इसे यहां से लिया है।
Cartoon by Nicholson from "The Australian" newspaper: www.nicholsoncartoons.com.au


कुछ समय पहले मैंने 'तू डाल डाल, मैं पात पात' श्रृंखला में 'नाई की दाढ़ी कौन बनाता है' कड़ी लिखते समय ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का जिक्र किया था। इसे लिखते समय विश्वविद्यालय की बहुत सारी समृतियां ताजी हो गयीं। इसमें से एक, ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास के उस रूप की भी है जो सिद्ध करता है कि ईश्वर का आस्तित्व नहीं है। आज कुछ चर्चा उसी के बारे में। लेकिन पहले कुछ सेट और ईश्वर के बारे में।

सेट क्या होता है
सेट  चीज़ों, वस्तुओं, पदार्थों का संकलन है (A set is a well defined collection of distinct objects)। जैसे,
  • परिवार का सेट -  इसमें आपके माता पिता भाई बहन बेटे बेटियां हो सकते हैं;
  • घर का सेट – इसमें आपके घर की ईमारत कमरे, पलंग, कुर्सी  हो सकते है;
  • घर एवं परिवार का सेट – इसमें ऊपर के दोनो तरह के वस्तुओं और लोगों का संकलन हो सकता है।
इस सेट में जितने सदस्य होते हैं वह उस सेट की गणनीयता (cardinality) कहलाता है। यह सीमित अथवा असीमित या अनन्त {जैसे कि पूर्ण संख्याओं (integers) का सेट} भी हो सकता है। अब कुछ बातें ईश्वर के बारे में।


ईश्वर की परिभाषा
ईश्वर को परिभाषित नहीं किया जा सकता लेकिन उसमें तो सारी सृष्टि व्याप्त है। यानि ईश्वर एक ऐसा सेट है जिसमें सब कुछ समाहित है, संकलित है। अथार्त ईश्वर सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है। लेकिन क्या गणित में ऐसा सेट हो सकता है? अब चलते हैं विश्वविद्यालय की घटना पर।


विश्वविद्यालय की घटना
१९६० का दशक था। भौतिक शास्त्र विभाग ने अंग्रेजी में वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित की थी। इसमें विषय था,
This house does not believe in existence of God
यह सभा ईश्वर के आस्तित्व पर विश्वास नहीं करती।

विश्वविद्यालय के सारे विभागों के विद्यार्थी भाग ले रहे ते।  मैं और मेरी मित्र-मंडली विज्ञान संकाय के थे और श्रोता के रूप में उपस्थित थे।  वाद-विवाद प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद, निर्णायक आपस में मंत्रणा करने लगे और विषय को सभा के विचार के लिये छोड़ दिया गया।

यह वाद-विवाद प्रतियोगिता भौतिक शास्त्र के मुख्य हॉल में थी। इसमे दो ब्लैकबोर्ड थे। एक नीचे रहता था जिसपर गुरुजन लिखते थे उस समय दूसरा ऊपर रहता था। जब वह भर जाता था तब उसे ऊपर करने से दूसरा नीचे आ जाता था। जिस पर गुरुजन लिखते थे। हमारे समय में अधिकतर विश्वविद्यालयों में इसी तरह के ब्लैक बोर्ड रहते थे। ऊपर वाले पर विषय लिखा था ताकि सब पढ़ सकें, नीचे वाला सादा था।

मैंने अपने दोस्तों के बारे में अपनी शुरुवात की चिट्ठियों में जिक्र किया है। सोचा था कि उन पर लिखूंगा पर लिख नहीं पाया। मैंने सबसे पहले उर्मिला की कहानी लिखी। इसकी पहली कड़ी 'मुन्ने की मां को गुस्सा क्यों आया' में अपने कई मित्रों का जिक्र किया है। उनमें से ईकबाल एक है। वह मेरे प्रिय मित्रों में था। वह उठा और उसने नीचे वाले ब्लैकबोर्ड जो खाली था उस पर अंग्रेजी में लिखना शुरू किया

