Saturday, October 23, 2021

दीवाली तो है ही जश्न का त्योहार

फैबइंडिया के दिवाली विज्ञापन पर, दो आपत्तियां हैं: इसे 'जश्न-ए-रिवाज' कहना और मॉडलों का बिंदी न लगाना। इस चिट्ठी में, इसी पर चर्चा है।

फैबइंडिया का ट्वीट और विज्ञापन

दीवाली या दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनायी जाती है। मान्यता है कि आज के दिन ही, भगवान राम १४ साल बाद रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन पर लोगों ने उनके स्वागत में, दिये जाये थे। इसलिये इस दिन दिये जलाये जाते हैं। 

जैन धर्म के लोग, इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में, और सिख इसे, बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। 

कारण अलग हो सकते हैं पर सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय दर्शाते हैं। 

अपने देश में बहुत से त्योहार हैं जिन्हे सब धर्म के लोग मनाते है। ईद में तो मुसलमान दोस्तों के यहां सेवंई और बड़े दिन पर ईसाई मित्रों के यहां प्लम केक का लुफ्त ही अलग है।

दीवाली भी इसी तरह का त्योहार हैं। यह धर्मों से परे हैं। मैं नहीं जानता कि कोई दीवाली बीती हो जिस पर मेरे मुसलमान या ईसाई दोस्तों ने घर आकर पटाके या फुलझड़ी न जलाई हो। 

बचपन  में घर में दीवाली - बायें से, एक ईसाई मित्र (मैं नहीं जानता इस समय वह कहां है), फिर मैं,  बीच का मित्र जो कैनाडा चला गया था अब वहां चला गया जहां से कोई नहीं आता। उसके बाद वाला बंगाली मित्र वह वह भी वहां चला गया, जहां से कोई वापस नहीं आता। सबसे दाहिने एक पंजाबी मित्र, जो कैनाडा चला गया। 

अलग अलग भाषा का प्रयोग करने से, त्योहार नहीं बदलते। दीवाली को फेस्टिवल ऑफ लाइट्स कहने से, यह ईसाई या 'जश्न-ए-रिवाज' कहने से यह मुसलमान या इब्राही नहीं हो जाता। दीवाली तो खुशियों का त्योहार है, जश्न मनाने का त्योहार है। इसे 'जश्न-ए-रिवाज' नहीं कहेंगे तो फिर क्या कहेंगे। 

दीवाली को 'जश्न-ए-रिवाज' कहने पर, न तो भगवान राम के आयोध्या आने की खुशी में कमी होती है न ही बुराई पर अच्छाई की जीत मिटती है। दीवाली को 'जश्न-ए-रिवाज' कहना तो यह बताता है कि दिवाली सब धर्मों का त्योहार है। यह हम सब को - चाहे हम किसी भी धर्म के हों - निराशा से आशा की ओर ले जाता है। 

मेरी मां ने न कभी बिन्दी लगायी न ही सिन्दूर। इस कारण कहना या सोचना कि वे हिन्दू नहीं रहीं - गलत है। इस बारे में, मैंने इसकी चर्चा यहां की है। 

मेरे जान  पहचान में, अनेकों मुसलमान, ईसाई, महिलायें हैं जो बिन्दी लगाती हैं।  बचपन में दूरदर्शन की बहु-चर्चित समाचार-वाचिका - सलमा सुलतान अक्सर बिन्दी लगा कर समाचार सुनाती थीं। इसका अर्थ यह नहीं कि वे हिन्दू हो गयीं। 

यदि कपड़े बेकार हों, जरूरत न हो,  तो बेशक खरीदना गलत होगा। लेकिन, यदि कपड़े अच्छे हों जरूरत हो तब भी, उन्हें केवल इसलिये नहीं खरीदना कि मॉडल ने बिन्दी नहीं लगा रखी है - न केवल  गलत होगा पर हास्यापद भी।

पिछले समय में, कुछ बेहतरीन विज्ञापन आये - होली का सर्फ एक्सल पर, गोद भराई पर तनिष्क का। इन पर चन्द लोगों ने आपत्ति जतायी। इसके बारे में मैंने 'यह हम क्या कर रहे हैं' और 'हम कहां जा रहे हैं' शीर्षक नाम से चिट्ठीयां लिखीं। फैबइंडिया का, दिवाली पर 'जश्न-ए-रिवाज' विज्ञापन इसी तरह का है। यह बेहतरीन है। लेकिन कुछ लोगों को आपत्ति है। 

लोगों की आपत्तियां, उनकी व्यक्तिगत राय है, उन्हें अपनी बात कहने का अधिकार है। लेकिन हम सवा कड़ोड़ से भी अधिक हैं। कुछ लोगों का आपत्ति जताना, देश की राय नहीं है। मेरे विचार में, फैबइंडिया का, इस विज्ञापन को वापस लेना गलत है, कायरता है। हमें सुधरना होगा, यदि हम नहीं बदले, तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेंगी।

About this post in Hindi-Roman and English
Fabindia ke vigyapan pr do aapttiyan hain: ise Jashne-e-rivaz kahna aur modelon ka Bindi na lagana. Is chitthi mein, isee per charcha hai. yeh hindi (devnaagree) mein hai. ise aap roman ya kisee aur bhaarateey lipi mein  padh sakate hain. isake liye daahine taraf, oopar ke widget ko dekhen.

There are two objections to Fabindia Diwali advertisement: naming it Jashne-e-Riwaj and no-wearing of Bindis by the models. This post in Hindi (Devanagari script) is about this controversy. You can read it in Roman script or any other Indian regional script also – see the right hand widget for converting it in the other script.

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1 comment:

  1. Anonymous12:42 am

    क्या कभी Fab India ने “शुभ ईद” या “मंगलमय बड़ा दिन” कह कर कोई advertisement बनाया है ?

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