रामानुजन की चिट्ठी पढ़ने के बाद, हार्डी को लगा कि शायद, रामानुजन, रीमैन अनुमान सिद्ध कर सकता है। उसे ऐसा क्यों लगा, इसी बात की चर्चा, इस चिट्ठी में है।
रीमैन-ज़ीटा सूत्र |
हार्डी ने वर्ष १९०९ में, ऑर्डरस् ऑफ इनफिनिटी (Orders of Infinity) नाम से एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उसने लिखा था कि कोई ऎसा तरीका नहीं है जिससे पता चल सके कि किसी नम्बर से कम कौन से अभाज्य नम्बर हैं।
रामानुजन ने अपने पत्र में हार्डी की इस पुस्तक में जिक्र करते हुए लिखा है कि उसने एक ऎसा सूत्र निकाला है जिससे यह पता चल सकता है कि किसी नम्बर से कम कितने अभाज्य नम्बर होगें और यह तरीका वास्तविकता से एकदम मिलता है और इसमें ग़लती की कोई गुजाइंश नहीं है। यही बात रीमैन अनुमान में कही गयी थी। तो क्या रामनुजन ने रीमैन अनुमान को सिद्ध कर दिया था?
मैंने पिछली चिट्ठी में लिखा था कि चिट्ठी के कुछ प्रमेयों ने हार्डी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। वह प्रमेय निम्न हैं।
१+२+३+४+....+ ∞= -१/१२
१२+२२+३२+....+ ∞२= ०
१३+२३+३३+....+ ∞३= १/१२०
हार्डी को जब पत्र मिला तब उसे लगा कि रामानुजम वह व्यक्ति है जो इसे सिद्ध कर सकता है। आइये देखें कि क्यों हार्डी को लगा कि रामानुजन इसे सिद्ध कर सकता है। आइये एक बार पुनः रीमैन ज़ीटा सूत्र जो कि इस चिट्ठी के शुरू में है, को देखें।
इस सूत्र में, x + iy का मान -१ या -२ या -३ हो तब दाहिने तरफ का सूत्र शायद इस तरह से लिखा जा सकता है,
१/१-१+१/२-१+१/३-१+...+∞-१
१/१-२ +१/२-२+1/३-२+...∞-२
१/१-३+१/२-१/३+१/३-३+... +∞-३
रामनुजन ने गणित अपने तरह से पढ़ी थी उसने इसे ऊपर लिखे प्रमेयों में बायीं तरफ के तरीके से लिख लिया।
रीमैन ज़ीटा सूत्र का मान -१, -२, -३ के लिये -१/१२, ०, १/१२० होता है जिसे उसने अपने प्रमेयों में दायी तरफ लिख लिया। हार्डी और लिटिलवुड समझ गये कि रामानुजन अपनी तरह से रीमैन-ज़ीटा सूत्र की बात कर रहा है। लेकिन इसे हिलमैन नही समझ पाये थे।
उस समय, गणित में, इंगलैण्ड का स्तर, जर्मनी से सालों पीछे था और भारत, इंगलैण्ड से सदियों पीछे था। यह संभव नहीं था किसी भारतीय को रीमैन-ज़ीटा सूत्र के बारे में कुछ भी मालुम हो। रमानुजन ने अपने पत्र में, ऐसे तरीके की भी बात की थी कि किसी अंक से कम कितने अभाज्य अंक होंगे। इसी से उन्हें लगा कि रमानुजन रीमैन अनुमान को सिद्ध कर सकता है।
अगली बार, रामानुजन के कैम्ब्रिज पहुंचने की चर्चा करेंगे।
अनन्त का ज्ञानी - श्रीनिवास रामानुजन
भूमिका।। क्या शून्य को शून्य से भाग देने पर एक मिलेगा।। मैं तुम्हारे पुत्र के माध्यम से बोलूंगी।। गणित छोड़ कर सब विषयों में फेल हो गये।। रामानुजन को भारत में सहायता।। रामानुजन, गणित की मुशकिलों में फंस गये हैं।। दिन भर वह समीकरण, हार्डी के दिमाग पर छाये रहे।। दूसरा न्यूटन मिल गया है।। अभाज्य अंक अनगिनत हैं।। दस खरब असाधारण शून्य सीधी पंक्ति में हैं।। दस लाख डॉलर अब भी प्रतीक्षा में हैं।। मेरे जीवन का रूमानी संयोग शुरू हुआ।। गणित में, भारत इंगलैंड से सदियों पीछे था।।
सांकेतिक शब्द
। Ramanujan's letter to Hardy, prime numbers, Euclid, Bernhard Riemann, Riemann hypothesis, Riemann zeta function, । Srinivasa-Ramanujan,
। book, book, books, Books, books, book review, book review, book review, Hindi, kitaab, pustak, Review, Reviews, science fiction, किताबखाना, किताबखाना, किताबनामा, किताबमाला, किताब कोना, किताबी कोना, किताबी दुनिया, किताबें, किताबें, पुस्तक, पुस्तक चर्चा, पुस्तक चर्चा, पुस्तकमाला, पुस्तक समीक्षा, समीक्षा,
। जीवनी, जीवनी, जीवनी, biography,
एक सदी पीछे होना स्वाभाविक है क्योंेकि अंग्रेजों ने ही स्थापित शिक्षातन्त्र तहस नहस कर दिया था।
ReplyDeletewe remain forward only in population in every era.
ReplyDeleteरोचक पोस्ट।
ReplyDelete१.हम बहुत आगे थे, लेकिन गुलामी ने पीछे धकेल दिया.
ReplyDelete२.गणित अपार सम्भावनाओं का संसार है.
मगर प्राचीन भारत में गणित का उत्स दिखता है ??
ReplyDeleteअरविन्द जी, आप ठीक कहते है। हम उस समय यानि कि बीसवीं सदी के शुरू में, पीछे थे। प्राचीन समय में तो हम आगे थे।
Deleteप्रवीन जी औे भारतीय नागरिक, ठीक ही कहते हैं। गुलामी ने ही हमारी जड़ें कमजोर कर दीं।