'ईश्वर का आस्तित्व नहीं है
परिभाषा के अनुसार ईश्वर सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है। लेकिन क्या ऐसा सेट हो सकता है।
हम मान कर चलते हैं कि ऐसा सेट हो सकता है। उसके बाद देखते हैं कि इसका क्या फल निकलता है।
यह सेट, दो तरह के सेटों का जोड़ (union) है।
  • पहला सेट 'क' – यह उन सेटों का सेट जो अपने सेट के सदस्य नहीं हैं
  • दूसरा सेट 'ख' - यह उन सेटों का सेट जो अपने सेट के सदस्य  हैं
सवाल यह है कि सेट 'क' कहां है। क्या वह सेट 'क' में है या सेट 'ख' में
यदि वह सेट 'क', 'क' के ही अन्दर है तब उसे परिभाषा के अनुसार 'क' के सदस्य नहीं होना चाहिये। क्योंकि उसमें वही सेट हैं जो अपने सदस्य नहीं है लेकिन इस दशा में वह अपना सदस्य हो जाता है।
यदि वह सेट 'ख' में है। तब सेट 'ख' की परिभाषा के अनुसार जिसमें वे सेट हैं जो अपने सदस्य हैं अथार्त उसे सेट 'क' में होना चाहिये।
यह एक खण्डनात्मक निष्कर्ष दे रहा है। इसलिये हमारा पूर्व में मानना कि सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) है, गलत है।
इसका अर्थ यह हुआ कि 

  • सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट (Universal set or set of all sets) नहीं हो सकता है, या
  • दूसरे शब्दों में ईश्वर आस्तित्व नहीं है।
QED'
यह लिख कर ईकबाल ने इस बोर्ड को ऊपर किया ताकि सब पढ़ सकें। इसी बीच निर्णायकों ने पुरुस्कार घोषित किये जिसमें विज्ञान के किसी भी विभाग के विद्यार्थी को कोई पुरुस्कार नहीं मिला पर सबसे ज्यादा तालियां तो इकबाल को यह प्रमेय लिखने के लिये मिलीं।

मैंने ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर का जिक्र करते समय ओपेन कोर्स वेयर का जिक्र किया था। एमआईटी दुनिया के बेहतरीन इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों में एक है। इसमें डगलस आर हॉफेस्टैडर की लिखी पुस्तक 'गर्डल, ऍशर, बाख: एन ईटर्नल गोल्डेन ब्रेड' पर भी एक कोर्स है। यह ओपेन कोर्स वेयर में यूट्यूब पर है। इसमें कुछ भाग विरोधाभास पर है। इसका उस भाग को, जिसमें समझाया गया है कि सर्वभौमी या सर्वव्यापी सेट नहीं हो सकता है, नीचे देख सकते हैं। जिस सेट को मैंने ऊपर 'क' से दर्शाया है उसे इस वीडियो में ओमेगा Ωसे दर्शाया गया है। 




यह केवल तर्क की बात है। मैंने इसे केवल यह बताने का प्रयत्न किया है कि यह भी  ऍपीमेनेडीज़ या लाएरस् विरोधाभास का रूप है। इससे न तो ईश्वर का आस्तित्व नकारा जा सकता है, न ही मैं ईश्वर पर आस्था रखने वालों का भावनाओं को दुख देना चाहता हूं।

श्रृंखला 'तू डाल डाल, मैं पात पात' की कड़ियां
भूमिका।। नाई की दाढ़ी को कौन बनाता है।। नाई, महिला है।। मिस्टर व्हाई - यह कौन हैं।। गणित, चित्रकारी, संगीत - क्या कोई संबन्ध है।। क्या कंप्यूटर व्यक्तियों की जगह ले सकते हैं।। भाषायें लुप्त हो जाती हैं - गणित के सिद्घान्त नहीं।। ऐसा कोई कंप्यूटर नहीं, जिसे हैक न किया जा सकता हो।। साइबर या कंप्यूटर कानून क्या होता हैभारत में साइबर कानून।। साइबर कानून का उल्लंघन और उसके उपाय।। कंप्यूटर या सर्वर को लक्षय कर किये गये साईबर अपराध।। साइबर अपराध, जिनका लक्षय कंप्यूटर नहीं होता है।। अन्तरजाल, एकांतता का अन्त है।।

श्रृंखला 'तू डाल डाल, मैं पात पात' के पुनः लेख
ईश्वर का आस्तित्व नहीं है।। अनन्तता ही ईश्वर है।। 

About this post in Hindi-Roman and English 
Epimenides' or liar's virodhabhas ka ek roop yeh bhi sidh karta hai ishwar nheen hai. yeh chitthi isee ke bare mein hai. yeh chitthi {devanaagaree script (lipi)} me hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi me padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

One of the interpretation of Epimenides' or liar's paradox also proves that there is no God. This post is about the same. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

सांकेतिक शब्द
। Epimenides' or liar's paradox, Russell's paradox, Barber's paradox,
। Mathematics, set theory, universal set,
Hindi, पॉडकास्ट, podcast,

16 comments:

  1. ईश्‍वर जैसी किसी धारणा पर सेट नियमों से कैसे विचार किया जा सकता है, बढि़या उदाहरण.

