थॉम दुकान पर बुके के साथ |
इस चिट्ठी में, चेन्नई में फूल बेचने वाले लड़के, थॉम से मुलाकात की चर्चा है।
चेन्नई में मुझे अपने मित्र के यहां सुबह नाश्ते पर जाना था। मैंने सोचा कि उसकी पत्नी के लिए कुछ फूल ले चलूं। उसके घर जाते समय, रास्तें में एक १४-१५ साल का लड़का फूलों के साथ खड़ा हुआ था। मैंने रूक कर, उससे फूल लिया।
मुझे बहुत फूलों वाले बुके देना नहीं पसंद है। मैं हमेशा केवल एक ही फूल देना पसंद करता हूं। इसमें पैसा बरबाद नहीं होता है और भावना भी व्यक्त हो जाती है।
मैंने लड़के से नारंगी रंग का गुलाब लिया और पैक करने को कहा। उसने बताया,
'मेरा नाम थॉम है। मैं चेन्नई से नहीं हूं। मुझे तमिल नहीं आती है पर हिन्दी अच्छी आती है।'मुझे लगा कि वह उत्तर भारत से है।
थॉम ने उस गुलाब के फूल के साथ एक मोरपंखी की डंठल को प्लास्टिक में पैक किया। उसके बाद एक चमकती हुई पन्नी लगायी। इसके लिए उसने मुझसे दस रूपये लिये।
मैंने उससे पूछा कि क्या यह दुकान तुम्हारी है उसने जवाब दिया,
'यह दुकान मेरी नहीं है। मेरे मालिक की है और मैं उसके लिये काम करता हूं।'मैंने पूछा कि तुम्हें कितना पैसा मिलता है। उसने कहा,
'मालिक मुझे रहने की जगह और खाने के साथ, प्रतिदिन का दस रूपया देते हैं।'मैंने उससे पूछा कि कितने फूल बेच लेते हो। उसने कहा,
'यह निर्भर करता है कि समय कैसा है। शादी के समय ज्यादा फूल बिकते है। उस समय मैं कम से कम ५००/-रूपये का फूल बेच लेता हूं।'उसने फूलों को बहुत अच्छी तरह से पैक किया। लगता था कि वह इसमें माहिर है।
मैंने उससे पूछा कि क्या तुम पढ़ते हो उसने कहा सर हिला कर मना किया। यह सुनकर थोड़ा सा दुख हुआ। काश, वह जिसके साथ रहता हो, वह उसे स्कूल में भी भेजते तो शायद थॉम का जीवन बेहतर हो जाता। यदि इस चिट्ठी के पढ़ने वालो में,
- वह व्यक्ति भी हो, जिसके साथ थॉम काम करता है तो मैं चाहूंगा कि वह थॉम को पढ़ने के लिये भेजे;
- उस व्यक्ति का कोई मित्र हो तो वह उस व्यक्ति को, थॉम को स्कूल भेजने के लिये प्रेरित करे।
मैं चेन्नई एक सम्मेलन में मुझे भाग लेने के लिए गया था। दोपहर में, मैंने उसमें भाग लिया तथा अपनी बात सबके सामने रखी। वह सराही भी गयी। हांलाकि, वह अंग्रेजी में था। उसके बाद हम लोग जल्दी सो गये। क्योंकि अगले दिन सुबह हमें वापस दिल्ली जाना था।
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में, बसंतकुज दिल्ली की डी.टी. स्टार प्रॉमेनेड मॉल की, ओम शांति बुक स्टॉल से, 'एनीथिंग फार यू मैम' (Anything for you Ma'am) पुस्तक खरीदने चलेंगे।
मां की नगरी - पॉन्डेचेरी यात्रा
हो सकता है कि लैपटॉप के नीचे चाकू हो।। कोबरा मेरे हाथ पर लिपट गया।। घोड़ा डाक्टर, गायों और भैंसों की लात खाते थे।। पॉन्डेचेरी फ्रांसीसी कॉलोनी थी।। शाम सुहानी लग रही थी।। महिलाएं बेवकूफ़ बन रही हैं।। पैंतालिस मिनट में पांच हजार लोगों का खाना।। यह स्कूल अनूठा है।। शिव ने पार्वती को चूम लिया।। अरबिन्दो के संपर्क के आने से पहले, मां की शादी हो चुकी थी।। मातृमन्दिर, ऑरोविल की आत्मा है।। ऑरोविल की सबसे अच्छी बात - इसकी हरियाली।। हमें बहुत पैसा मिल रहा है।। मैं आमिर खान हूं।। हिन्दूओं ने भी मन्दिर तोड़े।। भगवान को भी जलन होने लगी।। सात हाथी मिलकर भी नहीं हिला सके।। टाइगरकेव - देवी दुर्गा का पुण्य स्थल।। संगीतकार ऐ.आर. रहमान की सबसे बेहतरीन सुबह।। क्या शाकाहारी खाना भी, इतना स्वादिष्ट हो सकता है।। काश, थॉम स्कूल जा पाता।।
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सचमुच अगर वह स्कूल जा पाता!
ReplyDeleteकाश ऐसा हो सकता!
ReplyDeleteSadly there are thousands of Thoms..... hope all the employers of such Thoms do encourage ( and help ) them to go to school...
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I will wait for you to get that book and would like to see through you that if there is "anything for me " :)
कम से कम रात्रि स्कूल में ही इन बच्चों को भेजने के लिए उत्साहित किया जा सके...
ReplyDeleteथॉम को सुखद भविष्य मिले ...यही कामना..
ReplyDeleteउसके अधिकार को आकार मिले।
ReplyDeleteऐसे थॉम कदम कदम पर मिल जाते हैं। पता नहीं क्यों नहीं जा पाते हैं ये सब स्कूल।
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चित्रावलियाँ।
कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..