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  2. पर बहुत से आणविक घटनाओं को देखकर लगता है कि उनमें intelligence है। विज्ञान को यह सिद्ध करना, ईश्वर के अस्तित्व को मान लेने से अधिक कठिन है।

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  3. एक ही शब्द वाह... सेट थ्योरी से ईश्वर तक...

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  4. ईश्वर को जो बाहर खोजते हैं वे अज्ञानी हैं :)

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  5. यहाँ ईश्वर की तुलना यूनिवर्सल सेट से की गई है. जबकि हमारे ग्रंथों के अनुसार ईश्वर की तुलना किसी भी चीज़ से नहीं हो सकती. अतः उपरोक्त नियम लागू ही नहीं होंगे.

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  6. इस मामले में लोग अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग सुनाते नजर आते हैं, कोई किसी की मानने को तैयार नहीं है।

    आश्‍चर्य तो होता है कि लोग ईश्‍वर को सिद्ध करने पर उतारू रहते हैं, पर ईश्‍वर कभी स्‍वयं को सिद्ध करने हाजिर नहीं होता। :)
    ---------
    कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
    ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

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  7. प्रमेय वाकई रोचक है। तार्किक समझ अपनी राह खोज लेती है।
    शुक्रिया।

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  8. .
    .
    .
    आश्‍चर्य तो होता है कि लोग ईश्‍वर को सिद्ध करने पर उतारू रहते हैं, पर ईश्‍वर कभी स्‍वयं को सिद्ध करने हाजिर नहीं होता। :)

    हाजिर होने के लिये भी सबसे बड़ी शर्त है 'होना', वह ईश्वर पूरी नहीं करता, यही लेख का सार भी है... क्यों इतना आश्चर्य कर रहे हैं जाकिर अली 'रजनीश' जी ?



    ...

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    1. जो है ही नहीं - वह हाज़िर कैसे हो ?
      और जो हाज़िर हो - उसे इश्वर कैसे माना जाए ?
      :)

      तो यह तो वही question है की मुर्गी पहले आई या अंडा ?

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    2. विज्ञान, वह युक्ति है जो प्रत्येक अस्तित्व को प्रमाणिकता प्रदान करती है। जिसका अस्तित्व नही होता, विज्ञान के लिए उसे प्रमाणित करना असंभव है।

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  9. यूनिवर्सल सेट नयी जानकारी

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  10. Tarun4:43 pm

    हैरानी की बात है कि वर्ष २०११ में भी ईश्वर जैसी फ़ालतू चीज़ पर इतनी टीका टिप्पणी करी जा सकती है. दीन-धर्म नाम की इस अफ़ीम का सेवन हमारे समाज में बख़ूबी किया जाता है. जंतर-मंतर, धुएँ, गड़बड़ और शोर-शराबे में भारतवर्ष को सदा ही महारत हासिल रही है. गड़े मुर्दों, बंद संदूक़ों और चुन्धियाई हुई रोशनियों से यहाँ कितने लोगों को बेपनाह मुहब्बत है. साहब, बड़े शर्म की बात है!

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  11. Mandelbrot और Julia सेट बहुत ही आकर्षित करने वाले सेट लगते हैं। हमें, आपके मित्र द्वारा दिया गया तर्क सार्थक और उचित लगता है। क्योंकि जब हम कहतें कि संरचना गोल है। तब गोल होने की शर्त के मुताबिक उस संरचना में एक केंद्र और उस संरचना की परिधि 2∏r सूत्र से ज्ञात होनी चाहिए। फिर चाहे उस संरचना का आयतन, घनत्व और आकर कुछ भी क्यों न हो।

    आज से दो वर्ष पूर्व मैंने एक पुस्तक (प्रकृति के रहस्य खोलते ~ "नर्मदा घाटी के जीवाश्म" ) पढ़ी थी। जिसमे "जेम्स लवलॉक" की गइया परिकल्पना दी गई थी। परिकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड एक विशाल जीव है। भू-मंडल, जीवमंडल, जलमंडल और वायुमंडल ठीक उसी तरह से हैं। जैसे की मनुष्य के शरीर में ऊतक हैं। उतकों का आधार वही है जो हम खाते हैं।

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  12. उन्मुक्त जी, जितनी मेहनत एक लेख तैयार करने में लगती है। ठीक उतनी ही मेहनत उस लेख पर टिप्पणी करने में भी लगती है। शुक्रिया..

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आपके विचारों का स्वागत है।